साल के आखिरी और पहले हफ्ते का अपशकुन
-अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शकुन-अपशकुन पर बहुत ध्यान दिया जाता है। संयोग और घटनाओं के कारण परिणामों के दोहराव से शकुन-अपशकुन का निर्धारण होता है और फिर बगैर किसी लॉजिक और पुनर्विचार के उसका पालन भी होने लगता है। धारणाएं अंधविश्वास का रूप ले लेती हैं और अंधविश्वास धारणाएं बदल देती हैं।
पिछले कुछ वर्षो से यह देखा जा रहा है कि साल के आखिरी हफ्ते या पहले हफ्ते में रिलीज हुई फिल्में अच्छा बिजनेस नहीं करती हैं। शायद इसीलिए ज्यादातर निर्माता कोशिश यही करते रहते हैं कि उनकी फिल्में इन हफ्तों में न फंसें। पिछले हफ्ते हनुमान रिटर्न्स और शोबिज रिलीज हुई। दोनों फिल्मों का बिजनेस उत्साहजनक नहीं रहा। इस हफ्ते की बात करें, तो कोई भी उल्लेखनीय फिल्म रिलीज नहीं हो रही है। हल्ला बोल, माई नेम इज एंथनी घोनसाल्विस और बॉम्बे टू बैंकॉक तीनों फिल्में 11 जनवरी को रिलीज होंगी। बहुत पहले महेश भट्ट की कसूर और राज जैसी फिल्में पहले हफ्तों में आने के बाद भी कामयाब रही थीं। महेश भट्ट कहते हैं, मुझे इंडस्ट्री के इस अंधविश्वास की जानकारी है। फिल्म अपने कॉन्टेंट और प्रेजेंटेशन से चलती है। इसलिए मैं अपशकुन की धारणा में यकीन नहीं करता। किसी साल कोई बेहतरीन फिल्म पहले हफ्ते में रिलीज होकर हिट हो जाएगी, तो यह अंधविश्वास टूट जाएगा।
एक निर्माता के मुताबिक, हम लोग अपशकुन से ज्यादा इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि साल का पहला हफ्ता होने के कारण लोग पारिवारिक उत्सव के माहौल में रहते हैं। नए साल की पार्टियों और जलसों की वजह से दर्शकों की जेब ढीली रहती है, इसलिए लोग सिनेमाघरों का रुख नहीं करते। चूंकि बिजनेस की संभावना कम रहती है, इसलिए हर निर्माता चाहता यही है कि वे थोड़ा आगे-पीछे के हफ्तों में ही अपनी फिल्म ले आए। निर्माता की इस बात में सच्चाई झलकती है।
पहले हफ्ते में फिल्मों के फ्लॉप होने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि अच्छी और बड़ी फिल्मों के आगे-पीछे खिसक जाने से छोटी और कम बजट की साधारण फिल्मों को खाली तारीखें मिल जाती हों। छोटे निर्माता अपनी फिल्म उन खाली शुक्रवार को रिलीज कर लेने में अपनी भलाई समझते हों। अब चूंकि उनकी फिल्में पहले से ही साधारण और छोटी होती हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से दर्शक नहीं आते। नतीजा यह होता है कि वे फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं और पहले हफ्ते के अपशकुन की अवधारणा मजबूत हो जाती है। फिल्मों की रिलीज के साथ अन्य मामलों में भी शकुन-अपशकुन का खयाल रखा जाता है। कई बार किसी हीरो, हीरोइन या आर्टिस्ट को लेकर भी यह धारणा बन जाती है। जॉन अब्राहम को अभी अपशकुन माना जा रहा है और कैटरीना कैफ शकुन मानी जाती हैं, जबकि दोनों समान रूप से साधारण एक्टर हैं। फिल्म इंडस्ट्री में जो फिल्म हिट हो जाती है, उसकी सारी चीजें हिट मान ली जाती हैं। यहां तक कि हिट फिल्मों के प्रॉपर्टी की भी मांग बढ़ जाती है। कुछ लोगों को भ्रम हो जाता है कि यदि हिट फिल्म के कैमरे और लाइट इस्तेमाल किए जाएं, तो उनकी फिल्म भी हिट हो सकती है। फिल्मों की रिलीज के पहले प्रिंट को लेकर धार्मिक स्थलों पर जाने का रिवाज पुराना है। कुछ निर्माता-निर्देशकों को लगता है कि दैवीय कृपा से फिल्में हिट हो सकती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि फिल्में अपनी क्वालिटी और कॉन्टेंट से ही पसंद की जाती हैं। फिर चाहे उसमें किसी भी कलाकार ने काम किया हो या किसी भी हफ्ते उन्हें रिलीज की तारीख मिली हो। दरअसल.. फिल्म इंडस्ट्री के लोग अपनी कमजोरियों और कमियों को शकुन-अपशकुन के ऐसे अंधविश्वासों से ढकने की कोशिश करते हैं।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में शकुन-अपशकुन पर बहुत ध्यान दिया जाता है। संयोग और घटनाओं के कारण परिणामों के दोहराव से शकुन-अपशकुन का निर्धारण होता है और फिर बगैर किसी लॉजिक और पुनर्विचार के उसका पालन भी होने लगता है। धारणाएं अंधविश्वास का रूप ले लेती हैं और अंधविश्वास धारणाएं बदल देती हैं।
पिछले कुछ वर्षो से यह देखा जा रहा है कि साल के आखिरी हफ्ते या पहले हफ्ते में रिलीज हुई फिल्में अच्छा बिजनेस नहीं करती हैं। शायद इसीलिए ज्यादातर निर्माता कोशिश यही करते रहते हैं कि उनकी फिल्में इन हफ्तों में न फंसें। पिछले हफ्ते हनुमान रिटर्न्स और शोबिज रिलीज हुई। दोनों फिल्मों का बिजनेस उत्साहजनक नहीं रहा। इस हफ्ते की बात करें, तो कोई भी उल्लेखनीय फिल्म रिलीज नहीं हो रही है। हल्ला बोल, माई नेम इज एंथनी घोनसाल्विस और बॉम्बे टू बैंकॉक तीनों फिल्में 11 जनवरी को रिलीज होंगी। बहुत पहले महेश भट्ट की कसूर और राज जैसी फिल्में पहले हफ्तों में आने के बाद भी कामयाब रही थीं। महेश भट्ट कहते हैं, मुझे इंडस्ट्री के इस अंधविश्वास की जानकारी है। फिल्म अपने कॉन्टेंट और प्रेजेंटेशन से चलती है। इसलिए मैं अपशकुन की धारणा में यकीन नहीं करता। किसी साल कोई बेहतरीन फिल्म पहले हफ्ते में रिलीज होकर हिट हो जाएगी, तो यह अंधविश्वास टूट जाएगा।
एक निर्माता के मुताबिक, हम लोग अपशकुन से ज्यादा इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि साल का पहला हफ्ता होने के कारण लोग पारिवारिक उत्सव के माहौल में रहते हैं। नए साल की पार्टियों और जलसों की वजह से दर्शकों की जेब ढीली रहती है, इसलिए लोग सिनेमाघरों का रुख नहीं करते। चूंकि बिजनेस की संभावना कम रहती है, इसलिए हर निर्माता चाहता यही है कि वे थोड़ा आगे-पीछे के हफ्तों में ही अपनी फिल्म ले आए। निर्माता की इस बात में सच्चाई झलकती है।
पहले हफ्ते में फिल्मों के फ्लॉप होने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि अच्छी और बड़ी फिल्मों के आगे-पीछे खिसक जाने से छोटी और कम बजट की साधारण फिल्मों को खाली तारीखें मिल जाती हों। छोटे निर्माता अपनी फिल्म उन खाली शुक्रवार को रिलीज कर लेने में अपनी भलाई समझते हों। अब चूंकि उनकी फिल्में पहले से ही साधारण और छोटी होती हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से दर्शक नहीं आते। नतीजा यह होता है कि वे फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं और पहले हफ्ते के अपशकुन की अवधारणा मजबूत हो जाती है। फिल्मों की रिलीज के साथ अन्य मामलों में भी शकुन-अपशकुन का खयाल रखा जाता है। कई बार किसी हीरो, हीरोइन या आर्टिस्ट को लेकर भी यह धारणा बन जाती है। जॉन अब्राहम को अभी अपशकुन माना जा रहा है और कैटरीना कैफ शकुन मानी जाती हैं, जबकि दोनों समान रूप से साधारण एक्टर हैं। फिल्म इंडस्ट्री में जो फिल्म हिट हो जाती है, उसकी सारी चीजें हिट मान ली जाती हैं। यहां तक कि हिट फिल्मों के प्रॉपर्टी की भी मांग बढ़ जाती है। कुछ लोगों को भ्रम हो जाता है कि यदि हिट फिल्म के कैमरे और लाइट इस्तेमाल किए जाएं, तो उनकी फिल्म भी हिट हो सकती है। फिल्मों की रिलीज के पहले प्रिंट को लेकर धार्मिक स्थलों पर जाने का रिवाज पुराना है। कुछ निर्माता-निर्देशकों को लगता है कि दैवीय कृपा से फिल्में हिट हो सकती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि फिल्में अपनी क्वालिटी और कॉन्टेंट से ही पसंद की जाती हैं। फिर चाहे उसमें किसी भी कलाकार ने काम किया हो या किसी भी हफ्ते उन्हें रिलीज की तारीख मिली हो। दरअसल.. फिल्म इंडस्ट्री के लोग अपनी कमजोरियों और कमियों को शकुन-अपशकुन के ऐसे अंधविश्वासों से ढकने की कोशिश करते हैं।
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