जन्मदिन विशेष - राजकपूर , आरके बैनर और कपूर खानदान
-अजय ब्रह्मात्मज
राजकपूर और रणबीर कपूर में एक समानता है। दोनों जिस डायरेक्टर के असिस्टेंट थे, दोनों ने उसी डायरेक्टर की फिल्म से एक्टिंग करियर की शुरुआत की। सभी जानते हैं कि राजकपूर ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की थी। वे केदार शर्मा के असिस्टेंट रहे और सन् 1944 में उन्हीं की फिल्म नीलकमल से बतौर एक्टर दर्शकों के सामने आए। 1947 में उन्होंने आरके फिल्म्स एंड स्टूडियोज की स्थापना की।
रणबीर भी अपने दादा की तरह संजय लीला भंसाली के सहायक रहे और फिर उनकी ही फिल्म सांवरिया से बतौर एक्टर दर्शकों के सामने आए। अब यह देखना है कि वे आरके फिल्म्स एंड स्टूडियोज को कब पुनर्जीवित करते हैं?
राजकपूर ने जब स्कूल न जाने का फैसला किया, तो उनके पिता ने उन्हें जवाब-तलब किया। राजकपूर ने जवाब देने के बजाए अपने सवाल से पिता को निरुत्तर कर दिया। उन्होंने पृथ्वीराज कपूर से पूछा, सर, स्कूल की पढ़ाई के बाद क्या होगा? अगर आपको वकील बनना हो, तो आप लॉ कॉलेज में जाते हैं। अगर आपको डॉक्टर बनना हो, तो आप मेडिकल कॉलेज में जाते हैं और अगर आपको फिल्ममेकर बनना हो, तो आप कहां जाएंगे? मैं जिस पेशे में जाना चाहता हूं, उसके लिए जरूरी है कि मैं किसी स्टूडियो में काम शुरू कर दूं। इस तरह राजकपूर की फिल्मी पढ़ाई केदार शर्मा से आरंभ हुई, जो चांटा खाने के साथ आगे बढ़ी और फिर एक्टिंग के मुकाम तक पहुंची।
राजकपूर और फिर उनके भाइयों ने फिल्म इंडस्ट्री में प्रतिष्ठा और शोहरत हासिल की और बाद में बेटे भी आए। उनके परिवार को फिल्म इंडस्ट्री के पहले परिवार के रूप में पहचाना गया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इस परिवार के योगदान का मूल्यांकन अभी तक नहीं हो सका है। कपूर खानदान के तमाम सदस्यों ने इंडस्ट्री में योगदान दिया है। इस परंपरा में नया नाम रणबीर का जुड़ा है। उल्लेखनीय है कि रणबीर का नाम आरके बैनर के वारिस के रूप में भी उछाला गया। यहां एक सवाल उभरता है। क्या रणबीर ही आरके बैनर के वारिस होने के हकदार हैं? अगर हां, तो क्यों? रणबीर की पीढ़ी के सदस्यों की बात करें, तो उनसे पहले करिश्मा कपूर फिल्मों में नाम कमा चुकी हैं और करीना कपूर आज भी एक्टिव हैं। करिश्मा और करीना के फिल्मों में आने के समय किसी ने उनके वारिस होने की बात नहीं कही और न ही इस दिशा में सोचा गया।
दरअसल.., फिल्मों में करिश्मा के प्रवेश को एक विरोध के रूप में लिया गया था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले परिवार में एक अनलिखा नियम था कि परिवार की लड़कियां फिल्मों में काम नहीं करेंगी। वैसे, यह नियम और भी फिल्मी परिवारों में है। मालूम नहीं, यह सवाल कभी राजकपूर से पूछा गया या नहीं कि उनकी बेटी रीतू फिल्मों में क्यों नहीं आई? उनकी जीवनियों में ऐसा संकेत मिलता है कि राजकपूर कभी इस पक्ष में नहीं रहे कि परिवार की लड़कियां फिल्मों में आएं। बबीता ने सिर्फ अपनी जिद के तहत करिश्मा को फिल्मों में उतारा। करिश्मा और करीना की लॉन्चिंग पर कपूर परिवार में वैसी खुशी नहीं मनाई गई थी, जैसी रणबीर की लॉन्चिंग के समय दिखी। इस प्रसंग में उल्लेखनीय यह है कि रणबीर की सांवरिया को लेकर चर्चा में जरूर रहे, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे करीना से अधिक टैलॅन्टेड हैं। उनकी फिल्म ने इस बात को साबित किया है। इसे दर्शकों की पसंद कहिए या और कुछ..। ऐसी स्थिति में आरके बैनर का असली वारिस किसे समझा जाए? रणबीर या करीना को? वारिस के संबंध में हमारी-आपकी दो राय हो सकती है, लेकिन राजकपूर द्वारा आरंभ की गई परंपरा और उसमें इस परिवार के योगदान के संबंध में दो राय नहीं हो सकती। राजकपूर उन फिल्मकारों में हैं, जिनमें फिल्म निर्माण और निर्देशन का पैशन था। वे सिर्फ पैसों या मुनाफे के लिए फिल्में नहीं बनाते थे। आरके बैनर के तहत फिल्म विधा में किए गए उनके सफल प्रयोग आज उदाहरण बन चुके हैं। इस परिवार से यही अपेक्षा है कि वे आरके फिल्म्स एंड स्टूडियोज के पट शीघ्र ही खोलेंगे और फिल्म निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएंगे। वैसे, रणबीर ने संकेत दिया है कि वे अपने दादा की तरह फिल्मकार बनना चाहते हैं। हम चाहेंगे कि रणबीर की चाहत पूरी हो।
रणबीर भी अपने दादा की तरह संजय लीला भंसाली के सहायक रहे और फिर उनकी ही फिल्म सांवरिया से बतौर एक्टर दर्शकों के सामने आए। अब यह देखना है कि वे आरके फिल्म्स एंड स्टूडियोज को कब पुनर्जीवित करते हैं?
राजकपूर ने जब स्कूल न जाने का फैसला किया, तो उनके पिता ने उन्हें जवाब-तलब किया। राजकपूर ने जवाब देने के बजाए अपने सवाल से पिता को निरुत्तर कर दिया। उन्होंने पृथ्वीराज कपूर से पूछा, सर, स्कूल की पढ़ाई के बाद क्या होगा? अगर आपको वकील बनना हो, तो आप लॉ कॉलेज में जाते हैं। अगर आपको डॉक्टर बनना हो, तो आप मेडिकल कॉलेज में जाते हैं और अगर आपको फिल्ममेकर बनना हो, तो आप कहां जाएंगे? मैं जिस पेशे में जाना चाहता हूं, उसके लिए जरूरी है कि मैं किसी स्टूडियो में काम शुरू कर दूं। इस तरह राजकपूर की फिल्मी पढ़ाई केदार शर्मा से आरंभ हुई, जो चांटा खाने के साथ आगे बढ़ी और फिर एक्टिंग के मुकाम तक पहुंची।
राजकपूर और फिर उनके भाइयों ने फिल्म इंडस्ट्री में प्रतिष्ठा और शोहरत हासिल की और बाद में बेटे भी आए। उनके परिवार को फिल्म इंडस्ट्री के पहले परिवार के रूप में पहचाना गया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इस परिवार के योगदान का मूल्यांकन अभी तक नहीं हो सका है। कपूर खानदान के तमाम सदस्यों ने इंडस्ट्री में योगदान दिया है। इस परंपरा में नया नाम रणबीर का जुड़ा है। उल्लेखनीय है कि रणबीर का नाम आरके बैनर के वारिस के रूप में भी उछाला गया। यहां एक सवाल उभरता है। क्या रणबीर ही आरके बैनर के वारिस होने के हकदार हैं? अगर हां, तो क्यों? रणबीर की पीढ़ी के सदस्यों की बात करें, तो उनसे पहले करिश्मा कपूर फिल्मों में नाम कमा चुकी हैं और करीना कपूर आज भी एक्टिव हैं। करिश्मा और करीना के फिल्मों में आने के समय किसी ने उनके वारिस होने की बात नहीं कही और न ही इस दिशा में सोचा गया।
दरअसल.., फिल्मों में करिश्मा के प्रवेश को एक विरोध के रूप में लिया गया था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले परिवार में एक अनलिखा नियम था कि परिवार की लड़कियां फिल्मों में काम नहीं करेंगी। वैसे, यह नियम और भी फिल्मी परिवारों में है। मालूम नहीं, यह सवाल कभी राजकपूर से पूछा गया या नहीं कि उनकी बेटी रीतू फिल्मों में क्यों नहीं आई? उनकी जीवनियों में ऐसा संकेत मिलता है कि राजकपूर कभी इस पक्ष में नहीं रहे कि परिवार की लड़कियां फिल्मों में आएं। बबीता ने सिर्फ अपनी जिद के तहत करिश्मा को फिल्मों में उतारा। करिश्मा और करीना की लॉन्चिंग पर कपूर परिवार में वैसी खुशी नहीं मनाई गई थी, जैसी रणबीर की लॉन्चिंग के समय दिखी। इस प्रसंग में उल्लेखनीय यह है कि रणबीर की सांवरिया को लेकर चर्चा में जरूर रहे, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे करीना से अधिक टैलॅन्टेड हैं। उनकी फिल्म ने इस बात को साबित किया है। इसे दर्शकों की पसंद कहिए या और कुछ..। ऐसी स्थिति में आरके बैनर का असली वारिस किसे समझा जाए? रणबीर या करीना को? वारिस के संबंध में हमारी-आपकी दो राय हो सकती है, लेकिन राजकपूर द्वारा आरंभ की गई परंपरा और उसमें इस परिवार के योगदान के संबंध में दो राय नहीं हो सकती। राजकपूर उन फिल्मकारों में हैं, जिनमें फिल्म निर्माण और निर्देशन का पैशन था। वे सिर्फ पैसों या मुनाफे के लिए फिल्में नहीं बनाते थे। आरके बैनर के तहत फिल्म विधा में किए गए उनके सफल प्रयोग आज उदाहरण बन चुके हैं। इस परिवार से यही अपेक्षा है कि वे आरके फिल्म्स एंड स्टूडियोज के पट शीघ्र ही खोलेंगे और फिल्म निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएंगे। वैसे, रणबीर ने संकेत दिया है कि वे अपने दादा की तरह फिल्मकार बनना चाहते हैं। हम चाहेंगे कि रणबीर की चाहत पूरी हो।
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