सिनेमालोक : हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी
सिनेमालोक
हर तरह की फ़िल्में लिखने में सिद्धहस्त जावेद सिद्दीकी
-अजय ब्रह्मात्मज
कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से 14 मार्च को निश्चित फिल्मों
का एक पुरस्कार समारोह मुंबई में नहीं हो सका. इस बार 8 भाषाओं में पांच (फिल्म,
निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री और लेखक) श्रेणियों के साथ फिल्मों में असाधारण
योगदान के लिए भी प्रतिभाओं को सम्मानित करना था. समारोह नहीं हो पाने की स्थिति
में इन पुरस्कारों से अधिकांश दर्शक और फिल्मप्रेमी वाकिफ नहीं हो सके.
संक्षेप में फिल्म समीक्षकों की राष्ट्रीय संस्था फिल्म
क्रिटिक्स गिल्ड हर साल शॉर्ट फिल्म और फीचर फिल्मों के लिए पुरस्कार देती है. 2019
के लिए दूसरे साल में 8 भाषाओं की श्रेष्ठ फिल्म और प्रतिभाओं पर विचार किया गया. अगले
साल भाषाओं की संख्या बढ़ सकती है. कोशिश है कि यह अखिल भारतीय पुरस्कार के तौर पर
स्वीकृत हो.
बहरहाल, फिल्मों में असाधारण योगदान के लिए इस साल लेखक जावेद
सिद्दीकी के नाम पर सभी समीक्षक एकमत हुए थे. जावेद सिद्दीकी ने अभी तक 80 से अधिक फिल्में लिखी
हैं, लेकिन उनके प्रचार प्रिय नहीं होने की वजह से फिल्मों के दर्शक उनके बारे में
विस्तार से नहीं जानते. अगर उनकी लिखी और लेखन सहयोग से बनी फिल्मों का उल्लेख
करें तो ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘बाजीगर’, ’डर’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’, ‘उमराव
जान’ और ‘चक्र’ आदि के नाम लिए जा सकते हैं. इन फिल्मों से जावेद सिद्दीकी के लेखन
की विविधता और परतों का पता चलता है. इनमें आर्ट, पैरेलल और कमर्शियल हर तरह की
फिल्में शामिल है. पिछली सदी के आखिरी दशक के महत्वपूर्ण फिल्मों के साथ किसी न
किसी रूप में जावेद सिद्दीकी का नाम जुड़ा मिलेगा.
जावेद सिद्दीकी का संबंध उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर से रहा
है. खिलाफत आंदोलन में सक्रिय अली बंधुओं से उनका पारिवारिक रिश्ता था. रामपुर से
ग्रेजुएट करने के बाद जावेद मुंबई आए तो उन्होंने आरंभिक दिनों में पत्रकारिता की.
‘खिलाफत दिली’, ‘इंकलाब’ और ‘हिंदुस्तान’ जैसे अखबारों के अनुभव के बाद उन्होंने
खुद भी एक अखबार ‘उएदु रिपोर्टर’ निकाला. उर्दू के जानकार और साहित्यिक रुचि के
जावेद सिद्दीकी आरंभ से ही लेखन में विशेष दखल रखते थे. उनकी इस प्रतिभा से मशहूर
लेखिका शमा जैदी परिचित थीं. दोनों रामपुर के जमाने से एक-दूसरे को जानते थे.
सत्यजीत राय ने प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर फिल्म
की योजना बनाई तो उन्हें राइटिंग टीम के लिए नई प्रतिभाओं की जरूरत पड़ी. सत्यजीत
राय चाहते थे कि नई सोच और मुहावरों के साथ रवायत और तहजीब का ख्याल रखते हुए कोई
संवाद लिखे. प्रेमचंद का आशय भी बरकरार रहे और फिल्म की जरूरतें भी पूरी हों. बहुत
कम लोगों को मालूम है कि ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के संवादों के लिए कैफी आजमी और गुलजार
के भी नाम भी आए थे. फिल्म के लेखन से जुड़ी शमा जैदी ने जब जावेद सिद्दीकी का नाम
सुझाया तो सत्यजीत राय ने बाकायदा उनकी परीक्षा ली. संतुष्ट होने के बाद उन्होंने
संवाद लेखन के साथ ही संवाद अदायगी की परख और निर्देश की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी
जावेद सिद्दीकी को सौंप दी. यूनिट में लगातार रहने पर जावेद सिद्दीकी ने अन्य
विभागों में अपनी जानकारी शेयर की. इस फिल्म के दौरान ही जावेद सिद्दीकी और शमा
जीडी की जोड़ी बनी. दोनों ने बाद में अनेक फिल्में एक साथ लिखीं.
जावेद सिद्दीकी ने खुद को आर्ट फिल्मों तक ही सीमित नहीं रखा.
उन्होंने शाह रुख खान की पहली सफल और चर्चित फिल्म ‘बाजीगर’ लिखी. उन दिनों ही
उन्हें यश चोपड़ा की फिल्म ‘चांदनी’ से जुड़ने का मौका मिला और फिर ‘डर’ लिखने के
लिए मिली. ‘डर’ में सनी देओल के सामने नेगेटिव भूमिका निभाने के लिए जब आमिर खान
और अजय देवगन ने मना कर दिया तो जावेद सिद्दीकी ने ही यश चोपड़ा को शाह रुख खान का
नाम सुझाया था. शाह रुख खान इसका जिक्र भी करते हैं, लेकिन फिर से वही बात...
जावेद सिद्दीकी ने कभी इस प्रसंग की विशेष चर्चा नहीं की. उन्होंने आदित्य चोपड़ा
के निर्देशन में बनी ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ के संवाद लेखन में अतिरिक्त
सहयोग दिया. इस फिल्म का प्रसिद्ध संवाद ‘बड़े-बड़े देशों में ऐसी छोटी-छोटी बातें
होती रहती हैं’ उन्हीं का लिखा हुआ है.
जावेद सिद्दीकी का नाट्य लेखन में भी एक खास स्थान है. वह इप्टा
के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष रहे. उन्होंने ‘तुम्हारी अमृता’, ‘सालगिरह’, ‘बेगम जान’, ‘आपकी
सोनिया’ और ‘कच्चे लम्हे’ जैसे अनेक नाटक लिखे. अपने जीवन में आए व्यक्तित्वों को
याद करते हैं हुए उन्होंने ‘रोशनदान’ में खूबसूरत संस्मरण लिखे हैं. उर्दू से
अनूदित होकर हिंदी में प्रकाशित होने पर यह पुस्तक काफी चर्चित हुई.
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