रिटर्न आफ हनुमान: निराश करती है फिल्म
-अजय ब्रह्मात्मज
दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए रिटर्न आफ हनुमान के निर्माताओं ने पापुलर हो चुकी एनीमेशन फिल्म हनुमान की छवि का भरपूर इस्तेमाल किया। फिल्म देखने गए। अचानक पर्दे पर दिखा कि रिटर्न आफ हनुमान सिक्वल के तौर पर नहीं बनाई गई है। यह पूरी तरह से काल्पनिक कहानी है।
चलिए मान लिया कि काल्पनिक कहानी है तो कल्पना के घोड़े कुछ मामलों में क्यों ठिठक गए? रिटर्न आफ हनुमान के मारुति को बगैर पूंछ के भी दिखाया जा सकता था। मिथक और फैंटेसी का घालमेल बच्चों को कन्फ्यूज करता है। फिल्म में मनोरंजन है, लेकिन वह एनीमेशन और मारुति के चमत्कारी कारनामों के कारण है। मारुति की कहानी को मिथ से जोड़कर दिखाने की वजह महज इतनी रही होगी कि दर्शक उसके कारनामों पर यकीन कर सकें।
एनीमेशन फिल्मों में इतिहास और मिथ से हीरो तलाशने की कोशिश जारी है। पहली बार हनुमान देखने के बाद लगा था कि बाल हनुमान के रूप में हीरो मिल गया है, लेकिन मारुति अवतार में बाल हनुमान जंचते नहीं हैं। फिल्म में हिंदी फिल्मों के मशहूर कलाकारों की आवाजों की मिमिक्री का तुक भी समझ में नहीं आया। कहीं रिटर्न आफ हनुमान वैसे शहरी बच्चों के लिए तो नहीं बनाई गई है, जो टीवी और फिल्में देखकर बड़े हो रहे हैं? फिल्म निराश करती है।
लेखक और निर्देशक अनुराग कश्यप ने इस फिल्म में शहरी बोलचाल की अंग्रेजी मिश्रित भाषा और आधुनिक उपकरणों का जमकर इस्तेमाल किया है। यहां तक कि देवलोक में भी लैपटाप का चलन दिखा है और देवगण भी धड़ल्ले से अंग्रेजी शब्दों की मिश्रित खिचड़ी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। शायद निर्माता-निर्देशक मल्टीप्लेक्स में आने वाले बाल दर्शकों को ध्यान में रखकर ही रिटर्न आफ हनुमान ले आए हैं। इस सोच के कारण उन्होंने अपने ही दर्शकों को सीमित कर लिया है।
Comments
आप एक बात और भी लिखें कि अगर फ़िल्म ऐसे अच्छी नही बन सकती तो फ़िर कैसे अच्छी बन सकती है.
लिखते वक्त इस बात का ध्यान रखियेगा कि आपके तरीके ऐसे हों जो फ़िल्म को सुपरहिट करायें.