देव आनंद: रोमांसिंग विद लाइफ
-अजय ब्रह्मात्मज
देव आनंद की आत्मकथा का इससे अधिक उपयुक्त शीर्षक नहीं हो सकता था। उन्होंने अपनी आत्मकथा पूरी कर ली है। उनके 84वें जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसका विमोचन करेंगे। हिंदी फिल्मों के इतिहास में यह एक अनोखी घटना होगी, जब देश के प्रधानमंत्री के हाथों किसी फिल्मी व्यक्तित्व की किताब का विमोचन हो रहा हो। भारतीय राजनीति और भारत सरकार सिनेमा और फिल्मी हस्तियों से एक दूरी बनाकर रहती है। हालांकि अभी संसद में कई फिल्मी हस्तियां हैं, फिर भी इस रवैए में ज्यादा फर्क अभी तक नहीं आया है। बहरहाल, देव आनंद की आत्मकथा की बात करें, तो आजादी के बाद लोकप्रिय हुई अभिनेताओं की त्रयी (दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद) में केवल देव आनंद ही अभी तक सक्रिय हैं। राज कपूर असमय काल कवलित हो गए। दिलीप कुमार केवल समारोह या अपने प्रोडक्शन की गतिविधियों में बीवी सायरा बानो के साथ दिखते हैं। दरअसल, सालों पहले उन्होंने अभिनय से संन्यास ले लिया। केवल देव आनंद ही अपनी क्रिएटिविटी के साथ मौजूद हैं और वे लगातार फिल्में बना रहे हैं और साथ ही साथ देश-विदेश घूम भी रहे हैं। अपनी कोई भी फिल्म पूरी करने से पहले ही वे अगली फिल्म का काम शुरू कर चुके होते हैं। सच तो यह है कि सृजन की ऐसी ऊर्जा विरले ही दिखाई पड़ती है। चेतन आनंद के छोटे भाई देव आनंद ने आजादी के पहले फिल्मी करियर आरंभ किया। जल्दी ही उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत की। फिर गुरुदत्त के साथ कुछ फिल्में भी कीं। उसके बाद छोटे भाई विजय आनंद के साथ उन्होंने लंबी सफल पारी खेली। देव आनंद की उम्दा फिल्में गुरुदत्त, राज खोसला और विजय आनंद के साथ ही आई। उन दिनों दिलीप कुमार ट्रेजेडी किंग थे और राज कपूर रोमांस और मसखरी के साथ दर्शकों को अपना दीवाना बना रहे थे। इन दोनों से अलग देव साहब ने आजादी के बाद देश में उभरे शहरी युवकों का सुंदर प्रतिनिधित्व किया। रोमांच और रोमांस के मिश्रण से उन्होंने रोमांटिक थ्रिलर फिल्में कीं और दिलीप कुमार और राज कपूर के छोड़े गैप को भी भरा। आज मेहश भट्ट और रामगोपाल वर्मा के बारे में कहा यह जाता है कि वे नई प्रतिभाओं को पहला मौका देते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि देव आनंद की नवकेतन फिल्म्स दशकों तक यही काम करती रही। अभिनेता, अभिनेत्री, निर्देशक, गीतकार, संगीत निर्देशकों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्हें पहली बार देव आनंद के सौजन्य से ही काम मिला। एक जमाना वह था, जब देव आनंद की तूती बोलती थी। इसलिए उनकी लोकप्रियता की ऊंचाई की कल्पना आज के अभिनेता नहीं कर सकते। अपने आकर्षण से किंवदंती बन चुके देव आनंद ने दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज किया।
देव आनंद की ही फिल्म के एक गाने की पंक्ति है -मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया..। इस पंक्ति के भावार्थ को देव साहब ने अपने जीवन में उतार लिया। सचमुच उन्होंने किसी व्यक्ति या कृति से नहीं, जिंदगी से रोमांस किया और यह रोमांस ही उनकी सक्रियता की अंतत: संजीवनी बनी। प्यार में डूबा इंसान शिथिल हो ही नहीं सकता और फिर जिसने जिंदगी से प्यार किया हो, उससे तो कहते हैं कि उम्र भी हार जाती है। रोमांसिंग विद लाइफ देव आनंद की किसी भी फिल्म से ज्यादा बड़ी कृति है। इसके जरिए हम उनके साथ ही उस दौर को जानेंगे, जिसे हिंदी फिल्मों का स्वर्ण काल कहते हैं। देव साहब, आपको शत-शत नमन! आप दीर्घायु हों और इसी तरह सक्रिय रहें।
Comments