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सवालों में सेंसरशिप

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-अजय ब्रह्मत्मज     होमी अदजानिया की नई फिल्म ‘फाइडिंग फैनी’ में दीपिका पादुकोण के एक संवाद में ‘वर्जिन’ शब्द के प्रयोग पर सेंसर बोर्ड के एक अधिकारी ने आपत्ति की है। फिल्म के प्रमाणन के लिए नियुक्त सदस्यों की सम्मिलित राय व्यक्त करते हुए उन्होंने यह बात रखी है। उन्होंने फिल्म के ट्रेलर में दिखाए जा रहे उस दृश्य को भी टोन डाउन करने की सलाह दी है,जिसमें डिंपल कपाडिय़ा झुकी हुई मुद्रा में पीछे पलट कर देख रही हैं और उनके स्कर्ट की सिलाई उघड़ जाती है। फिल्म को अगर यूए सर्टिफिकेट चाहिए तो निर्माता-निर्देशक को सलाह माननी पड़ेगी। वे इसे चुनौती भी दे सकते हैं। ट्रिब्यूनल और कोर्ट के रास्ते खुले हैं,लेकिन ‘फाइडिंग फैनी’ 12 सितंबर को रिलीज होनी है। निर्माता-निर्देशक अपनी जिद पर अड़े रहें तो फिल्म समय पर रिलीज नहीं होगी और फिर करोड़ों का नुकसान होगा। प्रदीप सरकार की चर्चित और प्रशंसित ‘मर्दानी’ के निर्माता भी चाहते थे कि उनकी फिल्म को यूए सर्टिफिकेट मिले। फिल्म में गालियां और गोलियां थीं,इस वजह से उसे ए सर्टिफिकेट ही मिला। इधर सेंसर बोर्ड अतिरिक्त तौर पर सजग हो गया है। उसके सदस्य...

निर्माण में आ सकते हैं नवाज

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-अजय ब्रह्मात्मज         लंबे अभ्यास और प्रयास के बाद कामयाबी मिलने पर इतराने के खतरे कम हो जाते हैं। नवाजुद्दीन सिद्दिकी के साथ ऐसा ही हुआ है। ‘सरफरोश’ से ‘किक’ तक के सफर में बारहां मान-अपमान से गुजर चुके नवाज को आखिरकार अब पहचान मिली है। इसकी शुरुआत ‘न्यूयार्क’ और कहानी से हो चुकी थी। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से उनकी योग्यता पर मुहर लगी और प्रतिष्ठा मिली। अभी स्थिति यह है कि उनके पास मेनस्ट्रीम फिल्मों के भी ऑफर आ रहे हैं। पिछली कामयाबी ‘किक’ के बाद भी नवाज ने तय कर रखा है कि वे साल में एक-दो ऐसी फिल्में करने के साथ अपने मिजाज की फिल्में करते रहेंगे। वे स्पष्ट कहते हैं कि इस पहचान से मेरी छोटी फिल्मों को फायदा होगा। पिछले दिनों मेरी ‘मिस लवली’ रिलीज हुई थी। उसके बारे में दर्शकों का पता ही नहीं चला। उस फिल्म में मैंने काफी मेहनत की थी।     आमिर खान और सलमान खान के साथ काम कर चुके नवाज दोनों की शैली की भिन्नता के बारे में बताते हैं,‘आमिर खान के बारे में सभी जानते हैं कि वे परफेक्शनिस्ट हैं। उनके साथ रिहर्सल और सीन पर चर्चा होती है। सलमान खान क...

फिल्‍म समीक्षा : राजा नटवरलाल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    ठगों के बादशाह नटवरलाल उर्फ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव के नाम-काम को समर्पित 'राजा नटवरलाल' कुणाल देशमुख और इमरान हाशमी की जोड़ी की ताजा फिल्म है। दोनों ने इसके पहले 'जन्नत' और 'जन्नत 2' में दर्शकों को लूभाया था। इस बीच इमरान हाशमी अपनी प्रचलित इमेज से निकल कर कुछ नया करने की कोशिश में अधिक सफल नहीं रहे। कहा जा रहा है कि अपने प्रशंसकों के लिए इमरान हाशमी पुराने अंदाज में आ रहे हैं। इस बीच बहुत कुछ बदल चुका है। ठग ज्यादा होशियार हो गए हैं और ठगी के दांव बड़े हो गए हैं। राजा बड़ा हाथ मारने के चक्कर में योगी को अपना गुरु बनाता है। एक और मकसद है। उसे अपने बड़े भाई के समान दोस्त राघव के हत्यारे को सबक भी सिखाना है। उसे बर्बाद कर देना है। कहानी मुंबई से शुरू होती है और फिर धर्मशाला होते हुए दक्षिण अफ्रीका के शहर केप टाउन पहुंचती है। इमरान हाशमी भी योगी की मदद से राजा से बढ़ कर राजा नटवरलाल बनता है। वह अपना नाम भी मिथिलेश बताता है। फिल्म में ठगी के दृश्य या तो बचकाने हैं या फिर अविश्वसनीय। फिल्म की पटकथा सधी और कसी हुई नहीं है। स...

दरअसल : कागज के फूल की पटकथा

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-अजय ब्रह्मात्मज     दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी बड़े मनोयोग से फिल्मों पर लिखते हैं। उनके लेखन में शोध से मिली जानकारी का पुट रहता है। सच्ची बातें गॉसिप से अधिक रोचक और रोमांचक होती हैं। इधर फिल्म पत्रकारिता प्रचलित फिल्मों की तरह ही रंगीन और चमकदार हो गई है। इसमें फिल्म के अलावा सभी विषयों और पहलुओं पर बातें होती हैं? अफसोस यह है कि स्टार,पीआर और पत्रकार का त्रिकोण इसमें रमा हुआ है। बहरहाल,दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी अपने अध्श्वसाय में लगे हुए हैं। इधर उन्होंने पटकथा संरक्षण का कार्य आरंभ किया है। इसके तहत वे गुरु दत्त की फिल्मों की पटकथा प्रकाशित कर रहे हैं। इस कार्य में उन्हें विधु विनोद चोपड़ा और ओम बुक्स की पूरी मद मिल रही है। इस बार उन्होंने गुरु दत्त की क्लासिक फिल्म ‘कागज के फूल’ की पटकथा संरक्षित की है।     इस सीरिज में दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी गुरु दत्त की फिल्मों की पटकथा को अंग्रेजी,हिंदी और रोमन हिंदी में एक साथ प्रस्तुत करते हैं। हिंदी की मूल पटकथा को उसके भावार्थ के साथ अंग्रेजी में अनुवाद करना कठिन प्रक्रिया है। संवादों क...

करें टिप्‍पणी या लिखें कहानी : रणवीर सिंह और अजय ब्रह्मात्‍मज

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रणवीर सिंह पिछले दिनों एक चायनीज नूडल्‍स और अन्‍य खाद्य पदार्थ के उत्‍पादों के ऐड की शूटिंग कर रहे थे। मैं वहां पहुंच गया। उस मुलाकात के इन दृश्‍यों पर आप की टिप्‍पणी और कहानी की अपेक्षा है। सर्वाधिक रोचक और टिप्‍पण्‍ी के लिए एक-एक पुरस्‍कार सुनिश्चित है।

इंस्पायरिंग कहानी है मैरी कॉम की-प्रियंका चोपड़ा

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-अजय ब्रह्मात्मज    प्रियंका चोपड़ा निर्माता संजय लीला भंसाली की ओमंग कुमार निर्देशित ‘मैरी कॉम’ में शीर्षक भूमिका निभा रही हैं। इस भूमिका के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक मेहनत करनी पड़ी है। ‘मैरी कॉम’ तक के सफर में प्रियंका चोपड़ा का उत्साह कभी कम नहीं हुआ। फिल्मों के प्रभाव और सफलता-असफलता के अनुसार उन्हें सराहना और आलोचना दोनों मिली। सीखते-समझते हुए आगे बढऩे के साथ प्रियंका चोपड़ा ने नई विधाओं में भी प्रतिभा का इस्तेमाल किया। ‘मैरी कॉम’ के प्रति वह अतिरिक्त जोश में हैं। इस फिल्म को वह अपने अभिनय करिअर की उपलब्धि मानती हैं। - इतने साल हो गए,लेकिन आप के उत्साह में कभी कोई कमी नजर नहीं आती। आखिर वह कौन सी प्रेरणा है,जो आप को सक्रिय और सकारात्मक रखती है? 0 मेरे लिए मेरा काम बहुत जरूरी है। जिस दिन काम की भूख खत्म हो जाएगी या असफलता का डर नहीं रहेगा,उस दिन शायद मैं काम करना बंद कर दूंगी। मैं अपने काम को आधात्मिक स्तर पर लेती हूं। फिल्मों में आई तो बच्ची थी। विभिन्न निर्देशकों के साथ काम करते हुए मैंने समझा कि एक्टिंग हुनर है। यह एक क्राफ्ट है। अभ्यास करने से ही हम बेहतर हो...

टीवी सीरिज ‘होमलैंड 4’ में निम्रत कौर

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-अजय ब्रह्मात्मज     2013 में आई फिल्म ‘लंचबाक्स’ में इला की भूमिका निभा कर मशहूर हुई निम्रत कौर हाल ही में अमेरिकी टीवी सीरिज ‘होमलैंड 4’ की आरंभिक शूटिंग कर लौटी हैं। इस टीवी सीरिज की शूटिंग दक्षिण अफ्रीका के शहर केप टाउन में चल रही है। वहां इस्लामबाद का सेट लगाया गया है। निम्रत कौर इस टीवी सीरिज में पाकिस्तानी आईएसआई अधिकारी तसनीम कुरेशी की भूमिका निभा रही हैं। पहले योजना थी कि इजरायल में ही शूटिंग की जाए।  बाद में इसे केपटाउन में शिफ्ट कर दिया गया। ‘होमलैंड’ इजरायली टीवी सीरिज का अमेरिकी संस्करण है। निम्रत कौर के मुताबिक केपटाउन में ही इस्लामबाद का सेट लगाया गया है। मेरा सारा काम यहीं होना है। ‘होमलैंड 4’ की कहानी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में घूमती है।       ‘होमलैंड’ इजरायली टीवी सीरिज का अमेरिकी संस्करण है। ‘होमलैंड’ एक अमेरिकी फौजी की कहानी है। अफगानिस्तान से उसे बचा कर लाया तो जाता है,लेकिन शक है कि वह आतंकवादियों का एजेंट बन गया है। युद्धवीर की सीधी तहकीकात नहीं की जा सकती,इसलिए अप्रत्यक्ष घेराबंदी की जाती है। ‘होमलैंड’ के तीन सीजन आ ...

फिल्‍म समीक्षा : मर्दानी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  यशराज फिल्म्स की प्रदीप सरकार निर्देशित 'मर्दानी' में रानी मुखर्जी मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच की दिलेर पुलिस इंस्पेक्टर शिवानी शिवाजी राव की भूमिका निभा रही हैं। इस फिल्म का नाम शिवानी भी रहता तो ऐसी ही फिल्म बनती और दर्शकों पर भी ऐसा ही असर रहता। फिल्म का टाइटल 'मर्दानी' में अतिरिक्त आकर्षण है। यशराज फिल्म्स और प्रदीप सरकार ने महज इसी आकर्षण के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहूर कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' 'मर्दानी' शब्द ले लिया है। हिंदी फिल्मों के हाल-फिलहाल की फिल्मों से रेफरेंस लें तो यह 'दबंग' और 'सिंघम' की श्रेणी और जोनर की फिल्म है। फिल्मों की नायिका मर्दानी हो तो उसकी जिंदगी से रोमांस गायब हो जाता है। यहां रानी मुखर्जी पुलिस इंस्पेक्टर के साथ जिम्मेदार गृहिणी की भी भूमिका निभाती हैं। बतौर एक्टर स्क्रिप्ट की मांग के मुताबिक वह दोनों भूमिकाओं में सक्षम दिखने की कोशिश करती हैं। उन्हें बाल संवारने भी आता है। गोली चलाना तो उनकी ड्यूटी का हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि किसी पुरुष प...

फिल्‍म समीक्षा : मैड अबाउट डांस

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    पांच रुपैया बारह आना प्रोडक्शन की 'मैड अबाउट डांस' साहिल प्रेम की पहली फिल्म है। पहली फिल्म में अभिनय के साथ लेखन और निर्देशन की भी जिम्मेदारी उन्होंने संभाली है। डांस जोनर की यह फिल्म किशोर और युवा दर्शकों की रुचि का खयाल रखती है। साहिल प्रेम ने ऐसी फिल्मों की परंपरा में ही कुछ नया करने की कोशिश की है। डांस जोनर की फिल्मों में नायक या नायिका शिद्दत से डांस के जरिए अपने पैशन को पूरा करना चाहते हैं। प्राइज मनी और शोहरत से ज्यादा उनका इंटरेस्ट श्रेष्ठ होने की तरफ रहता है। साहिल प्रेम की फिल्म में आरव आनंद की ख्वाहिश है कि वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ डांसर सीजर के ग्रुप में शामिल हो। भारतीय माता-पिता अभी तक गैरपारंपरिक पढ़ाई और पैशन को नजरअंदाज कर अपने बज्चों को परिचित पेशों में जाने के उद्देश्य से पड़ाई करने की व्यावहारिक सलाह देते हैं। हिंदी फिल्मों और समाज में अब यह दिखने लगा है कि बच्चे अपनी जिद्द किसी बहाने या सीधे तरीके से पूरी करना चाहते हैं। आरव भी किसी और पढ़ाई के बहाने विदेश में सीजर के शहर पहुंचता है। उसका एक ही मकसद है कि वह सीजर...

दरअसल : बदल रहे हैं प्रचार के तरीके

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-अजय ब्रह्मात्मज     कुछ सालों पहले तक प्रचार के सामान्य तरीके थे। फिल्म आने के पहले टीवी पर प्रोमो आने लगते थे। सिनेमाघरों में ट्रेलर चलते थे। रिलीज के एक हफ्ते पहले से शहरों की दीवारों पर फिल्म के पोस्टर नजर आने लगते थे। मीडिया के साथ फिल्म यूनिट के सदस्यों की बातचीत रहती थी,जिसमें फिल्म के बारे में कुछ नहीं बताया जाता था। आज भी नहीं बताया जाता। फिल्म सिनेमाघरों में लगती थी। कंटेंट और क्वालिटी के दम पर फिल्म कभी गोल्डन जुबली तो कभी सिल्वर जुबली मना लेती थी। कुछ फिल्में डायमंड जुबली तक भी पहुंचती थीं। तब कोई नहीं पूछता और जानता था कि फिल्म का कलेक्शन कैसा रहा? सभी यही देखते थे कि फिल्म कितने दिन और हफ्ते चली। फिर एक समय आया कि 100 दिनों के सफल प्रदर्शन के पोस्टर लगने लगे। समय बदला तो प्रचार के तरीके भी बदले।     बीच के संक्रमण दौर को छलांग कर अभी की बात करें तो यह आक्रामक और महंगा हो गया है। फिल्म आने के चार-पांच महीने पहले से माहौल तैयार किया जाता है। अभी सारा जोर जानकारी से अधिक जिज्ञासा पर रहता है। माना जाता है कि दर्शकों की क्यूरोसिटी बढ़ेगी तो वे ...