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Showing posts with the label अनुराग कश्‍यप

भोजपुरी फिल्मों का होगा भाग्योदय - अमित कर्ण

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अनुराग कश्‍यप की दस्तक से सिने तबके में उत्साह अनुराग कश्य्प ने भोजपुरी फिल्म निर्माण में भी उतरने का ऐलान किया है। उनकी फिल्म का नाम ‘मुक्काबाज’ है। ऐसा पहली बार है, जब हिंदी की मुख्यधारा का नामी फिल्मकार भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में कदम रखेगा। जाहिर तौर पर इससे भोजपुरी फिल्म जगत में उत्साह की लहर है। अनुराग कश्यप के आने से वे भोजपुरी फिल्मों के फलक में अप्र याशित इजाफे की उम्मीद कर रहे हैं। खुद अनुराग कश्यप कहते हैं, ‘फिल्मों के राष्ट्री य पुरस्कार में भोजपुरी फिल्मों का नाम भी नहीं लिया जाता। सभी की शिकायत रही है कि भोजपुरी में स्तरीय फिल्म नहीं बन रही है। मैं अभी कोई दावा तो नहीं कर सकता, लेकिन मैं पूरे गर्व के साथ अपनी पहली भोजपुरी फिल्म बना रहा हूं।‘   अब बदलेगी छवि भोजपुरी फिल्में आज तक अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करने में नाकाम रहा है, जबकि मराठी, पंजाबी व अन्य प्रांत की भाषाओं में फिल्में लगातार विस्तार हासिल कर रही हैं। भोजपुरी जगत पर सस्ती, बिकाऊ, उत्तेजक, द्विअर्थी कंटेंट वाली फिल्में बनाने के आरोप लगते रहे हैं। यह लांछन भी सामाजिक सरोकार की ...

उदासियों के वो पांच दिन- विक्‍की कोशल

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-अमित कर्ण विक्की कौशल नवोदित कलाकार हैं। उन्होंने अब तक दो फिल्में ‘मसान’ व ‘जुबान’ की हैं। दोनों दुनिया के प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल की शान रही है। ‘मसान’ के बाद अब उनकी ‘रमन राघव 2 .0 ’ भी कान फिल्म फेस्टिवल में चयनित हुई है। - कभी ऐसा ख्‍याल आता है कि क्यों ने फ्रांस में बस जाऊं। नहीं ऐसे विचार मन में कभी नहीं आते हैं। वहां गया या बसा भी तो कुछ दिनों बाद ही मुझे घर की दाल चाहिए होगी, जो वहां तो मिलने से रही। हां, वहां की आबोहवा मुझे पसंद है। उसमें रचनात्‍मकता घुली हुई है। लगता है वहां के लोग पैदाइशी रचनात्‍मक होते हैं। कान में पिछली बार ‘मसान’ के लिए जब नाम की घोषणा हुई तो लगा कि कदम जमीं पर नहीं हैं। दोनों के बीच कुछ पनीली सी चीज है, जिस पर तैरता हुआ मैं मंच तक जा रहा हूं। वह पल व माहौल सपना सा लगने लगा था। सिनेमा को बतौर क्राफ्ट वहां बड़ी गंभीरता से लिया जाता है। वहां सिने प्रेमियों को एक मुकम्मल व प्रतिस्पर्धी सिने माहौल दिया जाता है। -वहां फिल्मों की प्रीमियर के बाद क्या कुछ होता है। विश्‍वसिनेमा के विविधभाषी फिल्मकार कैसे संवाद स्‍थापित करते हैं। प्रीमियर ...

फिल्‍म समीक्षा : बॉम्‍बे वेल्‍वेट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज स्टार : 4.5 हिंदी सिनेमा में इधर विषय और प्रस्तुति में काफी प्रयोग हो रहे हैं। पिछले हफ्ते आई ‘पीकू’ दर्शकों को एक बंगाली परिवार में लेकर गई, जहां पिता-पुत्री के बीच शौच और कब्जियत की बातों के बीच ही जिंदगी और डेवलपमेंट से संबंधित कुछ मारक बातें आ जाती हैं। फिल्म रोजमर्रा जिंदगी की मुश्किलों में ही हंसने के प्रसंग खोज लेती है। इस हफ्ते अनुराग कश्यप की ‘बॉम्बे वेल्वेट’ हिंदी सिनेमा के दूसरे आयाम को छूती है। अनुराग कश्यप समाज के पॉलिटिकल बैकड्राप में डार्क विषयों को चुनते हैं। ‘पांच’ से ‘बॉम्बे वेल्वेट’ तक के सफर में अनुराग ने बॉम्बे के किरदारों और घटनाओं को बार-बार अपनी फिल्मों का विषय बनाया है। वे इन फिल्मों में बॉम्बे को एक्स प्लोर करते रहे हैं। ‘बॉम्बे वेल्वेेट’ छठे दशक के बॉम्बे की कहानी है। वह आज की मुंबई से अलग और खास थी। अनुराग की ‘बॉम्बे वेल्वेट’ 1949 में आरंभ होती है। आजादी मिल चुकी है। देश का बंटवारा हो चुका है। मुल्तान और सियालकोट से चिम्मंन और बलराज आगे-पीछे मुंबई पहुंचते हैं। चिम्मन बताता भी है कि दिल्ली जाने वाली ट्रेन में लोग कट रहे थे, इसलिए वह ब...

बॉम्‍बे वेल्‍वेट : यों रची गई मुंबई

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    पीरियड फिल्मों में सेट और कॉस्ट्यूम का बहुत महत्व होता है। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ में इनकी जिम्मेदारी सोनल सावंत और निहारिका खान की थी। दोनों ने अपने क्षेत्रों का गहन रिसर्च किया। स्क्रिप्ट को ध्यान में रखकर सारी चीजें तैयार की गईं। पीरियड फिल्मों में इस पर भी ध्यान दिया जाता है कि परिवेश और वेशभूषा किरदारों पर हावी न हो जाएं। फिल्म देखते समय अगर यह फील न हो कि आप कुछ खास डिजाइन या बैकग्राउंड को देख रहे हैं तो वह बेहतर माना जाता है। अनुराग कश्यप ने ‘ब्लैक फ्राइडे’ और ‘गुलाल’ में भी पीरियड पर ध्यान दिया था, पर दोनों ही फिल्में निकट अतीत की थीं। ‘बॉम्बे वेल्वेट’ में उन्हें  पांचवें और छठे दशक की मुंबई दिखानी थी। सड़क और इमारतों के साथ इंटीरियर, पहनावा, गीत-संगीत, भाषा पर भी बारीकी से ध्यान देना था।     निहारिका खान की टीम में आठ सदस्य थे। उन्होंने रेफरेंस के लिए आर्काइव, लायब्रेरी, वेबसाइट, पुरानी पत्र-पत्रिकाएं और परिचितों के घरों के प्रायवेट अलबम का सहारा लिया। रोजी, खंबाटा, जॉनी बलराज और जिमी मिस्त्री जैसे मुख्य किरदारों के साथ ही चिम...

प्रशंसकों को थैंक्यू बोल कर आगे बढ़ना पड़ता है-अनुराग कश्यप

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-अजय ब्रह्मात्‍मज - बाॅम्बे वेलवेट के पूरे वेंचर को आप कैसे देख पा रहे हैं? इस फिल्म के जरिए हम जिस किस्म की दुनिया व बांबे क्रिएट करना चाहते थे, उसमें हम सफल रहे हैं। फैंटम समेत मुझ से जुड़े सभी लोगों के लिए यह बहुत बड़ी पिक्चर है। इस फिल्म के जरिए हमारा मकसद दर्शकों को छठे दशक के मुंबई में ले जाना है। लोगों को लगे कि वे उस माहौल में जी रहे हैं। लिहाजा उस किस्म का माहौल बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है। -इस तरह की फिल्म हिंदी में रही नहीं है। जैसा बाॅम्बे आपने फिल्म में क्रिएट किया है, उसका कोई रेफरेंस प्वॉइंट भी नहीं रहा है..? बिल्कुल सही। हम लोगों को शब्दों में नहीं समझा सकते कि फिल्म में किस तरह की दुनिया क्रिएट की गई है। पता चले हम लोगों को कुछ अच्छी चीज बताना चाहते हैं, लोग उनका कुछ और मतलब निकाल लें। बेहतर यही है कि लोग ट्रेलर और फिल्म देख खुद महसूस करें कि हमने क्या गढ़ा है? बेसिकली यह एक लव स्टोरी है... -... पर शुरू में आप का आइडिया तीन फिल्में बनाने का था? वह अभी भी है। यह बनकर निकल जाए तो बाकी दो पाइपलाइन में हैं। इत्तफाकन तीनों कहानियों में कॉमन फैक्टर  शहर बाम्बे और ...

बाम्‍बे वेलवेट,अनुराग और युवा फिल्‍मकारों पर वासन बाला

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अनुराग तो वह चिंगारी हैं,जो राख में भी सुलगते रहते हैं। मौका मिलते ही वे सुलगते और लहकते हैं। उनकी क्रिएटिविटी की धाह सभी महसूस करते हें। 15 मई को उनकी नई फिल्‍म बाम्‍बे वेलवेट   रिलीज होगी। हम यहां उनके सहयात्री और सपनों के साथी वासन बाला का इंटरव्‍यू दे रहे हैं।  -कहा जा रहा है कि अनुराग कश्‍यप जिनके खिलाफ थे,उनसे ही उन्‍होंने हाथ मिला लिया है। अनुराग के विकास और प्रसार को लेकर अनेक धारणाएं चल रही हैं। स्‍वयं अनुराग ने चंद इंटरव्‍यू में अपनी ही बातों के विपरीत बातें कीं। आप क्‍या कहेंगे ? 0 अनुराग कश्‍यप का कहना था कि जिनके पास संसाधन हैं,वे कंटेंट को चैलेंज नहीं कर रहे हैं। अनुराग संसाधन मिलने पर उस कंटेट को चैलेंज कर रहे हैं। बाम्‍बे वेलवेट का माहौल,कंटेंट,कैरेक्‍टर और पॉलिटिक्‍स देखने के बाद आप मानोगे कि वे जो पहले बोल रहे थे,अब उन्‍हीं पर अमल कर रहे हैं।   उन्‍हें संसाधन मिले हैं तो वे उसका सदुपयोग कर रहे हैं। हमलोंग हमेशा कहते रहे हैं कि कमर्शियल सिनेमा में दिखावे के लिए फिजूलखर्ची होती है। किसी गृहिणी का आठ लाख की साड़ी पहनाने का क्‍या मतलब है ? वे इन...

फिल्‍म समीक्षा : अग्‍ली

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- अजय ब्रह्मात्‍मज  अग्ली अग्ली है सब कुछ अग्ली अग्ली हैं सपने अग्ली अग्ली हैं अपने अग्ली अग्ली हैं रिश्ते अग्ली अग्ली हैं किस्तें अग्ली अग्ली है दुनिया अब तो बेबी सबके संग हम खेल घिनौना खेलें मौका मिले तो अपनों की लाश का टेंडर ले लें बेबी लाश का टेंडर ले लें क्योंकि अग्ली अग्ली है सब कुछ।     अनुराग कश्यप की फिल्म 'अग्ली' के इस शीर्षक गीत को चैतन्य की भूमिका निभा रहे एक्टर विनीत कुमार सिंह ने लिखा है। फिल्म निर्माण और अपने किरदार को जीने की प्रक्रिया में कई बार कलाकार फिल्म के सार से प्रभावित और डिस्टर्ब होते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही भूमिका निभाने की उधेड़बुन को यों प्रकट कर पाते हैं। दरअसल, इस गीत के बोल में अनुराग कश्यप की फिल्म का सार है। फिल्म के थीम को गीतकार गौरव सोलंकी ने भी अपने गीतों में सटीक अभिव्यक्ति दी है। वे लिखते हैं, जिसकी चादर हम से छोटी, उसकी चादर छीन ली, जिस भी छत पर चढ़ गए हम, उसकी सीढ़ी तोड़ दी...या फिल्म के अंतिम भाव विह्वल दृश्य में बेटी के मासूम सवालों में उनके शब्द संगदिल दर्शकों के सीने में सूइयों की तरह चुभते...

अग्‍ली के लिए लिखे गौरव सोलंकी के गीत

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अनुराग कश्‍यप की फिल्‍म अग्‍ली के गीत गौरव सोलंकी ने लिखे हैं। मेरा सामान उनके ब्‍लाग्‍ा का नाम है। उन्‍हें आप फेसबुक और ट्विटर पर भी पा सकते हैं। खुशमिजाज गौरव सोलंकी मुंबइया लिहाज से सोशल नहीं हैं,लेकिन वे देश-दुनिया की गतिविधियों से वाकिफ रहते हैं। इन दिनों वे एडवर्ल्‍ड में आंशिक रूप से सक्रिय हैं। और एक फिल्‍म स्क्रिप्‍ट भी लिख रहे हैं। प्रस्‍तुत हैं अग्‍ली के गीत... सूरज है कहां सूरज है कहाँ ,  सर में आग रे ना गिन तितलियां ,  अब चल भाग रे मेरी आँख में   लोहा है क्या मेरी रोटियों में काँच है गिन मेरी उंगलियां क्या पूरी पाँच हैं ये मेरी बंदूक देखो, ये मेरा संदूक है घास जंगल जिस्म पानी  कोयला मेरी भूख हैं   चौक मेरा गली मेरी,  नौकरी वर्दी मेरी   धूल धरती सोना रद्दी,  धूप और सर्दी मेरी   मेरी पार्किंग है,  ये मेरी सीट है तेरा माथा है ,  ये मेरी ईंट है तेरी मिट्टी से मेरी मिट्टी तक आ रही हैं जो ,  सारी रेलों से रंग से ,  तेरे रिवाज़ों से तेरी बोली से ,  तेरे मेलों से कीलें चुभती हैं च...

अनुराग कश्‍यप का युद्ध

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तिग्‍मांशु धूलिया- ये क्षेत्र जो है ,हमारा है। यहां पर आप को हमारे तरीके से रहना होगा। अमिताभ बच्‍चन- ये खेल अब आप को मेरी तरह ही खेलना होगा। सोनी टीवी के आगामी धारावाहिक 'युद्ध' के संवाद...इसे अनुराग कश्‍यन निर्देशित कर रहे है। इसमें नवाज और केके भी है।

मिली बारह साल पुरानी डायरी

कई बार सोचता हूं कि नियमित डायरी लिखूं। कभी-कभी कुछ लिखा भी। 2001 की यह डायरी मिली। आप भी पढ़ें।  30-7-2001       आशुतोष राणा राकेशनाथ (रिक्कू) के यहां बैठकर संगीत शिवन के साथ मीटिंग कर रहे थे। संगीत शिवन की नई फिल्म की बातचीत चल रही है। इसमें राज बब्बर हैं। मीटिंग से निकलने पर आशुतोष ने बताया कि बहुत अच्छी स्क्रिप्ट है। जुहू में रिक्कू का दफ्तर है। वहीं मैं आ गया था। रवि प्रकाश नहीं थे।       आज ऑफिस में बज (प्रचार एजेंसी) की विज्ञप्ति आई। उसमें बताया गया था कि सुभाष घई की फिल्म इंग्लैंड में अच्छा व्यापार कर रही है। कुछ आंकड़े भी थे। मैंने समाचार बनाया ‘ बचाव की मुद्रा में हैं सुभाष घई ’ । आज ही ‘ क्योंकि सास भी कभी बहू थी ’ का समाचार भी बनाया।       रिक्कू के यहां से निकलकर हमलोग सुमंत को देखने खार गए। अहिंसा मार्ग के आरजी स्टोन में सुमंत भर्ती हैं। उनकी किडनी में स्टोन था। ऑपरेशन सफल रहा , मगर पोस्ट ऑपरेशन दिक्कतें चल रही हैं। शायद कल डिस्चार्ज करें। अब हो ही जाना चाहिए ? काफी लंबा मामला...

फिल्‍म समीक्षा : बॉम्‍बे टाकीज

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- अजय ब्रह्मात्‍मज  भारतीय सिनेमा की सदी के मौके पर मुंबई के चार फिल्मकार एकत्रित हुए हैं। सभी हमउम्र नहीं हैं, लेकिन उन्हें 21वीं सदी के हिंदी सिनेमा का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। फिल्म की निर्माता और वायकॉम 18 भविष्य में ऐसी चार-चार लघु फिल्मों की सीरिज बना सकते हैं। जब साधारण और घटिया फिल्मों की फ्रेंचाइजी चल सकती है तो 'बॉम्बे टाकीज' की क्यों नहीं? बहरहाल, यह इरादा और कोशिश ही काबिल-ए-तारीफ है। सिनेमा हमारी जिंदगी को सिर्फ छूता ही नहीं है, वह हमारी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है। भारतीय संदर्भ में किसी अन्य कला माध्यम का यह प्रभाव नहीं दिखता। 'बॉम्बे टाकीज' करण जौहर, दिबाकर बनर्जी, जोया अख्तर और अनुराग कश्यप के सिनेमाई अनुभव की संयुक्त अभिव्यक्ति है। चारों फिल्मों में करण जौहर की फिल्म सिनेमा के संदर्भ से कटी हुई है। वह अस्मिता और करण जौहर को निर्देशकीय विस्तार देती रिश्ते की अद्भुत कहानी है। करण जौहर - भारतीय समाज में समलैंगिकता पाठ, विमर्श और पहचान का विषय बनी हुई है। यह लघु फिल्म अविनाश के माध्यम से समलैंगिक अस्मिता को रेखांकित करने के साथ उसे समझ...

फिल्‍मकार अनुराग कश्‍यप की अविनाश से बातचीत

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नया सिनेमा छोटे-छोटे गांव-मोहल्‍लों से आएगा अनुराग कश्‍यप ऐसे फिल्‍मकार हैं, जो अपनी फिल्‍मों और अपने विचारों के चलते हमेशा उग्र समर्थन और उग्र विरोध के बीच खड़े मिलते हैं। हिंसा-अश्‍लीलता जैसे संदर्भों पर उन्‍होंने कई बार कहा है कि इनके जिक्र को पोटली में बंद करके आप एक परिपक्‍व और उन्‍मुक्‍त और विवेकपूर्ण दुनिया का निर्माण नहीं कर सकते। हंस के लिए यह बातचीत हमने दिसंबर में ही करना तय किया था, पर शूटिंग की उनकी चरम व्‍यस्‍तताओं के बीच ऐसा संभव नहीं हो पाया। जनवरी के पहले हफ्ते में सुबह सुबह यह बातचीत हमने घंटे भर के एक सफर के दौरान की। इस बातचीत में सिर्फ सिनेमा नहीं है। बिना किसी औपचारिक पृष्‍ठभूमि के हम राजनीति से अपनी बात शुरू करते हैं, सिनेमा, साहित्‍य और बाजार के संबंधों को समझने की कोशिश करते हैं। इसे आप साक्षात्‍कार न मान कर, राह चलते एक गप-शप की तरह लेंगे, तो ये बातचीत सिनेमा के पार्श्‍व को समझने में हमारी मददगार हो सकती है: अविनाश ____________________________________________________________________ पिछली सदी के नौवें दशक के बाद देश में जो नया राजनीतिक माह...