आमिर खान से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत
आमिर खान से लंबी बातचीत। दो साल पहले हुई यह बातचीत कई खास मुद्दों को छूती है.
- आमिर आप लगातार चर्चा में हैं। अभी थोड़ा ठहरकर देखें तो आप क्या कहना चाहेंगे?
0 सच कहूं तो मैं कंफ्यूज हूं। मैं अपने इर्द-गिर्द जो देख रहा हूं। मीडिया में जिस तरह से रिपोर्टिग चल रही है। टेलीविजन और प्रेस में जो रिपोर्टिग चल रही है, जिस किस्म की रिपोर्टिग चल रही है, जिस किस्म का नेशनल न्यूज दिखाया जा रहा है उससे मैं काफी कंफ्यूज हूं कि यह क्या हो रहा है हम सबको। हम किस दौर से गुजर रहे हैं। झूठ जो है, वह सच दिखाया जा रहा है। सच जो है, वह झूठ दिखाया जा रहा है। जो चीजें अहमियत की नहीं हैं, वह नेशनल न्यूज बनाकर दिखायी जा रही है। लोगों की जिंदगी नेशनल न्यूज बनती जा रही है। समाज के लिए जो महत्वपूर्ण चीजें हैं, उन्हें पीछे धकेला जा रहा है। यह सब देखकर मैं हैरान हूं, कंफ्यूज हूं।- आप फिल्म इंडस्ट्री से हैं, आपने बहुत करीब से इसे जिया और देखा है। अभी के दौर में एक एक्टर होना कितना आसान काम रह गया है या मुश्किल हो गया है?0 जिंदगी अपने मुश्किलात लेकर आती है। हर करियर में अपनी तकलीफें और मुश्किलात होती हैं। एक एक्टर और सफल एक्टर होने पर आप अलग किस्म की मुश्किलों और मुद्दों का सामना करते हैं। खासकर इस दौर में जब मीडिया में इतना कंपीटिशन है हर रोज एक नया टेलीविजन चैनल आ रहा है, हर टेलीविजन चैनल दूसरे चैनल से कंपीट कर रहा है और उस कंपीटिशन में वह ऊंटपटांग न्यूज जल्दी से जल्दी देना चाह रहा है। अगर आप सफल एक्टर हैं तो आपका किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है या आपके बारे में लोग कैसी चीजें उछाल रहे हैं। कुछ सही, कुछ गलत, ज्यादा गलत। इस माहौल में एक एक्टर के तौर पर मेरा क्या रेस्पांस होना चाहिए। किस तरह से इसे मुझे डील करना चाहिए। ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सिर्फ टेलीविजन ही नहीं। नेशनल प्रेस में भी हो रहा है यह। बड़े अखबार भी सनसनी पर उतर आए हैं। औरतों की नंगी तस्वीरें दिख रही अखबारों में, जहां नेशनल न्यूज छपना चाहिए। ऐसी सूरत में एक व्यक्ति, एक एक्टर और उस पर भी सफल एक्टर होने के नाते यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि मैं कैसे पेश आऊं, क्या करूं?
- पिछले कुछ सालों में सफल स्टार को बिकाऊ प्रोडक्ट बनाकर पेश किया जा रहा है। आपके प्रति फिल्म इंडस्ट्री, समाज और बाजार का यही रवैया है। हर कोई आपको क्रिएटिव व्यक्ति के तौर पर नहीं देखकर बेची जा सकने वाली एक वस्तु समझ रहा है?
0 आप सही कह रहे हैं। आपने सही समझा है। मैं कहूंगा कि इसे व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए। सिर्फ फिल्मों में ऐसा नहीं हो रहा है। चूंकि मैं फिल्म एक्टर हूं । इसलिए मेरी जो फिल्में हैं ़ ़ ़ उन्हें देखना होगा कि किस किस्म की फिल्में हैं। बाजार मुझे किस तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। बाजार हमेशा मुझे या किसी और को भी इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा अपने फायदे के लिए ़ ़ ़ जो होना भी चाहिए कुछ हद तक, लेकिन हम क्रिएटिव फील्ड में हैं और मुझे एक क्रिएटिव आर्टिस्ट के तौर पर उसे संतुलित करना पड़ेगा। मुझे मालूम है कि आजकल किस तरह की फिल्म सुपरहिट हो रही है या किस तरह की फिल्म चल रही है, लेकिन मुझे एक आर्टिस्ट के तौर पर ऐसा भी काम करना है जो सफल हो या न हो, लेकिन मेरा जी कर रहा है कि मैं ये करूं ़ ़ ़ 'रंग दे बसंती', 'मंगल पांडे', या 'लगान' करूं।भले ही ये फिल्में पहली नजर में न लगें कि चलनेवाली है, लेकिन मैं क्रिएटिवली मैं वह करना चाह रहा हूं, जो दिल चाह रहा है। इस मामले में मैंने अपने लिए सही फैसले लिए। मैं अभी तक बिका नहीं हूं। मैं क्रिएटिवली सही फैसले ले रहा हूं। मैं बाजार को इजाजत नहीं दे रहा हूं कि वह मुझे गलत तरीके से इस्तेमाल करे। अपने क्रिएटिव चुनाव के साथ ही मैं बाजार को सफल फिल्में भी दे रहा हूं। अपने क्रिएटिव चुनाव के साथ मैं सफलता दे रहा हूं। मैं संतुलित होकर चल रहा हूं फिल्मों में ़ ़ ़ लेकिन मेरा इस्तेमाल सिर्फ फिल्मों में नहीं होता। मेरा इस्तेमाल न्यूज पेपर बेचने में भी होता है, चैनल की व्यूवरशिप बढ़ाने में भी होता है। किसी कॉमेडी शो में मेरा मजाक उड़ाकर उसे बेचा जाता है, क्योंकि वह आमिर खान का मजाक उड़ाएंगे तो दर्शक देखेंगे। या न्यूज चैनल पर दस दफा नाम लेंगे ़ ़ ़ यह सिर्फ आमिर खान की समस्या नहीं है। हर सेलिब्रिटी के साथ यही हो रहा है। सेलिब्रिटी का इस्तेमाल सिर्फ फिल्मों में ही नहीं हो रहा है, बल्कि संबंधित मीडिया - टेलीविजन, न्यूजपेपर हो ़ ़ ़ उसमें भी इस्तेमाल किया जा रहा है। वह हमारे नियंत्रण में नहीं है कि वे हमारे बारे में क्या कह रहे हैं? वे सही कह रहे हैं या गलत कह रहे हैं ़ ़ वह तो दूर की बात है। मेरी शादी, जो मेरे लिए एक पवित्र चीज है, जो मेरे लिए बहुत ही पर्सनल चीज है। उसका खिलवाड़ बनाया गया, जिस पर मेरा कोई कंट्रोल नहीं था। यहां मेरे घर के सामनेवाली सड़क पर आठ-दस ओबी वैन खड़ी थी। जब हम पंचगनी गए ़ ़ ़ परिवार और नजदीकी दोस्तों के साथ तो वहां पर उन्होंने घुसने की कोशिश की। प्रेस ने, टेलीविजन ने और जितनी रिपोर्टिग हुई है ़ ़ ़ मैं अपने प्रशंसकों को कहना चाहूंगा कि मेरी शादी की 99़ 99 प्रतिशत रिपोर्टिंग गलत हुई है। वह गलत मैं इसलिए कह रहा हूं कि वे पहुंच नहीं पाए। मुझ तक या मेरे परिवार तक वे पहुंच नहीं पाए तो वे मनगढ़ंत चीजें बनाते गए। कि आज शादी में ये हो रहा है और आज ये पका है और आज ़ ़ ़ जुनैद ने ये कहा, आयरा ने वो कहा ़ ़ ़ ये सब वे अपने मन से लिख-बोल रहे थे। यह सब गलत बात है, लेकिन दुर्भाग्य से हम इस दौर में रह रहे हैं, जहां मुझ जैसी सेलिब्रिटी का ऐसा इस्तेमाल हो रहा है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि प्रेस और टेलीविजन को मालूम था कि शादी मेरी पर्सनल चीज है और मैं उसे पर्सनल रखना चाहता हूं। वे उसकी इज्जात नहीं करते। इसका क्या इलाज है मैं खुद नहीं जानता हूं।
- मीडिया की शिकायत थी और इंडस्ट्री के कुछ स्टार भी सोच रहे थे - आमिर को मालूम है कि वह देश के चहेते स्टार हैं और वह शादी करने जा रहे हैं। उनकी शादी एक खबर है और उस खबर की रिपोर्ट होनी चाहिए। उस समय आपके समकालीन एक स्टार का कहना था कि मीडिया से मिलकर अपनी बातें कहकर आपको नमस्ते कर लेना चाहिए था। मीडिया की राय है कि सार्वजनिक जिंदगी में होने के कारण आप खुद को ऐसी स्थितियों से काट नहीं सकते।
0 आपके इस सवाल का जवाब देने के बजाए मैं सवाल करना चाहता हूं कि आखिर क्यों मैं अपनी जाति जिंदगी पर सार्वजनिक रूप से बहस करूं? क्यों करूं मैं? क्योंकि प्रेस चाहता है? क्योंकि मीडिया इससे पैसा बनाना चाहता है। क्योंकि टेलीविजन चैनल अपने इश्तहार बेचते हैं उस टाइम स्लॉट में। मैं अपनी जाति जिंदगी को सोप ऑपेरा क्यों बनाऊं? क्या मुझे हक नहीं है एक इंसान के तौर पर यह फैसला लेने का कि मैं अपनी शादी में किस को बुलाऊं ़ ़ ़ अपनी शादी के बारे में मैं किस से बात करूं और किस से बात न करूं, यह तय करने का हक मेरा होना चाहिए कि मीडिया का होना चाहिए। मैं इस देश के एक आम इंसान से पूछना चाहता हूं कि आपकी कल शादी होनेवाली है ़ ़ ़ तो इसका फैसला आप और आपका परिवार करेगा या देश का मीडिया?
- यह बात कितनी सच है कि आप मीडिया से नाराज हैं?
0 मैं सभी को एक तराजू में कभी नहीं तौलता हूं। मेरी समझ में हर इंसान अलग किस्म का होता है। मीडिया में कई लोग अच्छे हैं और कई लोग बुरे हैं। मीडिया में कई ऐसे लोग हैं, जिनसे मेरी शिकायत है और मीडिया में कई ऐसे लोग हैं, जिनसे मेरी कोई शिकायत नहीं है। मेरी समझ से यह आज पूरी तरह पैसे का खेल हो गया है, क्योंकि नए -नए न्यूजपेपर आ गए हैं। सीा चाहते हैं कि मुझे रीडर मिले। मुझे ज्यादा रीडिरशिप मिलेगी तो मुझे ज्यादा इश्तहार मिलेगा। टेलीविजन की ज्यादा व्यबरशिप होगी तो विज्ञापन के ज्यादा पैसे मिलेंगे। यह पूरा पैसे का खेल हो गया, जबकि मेरे खयाल से न्यूज रिपोर्टिग जिम्मेदारी का काम है। पूरा देश आपकी बात सुन रहा है। पूरा देश जानना चाह रहा है कि देश में सबसे अहम चीज क्या हुई और वह अहम चीज किसी स्टार से किसी स्टार के अफेयर या उनकी शादी टूटी या उनका कुत्ता गुम गया ़ ़ ़ यह तो अहम न्यूज नहीं है न।़ बहुत सी चीज हो रही हैं देश में। लोग गरीबी से मर रहे हैं। किसान मर रहे हैं। अहम खबरें पीछे होती जा रही हैं। इस वक्त अगर कोई सेक्टर सबसे ज्यादा भ्रष्ट है तो वह दुर्भाग्य से मीडिया है। मेरी यह प्रार्थना है कि आने वाले वालों में यह बात बरले। मीडिया वाचडॉग है। हम गलत काम करें तो आप रोकें। अभी तो मीडिया गलत काम कर रहा है ़ ़ उसे कौन रोकेगा? आज पॉलिटिशियन गलत करें, कोई भी गलत काम करे, पुलिस फोर्स है, ज्यूडिसरी है - तो उसे कौन सामने लाएगा। मीडिया ही न? न्यूज रिपोर्टिग ही यह चीज बाहर ला सकती है। यह सब छोड़कर आप यह दिखा रहे हैं कि कौन सा आई जी राधा बन गया तो आप प्राइम टाइम का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। अभी आप टीवी खोल कर देखें लें कि ब्रेकिंग न्यूज में क्या चल रहा है। ब्रेकिंग न्यूज प्रोग्राम हो गया है आजकल।
- आपने 'रंग दे बसंती' के समय से मीडिया से कोई बात नहीं की। इसके दो पहलू सामने आए - एक तो यह कि फिल्म के चलने या न चलने में मीडिया का कोई हाथ नहीं होता और दूसरे आमिर खान ने मीडिया से बदला लिया।
0 अच्छा सवाल है। आपकी सोच सही है। मैंने फिल्म की रिलीज के पहले एक भी इंटरव्यू नहीं दिया। मेरे अंदर ऐसी कोई भावना नहीं है कि मैं मीडिया को कुछ दिखाना चाह रहा हूं। मीडिया को नीचा दिखाने या बदले की भावना है ही नहीं। मैं किस से बदला लूंगा और क्या बदला लूंगा। मैं इतना परेशान और कंफ्यूज होकर चुप हो गया था। मेरे पास शिकायत आई थी कि मैं अपने फायदे के लिए मीडिया का इस्तेमाल करता हूं। तो पिछली बार मैंने सोचा कि चलो इस्तेमाल नहीं करता हूं। मेरे ऊपर लगा यह इल्जाम भी खत्म हो। अब 'रंग दे बसंती' सुपर-डुपर हिट हो गई तो मैं मीडिया को यह कहने की कोशिश नहीं कर रहा हूं कि देखो, मैंने दिखा दिया। यह मेरी भावना ही नहीं है। मीडिया में कई लोग हैं, जो काफी अच्छी रिर्पोटंग करते हैं और वे पिछले कई सालों से अच्छा काम करते आ रहे हैं। यह एक दौर है, जिससे हमारा नेशनल मीडिया गुजर रहा है? हर ग्रुप चाह रहा है कि मैं आगे बढूं। आगे बढ़ने के चक्कर में दुर्भाग्य से सभी अपनी जिम्मेदारी भूल कर अजीब काम कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा पाठकों को आकर्षित करने के लिए अजीबोगरीब चौंकानेवाली खबरें दी जा रही है। किसी गांव में किसानों के मरन की खबर बहुत उत्तेजक नहीं होगी।
- आजकल टीवी पर समाचार भी मनोरंजन हो गया है?
0 बिल्कुल, जबकि मेरी समझ में समाचार को समाचार होना चाहिए। आजकल मैं दूरदर्शन देखता हूं। वे समाचार के वक्त समाचार ही प्रसारित करते हैं। यही मेरा कहना है। यह बहुत खतरनाक ट्रैड है। तो मैंने मीडिया को कुछ नहीं दिखाया। मैं तो पीछे हट गया कि मुझे कुछ बोलना ही नहीं है।
- 'मंगल पांडे' के प्रति मिली प्रतिक्रिया से आप दुखी और उदास हैं और एक हद तक नाराज भी?
0 उस फिल्म की रिलीज के समय मीडिया के एक सेक्शन का रवैया मेरी समझ में नहीं आया। उस समय मैंने एक शब्द भी नहीं कहा था। आज आठ महीनों के बाद आपके पूछने पर जवाब दे रहा हूं। एक तथ्य पर गौर करें - मेरे पास हजारों स्क्रिप्ट आती है। मैं और भी कोई फिल्म कर सकता हूं। रोमांटिक या कॉमेडी फिल्म कर सकता हूं। मेरे पास फिल्मों की कमी नहीं है, फिर भी मैं एक ऐसा विषय चुनता हूं। जिस पर मुझे लगता है कि मुझे फिल्म बनानी चाहिए। हमारे देश के लोगों को यह फिल्म देखनी चाहिए। यह मेरी क्रिएटिव चाहत है और एक सामाजिक व्यक्ति के नाते यह मेरा फर्ज है। मैं जानता था कि यह फिल्म बहुत ज्यादा महंगी होनेवाली है। मालूम नहीं कामयाब हो या न हो, फिर भी मैं कोशिश की मेरी समझ में ऐसी कोशिश मैं करूं या कोई और करे ़ ़ ़ मीडिया को सपोर्ट करना चाहिए। सपोर्ट तो दूर की बात है ़ ़ ़ मीडिया के एक सेक्शन ने उस वक्त सिर्फ लथाड़ने की कोशिश की। हर रोज गलत और बुरी रिपोर्ट आती थी फिल्म के बारे में। रिलीज के पहले दिन खबर आई कई अखबारों में ़ ़ ़ उसमें से एक टाइम्स ऑफ इंडिया भी था कि फिल्म फ्लॉप हो चुकी है। कम से कम तीन-चार दिन रूकने के बाद आप कह सकते हैं कि फिल्म फ्लॉप हो चुकी है। पता करें कि कलेक्शन क्या है? फिर बताएं कि फिल्म हिट हुई है या फ्लॉप हुई है। पहले दिन या दूसरे दिन आप आर्टिकल छाप रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि आपने पहले से ही तय कर लिया है । क्योंकि न्यूज पेपर की प्रिटिंग एक दिन पहले होती है। आपने पहले से तय कर लिया कि मुझे इस फिल्म को फ्लॉप बताना है। वरना आपको कहां से पता चला कि फिल्म फ्लॉप है। अभी तक तो रिलीज नहीं है? अभी तक तो हमें दर्शकों का रिएक्शन नहीं मिला है। अगर 'मंगल पांडे' का उदाहरण लें तो 'मंगल पांडे' का पहले हफ्ते का कलेक्शन रिकॉर्ड ब्रेकिंग कलेक्शन था। आपकी पहले हफ्ते की रिपोर्टिग यही कह सकती है कि यह रिकॉर्ड ब्रेकिंग कलेक्शन है। रिलीज के दिन आपकी रिपोर्टिग अगर कुछ कह सकती है तो वह यही कह सकती है कि - एक फिल्म आई थी 'वीर जारा' जिसने पहले हफ्ते में तेरह करोड़ का धंधा किया था हिंदुस्तान में।और 'मंगल पांडे' ने उन्नीस से बीस करोड़ का धंधा किया है। तो तेरह से चौदह, सतरह, अठारह नहीं ़ ़ हम सीधे बीस करोड़ पर पहुंचे हैं। यह एक न्यूज है, हिस्ट्री है, यह रिकार्ड है। लेकिन उस वक्त ज्यादातर मीडिया ने यही रिपोर्ट किया कि फिल्म फ्लॉप है। किस आधार पर यह रिपोर्ट हुई है मुझे पता नहीं। क्योंकि मुझे जो रेस्पांस मिला है फिल्म का। पर्सनली मैं बात कर रहा हूं, क्योंकि कई जगह मैंने ट्रेवल किया। लोगों से मैं मिला। थिएटर में गया । मुझे फिल्म को मिक्स रेस्पांस मिला है। कई लोगों को यह फिल्म बेहद पसंद आई है, कई लोग निराश भी हुए हैं। शायद उन्हें इतिहास नहीं पता था कि उस वक्त क्या हुआ था। लेकिन हमें वह बताना था।
-उस समय 'मंगल पांडे' को लेकर विवाद हुए। खासकर रानी मुखर्जी के किरदार और मंगल पांडे के कोठे पर जाने को लेकर लोगों की आपत्ति थी?
0 यह विवाद हुआ कि हमलोगों ने सही इतिहास दिखाया या नहीं? इस संबंध में मैं लंबा-चौड़ा डिशकशन कर सकता हूं। मैं एक बड़ी अहम चीज कहना चाहूंगा इस मामले में। कैम्ब्रीज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हैं हिस्ट्री के, वह हेड ऑफ डिपार्टमेंट हैं हिस्ट्री के। उन्होंने एक आर्टिकल लिखा वहां के अखबारों में और 'मगल पांडे' की एतिहासिकता पर लगे आरोपों का खंडन किया। मैं तो उनको जानता भी नहीं। उन्होंने पढ़ा होगा। उन्होंने बताया कि किस तरह की फिल्म बिल्कुल सही है। हमने खूब रिसर्च की और जाहिर है कि हमने कुछ चीजें ऐसी की हैं जो इतिहास की किताबों में न हों। ये बात उस वक्त भी मैंने कही थी। ये बहुत पुरानी बात हो गई। ये मुझे बार-बार दोहराना नहीं है। उस वक्त यह भी निकला था कि मंगल पांडे की फैमिली के लोग हैं, जो कहते हैं कि हमने उनका किरदार सही तरीके से नहीं दिखाया। और वह वेश्या के कोठे पर दो दफा गए। हां,फिल्म के अंदर यह दिखाया है। लेकिन यह भी तो देखिए कि वह दो दफा क्यों गए हैं? वह किसी लड़की को खरीदने नहीं गए हैं। वह एक दफा गए एक लड़की को यह कहने कि अगर तुम भागना चाहती है तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं। एक औरत की लाचार या गरीब औरत जो मुश्किल में है, उसकी मदद करने गए हैं। यह उनको बुरे लाइट में तो नहीं दिखाता है, अच्छे लाइट में दिखाता है। और दूसरी दफा तब जाते हैं जब एक अंग्रेज अफसर बदतमीजी करता है एक औरत के साथ। उस समय वह उसको मारने जाते हैं। आप बताएं कि इसमें हमने क्या चरित्र हत्या की? मुझे तो समझ में नहीं आया। खैर , मेरा यह कहना है कि उस वक्त जो मेरी नाराजगी थी, वह प्रेस के एक सेक्शन से थी। उन्होंने इस फिल्म को सपोर्ट करना तो दूर, उन्होंने अपनी जान लगा दी यह प्रूफ करने में कि फिल्म फ्लॉप है।
-मंगल पांडे के बिजनेस के बारे में क्या कहेंगे।
0 अब आप फिल्मों का कलेक्शन देखें तो जो हिट फिल्म है उस दौरान की या उससे पहले की। जो फिल्में हिट मानी जाती है। जैसे 'मैं हूं ना', 'कल हो न हो' ये सारी फिल्में हिट मानी जाती हैं। इनसे तो हमने कम से कम दो या तीन गुणा ज्यादा धंधा किया है। मतलब इतने ज्यादा लोगों ने टिकट खरीदा है उस फिल्म का। 'मंगल पांडे' फ्8 या ब्0 करोड़ की फिल्म है। हमने अगर उतना धंधा किया है तो हम सिर्फ अपना खर्च निकाल पाए हैं। लेकिन आप यह देखिए कि एक एक्टर के तौर पर मेरे लिए वह फिल्म बड़ी सक्सेस है। एक एक्टर के तौर पर मैं उस फिल्म से बड़ा खुश हूं कि मैंने ये फिल्म की। मुझे गर्व है अपने चुनाव का। उस फिल्म एक प्रोजेक्ट के तौर पर देखें तो टैलेंटेड डायरेक्टर होने के बावजूद केतन मेहता को बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी। बॉबी भी नए प्रोडयूसर थे। उनको भी इतनी कामयाबी नहीं मिली थी। इस संदर्भ में प्रोजेक्ट को आप देखें तो उसे उन्नीस करोड़ की ओपनिंग मिलना ही रिकॉर्ड बे्रकिंग न्यूज है। अपने-आप में रिकार्ड ब्रेक है ही ।
- नहीं, हो सकता है, ट्रेड के लोग इस ढंग से देख रहे हों।उनके लिए फिल्म का हिट होन उसकी लागत के अनुपात से तय होता है।
0 ये हुई बिजनेस की बात। अगर आप बिजनेस की रिर्पोट कर रहे हैं तो आपको इतना तो रिपोर्ट करना पड़ेगा सबसे पहले कि इसमें - कहां तेरह करोड़ और कहां उन्नीस करोड़ ये तो आपको रिर्पोट करना चाहिए? यह आपने नहीं किया। मेरा सवाल है कि क्यों नहीं की आपने यह रिपोर्ट। आजतक मैंने कहीं नहीं सुना कि 'मंगल पांडे' ने रिकार्ड ब्रेक कर दिया। मैंने सिर्फ इतना ही सुना है कि 'मंगल पांडे' फ्लॉप है। और फ्लॉप किस एंगल से है यह? स्टार के तौर पर मेरे लिए तो सुपर हिट है यह फिल्म। एक स्टार काम है लोगों अंदर लाना। वह मैंने बखूबी किया, जबकि प्रोजेक्ट कमजोर था। तब भी मैंने किया। तब भी मैंने रिकॉर्ड ब्रेक किया। ये मेरे लिए सबसे बड़ा सक्सेस है स्टार के तौर पर। मेरी समझ से कोई ऐसा दर्शक नहीं है जो कहता कि फिल्म बुरी है। मैंने जो रेस्पांस देखा है। आधे लोग कहते हैं कि बड़ी अच्छी लगी उनको। आधे लोग कहते हैं कि यार हम थोड़े निराश हुए। 'लगान' के बाद कुछ और आना चाहिए था। दर्शक कुछ ज्यादा की उम्मीद कर रहे थे। हो सकता है कि मेरी फिल्म चार सालों के बाद आ रही थी तो उनकी उम्मीद भी ज्यादा थी।
- ऐसा लगता है कि मीडिया में कुछ लोगों या मीडिया के एक ग्रुप की आपसे व्यक्तिगत खुन्नस है और वह खुन्नस उस फिल्म पर निकली?
0 हो सकता है। यह बात हो सकती है। क्योंकि मैं उस किस्म का इंसान हूं, जो काम से काम रखता है। कुछ ऐसे जर्नलिस्ट हैं, जो चाहते हैं कि हम उनसे खूब दोस्ती करें, तभी वे अच्छा लिखेंगे। मैं इस चीज को नहीं मानता हूं। एक जर्नलिस्ट होने के नाते आपको स्टार से, सेलिब्रिटी से कटा रहना चाहिए। ताकि आप सच्चाई से लिख सकें। आपके दिल में क्या है, आपके जहन में क्या है। आप मेरे दोस्त बन जाएंगे तो आप मेरे बारे में क्या क्रिटिसाइज करेंगे? आप क्या गलती निकालेंगे मेरी। ये तो नहीं है कि मैं गलती नहीं करूंगा। कभी-कभी मैं अच्छा काम करूंगा। कभी मैं बुरा काम करूंगा। एक जर्नलिस्ट के नाते आपका काम है कि आप उसको सही तरीके से परखें। और उस चीज को सामने लाएं। मुझे लगता है कि प्रेस के कुछ लोग इसलिए मेरे खिलाफ हैं, क्योंकि मैं ज्यादा दोस्ती नहीं करता हूं लोगों से। या पर्सनल रिलेशनशिप नहीं रखता उनसे। शायद कुछ जर्नलिस्ट यह नहीं पचा पाते कि मैं अलग काम कर रहा हूं और उसमें भी मैं कामयाब हो रहा हूं। हो सकता है कि वे सोचते हों कि जरा इसको नीचे लाओ। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या है?
- आपकी फिल्मों पर आ रहा हूं मैं। ऐसा माना जाता है कि 'सरफरोश' के बाद आप में एक बदलाव आया । 'सरफरोश' के बाद 'लगान' आई, फिर 'दिल चाहता है' , 'मंगल पांडे' और अब 'रंग दे बसंती' ़ ़ ़ क्या आप भी मानते हैं कि 'सरफरोश' से ही यह बदलाव आया या शुरू से एक धागा था, जो बाद में फिल्मों को जोड़ गया?
मैं शुरू ही कुछ ऐसी फिल्में कर रहा हूं जो उस दौर के लिए अलग होतीं हैं। 'कयामत से कयामत तक ' आप आज देख कर कह सकते हैं कि यार बड़ी कमाल की लव स्टोरी है और लव स्टोरी तो कमर्शियल चीज होती है। लेकिन उस दौर में जाइए आप, पंद्रह साल पहले जाइए, तो उस वक्त सिर्फ एक्शन फिल्में चल रही थीं। 'कयामत से कयामत तक' को बेचने में नासिर साहब को छह महीने से ज्यादा लगा था। कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था। क्यों? क्योंकि वो लव स्टोरी थी। क्यों? क्योंकि वो नए स्टार कास्ट थे। क्यों? क्योंकि उनको लगा कि म्यूजिक कमजोर है। म्यूजिक का दौर था ही नहीं। तो आप देखिए कि उस वक्त भी हमलोग ने जो किया वह काफी अलग किया था। 'जो जीता वही सिकंदर' कोई आम फिल्म नहीं है। 'दिल है कि मानता नहीं' कोई आम फिल्म नहीं है। हां, सोशल कमेंट नहीं है उन फिल्मों में लेकिन ़ ़ ़ अगर मैं अपने खुद के काम को एनलाइज करने की कोशिश करूं तो मैं ये देख सकता हूं कि उसमें एक धागा है रिवेलियन का जो चल रहा है।मैं हमेशा प्रवाह के खिलाफ फिल्म करने की कोशिश कर रहा हूं। हो सकता है कि आरंभिक फिल्मों में मैं खुद करो परख रहा होऊं। जहां तक कि सोशली रेलीवेंट फिल्मों का सवाल है, तो मेरे हिसाब से 'सरफरोश' से पहले आई थी 'गुलाम'। मेरे हिसाब से 'गुलाम' में भी सोशल रेलीेवेंस था। उसमें बताया गया था कि समाज के अनपढ़ युवक अपनी ऊर्जा गलत दिशा में खर्च कर रहे हैं। सोशल कंसर्न के लिहाज से गुलाम मेरी पहली फिल्म थी। देखिए फिल्म रिलीज होती है, लेकिन उस पर काम दो या तीन साल पहले से शुरू हो जाता है। जब मेरी फिल्म 'राजा हिंदुस्तानी' रिलीज हुई थी, क्99म् की बात कर रहा हूं मैं। तो उस वक्त मैं एक तरह से महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गया था अपने कैरियर के। क्योंकि 'राजा हिंदुस्तानी' बहुत ही बड़ी हिट थी। और लगातार मैंने कई सालों से कामयाब फिल्म दी थी। उससे पहले 'रंगीला' आई थी। उससे एक साल पहले 'हम हैं राही प्यार के' आई थी। ये सारी कामयाब फिल्में थीं। मैं उस मोड़ पर आ गया था कि मैं अपनी कामयाबी का इस्तेमाल पॉजीटिव ढंग से कर सकूं। लिहाजा उस वक्त से जो चीजें मुझे सोशली इंपोर्टेट लगती थीं मैं उन चीजों को लेने की कोशिश करता था। जब 'सरफरोश' का सब्जेक्ट आया तो उस वक्त आईएसआई का बड़ा जोर था। क्रॉस बोर्डर टेररिज्म की चर्चा थी। उसके साथ-साथ दक्षिणपंथी भी उभार पर थे। इसके साथ-साथ हिंदू-मुसलिम इश्यू को भी उठाया गया। ये चीजें मेरे जहन में थीं, क्योंकि पिछले पांच-छह सालों से अखबारों में पढ़ रहा था। अपने आस-पास महसूस कर रहा था। तो हो सकता है उस वजह से मेरा झुकाव स्क्रिप्ट की तरफ हुआ हो। जाहिर है हमारे ईद-गिर्द जो चीजें होती हैं, उसका हम पर असर होता है़ ़ और मैं जिस किस्म का आर्टिस्ट हूं, मुझे लगता है कि जो मुझे सक्सेस मिली है, जो लोगों की प्रार्थना और दुआओं से मिली है, जो लोगों के सपोर्ट और प्यार से मुझे सक्सेस मिली है, उसका मुझे कुछ पॉजीटिव इस्तेमाल भी करना चाहिए। न सिर्फ मैं लोगों को इंटरटेन करूं। करीब आठ साल हो गए थे मेरे कैरियर में। मैं उस पोजिशन में में पहुंच गया था कि मुझमें काफी स्ट्रेंग्थ आ गई थी लोगों के सपोर्ट से। अब उसका इस्तेमाल मैं सही ढंग से करूं। शायद तब से मैंने इस किस्म की फिल्में भी चुननी शुरू की जो सोशली रेलीेवेंट भी हों।
- 'लगान' से एक बहुत बड़ा मोड़ आया। आपके पर्सनल लाइफ में, आपके फिल्म कैरियर में, हर लिहाज से। अभी आप पलट कर कैसे देखते हैं? उसकी कामयाबी को आप अपने करिसर और जीवन में कितना इंपोर्टेंट मानते हैं?
0 मेरे खयाल में 'लगान' भारतीय सिनेता के लिए बहुत इंपोर्टेट है। निश्चित ही मेरी जिंदगी में वह बहुत इंपोटर्ेंट मोड़ था। पहली फिल्मं प्रोडयूस कर रहा था मैं। लेकिन जिस किस्म की फिल्म बनी वह। उसने सारे रूल तोड़ दिए। इंडियन सिनेमा की मेनस्ट्रीम फिल्ममेकिंग को एक अलग डायरेक्शन में वो ले गई वह फिल्म। बहुत ही अहम फिल्म है मेरी कैरियर की। और उसके साथ-साथ मैं कहूंगा कि 'सरफरोश' भी अहम फिल्म है मेरे कैरियर की। उसके बाद 'मंगल पांडे' बहुत अहम फिल्म है मेरे कैरिअर की।
- पिछली बार दैनिक जागरण के एक पाठक ने आपसे पूछा था,कि क्या आप हर फिल्म में अंग्रेज को भगाते रहेंगे?
0 नहीं अंग्रेजों से मुझे कोई परेशानी नहीं है। संयोग ऐसा हुआ कि 'लगान' और 'मंगल पांडे' की कहानी में अंगे्रज थे।
- 'रंग दे बसंती' में भी लगभग वही स्थिति है?
0 'रंग दे बसंती' अंग्रेजों के खिलाफ बनी फिल्म नहीं है। इसमें अतीत के कंातिकारी किरदार अंग्रेजों के खिलाफ हैं। हम ता इसमें आज के किरदार निभा रहे थे। 'रंग दे बसंती' ऐसी फिल्म है, जो अपने देश के नौजवानों को जगाने का काम करती है। इस फिल्म की कोशिश सही है। मैं यह नहीं कहता कि हमारे देश के नौजवान निखट्टू हैं। नहीं। एक देश के नौजवानों का एक सेक्शन है, जो समाज से बेखबर है। बाकी अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। आम तौर पर हम अपनी सामाजिक जिममेदारी भूल रहे हैं। हर आदमी यही सोचता है कि मुझे नहीं हो रहा है तो ठीक है। मैं क्यों फिक्र करूं? जब तक मुझ पर नहीं आएगी, मैं अपनी उंगली नहीं उठाऊंगा। लेकिन समाज में हर काम हमें एक साथ मिलकर करना है। चाहे वो जो भी चीज हो। जो भी गलत काम हो रहा है,उसके खिलाफ जब तक हम सब अपनी आवाज अलहदा और इकट्ठा नहीं उठाएंगे तब तक तब्दिली नहीं आएगी। तब तक प्रोग्रेस नहीं आएगा। तब तक खुशी नहीं होगी, तब तक अमन नहीं होगा। हमें मिल कर ही कुछ करना होगा। हमारा देश जो है, हमारी सोसायटी जो है, एक घर की तरह है। घर का एक सदस्य चिल्लाता रहेगा तो कुछ नहीं होगा। हम सब को मिलकर वह करना होगा। हमारे घर में कोई तकलीफ है या कोई खराबी है, तो हमें उसे ठीक करना है। कोई बाहर का आदमी आकर नहीं ठीक करने वाला है। वह हमको ही करना है। हमारी फिल्म यही कहने की कोशिश कर रही है। एक वक्त बात चली थी कि यह फिल्म अंग्रेजी में बनाएं,क्योंकि यह बहुत ही मॉडर्न किस्म की फिल्म है। मैंने कहा कि नहीं। यह फिल्म अंग्रेजी में तो बिल्कुल ही नहीं बननी चाहिए। क्यों? क्योंकि यह फिल्म हिंदुस्तानियों से बात करने की कोशिश कर रही है । सबसे पहले तो इसको हिंदुस्तानी में बनाना चाहिए हमें। अंग्रेजों के लिए हम नहीं बना रहे हैं यह फिल्म। यह हम अपने लिए बना रहे हैं। अपने देश के लोगों के लिए बना रहे हैं इसको देखकर हम में से कुछ जागें। तो अंग्रेजों के खिलाफ है ही नहीं यह फिल्म।
- इस बात में कितनी सच्चाई है कि राजकु मार संतोषी की भगत सिंह आप करने वाले थे?
0 वह मुझे ऑफर हुई थी। राजकुमार संतोषी ने मुझे ऑफर की थी, पर मैंने ना कर दिया था। मेरी ना करने की वजह यह थी कि ़ ़ ़ मेरा बहुत ही सिंपल लॉजिक था कि ़ ़ ़ देखिए मैं कोई भी काल्पनिक किरदार प्ले कर लूंगा। 'रंग दे बसंती का डीजे एक काल्पनिक किरदार है ़ ़ ़ वह रियल नहीं है। डीजे आजाद प्ले कर रहा है फिल्म की डाक्यूमेंट्री के अंदर। अगर हम फिल्म बना रहे हैं भगत सिंह के ऊपर ़ ़ भगत सिंह ख्फ् वर्ष के उम्र में शहीद हो गए थे। जब मुझे यह फिल्म ऑफर की गई थी, संतोषी की भगत सिंह तो मेरी उम्र शायद फ्ब् वर्ष की थी। मैंने कहा कि राज मैं कम से कम दस साल बड़ा हूं इस रोल के लिए । करने को मैं कर लूं। क्योंकि एक कलाकार के तौर पर मुझे अलग-अलग उम्र के किरदारों को निभाना पड़ता है। हो सकता है मैं भगत सिंह की उम्र का दिख जाऊं और परफॉर्म भी कर दूं, लेकिन मेरी समझ से, खासकर भगत सिंह के किरदार में सच्चाई तभी आएगी, जब आप कटघरे में खड़े होकर उस इंसान को देखें, तो देखने में हमें लगे ़ ़ यार यह तरुण लड़का है,अभी तक इसकी मूंछें नहीं निकली हैं ठीक से और यह इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है, जो मुझे महसूस नहीं हो रही हैं। यह अपनी जान देने पर तैयार हो गया। अपने सिद्धांतों के लिए। उसका धक्का मुझे तभी लगेगा,जब भगत सिंह का किरदार निभाने वाला अठारह साल का लड़का होगा। आपको अठारह साल का लड़का ही लेना चाहिए इस रोल में। आप कामयाब डायरेक्टर हैं। अठारह साल के लड़के को लेकर बना सकते हैं। नया लड़का लीजिए और बेहतर होगा कि सरदार लीजिए। उससे विश्वसनीसता आएगी। भगत सिंह का कैरेक्टर कौन नहीं प्ले करना चाहेगा? महान किरदार है उनका। लेकिन मुझे लगा था कि मैं शूट नहीं कर रहा हूं उससे। दूसरी वजह यह थी कि उस वक्त जब आए थे मेरे पास, तो मुझे े वह स्क्रिप्ट बनाई इतनी ठीक नहीं लगी थी।
- स्वतंत्रता की लड़ाई के दौर के किरदारों में कौन आपको प्रिय है,जो प्रभावित भी करता हो?
0 महात्मा गांधी ़ ़ ़ उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षित करता है। उसकी वजह है,उनकी ताकत,उनकी ईमानदारी,अहिंसा का उनका सिद्धंात ़ ़ ़स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व उन्होंने अहिंसा करा मार्ग अपना कर किया। कमाल का काम किया उन्होंने। उनमें आंतरिक शक्ति थी। अंग्रेजों से निबटने की बुद्धि थी उनके पास। उनमें अंग्रेजों से निबटने की बौद्धिक और मानसिक क्षमता थी। वह अंग्रेजों के खिलाफ मनोवैज्ञानिक लड़ाई भी लड़ रहे थे। किस तरह उन्होंने पूरे देश को इकट्ठा किया? किस तरह उन्होंने लोगों को प्रेरित किया। किस तरह उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता दिखलायी। दन सबक साथ-साथ उनकी सबसे अहम बात है कि वह अहिंसा में विश्वास करते थे। आज वह कहुत ही जरूरी हो गया है। मेरे लिए सबसे आकर्षक किरदार गांधी जी हैं।
- इसका मतलब 'रंग दे बसंती' में जो डीजे करता है, आमिर खान उस तरह से नहीं सोचते हैं?
0 एक चीज और मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अगर 'रंग दे बसंती' का क्लाइमेक्स वहां पर होता, जहां पर वे लड़के रक्षा मंत्री को मार देते हैं ़ ़ ़ वहां फिल्म खत्म हो जाती। ये लोग बड़े खुश होते कि हमने डिफेंस मिनिस्टर को मार दिया। न्यूज आता टीवी पर कि शायद आतंकवादियों का हाथ होगा। फलां होगा ़ ़ ़ढिमका होगा और इन लोगों पर किसी को संदेह नहीं होता। अगर वहां पर फिल्म खत्म हो जाती ़ ़ और ये बड़े खुश होते कि हमने बदला ले लिया। जो हम करना चाहते थे, वो हमने कर दिखाया। तब आप यह कह सकते हैं कि हमारा मैसेज था कि हिंसा ही जवाब है। लेकिन हमारी फिल्म वहां पर खत्म नहीं होती। वे लड़के हिसात्मक कदम उठा लेते हैं, उसके बाद उन्हें अहसास होता है कि वास्तव में वह गलत कदम था। पहले वे अलग-अलग कोशिश करते हैं, एक दम निराश हो जाते हैं। डीजे रो देता है कि यार हमलोगों की कोई औकात ही नहीं है। जब उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि वे लोग कुछ नहीं कर पाते तब उन्हें लगता कि यार कम से कम इस दरिन्दे को मार तो दो। और उस जुनून में जाकर वे उसे मार देते हैं। दरिंदे को मारने के बाद वे खुश नहीं हैं। उन्हें यह एहसास होता है कि जो हम करने चले थे, वह तो हासिल ही नहीं हुआ। जिस वजह से हम उसे मारने चले थे, वह तो हासिल ही नहीं हुआ है। यह तो और बड़ा हीरो बन गया। इसलिए फिल्म वहां खत्म नहीं होती। फिल्म आगे बढ़ती है। फिल्म का अंतिम संदेश करण के मुंह से निकलता है जब वह ऑल इंडिया रेडियो में माइक पर होता है। वह कहता है कि शायद हमने जो किया है वह गलत किया है और हम उस गलती को पब्लिलिी कबूल करने आए हैं यहां। जो हमको सजा मिलेगी, वह मिलनी चाहिए। लेकिन हम यह कहना चाह रहे हैं कि कुछ करना होगा। ऐसे हम जिंदगी नहीं जी सकते हैं। पहला कॉलर बोलता है कि अच्छा किया आपने। ऐसे ही सबको ही मार देना चाहिए। सारे पॉलिटीशियन को खड़ा कर के मार देना चाहिए। तो उसका जवाब क्या आता है? करण यह नहीं कहता कि सही कह रहे हैं आप। करण कहता है कि नहीं। कितने लोगों को मारेंगे आप, किस-किस को मारेंगे,आप किसको मारेंगे? इनको हटा दीजिए। इनकी जगह पर किसी और मिनिस्टर को ले आइए। वे क्या अलग होने वाले हैं? नहीं, अलग नहीं होने वाले हैं। ये जो मिनिस्टर हैं, ये किसी और ग्रह से नहीं आए हैं। ये हम में से ही एक हैं। हमारी सोसायटी के हैं। हमने इन्हें चुना है। ये हमारे बीच के हैं। अगर ये भ्रष्ट हैं तो हम भ्रष्ट हैं। अगर कुछ बदलना है तो इनको लाइन में खड़ा कर के गोली मत मारो। अगर कुछ बदलना है तो खुद को बदलो। यह संदेश है फिल्म का। यह बहुत ही साफ संदेश दिया गया है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। तो जब मैं यह कहता हूं कि मैं गांधी जी का प्रशंसक हूं तो मुझे लगता है कि फिल्म उनका प्रचार करती है। फिल्म बताती है कि हिंसा से कुछ नहीं होगा। वास्तव में हमें जागना है।
- लेकिन जब आप फिल्म की कहानी सुन रहे होते हैं तो क्या सचमुच वैचारिेक ओर दार्शनिक स्तर पर इन सारी चीजों को देखते और ध्यान में रखते हैं?
0 हां, मैं गौर करता हूं। खासकर अगर फिल्म सामाजिक रूप से रेलीवेंट टॉपिक पर हो तब तो मैं अवश्य ही अपने विचारों से फिल्म की कहानी को मैच करता हूं कि यह मैच करती है कि नहीं। अगर नहीं करती है तो मैं नहीं करता हूं। अगर फन है या मजेदार और मनोरंजक फिल्म है,उसमें कोई विचार या सोशली रेलीवेंट चीज हम नहीं कह रहे हैं तो अलग बात हो गई। उसमें भी मैं चेक करता हूं कि यार कोई ऐसी चीज तो हम नहीं दिखा रहे हैं बीच में,जिसें मैं नहीं मानता हूं। जब सोशली रेलीवेंट फिल्म मैं चुनता हूं तो उस वक्त तो मैं निश्चित ही यह ध्यान में रखता हूं। अगर फिल्म कुछ कह रही है और मैं कुछ अलग कह रहा हूं तो मैं नहीं करता हूं।
- क्या एक फैनेटिक मुसलिम या एक कट्टरपंथी हिंदू या किसी टैररिस्ट का रोल आपको दिया जाएगा तो आप करेंगे?
0 हां करूंगा मैं। लेकिन वह होता है रोल। और फिल्म क्या कह रही है, वह अलग चीज होती है। निगेटीव रोल करने से कभी नहीं कतराता हूं। 'क्9ब्7 अर्थ' मैंने की है। फिल्म कह रही है कि लोग लड़ रहे हैं। आठ साल की एक पारसी लड़की के दृष्टिकोण से फिल्म दिखायी जा रही है। ़ ़ ़ कि कैसे लोग बदल रहे हैं मेरे इर्द-गिर्द, क्या देख रही हूं मैं। ये क्या हो रहा है? किस तरह बंटवारा किया जा रहा है? किस तरह लोगों के जहन में जहर घोला जा रहा है? फिल्म जो है 'क्9ब्7 अर्थ' ़ ़ ़ वह उस लड़की का दृष्टिकोण है। उसमें शायद मेरा निगेटिव कैरेक्टर हो ़ ़ ़ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक किरदार है।
- बहुत बड़ी बात कही आपने ़ ़ जरूरी नहीं कि हर बार आप ही फिल्म के हीरो हों, या यों कहें कि कोई मैसेज देना हो तो जरूरी नहीं कि वह आपके जुबान से ही जाए। किसी और के जुबान से भी जा सकता है।
0 हां किसी और के जुबान से भी जा सकता है। 'रंग दे बसंती' में तो करण कहता है। मैं तो कहता भी नहीं हूं। करण ही ऑल इंडिया रेडियो में सभी से बातें करता है। - अपने बहुत सारे क्रिटिक को पहली बार 'रंग दे बसंती' में आप अच्छे लगे। उन्हें लगा कि आपने अच्छा अभिनय किया है। 0 क्या कह सकता हूं। शुक्रिया कहूंगा मैं। - और उसके साथ कुछ जोड़ा उन्होंने। उसका कारण बताया है कि आमिर ने जब-जब कोस्टार के साथ कुछ किया है,वहां वे अच्छे लगे। उनकी राय में 'मंगल पांडे' के फ्लॉप होने की एक वजह यही है कि कोस्टार उतने एक्टिव नहीं दिखे? बाकी किरदार उस तरह से उभर नहीं पाए?0 गलत। 'मंगल पांडे' में जो कैरेक्टर है कैप्टन गोर्डन का वह मंगल पांडे के टक्कर का रोल था। दोनों पैरेलर रोल था। आप यह नहीं कह सकते है कि मंगल पांडे का रोल बेटर था या कैप्टन गोर्डन का। दोनों हीरो हैं फिल्म के। तो यह बात गलत है कि सिर्फ मेरा ही किरदार था और किसी का किरदार नहीं था। कैप्टन गोर्डन का किरदार था।
- सहयोगी और बाकी क्रांतिकारी उभर कर नहीं आए?
0 फिल्म उनके बारे में नहीं थी। फिल्म थी ब्रिटिश और इंडिया के बीच में जो लड़ाई है ़ ़ उसमें एक ब्रिटिश ऑफिसर और एक भारतीय सिपाही दिखाया गया। उसमें दो कैरेक्टर अहम थे ़ ़़ ़ लेखक ने जो दृष्टिकोण रखा,उसमें उन दोनों को सामने रखा है। एक ब्रिटिश दृष्टिकोण और एक भारतीय। उसमें जो ब्रिटिश कैरेक्टर का रोल है, वह उतना ही अहम है, उतना ही इंपोटर्ेंट है, जितना कि हिंदुस्तानी का। उस हिसाब से उससे कोई समझौता नहीं किया गया है फिल्म के अंदर। मैंने अक्सर ऐसी फिल्में की हैं, जिनमें मैं सिर्फ अकेला हीरो रहा हूं। और वे फिल्में बड़ी कामयाब हुई हैं। ऐसा कुछ नहीं है कि सिर्फ वही फिल्में हिट होती हैं, जिसमें पांच-छह लोग होते हैं। आप 'गुलाम' ले लीजिए या 'सरफरोश' ले लीजिए या 'दिल' या 'राजा हिंदुस्तानी' ़ ़ ़ बहुत सी फिल्में हैं ़ ़ मैंने सोलो स्टार भी किए हैं, मल्टीस्टारर भी किए हैं। या ऐसी फिल्में जिसमें ज्यादा कैरेक्टर हों या एक कैरेक्टर हो। 'दिल है कि मानता नहीं' में सिर्फ दो ही कैरेक्टर थे- लड़का-लड़की।
- जब आप मंगल पांडे जैसे किरदार के साथ काफी लंबे समय तक रहते हैं तो उससे आपकी रोजमर्रा जिंदगी में कितनी खलल पड़ती है? या आप कम्पार्टमेंटलाइज कर लेते हैं कि नहीं इस समय मैं किरदार में हूं और अब नार्मल इंसान हूं ़ ़ ़
0 आम तौर पर जब मैं एक काम कर रहा होता हूं तो मुझे दूसरा काम उस वक्त नहीं अच्छा लगता। ऐसा नहीं होता कि एक काम रोक कर कोई और काम करूं। जब अभी मैं इंटरव्यू दे रहा हूं तो मुझे और कुछ नहीं करना है। मैं यह नहीं चाहूंगा कि शूटिंग में आपको बुला लिया और शूटिंग भी कर रहा हूं और आपको इंटरव्यू भी दे रहा हूं। कभी-कभी शायद करना पड़े, सिचुएशन ऐसी हो। लेकिन मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे मजा नहीं आता। अपनी तरफ से मैं ऐसी स्थिति नहीं आने देता। जाती जिंदगी में किसी ककिरदार से अभी तक खलल नहीं आया है। लेकिन यह बात सही है कि जब मैं एक कैरेक्टर को लेकर एक फिल्म करता हूं तो मैं चाहता हूं कि उस कैरेक्टर को पूरी तरह से जीऊं। और उस प्रक्रिया का पूरा आनंद उठाऊं जब मैं उस कैरेक्टर को प्ले कर रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं है कि अगर मैं छह महीने मंगल पांडे की शूटिंग कर रहा हूं तो छह महीने तक मैं मंगल पांडे ही बन गया हूं और बाकी जिंदगी में भी मैं मंगल पांडे की तरह व्यवहार कर रहा हूं। जब शूटिंग हो जाती है, मैं घर आता हूं। घर में रहने के वक्त मैं मंगल पांडे नहीं रहता। हां यह जरूर है कि उस छह महीने के दौरान अक्सर यह होता है कि जब मैं शूटिंग नहीं कर रहा हूं और घर पर बैठा हूं तो भी मैं अपने कैरेक्टर के साथ खेलता हूं कि अगर मंगल इस वक्त यहां होता तो क्या करता? तो मैं अपनी कल्पना को मांजता रहता हूं। किसी किरदार से मेरी पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब नहीं होती। - एक्टर कहते हैं कि कई किरदार उनके साथ रह जाते हैं?0 नहीं, मेरे साथ ऐसा नहीं होता है। मेरे साथ अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। हां, आगे चलकर हो तो पता नहीं,लेकिन अभी तो ऐसा नहीं हुआ है।- कई बार ऐसे किरदार होते हैं जो कहीं न कहीं आपकी जिंदगी को भी प्रभावित करते हैं?0 देखिए, हर चीज आदमी पर कुछ न कुछ प्रभाव तो छोड़ती है। जब मैं कोई किताब पढूं या आपसे बातचीत करूं या कोई फिल्म देखूं या कोई हादसा हो ़ ़ ़ हर चीजका असर होता है ़ ़ ़ कैरेक्टर प्ले करना तो फिर भी बहुत बड़ी चीज हो गई। मैं छह महीना वही चीज कर रहा हूं। कुछ इंपैक्ट तो आता है हर चीज का इंसान पर। तो हर कैरेक्टर किसी न किसी तरह से आपको प्रभावित करता है। कोई चीज छोड़ जाता है आपके साथ। और आप एक इंसान के तौर पर विकसित होते हैं। बदलते हैं। आप में परिवर्त्तन दिखता है।
- हिस्ट्री में कितने अच्छे थे आप?
0 स्कूल में मैं इतना अच्छा नहीं था। लेकिन पढ़ाई के बाद जब मैं फिल्मों में आया तो हिस्ट्री में मेरा इंट्रेस्ट बढ़ा। मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। हिस्टोरिकल बुक भी पढ़ता हूं। अलग-अलग दौर के बारे में जानकारी हासिल करने में मेरी रुचि है। 'अर्थ शास्त्र' भी पढ़ी है मैंने। ऐतिहासिक हस्तियों के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है।
- संयोग ऐसा कि 'लगान' के बाद से आपने जितनी फिल्में कीं,उनमें से अधिकांश का संबंध इतिहास से रहा। क्या यह किसी पसंद और सोच के कारण है?
0 पसंद और सोच कह सकते हैं। लेकिन यह भी सोचिए कि उस वक्त मुझे क्या फिल्में ऑफर की जा रही हैं? उनमें से कौन सी मुझे पसंद आ रही हैं? अगर हां मैं रायटर-डायरेक्टर होता तब पूरी तरह से अपनी पसंद पर चलता कि मैं इस वक्त इस मूड में हूं और मुझे यह करना है। इसके बाद मैं इस मूड में हूं मुझे वह करना है। लेकिन मैं रायटर-डायरेक्टर नहीं हूं। मैं एक्टर हूं। यह संयोग है कि आशुतोष मेरे पास स्क्रिप्ट लेकर आए। हां, 'लगान' मुझे पसंद आई मैंने की। 'मंगल पांडे' मुझे पसंद आई मैंने की। लेकिन कहानी मैंने नहीं लिखी। स्क्रिप्ट मैंने नहीं लिखी। स्क्रिप्ट मेरे पास आई । अगर केतन मेरे पास नहीं आते या कोई और एक्टर हां कर लेता तो वह मेरे पास नहीं आते। 'रंग दे बसंती' मेरे पास आई, मुझे पसंद आई मैंने की। शायद मेरे पास नहीं आती। मैंने नहीं लिखी कहानी। - आपके पास कॉमेडी भी आई होगी। कुछ लव स्टोरी भी आई होगी। कुछ दूसरी तरह की भी फिल्में भी आई होंगी ़ ़ ़0 लेकिन कोई ऐसी नहीं आई जो मुझे पसंद आए।
- या फिर कहीं न कहीं आपके माइंड सेट में या ़ ़
0 मेरे माइंड में ये जरूर था कि 'मंगल पांडे' और 'रंग दे बसंती' दोनों ड्रामैट्रिक फिल्मस है। मैंने राकेश से कहा भी था कि यार उस वक्त 'मंगल पांडे' रिलीज भी नहीं हुई थी। 'मंगल पांडे' की शूटिंग शुरू होने वाली थी। और मैंने राकेश से कहा कि, 'राकेश तुम्हारी फिल्म करने से पहले ़ ़ ़ मेरा दिल चाह रहा है कि मैं कोई हल्की-फुल्की सी कॉमेडी फिल्म करूं? दोनों ड्रामैटिक फिल्में एक बाद एक न आएं। बीच में एक कुछ अलग किस्म की फिल्म आए। लेकिन मुझे कुछ मिला नहीं।
- कौन ऐसे किरदार हैं जो और आपको आकर्षित कर रहे हैं।
0 हिस्ट्री में तो गांधी जी खुद एक कमाल के कैरेक्टर हैं, जो प्ले करना चाहूंगा। उन पर तो एक फिल्म बन चुकी है। शायद फिर न बने। मेरी जानकारी में चंद्रगुप्त बहुत रोचक किरदार है। अकबर का रोल निभाने में मजा आएगा। ऐसे तो बहुत हैं ़ ़ ़ हिस्ट्री में तो एक से एक कैरेक्टर हैं।
- खबर थी कि यश चोपड़ा से आपकी अनबन है, इसलिए आप उनकी फिल्मों में काम नहीं करते। लेकिन, अभी 'फना' आ रही है?
0 'डर' के दौरान यश जी से मेरी अनबन हुई थी। हमारे मतभेद थे, इसलिए मैं उस फिल्म से अलग हो गया था। इस बीच मैंने उनके साथ कोई फिल्म नहीं की। मेरे सीनियर हैं। समय के साथ अनबन वाली बात पुरानी हो गई। एक दिन आदि (आदित्य चोपड़ा) का फोन आया कि वह एक फिल्म ऑफर करना चाह रहे हैं।- यश चोपड़ा के साथ फिर से फिल्म करने में कोई दिक्कत नहीं हुई?0 'फना' से पहले भी यश जी से मेरी मुलाकातें होती रही हैं। पुरानी बातों को भूलकर हमलोग मिलते रहे हैं। उन्होंने पहले मुझे बुलाया था। हमारी बातचीत हुई थी। मुझे भी लगा कि जो पुरानी अनबन थी, उसे भूल जाना चाहिए। यश जी ने भी कहा कि हम साथ में काम करें या न करें ़ ़ ़ लेकिन संबंध तो अच्छे हो सकते हैं। मैंने भी कहा - ठीक है सर।़ उसके बाद से हमलोग कहीं भी मिले तो मैं पूरी इज्जत से पेश आता था और वह प्यार से मिलते थे।
- 'फना' के लिए हां करने की और कोई वजह?
0 किसी भी फिल्म के लिए हां करने की मेरी पहली वजह होती है स्क्रिप्ट। फिर मैं निर्माता और डायरेक्टर आदि देखता हूं। स्क्रिप्ट अच्छी लगती है तो यह जरूर चाहता हूं कि फिल्म ठीक से बने और अच्छी तरह रिलीज हो। मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी लगी थी, इसलिए खुशी-खुशी मैंने हां कर दी।
- कैसी फिल्म है यह?
0 'फना' मूल रूप से रोमांटिक फिल्म है। इसमें पॉपकॉर्न रोमांस नहीं है, थोड़ी मैच्योर कहानी है।- क्या अपने कैरेक्टर के बारे में कुछ बता सकते हैं?0 हां, बता तो सकता हूं, लेकिन फिल्म रिलीज होने के पहले उस पर बात करना ठीक नहीं होगा। आपने तो फिल्म देखी नहीं है, इसलिए आपके सवाल भी नहीं होंगे। बेहतर होगा कि फिल्म की रिलीज के बाद हमलोग इस पर बात करें। इतना भर कहूंगा कि टूरिस्ट गाइड टाइप का कैरेक्टर है मेरा।
- क्या आपको जरूरी नहीं लगता कि आप अपनी फिल्मों और कैरेक्टर के बारे में रिलीज से पहले बात करें?
0 देखिए, मुझे अपने काम के बारे में कम बातें करनी हैं। मुझे काम करना है। लोग मेरा काम देखें और उसे महसूस करें और अपने हिसाब से उसे समझें। फिल्म की रिलीज के बाद में उनसे बातें करूं कि मेरे जहन में क्या था? मैंने क्यों ये किया, क्यों वो नहीं किया? जैसे 'रंग दे बसंती' के बारे में अभी बात करने में मजा आता है। आपने वह फिल्म देख रखी है तो आप मेरी बात समझ पाएंगे कि मैं क्या कह रहा हूं। मैं फिल्म के प्रसंग, दृश्य और संवाद भी बता सकता हूं।- सुना है कि यशराज फिल्म में सभी के साथ तीन फिल्मों का कांट्रेक्ट होता है। क्या आप भी उनकी तीन फिल्में करेंगे?0 नहीं, मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं कभी ऐसा कांट्रेक्ट करता ही नहीं हूं। मेरे लिए कहानी महत्वपूर्ण होती है। बगैर स्क्रिप्ट के तो मैं वैसे भी कोई चीज साइन नहीं करूंगा। तो फिलहाल मैंने 'फना' की है। आगे कोई स्क्रिप्ट मिली तो सोचेंगे।
- होम प्रोडक्शन में क्या हो रहा है?
0 अमोल गुप्ते की एक स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है। अमोल खुद चाहते हैं कि वह डायरेक्ट करें। उसने मुझ पर अंतिम फैसला छोड़ा है। मैं भी चाहता हूं कि वही डायरेक्ट करे।
- आमिर आप लगातार चर्चा में हैं। अभी थोड़ा ठहरकर देखें तो आप क्या कहना चाहेंगे?
0 सच कहूं तो मैं कंफ्यूज हूं। मैं अपने इर्द-गिर्द जो देख रहा हूं। मीडिया में जिस तरह से रिपोर्टिग चल रही है। टेलीविजन और प्रेस में जो रिपोर्टिग चल रही है, जिस किस्म की रिपोर्टिग चल रही है, जिस किस्म का नेशनल न्यूज दिखाया जा रहा है उससे मैं काफी कंफ्यूज हूं कि यह क्या हो रहा है हम सबको। हम किस दौर से गुजर रहे हैं। झूठ जो है, वह सच दिखाया जा रहा है। सच जो है, वह झूठ दिखाया जा रहा है। जो चीजें अहमियत की नहीं हैं, वह नेशनल न्यूज बनाकर दिखायी जा रही है। लोगों की जिंदगी नेशनल न्यूज बनती जा रही है। समाज के लिए जो महत्वपूर्ण चीजें हैं, उन्हें पीछे धकेला जा रहा है। यह सब देखकर मैं हैरान हूं, कंफ्यूज हूं।- आप फिल्म इंडस्ट्री से हैं, आपने बहुत करीब से इसे जिया और देखा है। अभी के दौर में एक एक्टर होना कितना आसान काम रह गया है या मुश्किल हो गया है?0 जिंदगी अपने मुश्किलात लेकर आती है। हर करियर में अपनी तकलीफें और मुश्किलात होती हैं। एक एक्टर और सफल एक्टर होने पर आप अलग किस्म की मुश्किलों और मुद्दों का सामना करते हैं। खासकर इस दौर में जब मीडिया में इतना कंपीटिशन है हर रोज एक नया टेलीविजन चैनल आ रहा है, हर टेलीविजन चैनल दूसरे चैनल से कंपीट कर रहा है और उस कंपीटिशन में वह ऊंटपटांग न्यूज जल्दी से जल्दी देना चाह रहा है। अगर आप सफल एक्टर हैं तो आपका किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है या आपके बारे में लोग कैसी चीजें उछाल रहे हैं। कुछ सही, कुछ गलत, ज्यादा गलत। इस माहौल में एक एक्टर के तौर पर मेरा क्या रेस्पांस होना चाहिए। किस तरह से इसे मुझे डील करना चाहिए। ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सिर्फ टेलीविजन ही नहीं। नेशनल प्रेस में भी हो रहा है यह। बड़े अखबार भी सनसनी पर उतर आए हैं। औरतों की नंगी तस्वीरें दिख रही अखबारों में, जहां नेशनल न्यूज छपना चाहिए। ऐसी सूरत में एक व्यक्ति, एक एक्टर और उस पर भी सफल एक्टर होने के नाते यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि मैं कैसे पेश आऊं, क्या करूं?
- पिछले कुछ सालों में सफल स्टार को बिकाऊ प्रोडक्ट बनाकर पेश किया जा रहा है। आपके प्रति फिल्म इंडस्ट्री, समाज और बाजार का यही रवैया है। हर कोई आपको क्रिएटिव व्यक्ति के तौर पर नहीं देखकर बेची जा सकने वाली एक वस्तु समझ रहा है?
0 आप सही कह रहे हैं। आपने सही समझा है। मैं कहूंगा कि इसे व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए। सिर्फ फिल्मों में ऐसा नहीं हो रहा है। चूंकि मैं फिल्म एक्टर हूं । इसलिए मेरी जो फिल्में हैं ़ ़ ़ उन्हें देखना होगा कि किस किस्म की फिल्में हैं। बाजार मुझे किस तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। बाजार हमेशा मुझे या किसी और को भी इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा अपने फायदे के लिए ़ ़ ़ जो होना भी चाहिए कुछ हद तक, लेकिन हम क्रिएटिव फील्ड में हैं और मुझे एक क्रिएटिव आर्टिस्ट के तौर पर उसे संतुलित करना पड़ेगा। मुझे मालूम है कि आजकल किस तरह की फिल्म सुपरहिट हो रही है या किस तरह की फिल्म चल रही है, लेकिन मुझे एक आर्टिस्ट के तौर पर ऐसा भी काम करना है जो सफल हो या न हो, लेकिन मेरा जी कर रहा है कि मैं ये करूं ़ ़ ़ 'रंग दे बसंती', 'मंगल पांडे', या 'लगान' करूं।भले ही ये फिल्में पहली नजर में न लगें कि चलनेवाली है, लेकिन मैं क्रिएटिवली मैं वह करना चाह रहा हूं, जो दिल चाह रहा है। इस मामले में मैंने अपने लिए सही फैसले लिए। मैं अभी तक बिका नहीं हूं। मैं क्रिएटिवली सही फैसले ले रहा हूं। मैं बाजार को इजाजत नहीं दे रहा हूं कि वह मुझे गलत तरीके से इस्तेमाल करे। अपने क्रिएटिव चुनाव के साथ ही मैं बाजार को सफल फिल्में भी दे रहा हूं। अपने क्रिएटिव चुनाव के साथ मैं सफलता दे रहा हूं। मैं संतुलित होकर चल रहा हूं फिल्मों में ़ ़ ़ लेकिन मेरा इस्तेमाल सिर्फ फिल्मों में नहीं होता। मेरा इस्तेमाल न्यूज पेपर बेचने में भी होता है, चैनल की व्यूवरशिप बढ़ाने में भी होता है। किसी कॉमेडी शो में मेरा मजाक उड़ाकर उसे बेचा जाता है, क्योंकि वह आमिर खान का मजाक उड़ाएंगे तो दर्शक देखेंगे। या न्यूज चैनल पर दस दफा नाम लेंगे ़ ़ ़ यह सिर्फ आमिर खान की समस्या नहीं है। हर सेलिब्रिटी के साथ यही हो रहा है। सेलिब्रिटी का इस्तेमाल सिर्फ फिल्मों में ही नहीं हो रहा है, बल्कि संबंधित मीडिया - टेलीविजन, न्यूजपेपर हो ़ ़ ़ उसमें भी इस्तेमाल किया जा रहा है। वह हमारे नियंत्रण में नहीं है कि वे हमारे बारे में क्या कह रहे हैं? वे सही कह रहे हैं या गलत कह रहे हैं ़ ़ वह तो दूर की बात है। मेरी शादी, जो मेरे लिए एक पवित्र चीज है, जो मेरे लिए बहुत ही पर्सनल चीज है। उसका खिलवाड़ बनाया गया, जिस पर मेरा कोई कंट्रोल नहीं था। यहां मेरे घर के सामनेवाली सड़क पर आठ-दस ओबी वैन खड़ी थी। जब हम पंचगनी गए ़ ़ ़ परिवार और नजदीकी दोस्तों के साथ तो वहां पर उन्होंने घुसने की कोशिश की। प्रेस ने, टेलीविजन ने और जितनी रिपोर्टिग हुई है ़ ़ ़ मैं अपने प्रशंसकों को कहना चाहूंगा कि मेरी शादी की 99़ 99 प्रतिशत रिपोर्टिंग गलत हुई है। वह गलत मैं इसलिए कह रहा हूं कि वे पहुंच नहीं पाए। मुझ तक या मेरे परिवार तक वे पहुंच नहीं पाए तो वे मनगढ़ंत चीजें बनाते गए। कि आज शादी में ये हो रहा है और आज ये पका है और आज ़ ़ ़ जुनैद ने ये कहा, आयरा ने वो कहा ़ ़ ़ ये सब वे अपने मन से लिख-बोल रहे थे। यह सब गलत बात है, लेकिन दुर्भाग्य से हम इस दौर में रह रहे हैं, जहां मुझ जैसी सेलिब्रिटी का ऐसा इस्तेमाल हो रहा है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि प्रेस और टेलीविजन को मालूम था कि शादी मेरी पर्सनल चीज है और मैं उसे पर्सनल रखना चाहता हूं। वे उसकी इज्जात नहीं करते। इसका क्या इलाज है मैं खुद नहीं जानता हूं।
- मीडिया की शिकायत थी और इंडस्ट्री के कुछ स्टार भी सोच रहे थे - आमिर को मालूम है कि वह देश के चहेते स्टार हैं और वह शादी करने जा रहे हैं। उनकी शादी एक खबर है और उस खबर की रिपोर्ट होनी चाहिए। उस समय आपके समकालीन एक स्टार का कहना था कि मीडिया से मिलकर अपनी बातें कहकर आपको नमस्ते कर लेना चाहिए था। मीडिया की राय है कि सार्वजनिक जिंदगी में होने के कारण आप खुद को ऐसी स्थितियों से काट नहीं सकते।
0 आपके इस सवाल का जवाब देने के बजाए मैं सवाल करना चाहता हूं कि आखिर क्यों मैं अपनी जाति जिंदगी पर सार्वजनिक रूप से बहस करूं? क्यों करूं मैं? क्योंकि प्रेस चाहता है? क्योंकि मीडिया इससे पैसा बनाना चाहता है। क्योंकि टेलीविजन चैनल अपने इश्तहार बेचते हैं उस टाइम स्लॉट में। मैं अपनी जाति जिंदगी को सोप ऑपेरा क्यों बनाऊं? क्या मुझे हक नहीं है एक इंसान के तौर पर यह फैसला लेने का कि मैं अपनी शादी में किस को बुलाऊं ़ ़ ़ अपनी शादी के बारे में मैं किस से बात करूं और किस से बात न करूं, यह तय करने का हक मेरा होना चाहिए कि मीडिया का होना चाहिए। मैं इस देश के एक आम इंसान से पूछना चाहता हूं कि आपकी कल शादी होनेवाली है ़ ़ ़ तो इसका फैसला आप और आपका परिवार करेगा या देश का मीडिया?
- यह बात कितनी सच है कि आप मीडिया से नाराज हैं?
0 मैं सभी को एक तराजू में कभी नहीं तौलता हूं। मेरी समझ में हर इंसान अलग किस्म का होता है। मीडिया में कई लोग अच्छे हैं और कई लोग बुरे हैं। मीडिया में कई ऐसे लोग हैं, जिनसे मेरी शिकायत है और मीडिया में कई ऐसे लोग हैं, जिनसे मेरी कोई शिकायत नहीं है। मेरी समझ से यह आज पूरी तरह पैसे का खेल हो गया है, क्योंकि नए -नए न्यूजपेपर आ गए हैं। सीा चाहते हैं कि मुझे रीडर मिले। मुझे ज्यादा रीडिरशिप मिलेगी तो मुझे ज्यादा इश्तहार मिलेगा। टेलीविजन की ज्यादा व्यबरशिप होगी तो विज्ञापन के ज्यादा पैसे मिलेंगे। यह पूरा पैसे का खेल हो गया, जबकि मेरे खयाल से न्यूज रिपोर्टिग जिम्मेदारी का काम है। पूरा देश आपकी बात सुन रहा है। पूरा देश जानना चाह रहा है कि देश में सबसे अहम चीज क्या हुई और वह अहम चीज किसी स्टार से किसी स्टार के अफेयर या उनकी शादी टूटी या उनका कुत्ता गुम गया ़ ़ ़ यह तो अहम न्यूज नहीं है न।़ बहुत सी चीज हो रही हैं देश में। लोग गरीबी से मर रहे हैं। किसान मर रहे हैं। अहम खबरें पीछे होती जा रही हैं। इस वक्त अगर कोई सेक्टर सबसे ज्यादा भ्रष्ट है तो वह दुर्भाग्य से मीडिया है। मेरी यह प्रार्थना है कि आने वाले वालों में यह बात बरले। मीडिया वाचडॉग है। हम गलत काम करें तो आप रोकें। अभी तो मीडिया गलत काम कर रहा है ़ ़ उसे कौन रोकेगा? आज पॉलिटिशियन गलत करें, कोई भी गलत काम करे, पुलिस फोर्स है, ज्यूडिसरी है - तो उसे कौन सामने लाएगा। मीडिया ही न? न्यूज रिपोर्टिग ही यह चीज बाहर ला सकती है। यह सब छोड़कर आप यह दिखा रहे हैं कि कौन सा आई जी राधा बन गया तो आप प्राइम टाइम का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। अभी आप टीवी खोल कर देखें लें कि ब्रेकिंग न्यूज में क्या चल रहा है। ब्रेकिंग न्यूज प्रोग्राम हो गया है आजकल।
- आपने 'रंग दे बसंती' के समय से मीडिया से कोई बात नहीं की। इसके दो पहलू सामने आए - एक तो यह कि फिल्म के चलने या न चलने में मीडिया का कोई हाथ नहीं होता और दूसरे आमिर खान ने मीडिया से बदला लिया।
0 अच्छा सवाल है। आपकी सोच सही है। मैंने फिल्म की रिलीज के पहले एक भी इंटरव्यू नहीं दिया। मेरे अंदर ऐसी कोई भावना नहीं है कि मैं मीडिया को कुछ दिखाना चाह रहा हूं। मीडिया को नीचा दिखाने या बदले की भावना है ही नहीं। मैं किस से बदला लूंगा और क्या बदला लूंगा। मैं इतना परेशान और कंफ्यूज होकर चुप हो गया था। मेरे पास शिकायत आई थी कि मैं अपने फायदे के लिए मीडिया का इस्तेमाल करता हूं। तो पिछली बार मैंने सोचा कि चलो इस्तेमाल नहीं करता हूं। मेरे ऊपर लगा यह इल्जाम भी खत्म हो। अब 'रंग दे बसंती' सुपर-डुपर हिट हो गई तो मैं मीडिया को यह कहने की कोशिश नहीं कर रहा हूं कि देखो, मैंने दिखा दिया। यह मेरी भावना ही नहीं है। मीडिया में कई लोग हैं, जो काफी अच्छी रिर्पोटंग करते हैं और वे पिछले कई सालों से अच्छा काम करते आ रहे हैं। यह एक दौर है, जिससे हमारा नेशनल मीडिया गुजर रहा है? हर ग्रुप चाह रहा है कि मैं आगे बढूं। आगे बढ़ने के चक्कर में दुर्भाग्य से सभी अपनी जिम्मेदारी भूल कर अजीब काम कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा पाठकों को आकर्षित करने के लिए अजीबोगरीब चौंकानेवाली खबरें दी जा रही है। किसी गांव में किसानों के मरन की खबर बहुत उत्तेजक नहीं होगी।
- आजकल टीवी पर समाचार भी मनोरंजन हो गया है?
0 बिल्कुल, जबकि मेरी समझ में समाचार को समाचार होना चाहिए। आजकल मैं दूरदर्शन देखता हूं। वे समाचार के वक्त समाचार ही प्रसारित करते हैं। यही मेरा कहना है। यह बहुत खतरनाक ट्रैड है। तो मैंने मीडिया को कुछ नहीं दिखाया। मैं तो पीछे हट गया कि मुझे कुछ बोलना ही नहीं है।
- 'मंगल पांडे' के प्रति मिली प्रतिक्रिया से आप दुखी और उदास हैं और एक हद तक नाराज भी?
0 उस फिल्म की रिलीज के समय मीडिया के एक सेक्शन का रवैया मेरी समझ में नहीं आया। उस समय मैंने एक शब्द भी नहीं कहा था। आज आठ महीनों के बाद आपके पूछने पर जवाब दे रहा हूं। एक तथ्य पर गौर करें - मेरे पास हजारों स्क्रिप्ट आती है। मैं और भी कोई फिल्म कर सकता हूं। रोमांटिक या कॉमेडी फिल्म कर सकता हूं। मेरे पास फिल्मों की कमी नहीं है, फिर भी मैं एक ऐसा विषय चुनता हूं। जिस पर मुझे लगता है कि मुझे फिल्म बनानी चाहिए। हमारे देश के लोगों को यह फिल्म देखनी चाहिए। यह मेरी क्रिएटिव चाहत है और एक सामाजिक व्यक्ति के नाते यह मेरा फर्ज है। मैं जानता था कि यह फिल्म बहुत ज्यादा महंगी होनेवाली है। मालूम नहीं कामयाब हो या न हो, फिर भी मैं कोशिश की मेरी समझ में ऐसी कोशिश मैं करूं या कोई और करे ़ ़ ़ मीडिया को सपोर्ट करना चाहिए। सपोर्ट तो दूर की बात है ़ ़ ़ मीडिया के एक सेक्शन ने उस वक्त सिर्फ लथाड़ने की कोशिश की। हर रोज गलत और बुरी रिपोर्ट आती थी फिल्म के बारे में। रिलीज के पहले दिन खबर आई कई अखबारों में ़ ़ ़ उसमें से एक टाइम्स ऑफ इंडिया भी था कि फिल्म फ्लॉप हो चुकी है। कम से कम तीन-चार दिन रूकने के बाद आप कह सकते हैं कि फिल्म फ्लॉप हो चुकी है। पता करें कि कलेक्शन क्या है? फिर बताएं कि फिल्म हिट हुई है या फ्लॉप हुई है। पहले दिन या दूसरे दिन आप आर्टिकल छाप रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि आपने पहले से ही तय कर लिया है । क्योंकि न्यूज पेपर की प्रिटिंग एक दिन पहले होती है। आपने पहले से तय कर लिया कि मुझे इस फिल्म को फ्लॉप बताना है। वरना आपको कहां से पता चला कि फिल्म फ्लॉप है। अभी तक तो रिलीज नहीं है? अभी तक तो हमें दर्शकों का रिएक्शन नहीं मिला है। अगर 'मंगल पांडे' का उदाहरण लें तो 'मंगल पांडे' का पहले हफ्ते का कलेक्शन रिकॉर्ड ब्रेकिंग कलेक्शन था। आपकी पहले हफ्ते की रिपोर्टिग यही कह सकती है कि यह रिकॉर्ड ब्रेकिंग कलेक्शन है। रिलीज के दिन आपकी रिपोर्टिग अगर कुछ कह सकती है तो वह यही कह सकती है कि - एक फिल्म आई थी 'वीर जारा' जिसने पहले हफ्ते में तेरह करोड़ का धंधा किया था हिंदुस्तान में।और 'मंगल पांडे' ने उन्नीस से बीस करोड़ का धंधा किया है। तो तेरह से चौदह, सतरह, अठारह नहीं ़ ़ हम सीधे बीस करोड़ पर पहुंचे हैं। यह एक न्यूज है, हिस्ट्री है, यह रिकार्ड है। लेकिन उस वक्त ज्यादातर मीडिया ने यही रिपोर्ट किया कि फिल्म फ्लॉप है। किस आधार पर यह रिपोर्ट हुई है मुझे पता नहीं। क्योंकि मुझे जो रेस्पांस मिला है फिल्म का। पर्सनली मैं बात कर रहा हूं, क्योंकि कई जगह मैंने ट्रेवल किया। लोगों से मैं मिला। थिएटर में गया । मुझे फिल्म को मिक्स रेस्पांस मिला है। कई लोगों को यह फिल्म बेहद पसंद आई है, कई लोग निराश भी हुए हैं। शायद उन्हें इतिहास नहीं पता था कि उस वक्त क्या हुआ था। लेकिन हमें वह बताना था।
-उस समय 'मंगल पांडे' को लेकर विवाद हुए। खासकर रानी मुखर्जी के किरदार और मंगल पांडे के कोठे पर जाने को लेकर लोगों की आपत्ति थी?
0 यह विवाद हुआ कि हमलोगों ने सही इतिहास दिखाया या नहीं? इस संबंध में मैं लंबा-चौड़ा डिशकशन कर सकता हूं। मैं एक बड़ी अहम चीज कहना चाहूंगा इस मामले में। कैम्ब्रीज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हैं हिस्ट्री के, वह हेड ऑफ डिपार्टमेंट हैं हिस्ट्री के। उन्होंने एक आर्टिकल लिखा वहां के अखबारों में और 'मगल पांडे' की एतिहासिकता पर लगे आरोपों का खंडन किया। मैं तो उनको जानता भी नहीं। उन्होंने पढ़ा होगा। उन्होंने बताया कि किस तरह की फिल्म बिल्कुल सही है। हमने खूब रिसर्च की और जाहिर है कि हमने कुछ चीजें ऐसी की हैं जो इतिहास की किताबों में न हों। ये बात उस वक्त भी मैंने कही थी। ये बहुत पुरानी बात हो गई। ये मुझे बार-बार दोहराना नहीं है। उस वक्त यह भी निकला था कि मंगल पांडे की फैमिली के लोग हैं, जो कहते हैं कि हमने उनका किरदार सही तरीके से नहीं दिखाया। और वह वेश्या के कोठे पर दो दफा गए। हां,फिल्म के अंदर यह दिखाया है। लेकिन यह भी तो देखिए कि वह दो दफा क्यों गए हैं? वह किसी लड़की को खरीदने नहीं गए हैं। वह एक दफा गए एक लड़की को यह कहने कि अगर तुम भागना चाहती है तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं। एक औरत की लाचार या गरीब औरत जो मुश्किल में है, उसकी मदद करने गए हैं। यह उनको बुरे लाइट में तो नहीं दिखाता है, अच्छे लाइट में दिखाता है। और दूसरी दफा तब जाते हैं जब एक अंग्रेज अफसर बदतमीजी करता है एक औरत के साथ। उस समय वह उसको मारने जाते हैं। आप बताएं कि इसमें हमने क्या चरित्र हत्या की? मुझे तो समझ में नहीं आया। खैर , मेरा यह कहना है कि उस वक्त जो मेरी नाराजगी थी, वह प्रेस के एक सेक्शन से थी। उन्होंने इस फिल्म को सपोर्ट करना तो दूर, उन्होंने अपनी जान लगा दी यह प्रूफ करने में कि फिल्म फ्लॉप है।
-मंगल पांडे के बिजनेस के बारे में क्या कहेंगे।
0 अब आप फिल्मों का कलेक्शन देखें तो जो हिट फिल्म है उस दौरान की या उससे पहले की। जो फिल्में हिट मानी जाती है। जैसे 'मैं हूं ना', 'कल हो न हो' ये सारी फिल्में हिट मानी जाती हैं। इनसे तो हमने कम से कम दो या तीन गुणा ज्यादा धंधा किया है। मतलब इतने ज्यादा लोगों ने टिकट खरीदा है उस फिल्म का। 'मंगल पांडे' फ्8 या ब्0 करोड़ की फिल्म है। हमने अगर उतना धंधा किया है तो हम सिर्फ अपना खर्च निकाल पाए हैं। लेकिन आप यह देखिए कि एक एक्टर के तौर पर मेरे लिए वह फिल्म बड़ी सक्सेस है। एक एक्टर के तौर पर मैं उस फिल्म से बड़ा खुश हूं कि मैंने ये फिल्म की। मुझे गर्व है अपने चुनाव का। उस फिल्म एक प्रोजेक्ट के तौर पर देखें तो टैलेंटेड डायरेक्टर होने के बावजूद केतन मेहता को बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी। बॉबी भी नए प्रोडयूसर थे। उनको भी इतनी कामयाबी नहीं मिली थी। इस संदर्भ में प्रोजेक्ट को आप देखें तो उसे उन्नीस करोड़ की ओपनिंग मिलना ही रिकॉर्ड बे्रकिंग न्यूज है। अपने-आप में रिकार्ड ब्रेक है ही ।
- नहीं, हो सकता है, ट्रेड के लोग इस ढंग से देख रहे हों।उनके लिए फिल्म का हिट होन उसकी लागत के अनुपात से तय होता है।
0 ये हुई बिजनेस की बात। अगर आप बिजनेस की रिर्पोट कर रहे हैं तो आपको इतना तो रिपोर्ट करना पड़ेगा सबसे पहले कि इसमें - कहां तेरह करोड़ और कहां उन्नीस करोड़ ये तो आपको रिर्पोट करना चाहिए? यह आपने नहीं किया। मेरा सवाल है कि क्यों नहीं की आपने यह रिपोर्ट। आजतक मैंने कहीं नहीं सुना कि 'मंगल पांडे' ने रिकार्ड ब्रेक कर दिया। मैंने सिर्फ इतना ही सुना है कि 'मंगल पांडे' फ्लॉप है। और फ्लॉप किस एंगल से है यह? स्टार के तौर पर मेरे लिए तो सुपर हिट है यह फिल्म। एक स्टार काम है लोगों अंदर लाना। वह मैंने बखूबी किया, जबकि प्रोजेक्ट कमजोर था। तब भी मैंने किया। तब भी मैंने रिकॉर्ड ब्रेक किया। ये मेरे लिए सबसे बड़ा सक्सेस है स्टार के तौर पर। मेरी समझ से कोई ऐसा दर्शक नहीं है जो कहता कि फिल्म बुरी है। मैंने जो रेस्पांस देखा है। आधे लोग कहते हैं कि बड़ी अच्छी लगी उनको। आधे लोग कहते हैं कि यार हम थोड़े निराश हुए। 'लगान' के बाद कुछ और आना चाहिए था। दर्शक कुछ ज्यादा की उम्मीद कर रहे थे। हो सकता है कि मेरी फिल्म चार सालों के बाद आ रही थी तो उनकी उम्मीद भी ज्यादा थी।
- ऐसा लगता है कि मीडिया में कुछ लोगों या मीडिया के एक ग्रुप की आपसे व्यक्तिगत खुन्नस है और वह खुन्नस उस फिल्म पर निकली?
0 हो सकता है। यह बात हो सकती है। क्योंकि मैं उस किस्म का इंसान हूं, जो काम से काम रखता है। कुछ ऐसे जर्नलिस्ट हैं, जो चाहते हैं कि हम उनसे खूब दोस्ती करें, तभी वे अच्छा लिखेंगे। मैं इस चीज को नहीं मानता हूं। एक जर्नलिस्ट होने के नाते आपको स्टार से, सेलिब्रिटी से कटा रहना चाहिए। ताकि आप सच्चाई से लिख सकें। आपके दिल में क्या है, आपके जहन में क्या है। आप मेरे दोस्त बन जाएंगे तो आप मेरे बारे में क्या क्रिटिसाइज करेंगे? आप क्या गलती निकालेंगे मेरी। ये तो नहीं है कि मैं गलती नहीं करूंगा। कभी-कभी मैं अच्छा काम करूंगा। कभी मैं बुरा काम करूंगा। एक जर्नलिस्ट के नाते आपका काम है कि आप उसको सही तरीके से परखें। और उस चीज को सामने लाएं। मुझे लगता है कि प्रेस के कुछ लोग इसलिए मेरे खिलाफ हैं, क्योंकि मैं ज्यादा दोस्ती नहीं करता हूं लोगों से। या पर्सनल रिलेशनशिप नहीं रखता उनसे। शायद कुछ जर्नलिस्ट यह नहीं पचा पाते कि मैं अलग काम कर रहा हूं और उसमें भी मैं कामयाब हो रहा हूं। हो सकता है कि वे सोचते हों कि जरा इसको नीचे लाओ। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या है?
- आपकी फिल्मों पर आ रहा हूं मैं। ऐसा माना जाता है कि 'सरफरोश' के बाद आप में एक बदलाव आया । 'सरफरोश' के बाद 'लगान' आई, फिर 'दिल चाहता है' , 'मंगल पांडे' और अब 'रंग दे बसंती' ़ ़ ़ क्या आप भी मानते हैं कि 'सरफरोश' से ही यह बदलाव आया या शुरू से एक धागा था, जो बाद में फिल्मों को जोड़ गया?
मैं शुरू ही कुछ ऐसी फिल्में कर रहा हूं जो उस दौर के लिए अलग होतीं हैं। 'कयामत से कयामत तक ' आप आज देख कर कह सकते हैं कि यार बड़ी कमाल की लव स्टोरी है और लव स्टोरी तो कमर्शियल चीज होती है। लेकिन उस दौर में जाइए आप, पंद्रह साल पहले जाइए, तो उस वक्त सिर्फ एक्शन फिल्में चल रही थीं। 'कयामत से कयामत तक' को बेचने में नासिर साहब को छह महीने से ज्यादा लगा था। कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं था। क्यों? क्योंकि वो लव स्टोरी थी। क्यों? क्योंकि वो नए स्टार कास्ट थे। क्यों? क्योंकि उनको लगा कि म्यूजिक कमजोर है। म्यूजिक का दौर था ही नहीं। तो आप देखिए कि उस वक्त भी हमलोग ने जो किया वह काफी अलग किया था। 'जो जीता वही सिकंदर' कोई आम फिल्म नहीं है। 'दिल है कि मानता नहीं' कोई आम फिल्म नहीं है। हां, सोशल कमेंट नहीं है उन फिल्मों में लेकिन ़ ़ ़ अगर मैं अपने खुद के काम को एनलाइज करने की कोशिश करूं तो मैं ये देख सकता हूं कि उसमें एक धागा है रिवेलियन का जो चल रहा है।मैं हमेशा प्रवाह के खिलाफ फिल्म करने की कोशिश कर रहा हूं। हो सकता है कि आरंभिक फिल्मों में मैं खुद करो परख रहा होऊं। जहां तक कि सोशली रेलीवेंट फिल्मों का सवाल है, तो मेरे हिसाब से 'सरफरोश' से पहले आई थी 'गुलाम'। मेरे हिसाब से 'गुलाम' में भी सोशल रेलीेवेंस था। उसमें बताया गया था कि समाज के अनपढ़ युवक अपनी ऊर्जा गलत दिशा में खर्च कर रहे हैं। सोशल कंसर्न के लिहाज से गुलाम मेरी पहली फिल्म थी। देखिए फिल्म रिलीज होती है, लेकिन उस पर काम दो या तीन साल पहले से शुरू हो जाता है। जब मेरी फिल्म 'राजा हिंदुस्तानी' रिलीज हुई थी, क्99म् की बात कर रहा हूं मैं। तो उस वक्त मैं एक तरह से महत्वपूर्ण मोड़ पर आ गया था अपने कैरियर के। क्योंकि 'राजा हिंदुस्तानी' बहुत ही बड़ी हिट थी। और लगातार मैंने कई सालों से कामयाब फिल्म दी थी। उससे पहले 'रंगीला' आई थी। उससे एक साल पहले 'हम हैं राही प्यार के' आई थी। ये सारी कामयाब फिल्में थीं। मैं उस मोड़ पर आ गया था कि मैं अपनी कामयाबी का इस्तेमाल पॉजीटिव ढंग से कर सकूं। लिहाजा उस वक्त से जो चीजें मुझे सोशली इंपोर्टेट लगती थीं मैं उन चीजों को लेने की कोशिश करता था। जब 'सरफरोश' का सब्जेक्ट आया तो उस वक्त आईएसआई का बड़ा जोर था। क्रॉस बोर्डर टेररिज्म की चर्चा थी। उसके साथ-साथ दक्षिणपंथी भी उभार पर थे। इसके साथ-साथ हिंदू-मुसलिम इश्यू को भी उठाया गया। ये चीजें मेरे जहन में थीं, क्योंकि पिछले पांच-छह सालों से अखबारों में पढ़ रहा था। अपने आस-पास महसूस कर रहा था। तो हो सकता है उस वजह से मेरा झुकाव स्क्रिप्ट की तरफ हुआ हो। जाहिर है हमारे ईद-गिर्द जो चीजें होती हैं, उसका हम पर असर होता है़ ़ और मैं जिस किस्म का आर्टिस्ट हूं, मुझे लगता है कि जो मुझे सक्सेस मिली है, जो लोगों की प्रार्थना और दुआओं से मिली है, जो लोगों के सपोर्ट और प्यार से मुझे सक्सेस मिली है, उसका मुझे कुछ पॉजीटिव इस्तेमाल भी करना चाहिए। न सिर्फ मैं लोगों को इंटरटेन करूं। करीब आठ साल हो गए थे मेरे कैरियर में। मैं उस पोजिशन में में पहुंच गया था कि मुझमें काफी स्ट्रेंग्थ आ गई थी लोगों के सपोर्ट से। अब उसका इस्तेमाल मैं सही ढंग से करूं। शायद तब से मैंने इस किस्म की फिल्में भी चुननी शुरू की जो सोशली रेलीेवेंट भी हों।
- 'लगान' से एक बहुत बड़ा मोड़ आया। आपके पर्सनल लाइफ में, आपके फिल्म कैरियर में, हर लिहाज से। अभी आप पलट कर कैसे देखते हैं? उसकी कामयाबी को आप अपने करिसर और जीवन में कितना इंपोर्टेंट मानते हैं?
0 मेरे खयाल में 'लगान' भारतीय सिनेता के लिए बहुत इंपोर्टेट है। निश्चित ही मेरी जिंदगी में वह बहुत इंपोटर्ेंट मोड़ था। पहली फिल्मं प्रोडयूस कर रहा था मैं। लेकिन जिस किस्म की फिल्म बनी वह। उसने सारे रूल तोड़ दिए। इंडियन सिनेमा की मेनस्ट्रीम फिल्ममेकिंग को एक अलग डायरेक्शन में वो ले गई वह फिल्म। बहुत ही अहम फिल्म है मेरी कैरियर की। और उसके साथ-साथ मैं कहूंगा कि 'सरफरोश' भी अहम फिल्म है मेरे कैरियर की। उसके बाद 'मंगल पांडे' बहुत अहम फिल्म है मेरे कैरिअर की।
- पिछली बार दैनिक जागरण के एक पाठक ने आपसे पूछा था,कि क्या आप हर फिल्म में अंग्रेज को भगाते रहेंगे?
0 नहीं अंग्रेजों से मुझे कोई परेशानी नहीं है। संयोग ऐसा हुआ कि 'लगान' और 'मंगल पांडे' की कहानी में अंगे्रज थे।
- 'रंग दे बसंती' में भी लगभग वही स्थिति है?
0 'रंग दे बसंती' अंग्रेजों के खिलाफ बनी फिल्म नहीं है। इसमें अतीत के कंातिकारी किरदार अंग्रेजों के खिलाफ हैं। हम ता इसमें आज के किरदार निभा रहे थे। 'रंग दे बसंती' ऐसी फिल्म है, जो अपने देश के नौजवानों को जगाने का काम करती है। इस फिल्म की कोशिश सही है। मैं यह नहीं कहता कि हमारे देश के नौजवान निखट्टू हैं। नहीं। एक देश के नौजवानों का एक सेक्शन है, जो समाज से बेखबर है। बाकी अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। आम तौर पर हम अपनी सामाजिक जिममेदारी भूल रहे हैं। हर आदमी यही सोचता है कि मुझे नहीं हो रहा है तो ठीक है। मैं क्यों फिक्र करूं? जब तक मुझ पर नहीं आएगी, मैं अपनी उंगली नहीं उठाऊंगा। लेकिन समाज में हर काम हमें एक साथ मिलकर करना है। चाहे वो जो भी चीज हो। जो भी गलत काम हो रहा है,उसके खिलाफ जब तक हम सब अपनी आवाज अलहदा और इकट्ठा नहीं उठाएंगे तब तक तब्दिली नहीं आएगी। तब तक प्रोग्रेस नहीं आएगा। तब तक खुशी नहीं होगी, तब तक अमन नहीं होगा। हमें मिल कर ही कुछ करना होगा। हमारा देश जो है, हमारी सोसायटी जो है, एक घर की तरह है। घर का एक सदस्य चिल्लाता रहेगा तो कुछ नहीं होगा। हम सब को मिलकर वह करना होगा। हमारे घर में कोई तकलीफ है या कोई खराबी है, तो हमें उसे ठीक करना है। कोई बाहर का आदमी आकर नहीं ठीक करने वाला है। वह हमको ही करना है। हमारी फिल्म यही कहने की कोशिश कर रही है। एक वक्त बात चली थी कि यह फिल्म अंग्रेजी में बनाएं,क्योंकि यह बहुत ही मॉडर्न किस्म की फिल्म है। मैंने कहा कि नहीं। यह फिल्म अंग्रेजी में तो बिल्कुल ही नहीं बननी चाहिए। क्यों? क्योंकि यह फिल्म हिंदुस्तानियों से बात करने की कोशिश कर रही है । सबसे पहले तो इसको हिंदुस्तानी में बनाना चाहिए हमें। अंग्रेजों के लिए हम नहीं बना रहे हैं यह फिल्म। यह हम अपने लिए बना रहे हैं। अपने देश के लोगों के लिए बना रहे हैं इसको देखकर हम में से कुछ जागें। तो अंग्रेजों के खिलाफ है ही नहीं यह फिल्म।
- इस बात में कितनी सच्चाई है कि राजकु मार संतोषी की भगत सिंह आप करने वाले थे?
0 वह मुझे ऑफर हुई थी। राजकुमार संतोषी ने मुझे ऑफर की थी, पर मैंने ना कर दिया था। मेरी ना करने की वजह यह थी कि ़ ़ ़ मेरा बहुत ही सिंपल लॉजिक था कि ़ ़ ़ देखिए मैं कोई भी काल्पनिक किरदार प्ले कर लूंगा। 'रंग दे बसंती का डीजे एक काल्पनिक किरदार है ़ ़ ़ वह रियल नहीं है। डीजे आजाद प्ले कर रहा है फिल्म की डाक्यूमेंट्री के अंदर। अगर हम फिल्म बना रहे हैं भगत सिंह के ऊपर ़ ़ भगत सिंह ख्फ् वर्ष के उम्र में शहीद हो गए थे। जब मुझे यह फिल्म ऑफर की गई थी, संतोषी की भगत सिंह तो मेरी उम्र शायद फ्ब् वर्ष की थी। मैंने कहा कि राज मैं कम से कम दस साल बड़ा हूं इस रोल के लिए । करने को मैं कर लूं। क्योंकि एक कलाकार के तौर पर मुझे अलग-अलग उम्र के किरदारों को निभाना पड़ता है। हो सकता है मैं भगत सिंह की उम्र का दिख जाऊं और परफॉर्म भी कर दूं, लेकिन मेरी समझ से, खासकर भगत सिंह के किरदार में सच्चाई तभी आएगी, जब आप कटघरे में खड़े होकर उस इंसान को देखें, तो देखने में हमें लगे ़ ़ यार यह तरुण लड़का है,अभी तक इसकी मूंछें नहीं निकली हैं ठीक से और यह इतनी बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है, जो मुझे महसूस नहीं हो रही हैं। यह अपनी जान देने पर तैयार हो गया। अपने सिद्धांतों के लिए। उसका धक्का मुझे तभी लगेगा,जब भगत सिंह का किरदार निभाने वाला अठारह साल का लड़का होगा। आपको अठारह साल का लड़का ही लेना चाहिए इस रोल में। आप कामयाब डायरेक्टर हैं। अठारह साल के लड़के को लेकर बना सकते हैं। नया लड़का लीजिए और बेहतर होगा कि सरदार लीजिए। उससे विश्वसनीसता आएगी। भगत सिंह का कैरेक्टर कौन नहीं प्ले करना चाहेगा? महान किरदार है उनका। लेकिन मुझे लगा था कि मैं शूट नहीं कर रहा हूं उससे। दूसरी वजह यह थी कि उस वक्त जब आए थे मेरे पास, तो मुझे े वह स्क्रिप्ट बनाई इतनी ठीक नहीं लगी थी।
- स्वतंत्रता की लड़ाई के दौर के किरदारों में कौन आपको प्रिय है,जो प्रभावित भी करता हो?
0 महात्मा गांधी ़ ़ ़ उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षित करता है। उसकी वजह है,उनकी ताकत,उनकी ईमानदारी,अहिंसा का उनका सिद्धंात ़ ़ ़स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व उन्होंने अहिंसा करा मार्ग अपना कर किया। कमाल का काम किया उन्होंने। उनमें आंतरिक शक्ति थी। अंग्रेजों से निबटने की बुद्धि थी उनके पास। उनमें अंग्रेजों से निबटने की बौद्धिक और मानसिक क्षमता थी। वह अंग्रेजों के खिलाफ मनोवैज्ञानिक लड़ाई भी लड़ रहे थे। किस तरह उन्होंने पूरे देश को इकट्ठा किया? किस तरह उन्होंने लोगों को प्रेरित किया। किस तरह उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता दिखलायी। दन सबक साथ-साथ उनकी सबसे अहम बात है कि वह अहिंसा में विश्वास करते थे। आज वह कहुत ही जरूरी हो गया है। मेरे लिए सबसे आकर्षक किरदार गांधी जी हैं।
- इसका मतलब 'रंग दे बसंती' में जो डीजे करता है, आमिर खान उस तरह से नहीं सोचते हैं?
0 एक चीज और मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि अगर 'रंग दे बसंती' का क्लाइमेक्स वहां पर होता, जहां पर वे लड़के रक्षा मंत्री को मार देते हैं ़ ़ ़ वहां फिल्म खत्म हो जाती। ये लोग बड़े खुश होते कि हमने डिफेंस मिनिस्टर को मार दिया। न्यूज आता टीवी पर कि शायद आतंकवादियों का हाथ होगा। फलां होगा ़ ़ ़ढिमका होगा और इन लोगों पर किसी को संदेह नहीं होता। अगर वहां पर फिल्म खत्म हो जाती ़ ़ और ये बड़े खुश होते कि हमने बदला ले लिया। जो हम करना चाहते थे, वो हमने कर दिखाया। तब आप यह कह सकते हैं कि हमारा मैसेज था कि हिंसा ही जवाब है। लेकिन हमारी फिल्म वहां पर खत्म नहीं होती। वे लड़के हिसात्मक कदम उठा लेते हैं, उसके बाद उन्हें अहसास होता है कि वास्तव में वह गलत कदम था। पहले वे अलग-अलग कोशिश करते हैं, एक दम निराश हो जाते हैं। डीजे रो देता है कि यार हमलोगों की कोई औकात ही नहीं है। जब उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि वे लोग कुछ नहीं कर पाते तब उन्हें लगता कि यार कम से कम इस दरिन्दे को मार तो दो। और उस जुनून में जाकर वे उसे मार देते हैं। दरिंदे को मारने के बाद वे खुश नहीं हैं। उन्हें यह एहसास होता है कि जो हम करने चले थे, वह तो हासिल ही नहीं हुआ। जिस वजह से हम उसे मारने चले थे, वह तो हासिल ही नहीं हुआ है। यह तो और बड़ा हीरो बन गया। इसलिए फिल्म वहां खत्म नहीं होती। फिल्म आगे बढ़ती है। फिल्म का अंतिम संदेश करण के मुंह से निकलता है जब वह ऑल इंडिया रेडियो में माइक पर होता है। वह कहता है कि शायद हमने जो किया है वह गलत किया है और हम उस गलती को पब्लिलिी कबूल करने आए हैं यहां। जो हमको सजा मिलेगी, वह मिलनी चाहिए। लेकिन हम यह कहना चाह रहे हैं कि कुछ करना होगा। ऐसे हम जिंदगी नहीं जी सकते हैं। पहला कॉलर बोलता है कि अच्छा किया आपने। ऐसे ही सबको ही मार देना चाहिए। सारे पॉलिटीशियन को खड़ा कर के मार देना चाहिए। तो उसका जवाब क्या आता है? करण यह नहीं कहता कि सही कह रहे हैं आप। करण कहता है कि नहीं। कितने लोगों को मारेंगे आप, किस-किस को मारेंगे,आप किसको मारेंगे? इनको हटा दीजिए। इनकी जगह पर किसी और मिनिस्टर को ले आइए। वे क्या अलग होने वाले हैं? नहीं, अलग नहीं होने वाले हैं। ये जो मिनिस्टर हैं, ये किसी और ग्रह से नहीं आए हैं। ये हम में से ही एक हैं। हमारी सोसायटी के हैं। हमने इन्हें चुना है। ये हमारे बीच के हैं। अगर ये भ्रष्ट हैं तो हम भ्रष्ट हैं। अगर कुछ बदलना है तो इनको लाइन में खड़ा कर के गोली मत मारो। अगर कुछ बदलना है तो खुद को बदलो। यह संदेश है फिल्म का। यह बहुत ही साफ संदेश दिया गया है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है। तो जब मैं यह कहता हूं कि मैं गांधी जी का प्रशंसक हूं तो मुझे लगता है कि फिल्म उनका प्रचार करती है। फिल्म बताती है कि हिंसा से कुछ नहीं होगा। वास्तव में हमें जागना है।
- लेकिन जब आप फिल्म की कहानी सुन रहे होते हैं तो क्या सचमुच वैचारिेक ओर दार्शनिक स्तर पर इन सारी चीजों को देखते और ध्यान में रखते हैं?
0 हां, मैं गौर करता हूं। खासकर अगर फिल्म सामाजिक रूप से रेलीवेंट टॉपिक पर हो तब तो मैं अवश्य ही अपने विचारों से फिल्म की कहानी को मैच करता हूं कि यह मैच करती है कि नहीं। अगर नहीं करती है तो मैं नहीं करता हूं। अगर फन है या मजेदार और मनोरंजक फिल्म है,उसमें कोई विचार या सोशली रेलीवेंट चीज हम नहीं कह रहे हैं तो अलग बात हो गई। उसमें भी मैं चेक करता हूं कि यार कोई ऐसी चीज तो हम नहीं दिखा रहे हैं बीच में,जिसें मैं नहीं मानता हूं। जब सोशली रेलीवेंट फिल्म मैं चुनता हूं तो उस वक्त तो मैं निश्चित ही यह ध्यान में रखता हूं। अगर फिल्म कुछ कह रही है और मैं कुछ अलग कह रहा हूं तो मैं नहीं करता हूं।
- क्या एक फैनेटिक मुसलिम या एक कट्टरपंथी हिंदू या किसी टैररिस्ट का रोल आपको दिया जाएगा तो आप करेंगे?
0 हां करूंगा मैं। लेकिन वह होता है रोल। और फिल्म क्या कह रही है, वह अलग चीज होती है। निगेटीव रोल करने से कभी नहीं कतराता हूं। 'क्9ब्7 अर्थ' मैंने की है। फिल्म कह रही है कि लोग लड़ रहे हैं। आठ साल की एक पारसी लड़की के दृष्टिकोण से फिल्म दिखायी जा रही है। ़ ़ ़ कि कैसे लोग बदल रहे हैं मेरे इर्द-गिर्द, क्या देख रही हूं मैं। ये क्या हो रहा है? किस तरह बंटवारा किया जा रहा है? किस तरह लोगों के जहन में जहर घोला जा रहा है? फिल्म जो है 'क्9ब्7 अर्थ' ़ ़ ़ वह उस लड़की का दृष्टिकोण है। उसमें शायद मेरा निगेटिव कैरेक्टर हो ़ ़ ़ उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह एक किरदार है।
- बहुत बड़ी बात कही आपने ़ ़ जरूरी नहीं कि हर बार आप ही फिल्म के हीरो हों, या यों कहें कि कोई मैसेज देना हो तो जरूरी नहीं कि वह आपके जुबान से ही जाए। किसी और के जुबान से भी जा सकता है।
0 हां किसी और के जुबान से भी जा सकता है। 'रंग दे बसंती' में तो करण कहता है। मैं तो कहता भी नहीं हूं। करण ही ऑल इंडिया रेडियो में सभी से बातें करता है। - अपने बहुत सारे क्रिटिक को पहली बार 'रंग दे बसंती' में आप अच्छे लगे। उन्हें लगा कि आपने अच्छा अभिनय किया है। 0 क्या कह सकता हूं। शुक्रिया कहूंगा मैं। - और उसके साथ कुछ जोड़ा उन्होंने। उसका कारण बताया है कि आमिर ने जब-जब कोस्टार के साथ कुछ किया है,वहां वे अच्छे लगे। उनकी राय में 'मंगल पांडे' के फ्लॉप होने की एक वजह यही है कि कोस्टार उतने एक्टिव नहीं दिखे? बाकी किरदार उस तरह से उभर नहीं पाए?0 गलत। 'मंगल पांडे' में जो कैरेक्टर है कैप्टन गोर्डन का वह मंगल पांडे के टक्कर का रोल था। दोनों पैरेलर रोल था। आप यह नहीं कह सकते है कि मंगल पांडे का रोल बेटर था या कैप्टन गोर्डन का। दोनों हीरो हैं फिल्म के। तो यह बात गलत है कि सिर्फ मेरा ही किरदार था और किसी का किरदार नहीं था। कैप्टन गोर्डन का किरदार था।
- सहयोगी और बाकी क्रांतिकारी उभर कर नहीं आए?
0 फिल्म उनके बारे में नहीं थी। फिल्म थी ब्रिटिश और इंडिया के बीच में जो लड़ाई है ़ ़ उसमें एक ब्रिटिश ऑफिसर और एक भारतीय सिपाही दिखाया गया। उसमें दो कैरेक्टर अहम थे ़ ़़ ़ लेखक ने जो दृष्टिकोण रखा,उसमें उन दोनों को सामने रखा है। एक ब्रिटिश दृष्टिकोण और एक भारतीय। उसमें जो ब्रिटिश कैरेक्टर का रोल है, वह उतना ही अहम है, उतना ही इंपोटर्ेंट है, जितना कि हिंदुस्तानी का। उस हिसाब से उससे कोई समझौता नहीं किया गया है फिल्म के अंदर। मैंने अक्सर ऐसी फिल्में की हैं, जिनमें मैं सिर्फ अकेला हीरो रहा हूं। और वे फिल्में बड़ी कामयाब हुई हैं। ऐसा कुछ नहीं है कि सिर्फ वही फिल्में हिट होती हैं, जिसमें पांच-छह लोग होते हैं। आप 'गुलाम' ले लीजिए या 'सरफरोश' ले लीजिए या 'दिल' या 'राजा हिंदुस्तानी' ़ ़ ़ बहुत सी फिल्में हैं ़ ़ मैंने सोलो स्टार भी किए हैं, मल्टीस्टारर भी किए हैं। या ऐसी फिल्में जिसमें ज्यादा कैरेक्टर हों या एक कैरेक्टर हो। 'दिल है कि मानता नहीं' में सिर्फ दो ही कैरेक्टर थे- लड़का-लड़की।
- जब आप मंगल पांडे जैसे किरदार के साथ काफी लंबे समय तक रहते हैं तो उससे आपकी रोजमर्रा जिंदगी में कितनी खलल पड़ती है? या आप कम्पार्टमेंटलाइज कर लेते हैं कि नहीं इस समय मैं किरदार में हूं और अब नार्मल इंसान हूं ़ ़ ़
0 आम तौर पर जब मैं एक काम कर रहा होता हूं तो मुझे दूसरा काम उस वक्त नहीं अच्छा लगता। ऐसा नहीं होता कि एक काम रोक कर कोई और काम करूं। जब अभी मैं इंटरव्यू दे रहा हूं तो मुझे और कुछ नहीं करना है। मैं यह नहीं चाहूंगा कि शूटिंग में आपको बुला लिया और शूटिंग भी कर रहा हूं और आपको इंटरव्यू भी दे रहा हूं। कभी-कभी शायद करना पड़े, सिचुएशन ऐसी हो। लेकिन मुझे यह पसंद नहीं है। मुझे मजा नहीं आता। अपनी तरफ से मैं ऐसी स्थिति नहीं आने देता। जाती जिंदगी में किसी ककिरदार से अभी तक खलल नहीं आया है। लेकिन यह बात सही है कि जब मैं एक कैरेक्टर को लेकर एक फिल्म करता हूं तो मैं चाहता हूं कि उस कैरेक्टर को पूरी तरह से जीऊं। और उस प्रक्रिया का पूरा आनंद उठाऊं जब मैं उस कैरेक्टर को प्ले कर रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं है कि अगर मैं छह महीने मंगल पांडे की शूटिंग कर रहा हूं तो छह महीने तक मैं मंगल पांडे ही बन गया हूं और बाकी जिंदगी में भी मैं मंगल पांडे की तरह व्यवहार कर रहा हूं। जब शूटिंग हो जाती है, मैं घर आता हूं। घर में रहने के वक्त मैं मंगल पांडे नहीं रहता। हां यह जरूर है कि उस छह महीने के दौरान अक्सर यह होता है कि जब मैं शूटिंग नहीं कर रहा हूं और घर पर बैठा हूं तो भी मैं अपने कैरेक्टर के साथ खेलता हूं कि अगर मंगल इस वक्त यहां होता तो क्या करता? तो मैं अपनी कल्पना को मांजता रहता हूं। किसी किरदार से मेरी पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब नहीं होती। - एक्टर कहते हैं कि कई किरदार उनके साथ रह जाते हैं?0 नहीं, मेरे साथ ऐसा नहीं होता है। मेरे साथ अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। हां, आगे चलकर हो तो पता नहीं,लेकिन अभी तो ऐसा नहीं हुआ है।- कई बार ऐसे किरदार होते हैं जो कहीं न कहीं आपकी जिंदगी को भी प्रभावित करते हैं?0 देखिए, हर चीज आदमी पर कुछ न कुछ प्रभाव तो छोड़ती है। जब मैं कोई किताब पढूं या आपसे बातचीत करूं या कोई फिल्म देखूं या कोई हादसा हो ़ ़ ़ हर चीजका असर होता है ़ ़ ़ कैरेक्टर प्ले करना तो फिर भी बहुत बड़ी चीज हो गई। मैं छह महीना वही चीज कर रहा हूं। कुछ इंपैक्ट तो आता है हर चीज का इंसान पर। तो हर कैरेक्टर किसी न किसी तरह से आपको प्रभावित करता है। कोई चीज छोड़ जाता है आपके साथ। और आप एक इंसान के तौर पर विकसित होते हैं। बदलते हैं। आप में परिवर्त्तन दिखता है।
- हिस्ट्री में कितने अच्छे थे आप?
0 स्कूल में मैं इतना अच्छा नहीं था। लेकिन पढ़ाई के बाद जब मैं फिल्मों में आया तो हिस्ट्री में मेरा इंट्रेस्ट बढ़ा। मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। हिस्टोरिकल बुक भी पढ़ता हूं। अलग-अलग दौर के बारे में जानकारी हासिल करने में मेरी रुचि है। 'अर्थ शास्त्र' भी पढ़ी है मैंने। ऐतिहासिक हस्तियों के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है।
- संयोग ऐसा कि 'लगान' के बाद से आपने जितनी फिल्में कीं,उनमें से अधिकांश का संबंध इतिहास से रहा। क्या यह किसी पसंद और सोच के कारण है?
0 पसंद और सोच कह सकते हैं। लेकिन यह भी सोचिए कि उस वक्त मुझे क्या फिल्में ऑफर की जा रही हैं? उनमें से कौन सी मुझे पसंद आ रही हैं? अगर हां मैं रायटर-डायरेक्टर होता तब पूरी तरह से अपनी पसंद पर चलता कि मैं इस वक्त इस मूड में हूं और मुझे यह करना है। इसके बाद मैं इस मूड में हूं मुझे वह करना है। लेकिन मैं रायटर-डायरेक्टर नहीं हूं। मैं एक्टर हूं। यह संयोग है कि आशुतोष मेरे पास स्क्रिप्ट लेकर आए। हां, 'लगान' मुझे पसंद आई मैंने की। 'मंगल पांडे' मुझे पसंद आई मैंने की। लेकिन कहानी मैंने नहीं लिखी। स्क्रिप्ट मैंने नहीं लिखी। स्क्रिप्ट मेरे पास आई । अगर केतन मेरे पास नहीं आते या कोई और एक्टर हां कर लेता तो वह मेरे पास नहीं आते। 'रंग दे बसंती' मेरे पास आई, मुझे पसंद आई मैंने की। शायद मेरे पास नहीं आती। मैंने नहीं लिखी कहानी। - आपके पास कॉमेडी भी आई होगी। कुछ लव स्टोरी भी आई होगी। कुछ दूसरी तरह की भी फिल्में भी आई होंगी ़ ़ ़0 लेकिन कोई ऐसी नहीं आई जो मुझे पसंद आए।
- या फिर कहीं न कहीं आपके माइंड सेट में या ़ ़
0 मेरे माइंड में ये जरूर था कि 'मंगल पांडे' और 'रंग दे बसंती' दोनों ड्रामैट्रिक फिल्मस है। मैंने राकेश से कहा भी था कि यार उस वक्त 'मंगल पांडे' रिलीज भी नहीं हुई थी। 'मंगल पांडे' की शूटिंग शुरू होने वाली थी। और मैंने राकेश से कहा कि, 'राकेश तुम्हारी फिल्म करने से पहले ़ ़ ़ मेरा दिल चाह रहा है कि मैं कोई हल्की-फुल्की सी कॉमेडी फिल्म करूं? दोनों ड्रामैटिक फिल्में एक बाद एक न आएं। बीच में एक कुछ अलग किस्म की फिल्म आए। लेकिन मुझे कुछ मिला नहीं।
- कौन ऐसे किरदार हैं जो और आपको आकर्षित कर रहे हैं।
0 हिस्ट्री में तो गांधी जी खुद एक कमाल के कैरेक्टर हैं, जो प्ले करना चाहूंगा। उन पर तो एक फिल्म बन चुकी है। शायद फिर न बने। मेरी जानकारी में चंद्रगुप्त बहुत रोचक किरदार है। अकबर का रोल निभाने में मजा आएगा। ऐसे तो बहुत हैं ़ ़ ़ हिस्ट्री में तो एक से एक कैरेक्टर हैं।
- खबर थी कि यश चोपड़ा से आपकी अनबन है, इसलिए आप उनकी फिल्मों में काम नहीं करते। लेकिन, अभी 'फना' आ रही है?
0 'डर' के दौरान यश जी से मेरी अनबन हुई थी। हमारे मतभेद थे, इसलिए मैं उस फिल्म से अलग हो गया था। इस बीच मैंने उनके साथ कोई फिल्म नहीं की। मेरे सीनियर हैं। समय के साथ अनबन वाली बात पुरानी हो गई। एक दिन आदि (आदित्य चोपड़ा) का फोन आया कि वह एक फिल्म ऑफर करना चाह रहे हैं।- यश चोपड़ा के साथ फिर से फिल्म करने में कोई दिक्कत नहीं हुई?0 'फना' से पहले भी यश जी से मेरी मुलाकातें होती रही हैं। पुरानी बातों को भूलकर हमलोग मिलते रहे हैं। उन्होंने पहले मुझे बुलाया था। हमारी बातचीत हुई थी। मुझे भी लगा कि जो पुरानी अनबन थी, उसे भूल जाना चाहिए। यश जी ने भी कहा कि हम साथ में काम करें या न करें ़ ़ ़ लेकिन संबंध तो अच्छे हो सकते हैं। मैंने भी कहा - ठीक है सर।़ उसके बाद से हमलोग कहीं भी मिले तो मैं पूरी इज्जत से पेश आता था और वह प्यार से मिलते थे।
- 'फना' के लिए हां करने की और कोई वजह?
0 किसी भी फिल्म के लिए हां करने की मेरी पहली वजह होती है स्क्रिप्ट। फिर मैं निर्माता और डायरेक्टर आदि देखता हूं। स्क्रिप्ट अच्छी लगती है तो यह जरूर चाहता हूं कि फिल्म ठीक से बने और अच्छी तरह रिलीज हो। मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी लगी थी, इसलिए खुशी-खुशी मैंने हां कर दी।
- कैसी फिल्म है यह?
0 'फना' मूल रूप से रोमांटिक फिल्म है। इसमें पॉपकॉर्न रोमांस नहीं है, थोड़ी मैच्योर कहानी है।- क्या अपने कैरेक्टर के बारे में कुछ बता सकते हैं?0 हां, बता तो सकता हूं, लेकिन फिल्म रिलीज होने के पहले उस पर बात करना ठीक नहीं होगा। आपने तो फिल्म देखी नहीं है, इसलिए आपके सवाल भी नहीं होंगे। बेहतर होगा कि फिल्म की रिलीज के बाद हमलोग इस पर बात करें। इतना भर कहूंगा कि टूरिस्ट गाइड टाइप का कैरेक्टर है मेरा।
- क्या आपको जरूरी नहीं लगता कि आप अपनी फिल्मों और कैरेक्टर के बारे में रिलीज से पहले बात करें?
0 देखिए, मुझे अपने काम के बारे में कम बातें करनी हैं। मुझे काम करना है। लोग मेरा काम देखें और उसे महसूस करें और अपने हिसाब से उसे समझें। फिल्म की रिलीज के बाद में उनसे बातें करूं कि मेरे जहन में क्या था? मैंने क्यों ये किया, क्यों वो नहीं किया? जैसे 'रंग दे बसंती' के बारे में अभी बात करने में मजा आता है। आपने वह फिल्म देख रखी है तो आप मेरी बात समझ पाएंगे कि मैं क्या कह रहा हूं। मैं फिल्म के प्रसंग, दृश्य और संवाद भी बता सकता हूं।- सुना है कि यशराज फिल्म में सभी के साथ तीन फिल्मों का कांट्रेक्ट होता है। क्या आप भी उनकी तीन फिल्में करेंगे?0 नहीं, मेरे साथ ऐसा नहीं है। मैं कभी ऐसा कांट्रेक्ट करता ही नहीं हूं। मेरे लिए कहानी महत्वपूर्ण होती है। बगैर स्क्रिप्ट के तो मैं वैसे भी कोई चीज साइन नहीं करूंगा। तो फिलहाल मैंने 'फना' की है। आगे कोई स्क्रिप्ट मिली तो सोचेंगे।
- होम प्रोडक्शन में क्या हो रहा है?
0 अमोल गुप्ते की एक स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है। अमोल खुद चाहते हैं कि वह डायरेक्ट करें। उसने मुझ पर अंतिम फैसला छोड़ा है। मैं भी चाहता हूं कि वही डायरेक्ट करे।
Comments
लेकिन इसे आप दो भागों में डालते तो अधिक अच्छा होता. नेट का पाठक ज्यादा ही बेसबरीला होता.
मैंने तो दो बार पढ़ा, दो दो भाग में.
आगे भी आपकी एसी प्रस्तुति की प्रतीक्षा रहेगी.
achchha aur bahut hi achchha laga padhkara jo ghise pite savaalon se alag eka reparekha se jodh kara aamir eka prabuddh kalakar saamane aata hai. usako mukarit hone ka mauka aapne diya jo saraahniya hai.