२००८ में चवन्नी का नमस्कार
चवन्नी का नमस्कार ...
साल २००८ आज से शुरू हो रहा है.सभी चाहते हैं कि जैसा बीता पिछला साल ,उस से बेहतर हो यह साल.इंसानी फितरत है वह कल से बेहतर आज से बेहतरीन आने वाला कल चाहता है.दर्शक भी इंसान हैं.उनकी भी इच्छा रहती है कि इस साल पिछले साल से ज्यादा तगड़ा मनोरंजन हो,अधिक सारगर्भित फिल्में दिखें और सिनेमा उनके करीब आये.करीब आने का मतलब विषय,प्रस्तुति और प्रदर्शन से है.अभी तो मल्टीप्लेक्स कल्चर ने सिनेमा को आम दर्शकों से दूर कर दिया है.बड़े शहरों में तो हालत और भी बुरी होती जा रही है.चवन्नी की बिरादरी के लिए सिनेमाघरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं।
कैसी विडम्बना है?गाँव,देहात और छोटे शहरों से आये जिन दर्शकों ने हिन्दी सिनेमा को इस मुकाम तक पहुँचाया,वे ही अब वंचित किये जा रहे हैं.ऐसा लग रहा है कि सिनेमा अब आम दर्शकों का मनोरंजन माध्यम नहीं रह गया है.न जेब में पैसे होंगे और न दर्शक सिनेमाघरों में घुस पायेंगे?४००० से ६००० रुपये प्रति माह कमाने वाला दर्शक कहाँ से २०० रुपये लाएगा कि वह सिनेमा देख पायेगा?
वैसे एक खुशखबरी भी है कि सिनेमा के डिजिटल होने कि प्रक्रिया में तेजी आने के साथ सिनेमा के सस्ते होने की सम्भावना बढ़ गयी है।कुछ समय के बाद ४०-५० सीटों के सिनेमाघर भी अस्तित्व में आएंगे.इसके अलावा पान और सिगरेट के भाव से फिल्मों के डीवीडी मिलेंगे।
२००८ बड़ी फिल्मों का साल माना जा रहा है.आइये हम अपनी उम्मीद बड़ी कर लें।
चवन्नी आप सभी के लिए स्वस्थ मनोरंजन की कामना करता है.और हाँ,इस साल चवन्नी बताएगा कि आप फिल्म को देखें या न देखें? चवन्नी ने फिल्मों की पांच श्रेणियाँ की हैं:
ज़रूर देखें
देख लेन
देख सकते हें
न देखें तो चलेगा
बिल्कुल न देखें
साल २००८ आज से शुरू हो रहा है.सभी चाहते हैं कि जैसा बीता पिछला साल ,उस से बेहतर हो यह साल.इंसानी फितरत है वह कल से बेहतर आज से बेहतरीन आने वाला कल चाहता है.दर्शक भी इंसान हैं.उनकी भी इच्छा रहती है कि इस साल पिछले साल से ज्यादा तगड़ा मनोरंजन हो,अधिक सारगर्भित फिल्में दिखें और सिनेमा उनके करीब आये.करीब आने का मतलब विषय,प्रस्तुति और प्रदर्शन से है.अभी तो मल्टीप्लेक्स कल्चर ने सिनेमा को आम दर्शकों से दूर कर दिया है.बड़े शहरों में तो हालत और भी बुरी होती जा रही है.चवन्नी की बिरादरी के लिए सिनेमाघरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं।
कैसी विडम्बना है?गाँव,देहात और छोटे शहरों से आये जिन दर्शकों ने हिन्दी सिनेमा को इस मुकाम तक पहुँचाया,वे ही अब वंचित किये जा रहे हैं.ऐसा लग रहा है कि सिनेमा अब आम दर्शकों का मनोरंजन माध्यम नहीं रह गया है.न जेब में पैसे होंगे और न दर्शक सिनेमाघरों में घुस पायेंगे?४००० से ६००० रुपये प्रति माह कमाने वाला दर्शक कहाँ से २०० रुपये लाएगा कि वह सिनेमा देख पायेगा?
वैसे एक खुशखबरी भी है कि सिनेमा के डिजिटल होने कि प्रक्रिया में तेजी आने के साथ सिनेमा के सस्ते होने की सम्भावना बढ़ गयी है।कुछ समय के बाद ४०-५० सीटों के सिनेमाघर भी अस्तित्व में आएंगे.इसके अलावा पान और सिगरेट के भाव से फिल्मों के डीवीडी मिलेंगे।
२००८ बड़ी फिल्मों का साल माना जा रहा है.आइये हम अपनी उम्मीद बड़ी कर लें।
चवन्नी आप सभी के लिए स्वस्थ मनोरंजन की कामना करता है.और हाँ,इस साल चवन्नी बताएगा कि आप फिल्म को देखें या न देखें? चवन्नी ने फिल्मों की पांच श्रेणियाँ की हैं:
ज़रूर देखें
देख लेन
देख सकते हें
न देखें तो चलेगा
बिल्कुल न देखें
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