सिनेमालोक : कामयाब संजय मिश्रा
सिनेमालोक
कामयाब संजय मिश्रा
अजय ब्रह्मात्मज
जल्दी ही संजय मिश्रा अभिनीत 'कामयाब' रिलीज होगी.हार्दिक मेहता के निर्देशन
में बनी इस फिल्म की चर्चा 2018
से हो रही है. इस फिल्म में संजय
मिश्रा नायक सुधीर की भूमिका निभा रहे हैं. सुधीर ने 499 फिल्में कर ली हैं.
अब वह 500वीं फिल्में करना चाहता है. सुधीर की इस महात्कावाकांक्षा का
चित्रण करने में उसकी जिंदगी के पन्ने पलटते हैं. हम सुधीर के जरिए सिनेमा के उन
कलाकारों को जान पाते हैं, जिन्हें एक्स्ट्रा कहा जाता है. 'कामयाब' एक एक्स्ट्रा की एक्स्ट्राऑर्डिनरी
कहानी है. फिल्मों में बार-बार दिखने से ये परिचित चेहरे तो बन जाते हैं, लेकिन उनके बारे
में हम कुछ नहीं जानते. दर्शकों की अधिक रूचि नहीं होती और मीडिया को लोकप्रिय
सितारों से फुर्सत नहीं मिलती. इस फिल्म को शाह रुख खान की कंपनी रेड चिलीज पेश कर
रही है और इसका निर्माण दृश्यम फिल्म्स ने किया है.
संजय मिश्रा सुपरिचित चेहरा बन चुके हैं. उनके बारे में अलग से
बताने की जरूरत नहीं होती. फिल्मों में उनकी मौजूदगी से दर्शकों के बीच खुशी की
लहर दौड़ जाती है. मैंने तो देखा और लिखा है कि कमर्शियल फिल्मों में पॉपुलर स्टार
के बीच भी वे अपनी शख्सियत और काबिलियत से प्रभावित करते हैं. दर्शकों को पर्दे पर
उनका उनका इंतजार रहता है. अजय देवगन और शाह रुख खान की फिल्मों में मैंने उनके
प्रति दर्शकों की उत्तेजना देखी है. अभिनेता संजय मिश्रा हिंदी सिनेमा के पर्दे पर
अनेक रूपों में नजर आते हैं. फ़िल्मों में आने के पहले उन्होंने छोटे पर्दे पर
लंबी पारी खेली है. फिल्मों से मिली पहचान के बाद उन्होंने टीवी शोज छोड़ दिए हैं.
इधर वे लगातार फिल्मों में दिख रहे हैं. अलग-अलग भूमिकाओं में जंच रहे हैं. पिछले
दिनों ओम राउत की फिल्म 'तान्हाजी' में नैरेटर के रूप में उनकी आवाज सुनाई पड़ी.
संजय मिश्रा की पढ़ाई-लिखाई बनारस में हुई. उनका बिहार से भी
रिश्ता रहा है और है. दिल्ली में एनएसडी में दाखिला लिया तो इरफान और तिग्मांशु
धूलिया उनके सहपाठी बने. मुंबई में पहचान बनाने में उन्हें समय लगा. लंबे अभ्यास
के बाद उन्होंने खुद को साधा और फिर ऐसी अचूक पहचान बनाई है कि वह श्रेष्ठ अभिनय
के भरोसेमंद अभिनेता के तौर पर उभरे हैं. फिल्मों में उन्होंने भूमिकाओं के चुनाव
में अनोखा संतुलन बना रखा है. कमर्शियल फिल्मों में सहयोगी भूमिका निभाने में
उन्हें झेंप नहीं होती. सीमित बजट की 'आउट ऑफ बॉक्स' फिल्मों में वे
अपने हमउम्र किरदारों को बड़ी सहजता से निभाते हैं. उनकी छवि हास्य अभिनेता की बना
दी गई है, लेकिन उनकी प्रशंसित फिल्मों पर गौर करें तो वह सिद्ध अभिनेता जान
पड़ते हैं. हिंदी फिल्मों में वे विदूषक हों या मध्यवर्गीय प्रौढ़ या खल-छल
चरित्र.... संजय मिश्रा हर तरह की भूमिका में अभिभूत करते हैं.
संजय मिश्रा को मैं कैमरे के सामने के पहले परफॉर्मेंस के समय से
जानता हूं. वह डॉक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी के टीवी शो 'चाणक्य' की भूमिका निभाते
समय न जाने किस वजह से ऐसा अटके कि 28 बार शॉट देना पड़ा. बाद में उन्होंने
डॉक्टर द्विवेदी की फिल्म 'जेड प्लस' में एक खास किरदार निभाया. किरदारों को आत्मसात करने और पर्दे पर
उसे पेश करने का उनका अपना अंदाज और नजरिया है. निर्देशकों के नियंत्रण से भी
निकलते उन्हें देखा है. दरअसल,
प्रशिक्षित अभिनेता कई बार प्रचलित
चलन और मांग के अनुसार सब कुछ स्वीकार नहीं कर पाते. उनका अभिनेता जाग जाता है.
अभिनय का प्रशिक्षण कौंधता है और वह कुछ विशेष व नया करने लगते हैं. लंबे अनुभव से
वे निर्देशन में भी दखल रखते हैं.
संजय मिश्रा ने एक फिल्म निर्देशित की है 'प्रणाम वालेकुम'. यह फिल्म अभी तक
रिलीज नहीं हो सकी है. संगीत और अध्यात्म में संजय मिश्रा की गहरी रुचि है. भोजन
और स्वाद के शौकीन संजय मिश्रा खुद पकाने और खिलाने में आनंदित होते हैं. अभी उनके
व्यक्तित्व और अभिनेता के कई पट अनखुले हैं. उनका अभ्यास और प्रवास जारी है.
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