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Showing posts with the label अमिताभ बच्‍चन

बाबूजी के बेटे - अजय ब्रह्मात्‍मज

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अमिताभ बच्चन से हुई यादगार साहित्यक बातचीत :   - अजय ब्रह्मात्‍मज अमिताभ बच्चन अपने बाबूजी की बातों का उल्लेख करते समय सिर्फ एक कवि के बेटे होते हैं। उन्हें अपनी विशाल छवि याद नहीं रहती। बाबूजी की रचनाओं के प्रति उनके कौतूहल और गर्व को उनके ब्लॉग और ट्वीट में पढ़ा जा सकता है।   वर्ष 2008 की बात है। उनके बाबूजी हरिवंश राय बच्चन की जन्म शताब्दी का साल था। अचानक ख्याल आया कि क्यों न उनके बाबूजी हरिवंश राय बच्चन के बारे में बातें की जाएं। मैंने आग्रह के संदेश के साथ इंटरव्यू का विषय भी बता दिया। पूरी बातचीत उनके कवि और साहित्यकार बाबूजी हरिवंश राय बच्चन के बारें में होंगी। वह सहर्ष तैयार हो गए । स्थान , समय और तारीख निश्चित हो गई।   हालांकि वह भी औपचारिक मुलाकात थी,लेकिन मैं परेशान था कि फिल्म इंडस्ट्री के ख्यातिलब्ध कद्दावर स्टार को इस मुलाकात में मैं क्या भेंट कर सकता हूं ? ऊहापोह और असमंजस के बीच मैंने तय किया कि जेएनयू में अपने सीनियर और मित्र गोरख पांडे की कविता ‘ समझदारों का गीत ’ ले चलूं। दो पृष्ठों की इस कविता में गोरख पांडे ने कथित समझद...

फिल्‍म समीक्षा : सरकार 3

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फिल्‍म रिव्‍यू निराश करते हैं रामगोपाल वर्मा सरकार 3 -अजय ब्रह्मात्‍मज रामगोपाल वर्मा की ‘ सरकार 3 ’ उम्‍मीदों पर खरी नहीं उतरती। डायरेक्‍टर रामगोपाल वर्मा हारे हुए खिलाड़ी की तरह दम साध कर रिंग में उतरते हैं,लेकिन कुछ समय बाद ही उनकी सांस उखड़ जाती है। फिल्‍म चारों खाने चित्‍त हो जाती है। अफसोस,यह हमारे समय के समर्थ फिल्‍मकार का भयंकर भटकाव है। सोच और प्रस्‍तुति में कुछ नया करने के बजाए अपनी पुरानी कामयाबी को दोहराने की कोशिश में रामगोपाल वर्मा और पिछड़ते जा रहे हैं। अमिताभ बच्‍चन,मनोज बाजपेयी और बाकी कलाकारों की उम्‍दा अदाकारी,रामकुमार सिंह के संवाद और तकनीकी टीम के प्रयत्‍नों के बावजूद फिल्‍म संभल नहीं पाती। लमहों,दृश्‍यों और छिटपुट परफारमेंस की खूबियों के बावजूद फिल्‍म अंतिम प्रभाव नहीं डाल पाती। कहानी और पटकथा के स्‍तर की दिक्‍कतें फिल्‍म की गति और निष्‍पत्ति रोकती हैं। सुभाष नागरे का पैरेलल साम्राज्‍य चल रहा है। प्रदेश के मुख्‍यमंत्री की नकेल उनके हाथों में है। उनके सहायक गोकुल और रमण अधिक पावरफुल हो गए हैं। बीमार बीवी ने बिस्‍तर पकड़ लिया है। तेज-तर्रार देशप...

अन्‍याय सहेगी न अब औरत - अमिताभ बच्‍चन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज शुक्रवार को रिलीज हुई ‘ पिंक ’ में हम सभी ने अमिताभ बच्‍चन को एक नए अवतार और अंदाज में देखा। उनकी ऊर्जा दंग करती है। सभी कहते हैं कि अपने किरदारों के प्रति उनके मन में किसी बच्‍चे जैसी उमंग रहती है। अच्‍छी बात यह भी है कि लेखक उनकी उम्र और अनुभव को नजर में रख कर भूमिकाओं की चुनौती दे रहे हैं। अमिताभ बच्‍चन उन चुनौतियों को स्‍वीकार और भूमिकाओं को साकार कर रहे हैं। -‍ ’ पिंक ’ ने कैसी चुनौती दी और यह भूमिका किस मायने में अलग रही ? 0 शुजीत सरकार ने एक कांसेप्‍ट सुनाया था। फिल्‍म के विषय का कांसेप्‍ट सुन कर ही मैं राजी हो गया था। मुझे नहीं मालूम था कि कैसी पटकथा लिखी जा रही है और मुझे कैसा किरदार दिया जा रहा है ? तब यह भी नहीं मालूम था कि कौन डायरेक्‍ट करेगा ? स्क्रिप्‍ट की प्रक्रिया मेरी जानकारी में रही। शूटिंग के दरम्‍यान भी हमारा विमर्श चलता रहा कि क्‍या बोलना और दिखाना चाहि और क्‍या नहीं ? ‘ पिंक ’ एक विचार है। कहीं भी यह प्रयत्‍न नहीं है कि हम कुछ बताएं। हम ने इस विषय को फिल्‍म के रूप में समाज के सामने रख दिया है। -ऐसा लग रहा है कि आप समाज म...

फिल्‍म समीक्षा : पिंक

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’ ना ’ सिर्फ एक शब्‍द नहीं है -अजय ब्रह्मात्‍मज शुजीत सरकार ‘ पिंक ’ के क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं। इस फिल्‍म के साथ उनका नाम इतने मुखर रूप से सामने रखा गया है कि निर्देशक गौण हो गए हैं। मार्केटिंग के लिहाज से यह सही रणनीति रही। शुजीत सरकार अलग ढंग के मनोरंजक सिनमा के पर्याय के रूप में उभर रहे हैं। ‘ विकी डोनर ’ से ‘ पीकू ’ तक में हम उनकी निर्देशकीय क्रिएटिविटी देख चुके हैं। यह फिलम उनकी निगरानी में बनी है,लेकिन यह अनिरूद्ध राय चौधरी की पहली हिंदी फिल्‍म है। अनिरूद्ध ने बांग्‍ला में ‘ अनुरणन ’ और ‘ अंतहीन ’ जैसी फिल्‍में निर्देशित की हैं,जिन्‍हें राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से सम्‍मनित किया जा चुका है। इस पृष्‍ठभूमि का हवाला इसलिए कि राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से सम्‍मानित फिल्‍मकारों की फिल्‍में भी आम दर्शकों का मनोरंजन कर सकती हैं। मनोरंजन के साथ सामाजिक संदेश से वे उद्वेलित भी कर सकती हैं। इसे रितेश शाह ने लिखा है। हम ‘ कहानी ’ , ‘ एयरलिफ्ट ’ , ’ तीन ’ और ‘ मदारी ’ में उनका कौशल देख चुके हें। ‘ पिंक ’ तीन लड़कियों के साथ उन चार लड़कों की भी कहानी है,जो फिल्‍म की केंद्...

पिंक पोएम

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अनिरूद्ध रायचौधरी की फिल्‍म 'पिंक' में यह प्रेरक कविता है। इसे तनवीर क्‍वासी ने लिखा है।फिल्‍म में अमिताभ बच्‍चन ने इसका आेजपूर्ण पाठ किया है। फिल्‍म के संदर्भ में इस कविता का खास महत्‍व है। निर्माता शुजीत सरकार और उनकी टीम को इस प्रयोग के लिए धन्‍यवाद। हिंदी साहित्‍य के आलोचक कविता के मानदंड से तय करें कि यह कविता कैसी है? फिलहाल,'पिंक' वर्तमान समाज के प्रासंगिक मुद्दे पर बनी फिल्‍म है। लेख,निर्माता और निर्देशक अपना स्‍पष्‍ट पक्ष रखते हैं। कलाकारों ने उनके पक्ष को संजीदगी से पर्दे पर पेश किया है। तू ख़ुद की खोज में निकल , तू किस लिये  हताश है । तू चल तेरे वजूद की , समय को भी  तलाश है । जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ, समझ न इन को वस्त्र तू । यॆ बेड़ियाँ पिघाल के , बना ले इन को शस्त्र तू । चरित्र जब पवित्र है , तो कयुँ है यॆ दशा तेरी । यॆ पापियों को हक नहीं , कि ले परीक्षा तेरी । जला के भस्म कर उसे , जो क्रूरता का  जाल है । तू आरती की लौ नहीं , तू क्रोध की मशाल है । चूनर उड़ा के ध्वज बना , गगन भी कपकपाऐगा । अगर तेरी चूनर गिरी , तो एक भूकम्प आएगा ...

फिल्‍म समीक्षा : तीन

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है नयापन -अजय ब्रह्मात्‍मज हक है मेरा अंबर पे लेके रहूंगा हक मेरा लेके रहूंगा हक मेरा तू देख लेना फिल्‍म के भाव और विश्‍वास को सार्थक शब्दों में व्‍यक्‍त करती इन पंक्तियों में हम जॉन विश्‍वास के इरादों को समझ पाते हैं। रिभु दासगुप्‍ता की ‘ तीन ’ कोरियाई फिल्‍म ‘ मोंटाज ’ में थोड़ी फेरबदल के साथ की गई हिंदी प्रस्‍तुति है। मूल फिल्‍म में अपहृत लड़की की मां ही प्रमुख पात्र है। ‘ तीन ’ में अमिताभ बच्‍च्‍न की उपलब्‍धता की वजह से प्रमुख किरदार दादा हो गए हैं। कहानी रोचक हो गई है। बंगाली बुजुर्ग की सक्रियता हंसी और सहानुभूति एक साथ पैदा करती है। निर्माता सुजॉय घोष ने रिभु दासगुप्‍ता को लीक से अलग चलने और लिखने की हिम्‍मत और सहमति दी। ‘ तीन ’ नई तरह की फिल्‍म है। रोचक प्रयोग है। यह हिंदी फिल्‍मों की बंधी-बंधायी परिपाटी का पालन नहीं करती। कहानी और किरदारों में नयापन है। उनके रवैए और इरादों में पैनापन है। यह बदले की कहानी नहीं है। यह इंसाफ की लड़ाई है। भारतीय समाज और हिंदी फिल्‍मों में इंसाफ का मतलब ‘ आंख के बदले आंख निकालना ’ रहा है। दर्शकों को इसमें म...

गीत गाया आत्‍मा से : अमिताभ बच्‍चन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अमिताभ बच्‍चन फिर से बंगाली बुजुर्ग की भूमिका में नजर आएंगे। पिछले साल ‘ पीकू ’ में उनकी भूमिका को दर्शकों और समीक्षकों की सराहना मिली। इसी भूमिका के लिए उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार भी मिला। इस बार वे रिभु दासगुप्‍ता की फिल्‍म ‘ तीन ’ में बंगाली कैथोलिक जॉन विश्‍वास की भूमिका में नजर आएंगे। इस फिल्‍म की शूटिंग पूरी तरह से कोलकाता में की गई है। विवादों के बीच बगैर अपना संयम और धैर्य खोए अमिताभ बच्‍चन अपनी कलात्‍मक धुन में लीन रहते हैं। उनके ट्वीट और ब्‍लॉग गवाह हैं कि उन्‍होंने प्रशंसकों से जुड़े रहने का आधुनिक तरीका साध लिया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय ट्वीटर पर उनके फॉलोअर की संख्‍या 2 करोड़ 10 लाख 23 हजार 542 है। -सहज जिज्ञासा होती है कि सोशल मीडिया पर आप की सक्रियता किसी रणनीति और योजना के तहत है क्‍या ? 0 मुझे लोगों से जुड़े रहना अच्‍छा लगता है। मेरे चाहने वालों में जो बचे-खुचे हैं, उनसे बातें हो जाती हैं। आम तौर पर सोशल मीडिया की अपडेटिंग मैं रात में करता हूं। दिन भर की जो भी बातें हैं, उसे लिखता हूं। या रात में साे...

फिल्‍म समीक्षा : वज़ीर

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चुस्‍त और रोमांचक -अजय ब्रह्मात्‍मज        अमिताभ बच्‍चन को पर्दे पर मुक्‍त भाव से अभिनय करते देखना अत्‍यंत सुखद अनुभव होता है। ‘ वजीर ’ देखते हुए यह अनुभव गाढ़ा होता है। निर्देशक बिजॉय नांबियार ने उन्‍हें भरपूर मौका दिया है। फिल्‍म देखते हुए ऐसा लगता है कि निर्देशक ने उन्‍हें टोकने या रोकने में संकोच किया है। अदाकारी की उनकी शोखियां अच्‍छी लगती हैं। भाषा पर पकड़ हो और शब्‍दों के अर्थ आप समझते हों तो अभिनय में ऐसी मुरकियां पैदा कर सकते हैं। फरहान अख्‍तर भी फिल्‍म में प्रभावशाली हैं। अगर हिंदी बोलने में वे भी सहज होते तो यह किरदार और निखर जाता। भाषा पर पकड़ और अभिनय में उसके इस्‍तेमाल के लिए इसी फिल्‍म में मानव कौल को भी देख सकते हैं। अभी हम तकनीक और बाकी प्रभावों पर इतना गौर करते हैं कि सिनेमा की मूलभूत जरूरत भाषा को नजरअंदाज कर देते हैं। इन दिनों हर एक्‍टर किरदारों के बाह्य रूप पर ही अधिक मेहनत करते हैं।                       ...

अहंकार की स्पेलिंग मुझे नहीं मालूम : अमिताभ बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  -‘पीकू’ को लोगों का बेशुमार प्यार मिला। आप के संग-संग आप के सहयोगी कलाकारों का परफॉरमेंस भी काफी सराहा और स्वीकार किया गया। क्या इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद थी? नहीं, बिल्कुल नहीं। हमें तो किसी फिल्म से उम्मीद नहीं रहती। फिर भी कहीं न कहीं इसकी उम्मीद जरूर थी कि जिस तरह की साधारण कहानी है, उसकी सरलता अगर लोगों को अपनी जिंदगी से ही संबंधित लगे तो एक तसल्ली होगी। बहरहाल, जब फिल्म बन रही थी तो उतनी उम्मीद नहीं थी, लेकिन लोगों ने इसे जिस तरह अपनाया है और जिस किसी ने इसकी प्रशंसा की। हमसे बातें की, सबने यही कहा कि सर आपने हमारी जिंदगी का ही एक टुकड़ा निकाल कर दर्शाया है। कोई कह रहा है उन्हें उनके दादाजी की याद आ गई तो कोई कह रहा उन्हें उनके नानाजी की याद आ गई। बहुत सी लड़कियां कह रही हैं कि उन्हें उनके पिताजी की याद आ रही है। यानी कहीं न कहीं एक घनिष्ठता सी बन गई है। -कई लोगों को भास्कोर में अपने पिताजी और  दादाजी महसूस हुए हैं? जी बिल्कुल। ऐसा हर परिवार में होता है। अच्छी बात यह कि फिल्म के तार परिवार से जुड़ गए हैं। हमें तो बड़ी खुशी है कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच...

फिल्‍म समीक्षा : पीकू

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-अजय ब्रह्मात्‍म्‍ाज  **** चार स्‍टार  कल शाम ही जूही और शूजीत की सिनेमाई जुगलबंदी देख कर लौटा हूं। अभिभूत हूं। मुझे अपने पिता याद आ रहे हैं। उनकी आदतें और उनसे होने वाली परेशानियां याद आ रही हैं। उत्तर भारत में हमारी पीढ़ी के लोग अपने पिताओं के करीब नहीं रहे। बेटियों ने भी पिताओं को अधिक इमोशनल तवज्जो नहीं दी। रिटायरमेंट के बाद हर मध्यीवर्गीय परिवार में पिताओं की स्थिति नाजुक हो जाती है। आर्थिक सुरक्षा रहने पर भी सेहत से संबंधित रोज की जरूरतें भी एक जिम्मेदारी होती है। अधिकांश बेटे-बेटी नौकरी और निजी परिवार की वजह से माता-पिता से कुढ़ते हैं। कई बार अलग शहरों मे रहने के कारण चाह कर भी वे माता-पिता की देखभाल नहीं कर पाते। 'पीकू' एक सामान्य बंगाली परिवार के बाप-बेटी की कहानी है। उनके रिश्ते को जूही ने इतनी बारीकी से पर्दे पर उतारा है कि सहसा लगता है कि अरे मेरे पिता भी तो ऐसे ही करते थे। ऊपर से कब्जियत और शौच का ताना-बाना। हिंदी फिल्मों के परिप्रेक्ष्य में ऐसी कहानी पर्दे पर लाने की क्रिएटिव हिम्मत जूही चतुर्वेदी और शूजीत सरकार ने दिखाई है। 'विकी डोनर' के बाद एक बार ...

षमिताभ में अमिताभ के साथ धनुष

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-अजय ब्रह्मात्मज     धनुष की दूसरी हिंदी फिल्म ‘षमिताभ’ वास्तव में उनकी 28वीं फिल्म है। अभिनय के लिए 2011 में राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके धनुष तमिल फिल्मों के चर्चित और प्रतिष्ठित अभिनेता हैं। इसी साल तमिल में उनकी पांच फिल्में प्रदर्शित होंगी। 2002 से तमिल फिल्मों में सक्रिय धनुष का नाम वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा है। तमिल के बाहर के दर्शकों ने उन्हें एकबारगी 16 नवंबर 2011 को जाना। उस दिन उनका गाया ‘ह्वाई दिस कोलावरी डी’ यूट्यूब के जरिए सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और पूरा देश उनकी धुन में गुनगुनाता नजर आया। यह उसी दिन तय हो गया था कि जल्दी से जल्दी कोई हिंदी फिल्मकार उन्हें अपनी फिल्म के लिए चुनेगा। आनंद राय ने उन्हें ‘रांझणा’ में बनारसी लडक़े का किरदार दिया तो सभी चौंके,लेकिन फिल्म देखने के बाद पता चला कि वे बनारस के तमिल परिवार के लडक़े कुंदन की भूमिका में थे। ‘रांझणा’ की कामयाबी से उन्हें हिंदी दर्शकों ने पहचाना। उसके बाद से लगातार उनकी अगली हिंदी फिल्म की खबरें आ रही थीं। एक बार फिर उन्होंने चौंकाया। इस बार उन्हें आर बाल्की के निर्देशन में बनी ‘षमिताभ’ में अमिताभ बच...