दर्शनीय व विमर्श योग्य है नो स्मोकिंग
-अजय ब्रह्मात्मज
अनुराग कश्यप की इस फिल्म को कृपया जॉन अब्राहम की फिल्म समझ कर देखने न जाएं। हिंदी में स्टार केंद्रित फिल्में बनती हैं, जिनमें निर्देशक का हस्ताक्षर पहचान में ही नहीं आता। अनुराग कश्यप युवा निर्देशकों में एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फिल्में अभी तक स्टारों पर निर्भर नहीं करतीं। ऊपरी तौर पर यह के (जान अब्राहम) की कहानी है। उसे सिगरेट पीने की बुरी लत है। चूंकि वह बेहद अमीर है, इसलिए उसे लगता है कि उसकी लतों और आदतों को बदलने की सलाह भी उसे कोई नहीं दे सकता। एक स्थिति आती है, जब उसकी बीवी उसे आखिरी चेतावनी देती है कि अगर उसने सिगरेट नहीं छोड़ी तो वह उसे छोड़ देगी। वह घर से निकल भी जाती है। के अपनी बीवी से बेइंतहा प्यार करता है। बीवी को वापस लाने के लिए वह सिगरेट छोड़ने की कोशिश में बाबा बंगाली से मिलता है। यहां से उसकी जिंदगी और लत को बाबा बंगाली नियंत्रित करते हैं। इसके बाद एक ऐसा रूपक बनता है, जिसमें हम इस संसार में रिश्तों की विदू्रपताओं को देखते हैं। स्वार्थ के वशीभूत दोस्त भी कितने क्रूर और खतरनाक हो सकते हैं। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि के भी उसी विद्रूपता का शिकार होता है।
यह फिल्म एक स्तर पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह के लिए जूझ रहे अनुराग कश्यप की आत्मकथात्मक अभिव्यक्ति भी बन जाती है। अनुराग कश्यप ने हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे फार्मूले का इस्तेमाल नहीं किया है। उनकी फिल्म रूपकात्मक और बिंबात्मक है। संभव है एकरेखीय या सपाट कहानी देखने के आदी दर्शक इसकी व्यंजना समझने में मुश्किल महसूस करें। जान अब्राहम ने स्टारडम की परवाह नहीं करते हुए एक निराश और हताश युवक की भूमिका निभायी है, जो धीरे-धीरे परिस्थिति का शिकार होता है। नो स्मोकिंग का नायक जीतता या हारता नहीं, वह घोर संभ्रम की स्थिति में सिस्टम का पुर्जा बन जाता है। उसे जिन बातों पर गुस्सा आता था, वह वैसी ही बातें करने लगता है। सभ्य समाज की इस विडंबना और एकरूपता के दबाव को नो स्मोकिंग प्रतीकों से सामने ले आती है। अनुराग कश्यप का साहसिक प्रयोग दर्शनीय और विमर्श के योग्य है। जब वी मेट के निर्देशक इम्तियाज अली इसे आगे की फिल्म मानते हैं।
मुख्य कलाकार : जॉन अब्राहम, आयशा टाकिया, रणवीर शौरी, परेश रावल, जेस्सी रंधावा
निर्देशक : अनुराग कश्यप
तकनीकी टीम : निर्माता- विशाल भारद्वाज एवं कुमार मंगत, छायांकन- कुमार रवि, पटकथा- अनुराग कश्यप, संगीतकार- विशाल भारद्वाज, गीतकार- गुलजार
अनुराग कश्यप की इस फिल्म को कृपया जॉन अब्राहम की फिल्म समझ कर देखने न जाएं। हिंदी में स्टार केंद्रित फिल्में बनती हैं, जिनमें निर्देशक का हस्ताक्षर पहचान में ही नहीं आता। अनुराग कश्यप युवा निर्देशकों में एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फिल्में अभी तक स्टारों पर निर्भर नहीं करतीं। ऊपरी तौर पर यह के (जान अब्राहम) की कहानी है। उसे सिगरेट पीने की बुरी लत है। चूंकि वह बेहद अमीर है, इसलिए उसे लगता है कि उसकी लतों और आदतों को बदलने की सलाह भी उसे कोई नहीं दे सकता। एक स्थिति आती है, जब उसकी बीवी उसे आखिरी चेतावनी देती है कि अगर उसने सिगरेट नहीं छोड़ी तो वह उसे छोड़ देगी। वह घर से निकल भी जाती है। के अपनी बीवी से बेइंतहा प्यार करता है। बीवी को वापस लाने के लिए वह सिगरेट छोड़ने की कोशिश में बाबा बंगाली से मिलता है। यहां से उसकी जिंदगी और लत को बाबा बंगाली नियंत्रित करते हैं। इसके बाद एक ऐसा रूपक बनता है, जिसमें हम इस संसार में रिश्तों की विदू्रपताओं को देखते हैं। स्वार्थ के वशीभूत दोस्त भी कितने क्रूर और खतरनाक हो सकते हैं। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि के भी उसी विद्रूपता का शिकार होता है।
यह फिल्म एक स्तर पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह के लिए जूझ रहे अनुराग कश्यप की आत्मकथात्मक अभिव्यक्ति भी बन जाती है। अनुराग कश्यप ने हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे फार्मूले का इस्तेमाल नहीं किया है। उनकी फिल्म रूपकात्मक और बिंबात्मक है। संभव है एकरेखीय या सपाट कहानी देखने के आदी दर्शक इसकी व्यंजना समझने में मुश्किल महसूस करें। जान अब्राहम ने स्टारडम की परवाह नहीं करते हुए एक निराश और हताश युवक की भूमिका निभायी है, जो धीरे-धीरे परिस्थिति का शिकार होता है। नो स्मोकिंग का नायक जीतता या हारता नहीं, वह घोर संभ्रम की स्थिति में सिस्टम का पुर्जा बन जाता है। उसे जिन बातों पर गुस्सा आता था, वह वैसी ही बातें करने लगता है। सभ्य समाज की इस विडंबना और एकरूपता के दबाव को नो स्मोकिंग प्रतीकों से सामने ले आती है। अनुराग कश्यप का साहसिक प्रयोग दर्शनीय और विमर्श के योग्य है। जब वी मेट के निर्देशक इम्तियाज अली इसे आगे की फिल्म मानते हैं।
मुख्य कलाकार : जॉन अब्राहम, आयशा टाकिया, रणवीर शौरी, परेश रावल, जेस्सी रंधावा
निर्देशक : अनुराग कश्यप
तकनीकी टीम : निर्माता- विशाल भारद्वाज एवं कुमार मंगत, छायांकन- कुमार रवि, पटकथा- अनुराग कश्यप, संगीतकार- विशाल भारद्वाज, गीतकार- गुलजार
Comments
पर जी ये नो स्मोकिंग एकैदम समझ नहीं आयी। बिंबों, व्यंजना के खेल डोक्यूमेंटरी में हों, बहुत छोटी आडियंस के लिए बननी वाली फिल्म में हों, तो चलेबल हैं। पर महाराज भारतवर्ष की जनता और अधिकांश जनता के बनने के लिए बनने वाली फिल्म को कम से कम इतना तो करना चाहिए कि फिलिम समझ में आ जाये। आज सुबह निकहत काजमी ने टाइम्स आफ इंडिया में इस फिल्म के बारे में लिखा है, काफका को समझना जरुरी है इस फिल्म को समझने के लिए। मतलब एक ट्रेनिंग कोर्स फिल्म देखने का भी होना चाहिए, वह बाकायदा होता है। पर सामान्य दर्शक वह कोर्स करके आयेगा, इसकी उम्मीद कम है।
मेरी राय है कि यह फिल्म आम दर्शकों के लिए नहीं है।
ऐसी फिल्मों को आई या वी आई का सर्टिफिकेशन मिलना चाहिए. आई बोले तो इंटेलेक्चेकुअल वीआई बोले विकट इंटेलेक्चुअल।
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बस एक शिकायत है आपसे… आप चूंकि फिल्म लाईन से ही हैं और अब मैं भी तो थोड़ा और व्यापक समीक्षा करेंगे तो मजा आएगा मसलन अंतराष्ट्रीय सिनेमा के साथ तालमेल करते हुए… थोड़ी कहानी कम बताएं तो चलेगा… मेरा भी एक व्लाग है सिनेमा पर अभी व्यस्तता के कारण लिखना शुरु नहीं हुआ है… पर शुरु करुंगा… बुरा न माने चूंकि मै हमेशा ही आपका लिखा पढ़ता रहता हूँ तो और भी अच्छा चाहता हूँ…।
हां नो स्मोकिंग एक DARK CINEMA है इसका कैमरा मुवमेंट शानदार है… बहुत सारे संकेतों को इस्तेमाल किया है कस्यप नें… इसे मात्र सिगरेट हानिकारक है किस प्रकार से देखने जाएंगे तो यह मुवी समझ नहीं आयेगी…। गोदार का jumpcut जो इस्तेमाल किया है वह तो बहुत ही उम्दा है…।