एपिक रोमांस है जोधा अकबर : आशुतोष गोवारिकर


आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की लंबी बातचीत का यह एक हिस्सा है.कभी मौका मिला तो पूरी बातचीत भी आप यहाँ पढ़ सकेंगे...



मध्ययुगीन भारत की प्रेमकहानी ही क्यों चुनी और वह भी मुगल काल की?

मैंने यह पहले से नहीं सोचा था कि मुगल पीरियड पर एक फिल्म बनानी है। लगान के तुरंत बाद हैदर अली ने मुझे जोधा अकबर की कहानी सुनायी। कहानी का मर्म था कि कैसे उनकी शादी गठजोड़ की शादी थी और कैसे शादी के बाद उनके बीच प्रेम पनपा। मुझे उस कहानी ने आकर्षित किया। आखिर किस परिस्थिति में आज से 450 साल पहले एक राजपूत राजकुमारी की शादी मुगल शहंशाह से हुई? मुझे लगा कि यह भव्य और गहरी फिल्म है और उसके लिए पूरा शोध करना होगा। हमने तय किया कि पहले स्वदेस पूरी करेंगे और साथ-साथ जोधा अकबर की तैयारियां शुरू कर देंगे। दूसरा एक कारण था कि मैं एक रोमांटिक लव स्टोरी बनाना चाहता था। लगान और स्वदेस में रोमांस था, लेकिन वे रोमांटिक फिल्में नहीं थीं। मुझे 1562 की यह प्रेमकहानी अच्छी लगी कि कैसे दो धर्म और संस्कृति के लोग साथ में आए और कैसे शादी के बाद दोनों के बीच प्रेम हुआ।

आप इसे एपिक रोमांस कह रहे हैं। इतिहास के पन्नों से ली गयी यह प्रेमकहानी आज के दर्शकों को कितनी पसंद आएगी?

अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। मैं भारत के इतिहास के द ग्रेट अकबर की प्रेमकहानी दिखा रहा हूं। आप गौर करें कि कोई भी अचानक ग्रेट नहीं हो जाता। जीवन के आरंभिक वर्षो में महानता के लक्षण खोजे जा सकते हैं। चूंकि अकबर की शादी गठजोड़ की शादी है, इसलिए मेरी रुचि यह जानने में रही है कि दोनों के बीच कैसे प्रेम हुआ। जिस काल को आप ने देखा नहीं है, उस काल की प्रेमकहानी गढ़ना सचमुच रोचक चुनौती रही है।

अकबर के लिए रितिक रोशन और जोधा के लिए ऐश्वर्या राय ही क्यों?

मैंने कहो ना..प्यार है देखी थी। मुझे उसमें रितिक रोशन का व्यक्तित्व पसंद आया था। रितिक में योद्धा की क्वालिटी है। रही टैलेंट की बात तो आप कोई सवाल ही नहीं कर सकते। पहली ही फिल्म में उन्होंने साबित कर दिया था। फिर कोई..मिल गया देखी तो मेरा विश्वास बढ़ गया। मुझे लगा कि वे अकबर की भूमिका निभा सकेंगे। एश्वर्या राय का कॅरियर देखें तो पाएंगे कि वह मुख्यधारा की फिल्मों के साथ ही अलग किस्म की फिल्में भी करती रही हैं। आप उनकी रेनकोट देखें या शब्द या फिर चोखेर बाली ही देख लें। मुझे मालूम था कि वह अलग किस्म की भूमिकाएं करना चाहती हैं। एक्टर में यह इच्छा हो तो काम आसान हो जाता है। खूबसूरती की तो वह मिसाल हैं। मुझे तो लगता है कि वह अमर चित्र कथा में से आई हैं। मैंने दोनों से कृष और धूम-2 के पहले संपर्क किया था और वे राजी हो गए थे। उन्होंने पूछा था कि हम दोनों धूम-2 जैसी फिल्म कर रहे हैं। उससे कोई फर्क तो नहीं पड़ेगा। मैंने उन्हें आश्वस्त किया था कि मेरी फिल्म जोधा अकबर है। आज देखें तो धूम-2 से मुझे फायदा हो सकता है।
क्या ऐसा कह सकते हैं कि लगान की कामयाबी और स्वदेस की सराहना के कारण आप जोधा अकबर की हिम्मत कर सके? इस पैमाने और खर्च पर क्या फिल्म की कल्पना पहले नहीं की जा सकती थी?
लगान के तुरंत बाद भी जोधा अकबर बन सकती थी। मेरी तैयारी नहीं थी। मुझे अकबर और जोधा को जानना-समझना था, जबकि स्वदेस के मोहन भार्गव को मैं अच्छी तरह जानता था। दो-तीन सालों के अध्ययन और शोध के बाद ही मैं जोधा और अकबर के चरित्र को आत्मसात कर सकता था। मैं रिसर्च का काम किसी और को नहीं दे सकता। मेरे लिए जरूरी था कि सारी किताबें खुद पढ़ूं। मुझे सारी चीजों की जानकारी होनी चाहिए। लोकेशन भी मैं ही फायनल करूं। यह सब न हो तो आप पीरियड फिल्म रिक्रिएट नहीं कर सकते। दर्शकों के मन भी यह रहता है कि हां..हां..दिखाओ क्या बनाया है? वे भी इम्तिहान लेने के मूड में रहते हैं। मुझे निर्माता जुटाने या इस फिल्म के लिए पैसे उगाहने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई।

वास्तविक लोकेशन पर जाने के बजाए आप ने एनडी स्टूडियो में सेट लगाया। क्या इससे फिल्म की भव्यता प्रभावित नहीं होगी?

हमलोग वास्तविक लोकेशन पर गए थे। आगरा फोर्ट और आमेर का किला देखने गए थे। वहां अधिकारियों से बातें हुई। समस्या यह थी कि वहां शूटिंग के लिए पर्यटकों की आवाजाही नहीं रोकी जा सकती थी। उनकी प्लानिंग छह महीने और साल भर पहले सुनिश्चित होती है। एक व्यवस्था बन रही थी कि मुझे रात से सुबह तक की अनुमति दे दी जाए। केवल रात-रात में शूटिंग कर मैं अच्छी फिल्म नहीं बना सकता था। और फिर वहां मैं जानवरों को नहीं ले जा सकता था। मुझे अपने सामान रात में लगा कर सुबह हटाना भी पड़ता। हमें 37 करोड़ के निश्चित बजट में ही काम पूरा करना था। मेरी पत्नी और फिल्म की कार्यकारी निर्माता सुनीता ने सुझाव दिया कि हमलोग सेट लगा लें। हमने एक ही सावधानी रखी कि फिल्म में वास्तविकता का एहसास हो। राज बब्बर तो आगरा के हैं। उन्होंने सेट देखा तो दंग रह गए।

अकबर का संदर्भ आते ही मुगलेआजम की याद आती है। क्या आपने पुरानी हिंदी फिल्मों से भी रेफरेंस लिए?

ऐसी तुलना स्वाभाविक है, लेकिन मेरी फिल्म की कहानी और उसका समय मुगलेआजम से बिल्कुल अलग है। परिवेश और चरित्रों के निर्माण में यह फर्क आप महसूस करेंगे। दोनों फिल्मों का रोमांस भी अलग है। मुगलेआजम में सलीम-अनारकली का रोमांस था। मेरी फिल्म में जोधा और अकबर का रोमांस है। न यहां अनारकली कनीज थी और सलीम राजकुमार था। मेरी फिल्म में अकबर बादशाह है और जोधा राजकुमारी है। दोनों रोमांस का बैकड्रॉप अलग है। मुगलेआजम इस देश की श्रेष्ठ फिल्म है, हर लिहाज से। वह महान क्लासिक है। उससे तुलना की बात तो हम सोच ही नहीं सकते।

जोधा अकबर के संगीत के बारे में क्या कहेंगे?

मैं फिर से जावेद अख्तर और ए.आर. रहमान के साथ काम कर रहा हूं। हमारे बीच यह समझदारी बनी कि फिल्म का संगीत एहसास तो पीरियड का दे, लेकिन आज के दर्शकों को वह अपील करे। उस जमाने का संगीत देकर हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच सकते। मुझे कहने को जश्ने बहारा है.. फिल्म की थीम के हिसाब से सबसे ज्यादा पसंद है।

Comments

डिटेल में पढ़कर अच्‍छा लगा
Manish Kumar said…
मुझे अभी तक ये नहीं समझ आया कि इस फिल्म का कितना स्वरूप ऍतिहासिक पन्नों से निकल के आया है ओर कितना काल्पनिक है. अगर इस बारे में कुछ बात हुई हो तो बताएँ।
Vidhu said…
Manish read the blog of abhay on marium ur zamani this blog has authentic information

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