खोया खोया चांद और सुधीर भाई-२
सुधीर मिश्र को सभी सुधीर भाई कहना पसंद करते हैं. उन्हें भी शायद यह संबोधन अच्छा लगता है. कद में लंबे और छरहरे सुधीर भाई लंबे डग भरते हैं. वे चलते हैं तो उनके छेहर हो गए लंबे बाल हवा में अयाल की तरह लहराते हैं. प्रभावशाली और आकर्षक होता है उनका आगमन और चूंकि वह परिचित चेहरा हैं, इसलिए लोगों को वह तत्क्षण आकृष्ट कर लेते हैं. सुधीर भाई की खूबी है कि वह बेबाक और बेलाग बोलते हैं और हमेशा बोलने के लिए तैयार रहते हैं. सुधीर भाई खुद को फिल्म इंडस्ट्री के बाहर का व्यकित मानते हैं. कहते भी हैं, 'मेरे बाप-दादा ने कोई फिल्म नहीं बनायी और न ही मेरे लिए फिल्मों की कमाई (धन और यश) छोड़ी. हमें तो जिंदगी ने उछाल कर यहां पहुंचा दिया. हमें तो हादसों ने पाला और तूफानों ने संभाला है. ऐसे जीवट के व्यक्ति का निर्भीक होना स्वाभाविक है. एक तरह से सुधीर भाई के पास खोने के लिए कुछ है भी नहीं...
हां तो उस दिन पंचसितारा होटल के काफी शॉप में वह 'खोया खोया चांद' के बारे में बताने लगे. उन्होंने बताया, 'मुझे छठे-सातवें दशक के उपर एक फिल्म बनानी थी. उस दौर की उत्कृष्ट फिल्मों और फिल्मकारों को इसे मेरी श्रद्धांजलि समझ लो चवन्नी. कितने नाम गिनोगे या मैं गिनवाऊंगा . बस यों समझो कि इस फिल्म में उस दौर के नायक नायिका हैं. गुरू दत्त हैं. विमल राय हैं, कमाल अमरोही हैं, साहिर लुधायानवी हैं, महबूब खान हैं ... इसमें मीना कुमारी, मधुबाला और नर्गिस हैं. सच कहूं तो इस फिल्म का हीरो और कोई नहीं, मैं हूं... उसका नाम जफर है, लेकिन है वह सुधीर मिश्र ही. उसमें मेरे पिता की भी थोड़ी खूबियां हैं. हमारे किरदार ऐसे ही होते हैं. कल को तुम्हारी झलक किसी किरदार में मिल जाए तो नाराज न होना. चवन्नी को भला क्या नाराजगी होगी,लेकिन चवन्नी जानता है कि सुधीर भाई ऐसा कर चौंका सकते हैं.
हां तो उस दिन पंचसितारा होटल के काफी शॉप में वह 'खोया खोया चांद' के बारे में बताने लगे. उन्होंने बताया, 'मुझे छठे-सातवें दशक के उपर एक फिल्म बनानी थी. उस दौर की उत्कृष्ट फिल्मों और फिल्मकारों को इसे मेरी श्रद्धांजलि समझ लो चवन्नी. कितने नाम गिनोगे या मैं गिनवाऊंगा . बस यों समझो कि इस फिल्म में उस दौर के नायक नायिका हैं. गुरू दत्त हैं. विमल राय हैं, कमाल अमरोही हैं, साहिर लुधायानवी हैं, महबूब खान हैं ... इसमें मीना कुमारी, मधुबाला और नर्गिस हैं. सच कहूं तो इस फिल्म का हीरो और कोई नहीं, मैं हूं... उसका नाम जफर है, लेकिन है वह सुधीर मिश्र ही. उसमें मेरे पिता की भी थोड़ी खूबियां हैं. हमारे किरदार ऐसे ही होते हैं. कल को तुम्हारी झलक किसी किरदार में मिल जाए तो नाराज न होना. चवन्नी को भला क्या नाराजगी होगी,लेकिन चवन्नी जानता है कि सुधीर भाई ऐसा कर चौंका सकते हैं.
Comments
http://chavannichap.blogspot.com/2007/08/blog-post_20.html
वे धीशुंग धिसूंग वाली एक्शन फ़िल्में होती थी. मगर अब तो टॉप स्टार्स एक्शन फ़िल्मों मे काम करने में गर्व करते हैं. दशकों बाद जाकर ऐसी फ़िल्मों को सम्मान मिला है. हिसाब से देखें तो वे फ़िल्में जो कभी हिकारत की नज़र से देखी जाती थी वे अब क्लासिक हैं.