चमके तारे ज़मीन पर
-अजय ब्रह्मात्मज
तारे जमीन पर में आमिर खान तीन भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म में अभिनय करने के साथ ही वह निर्माता और निर्देशक भी हैं। निर्देशक के रूप में यह उनकी पहली फिल्म है। पहली फिल्म में ही वह साबित करते हैं कि निर्देशन पर उनकी पकड़ किसी अनुभवी से कम नहीं है। वैसे उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत निर्देशन से ही की थी।
तारे जमीन पर न तो बच्चों की फिल्म है और न सिर्फ बच्चों के लिए बनायी गई है। यह बच्चों को लेकर बनायी गई फिल्म है, जो बच्चों को देखने और समझने का नजरिया बदलती है। निश्चित ही इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने परिवार और पड़ोसी के बच्चों की खासियत समझने की कोशिश करेंगे। आमिर खान ने तारे जमीन पर में यह जरूरी सामाजिक संदेश रोचक तरीके से दिया है। तारे जमीन पर ईशान अवस्थी की कहानी है। ईशान का पढ़ने-लिखने में कम मन लगता है। वह प्रकृति की अन्य चीजों जैसे पानी, मछली, बारिश, कुत्ते, रंग, पतंग आदि में ज्यादा रुचि लेता है। उसके इन गुणों को न तो शिक्षक पहचान पाते हैं और न माता-पिता। उन्हें लगता है कि ईशान अनुशासित नहीं है, इसलिए पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहा है। ईशान के माता-पिता उसे अनुशासित करने के लिए बोर्डिग स्कूल भेज देते हैं। बोर्डिग स्कूल में ईशान और भी अकेला हो जाता है। वह दबा-सहमा रहता है। उस स्कूल में एक नए आर्ट टीचर राम शंकर निकुंभ आते हैं। निकुंभ इस अनोखे बच्चे की परेशानी समझते हैं और उसके अनुरूप स्थितियां तैयार करते हैं। ईशान में तब्दीली आती है और वह स्कूल के सबसे होनहार छात्र के रूप में नजर आने लगता है।
आमिर खान की तारीफ करनी चाहिए कि उन्होंने बेसिर-पैर की कामेडी, आइटम गीत और विदेशी लोकेशनों की फिल्मों के इस दौर में एक सफल संवेदनशील फिल्म बनायी है। फिल्म का संदेश दर्शकों के बीच पहुंचता है और वह भी फिल्म को बगैर गंभीर किए, सहज तरीके से। आमिर खान ने हिंदी फिल्मों की रोचक और मनोरंजक परंपरा के सारे अवयवों का सुंदर उपयोग किया है। खुद को पीछे रखकर कहानी की मांग के मुताबिक बच्चे पर फिल्म केद्रिंत करने का साहस दिखाया है। यह जोखिम भरा काम था, क्योंकि हिंदी फिल्मों में स्टार का आकर्षण ज्यादा बड़ा होता है। अगर वह स्टार आमिर खान हो तो यह आकर्षण और बढ़ जाता है।
ईशान अवस्थी की भूमिका को दर्शील सफारी ने बहुत स्वाभाविक तरीके से निभाया है। कोई भी दृश्य सायास नहीं लगता। ऐसा लगता है मानो किसी ने छिप कर ईशान अवस्थी की जिंदगी को कैमरे में उतार लिया हो। उसके माता-पिता की भूमिका में टिस्का चोपड़ा और विपिन शर्मा ने विश्वसनीय अभिनय किया है। कोई भी परिचित कलाकार इन भूमिकाओं को कृत्रिम कर देता। ईशान के बड़े भाई योहान के रोल में सचेत इंजीनियर ठीक हैं तो सहपाठी राजन दामोदरन की भूमिका में तनय छेड़ा ने बराबर का साथ दिया है।
फिल्म का गीत-संगीत कथ्य के अनुरूप है। गीत के भाव दिल छूते हैं और बच्चे के प्रति संवेदना जगाते हैं। प्रसून जोशी ने ओस की बूंदों से बच्चों की तुलना की है। फिल्म के पाश्र्र्व संगीत पर भी समुचित ध्यान दिया गया है।
तारे जमीन पर की सोच और पटकथा का श्रेय अमोल गुप्ते को मिलना चाहिए। वह इस फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर भी हैं। छोटे बच्चों की जिंदगी में सलीके से झांकने का मशविरा देती है तारे जमीन पर। हिंदी फिल्मों के पारिवारिक मनोरंजन की श्रेणी में बरसों बाद आयी यह श्रेष्ठ फिल्म है।
तारे जमीन पर में आमिर खान तीन भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म में अभिनय करने के साथ ही वह निर्माता और निर्देशक भी हैं। निर्देशक के रूप में यह उनकी पहली फिल्म है। पहली फिल्म में ही वह साबित करते हैं कि निर्देशन पर उनकी पकड़ किसी अनुभवी से कम नहीं है। वैसे उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत निर्देशन से ही की थी।
तारे जमीन पर न तो बच्चों की फिल्म है और न सिर्फ बच्चों के लिए बनायी गई है। यह बच्चों को लेकर बनायी गई फिल्म है, जो बच्चों को देखने और समझने का नजरिया बदलती है। निश्चित ही इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने परिवार और पड़ोसी के बच्चों की खासियत समझने की कोशिश करेंगे। आमिर खान ने तारे जमीन पर में यह जरूरी सामाजिक संदेश रोचक तरीके से दिया है। तारे जमीन पर ईशान अवस्थी की कहानी है। ईशान का पढ़ने-लिखने में कम मन लगता है। वह प्रकृति की अन्य चीजों जैसे पानी, मछली, बारिश, कुत्ते, रंग, पतंग आदि में ज्यादा रुचि लेता है। उसके इन गुणों को न तो शिक्षक पहचान पाते हैं और न माता-पिता। उन्हें लगता है कि ईशान अनुशासित नहीं है, इसलिए पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहा है। ईशान के माता-पिता उसे अनुशासित करने के लिए बोर्डिग स्कूल भेज देते हैं। बोर्डिग स्कूल में ईशान और भी अकेला हो जाता है। वह दबा-सहमा रहता है। उस स्कूल में एक नए आर्ट टीचर राम शंकर निकुंभ आते हैं। निकुंभ इस अनोखे बच्चे की परेशानी समझते हैं और उसके अनुरूप स्थितियां तैयार करते हैं। ईशान में तब्दीली आती है और वह स्कूल के सबसे होनहार छात्र के रूप में नजर आने लगता है।
आमिर खान की तारीफ करनी चाहिए कि उन्होंने बेसिर-पैर की कामेडी, आइटम गीत और विदेशी लोकेशनों की फिल्मों के इस दौर में एक सफल संवेदनशील फिल्म बनायी है। फिल्म का संदेश दर्शकों के बीच पहुंचता है और वह भी फिल्म को बगैर गंभीर किए, सहज तरीके से। आमिर खान ने हिंदी फिल्मों की रोचक और मनोरंजक परंपरा के सारे अवयवों का सुंदर उपयोग किया है। खुद को पीछे रखकर कहानी की मांग के मुताबिक बच्चे पर फिल्म केद्रिंत करने का साहस दिखाया है। यह जोखिम भरा काम था, क्योंकि हिंदी फिल्मों में स्टार का आकर्षण ज्यादा बड़ा होता है। अगर वह स्टार आमिर खान हो तो यह आकर्षण और बढ़ जाता है।
ईशान अवस्थी की भूमिका को दर्शील सफारी ने बहुत स्वाभाविक तरीके से निभाया है। कोई भी दृश्य सायास नहीं लगता। ऐसा लगता है मानो किसी ने छिप कर ईशान अवस्थी की जिंदगी को कैमरे में उतार लिया हो। उसके माता-पिता की भूमिका में टिस्का चोपड़ा और विपिन शर्मा ने विश्वसनीय अभिनय किया है। कोई भी परिचित कलाकार इन भूमिकाओं को कृत्रिम कर देता। ईशान के बड़े भाई योहान के रोल में सचेत इंजीनियर ठीक हैं तो सहपाठी राजन दामोदरन की भूमिका में तनय छेड़ा ने बराबर का साथ दिया है।
फिल्म का गीत-संगीत कथ्य के अनुरूप है। गीत के भाव दिल छूते हैं और बच्चे के प्रति संवेदना जगाते हैं। प्रसून जोशी ने ओस की बूंदों से बच्चों की तुलना की है। फिल्म के पाश्र्र्व संगीत पर भी समुचित ध्यान दिया गया है।
तारे जमीन पर की सोच और पटकथा का श्रेय अमोल गुप्ते को मिलना चाहिए। वह इस फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर भी हैं। छोटे बच्चों की जिंदगी में सलीके से झांकने का मशविरा देती है तारे जमीन पर। हिंदी फिल्मों के पारिवारिक मनोरंजन की श्रेणी में बरसों बाद आयी यह श्रेष्ठ फिल्म है।
Comments
अपन भी फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखकर आए तो अपन को भी कुछ ऐसा ही लगा।
अपन ने भी बडी कोशिश की है, इस कच्ची कलम पर भी इनायत फरमाएं
राजीव
http://www.shuruwat.blogspot.com