प्रीमियर होता है आज भी,लेकिन
आये दिन खबरें छपती हैं या टीवी चैनलों पर चलती-फिरती तस्वीरें दिखाई जाती हैं कि फलां फिल्म का प्रीमियर हुआ और उसमें फिल्म के सभी कलाकारों के साथ इतने सारे स्टार आये.खबर और इवेंट बन कर रह गए प्रीमियर में अब पहले जैसी भव्यता या उत्सव का माहौल नहीं रह गया है।
आपने सुना ही होगा कि मुग़ल-ए-आज़म के प्रीमियर में के आसिफ ने हाथी तक मंगवा लिए थे.उन दिनों प्रीमिएर किसी जश्न से कम नहीं होता था.बहुत पहले से खबर फैल जाती थी और यकीं करें सिनेमाघर को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता था.पूरा शृंगार होता था और फिल्म बिरादरी के लोग किसी बाराती की तरह वहाँ पहुँचते थे.हर व्यक्ति अपना सबसे सुन्दर और आकर्षक परिधान निकालता था.फिल्म से संबंधित हीरो-हिरोइन तो विशेष कपड़े बनवाते थे.कहा जाता है कि राज कपूर अपनी फिल्मों के प्रीमिएर के समय यूनिट के सभी सदस्यों के लिए शूट सिलवाते थे।
तब सिनेमाघर इतने बड़े और विशाल होते थे कि सितारों की भीड़ मेला का रुप ले लेती थी और उनकी जगमगाहट से माहौल रोशन हो उठता था.मुम्बई में ऐसे सिनेमाघर थे जहाँ आराम से १५०० दर्शक एक साथ फिल्म देख सकते थे.प्रीमियर में आये सितारों को देखने की भीड़ भी लगी रहती थी.दर्शकों के लिए यह नायाब मौका होता था कि वे अपने पसंदीदा सितारों को साक्षात् देख सकें.आज की तरह का मीडिया विस्फोट नहीं था कि टीवी पर सितारे दिन-रात टिमटिमाते रहते हैं और एक समय के बाद उनमें दर्शकों की रूचि खत्म हो जाती है.तब केवल ऐसे ही अवसरों पर सितारों के दर्शन होते थे।
एक बार अमिताभ बच्चन ने चवन्नी को बताया था कि उन्हें याद है कि आरंभिक दिनों में वे कैसे प्रीमियर का इंतज़ार करते थे.पहले से तैयारी रहती थी कि प्रीमियर में जाना है.मल्टीप्लेक्स संस्कृति में तकनीकी सुविधा तो बढ़ गयी है,लेकिन सिनेमाघर इतने छोटे और संकरे हो गए हैं कि २०० दर्शक एक साथ बाहर आ जाएँ तो कंधे टकराने लगते हैं.सिनेमाघर आधुनिक हो गए हैं,लेकिन उनकी सजावट साधारण हो गयी है.याद करें जब आप पहले सिनेमाघरों में बैठते थे और सामने से लाल मखमली पर्दा हटता था तो कैसी अनुभूति होती थी?अब वह मखमली एहसास नहीं होता.
आज कल भी प्रीमियर होते हैं,लेकिन अब वह बात कहाँ?आज कल तो फिल्म की यूनिट को भी नहीं मालूम रहता कि उनकी फिल्म का प्रीमियर होगा या नहीं?अगर कोई स्पोंसर मिल गया तो फटाफट इन्तेजाम कर लिया जाता है.ऐसे प्रीमियर में पूरी फिल्म बिरादरी के आने का सवाल ही नहीं उठता.शाहरुख़ खान तो प्रीमियर करने ब्रिटेन चले जाते हैं.हाल-फिलहाल में सांवरिया का प्रीमियर भव्य था,फिर भी वह पुराने प्रीमियर के पासंग बराबर भी नहीं कहा जा सकता।
प्रीमियर के बाद पार्टी भी होती थी.उसका किस्सा कभी और बयान करेगा चवन्नी.
क्या आप में से किसी को कोई प्रीमियर याद है.कृपया उसका बखान करें.चवन्नी और उसके पाठकों को ख़ुशी होगी.
आपने सुना ही होगा कि मुग़ल-ए-आज़म के प्रीमियर में के आसिफ ने हाथी तक मंगवा लिए थे.उन दिनों प्रीमिएर किसी जश्न से कम नहीं होता था.बहुत पहले से खबर फैल जाती थी और यकीं करें सिनेमाघर को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता था.पूरा शृंगार होता था और फिल्म बिरादरी के लोग किसी बाराती की तरह वहाँ पहुँचते थे.हर व्यक्ति अपना सबसे सुन्दर और आकर्षक परिधान निकालता था.फिल्म से संबंधित हीरो-हिरोइन तो विशेष कपड़े बनवाते थे.कहा जाता है कि राज कपूर अपनी फिल्मों के प्रीमिएर के समय यूनिट के सभी सदस्यों के लिए शूट सिलवाते थे।
तब सिनेमाघर इतने बड़े और विशाल होते थे कि सितारों की भीड़ मेला का रुप ले लेती थी और उनकी जगमगाहट से माहौल रोशन हो उठता था.मुम्बई में ऐसे सिनेमाघर थे जहाँ आराम से १५०० दर्शक एक साथ फिल्म देख सकते थे.प्रीमियर में आये सितारों को देखने की भीड़ भी लगी रहती थी.दर्शकों के लिए यह नायाब मौका होता था कि वे अपने पसंदीदा सितारों को साक्षात् देख सकें.आज की तरह का मीडिया विस्फोट नहीं था कि टीवी पर सितारे दिन-रात टिमटिमाते रहते हैं और एक समय के बाद उनमें दर्शकों की रूचि खत्म हो जाती है.तब केवल ऐसे ही अवसरों पर सितारों के दर्शन होते थे।
एक बार अमिताभ बच्चन ने चवन्नी को बताया था कि उन्हें याद है कि आरंभिक दिनों में वे कैसे प्रीमियर का इंतज़ार करते थे.पहले से तैयारी रहती थी कि प्रीमियर में जाना है.मल्टीप्लेक्स संस्कृति में तकनीकी सुविधा तो बढ़ गयी है,लेकिन सिनेमाघर इतने छोटे और संकरे हो गए हैं कि २०० दर्शक एक साथ बाहर आ जाएँ तो कंधे टकराने लगते हैं.सिनेमाघर आधुनिक हो गए हैं,लेकिन उनकी सजावट साधारण हो गयी है.याद करें जब आप पहले सिनेमाघरों में बैठते थे और सामने से लाल मखमली पर्दा हटता था तो कैसी अनुभूति होती थी?अब वह मखमली एहसास नहीं होता.
आज कल भी प्रीमियर होते हैं,लेकिन अब वह बात कहाँ?आज कल तो फिल्म की यूनिट को भी नहीं मालूम रहता कि उनकी फिल्म का प्रीमियर होगा या नहीं?अगर कोई स्पोंसर मिल गया तो फटाफट इन्तेजाम कर लिया जाता है.ऐसे प्रीमियर में पूरी फिल्म बिरादरी के आने का सवाल ही नहीं उठता.शाहरुख़ खान तो प्रीमियर करने ब्रिटेन चले जाते हैं.हाल-फिलहाल में सांवरिया का प्रीमियर भव्य था,फिर भी वह पुराने प्रीमियर के पासंग बराबर भी नहीं कहा जा सकता।
प्रीमियर के बाद पार्टी भी होती थी.उसका किस्सा कभी और बयान करेगा चवन्नी.
क्या आप में से किसी को कोई प्रीमियर याद है.कृपया उसका बखान करें.चवन्नी और उसके पाठकों को ख़ुशी होगी.
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