सुपर स्टार: पुराने फार्मूले की नई फिल्म


-अजय ब्रह्मात्मज


यह रोहित जुगराज की फिल्म है। निश्चित रूप से इस बार वे पहली फिल्म जेम्स की तुलना में आगे आए हैं। अगर कोई कमी है तो यही है कि उन्होंने हमशक्लों के पुराने फार्मूले को लेकर फिल्म बनायी है।

कुणाल मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। बचपन से फिल्मों के शौकीन कुणाल का सपना है कि वह फिल्म स्टार बने। उसके दोस्तों को भी लगता है कि वह एक न एक दिन स्टार बन जाएगा। अभी तक उसे तीसरी लाइन में चौथे स्थान पर खड़े होकर डांस करने का मौका मिला है। कहानी में टर्न तब आता है,जब उसके हमशक्ल करण के लांच होने की खबर अखबारों में छपती है। पूरे मुहल्ले को लगता है कि कुणाल को फिल्म मिल गयी है। कुणाल वास्तविकता जानने के लिए फिल्म के दफ्तर पहुंचता है तो सच्चाई जान कर हैरत में पड़ जाता है।

नाटकीय मोड़ तब आता है,जब कुणाल से कहा जाता है कि वह करण के बदले फिल्म में काम करे। प्रोड्यूसर पिता की समस्या है कि करण को एक्टिंग-डांसिंग कुछ भी नहीं आती और उन्होंने फिल्म के लिए बाजार से पैसे उगाह लिए हैं। कुणाल राजी हो जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। एक और जबरदस्त मोड़ आता है,जब करण की मौत हो जाती है और कुणाल को रियल लाइफ में भी करण होने की एक्टिंग करनी पड़ती है। कुणाल के भावनात्मक ऊहापोह को निर्देशक ने अच्छी तरह से रचा है।
कुणाल खेमू ने दोहरे चरित्र को कुशलता से निभाया है। फिल्म पूरी तरह से कुणाल पर ही निर्भर करती है। उन्हें दर्शन जरीवाला, ट्यूलिप जोशी, ऑशिमा साहनी, शरत सक्सेना, रीमा और अमर का उचित सहयोग मिला है। फिल्म इंटरवल के पहले लड़खड़ाती है, लेकिन इंटरवल के बाद संभल जाती है। इंटरवल के बाद के कई इमोशनल सीन दिल को छूते हैं और मुश्किल में फंसे कुणाल के प्रति सहानुभूति जगाते हैं। कुणाल खेमू सक्षम अभिनेता के तौर पर उभर रहे हैं।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को