शुक्रवार,३० नवम्बर,२००७


कोई रुनझुन सुनाई पड़ रही है.चवन्नी के कानों में सुरीली झंकार की अनुगूंज है.कोई दोनों बाहें फैलाये न्योता दे रहा है.न..न.. शाहरुख़ खान नही हैं.उनके आमंत्रण में झंकार नही रहती.मोहक मुस्कान की मलिका और एक ठुमके से दर्शकों का दिल धड़का देनेवाली धक् धक् गर्ल आज देश भर के सिनेमाघरों में नया जलवा दिखाने आ रही हैं.जी हाँ चवन्नी माधुरी दीक्षित की ही बात कर रहा है।चवन्नी की सिफारिश है कि आप माधुरी के न्योते को स्वीकार करें.लगभग पांच सालों के बाद हिन्दी सिनेमा के रुपहले परदे पर जल्वाफ्रोश हो रही माधुरी का आकर्षण कम नहीं हुआ है.हालांकि इस बीच हीरोइनों का अंदाज बदल गया है और सारी की सारी हीरोइनें एक जैसी लगती और दिखती हैं,वैसे में माधुरी दीक्षित का निराला अंदाज पसंद आना चाहिए।माधुरी की आजा नचले एक लड़की दीया कि कहानी है,जो अपने गुरु की संस्था को किसी भी सूरत में बचाना चाहती है.हिन्दी फिल्मों में उम्रदराज हीरोइनों के लिए जगह नहीं होती.अमिताभ बच्चन के पहले हीरो के लिए भी नही होती थी.अमिताभ बच्चन के लिए केन्द्रीय किरदार लिखे गए.शाबान आज़मी के लिए गॉडमदर लिखी गयी थी.जाया बच्चन हजार चौरासिवें की माँ में उपयुक्त लगी थीं। नरगिस ने मदर इंडिया की थी.वैसे ही माधुरी दीक्षित के लिए आजा नचले लिखी गयी है.इस फिल्म के सहयोगी कलाकार भी खास हैं.रघुबीर यादव,अखिलेन्द्र मिश्र,विनय पाठक ,कुणाल कपूर और कोंकणा सेन को दमदार भूमिकाओं में देखना रोचक होगा।और हाँ,भूल कर भी गौरी देखने न जाये.अजन्मे बच्चे की भूता कहानी गर्भपात का विरोध करती है.२१ वीं सदी में कैसे इस तरह की धारणा पर फिल्म बनाईं जा सकती है.चवन्नी को लगता था कि अतुल कुलकर्णी समझदार ऐक्टर हैं,फिर ऐसी ग़लती कैसे कर बैठे अतुल.

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लगने और होने में बहुत फर्क होता है

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