अवेंजर्स की अद्भुत कामयाबी
अवेंजर्स की अद्भुत कामयाबी
अजय ब्रह्मात्मज
इस समय देश में दो चर्चाएं आम हैं. एक तो हर
कोने-नुक्कड़ में चुनाव की चर्चा चल रही है. और दूसरी चर्चा है ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’
की. रिलीज के वीकेंड में फिल्प्रेमियों इसे देख लिया है. दर्शकों की रुचि और
उत्साह को देखते हुए देश भर के सिनेमाघरों ने इसके अधिकाधिक शो रखे हैं.
अहर्निश(दिन-रात) के शो चल रहे हैं. रात के शो भी हाउसफुल हैं. आलसी दर्शकों को
टिकट नहीं मिल प् रहे हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि शो के टाइम पर आप बॉक्स ऑफिस से
टिकट ले लेंगे तो आप को घोर निराशा हो सकती है. रिलीज के पहले एडवांस से ही संकेत
मिलने लगे थे कि दर्शकों कि बाढ़ से सिनेमाघर आप्लावित होंगे.यही हुआ भी. पहले ही
10 लाख टिकटों की बिक्री से अनुमान पुख्ता हो गया कि ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ की
जबरदस्त ओपनिंग लगेगी. पहले ही दिन इस फिल्म को 53,10 करोड़ का कलेक्शन मिला और
दूसरे दिन के 51.40 के कलेक्शन से ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ ने सफलता का जादुई 100 करोड़
का आंकड़ा पार कर लिया. यह एक नया रिकॉर्ड है,जिसे तोड़ पाना किसी भारतीय फिल्म के
लिए बड़ी चुनौती होगी.
‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ सिर्फ 2865 स्क्रीन में चल
रही है. संख्या के हिसाब से देखें तो कई हिंदी फ़िल्में इससे ज्यादा स्क्रीन के साथ
रिलीज होती हैं. खानत्रयी(आमिर,शाह रुख और सलमान) की अधिकांश फिल्मे लगभग 4000
स्क्रीन में रिलीज होती रही हैं,फिर भी वे ऐसा कलेक्शन जुटाने में पीछे रह गयी
हैं.दर्शकों के उन्माद के साथ इस उल्लेखनीय कलेक्शन कि बड़ी वजह टिकट दर का बढ़ना
है. ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ के टिकट दर दोगुने से ज्यादा कर दिए गए हैं.फिर भी भीड़
टूट पड़ी है, उन्हें 155 का टिकट 350 रुपये में खरीदने में दिक्कत नहीं हो रही है.
‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ उनके लिए पैसा वसूल फिल्म है. उन्हें तीन घंटों का भरपूर
मनोरंजन मिल रहा है. ऊपर से उनके तमाम सुपर हीरो एक साथ एक ही फिल्म में दिख रहे
हैं. कल्पना करें कि किसी हिंदी फिल्म में तीनों खां एक साथ आ जाएं तो दर्शकों का
उत्साह कितने गुने ज्यादा हो जायेगा. अफ़सोस यह है कि निर्देशकों के हहने पर भी ऐसा
नहीं हो प् रहा है. याद होगा कि करण जौहर और रोहित शेट्टी ने ‘राम लखन’ के रीमेक की
घोषणा की थी.अनेक कोशिशों और स्टारों के मनुहारों के बावजूद फिल्म फ्लोर पर नहीं
जा सकी,क्योंकि हर स्टार को लखन की भूमिका चाहिए थी. हिंदी फिल्मों के स्टार का
इगो उनसे आगे चलता है और दूसरों को धकेलता रहता है. ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ में सुपर
हीरो और स्टारों की गिनती कर देख लें. सभी के फैन एकत्रित होकर ‘अवेंजर्स-द
एंडगेम’ का दर्शक समूह बन गए हैं.
मार्वेल सिनेमेटिक यूनिट(एमसीयू) की 21 फिल्मों
के समापन के रूप में आई ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ इस सीरीज के दीवाने दर्शकों के लिए यह
फिल्म देखना अनिवार्य हो गया है. उनके लिए यह चाक्षुष उत्कर्ष है. यही कारण है कि
दर्शक इसे देखने के लिए उतावले हो रहे हैं. एमसीयू की फिल्मों के प्रति शहरी
दर्शकों की दीवानगी बहुत ज्यादा है. हमें गौर करना होगा कि यह फिल्म किस समूह के
दर्शकों को भा रही है. 21वीं सदी में थिएटर जाने वाले दर्शकों का प्रोफाइल बदल
चूका है. पिछली सदी में आरम्भ हुए उदारीकरण और मल्टीप्लेक्स कल्चर के लोकप्रिय
होने के पहले माना जाता था कि निम्न माध्यम वर्ग और मजदूर ही हिंदी फिल्मों के
मुख्य दर्शक हैं. सिनेमा के साथ दर्शकों में भी भरी बदलाव आया है.21वीं सदी के
दर्शकों का प्रोफाइल अलग है. सिंगल स्क्रीन लगातार बंद हो रहे है. कस्बों और छोटे
शहरों के दर्शक सिनेमाघरों से लगातार बहिष्कृत और वंचित हो रहे हैं. उन्होंने अपने
मोबाइल फ़ोन को ही सिनेमाघर बना लिया है. और खुलेआम अवैध तरीके से फ़िल्में देख और
दिखा रहे हैं. निर्माता,वितरक और एजेंसियों को उनकी परवाह नहीं है. उनका सारा जोर
शहरी दर्शकों की रुचि पूरी करने पर रहता है. वे शहरी कमाई से ही संतुष्ट हो जाते हैं.
सरकारी उदासीनता,दर्शकों की कृपणता और वैकल्पिक प्लेटफार्म आ जाने से देश में
सिनेमाघरों की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है. इसके साथ ही इन्टरनेट के
प्रसार और सुविधा से शहरी दर्शकों का बड़ा समूह आम हिंदी फिल्मों से विमुख हो रहा
है. उसकी जीवन शैली और संपर्क भाषा में अंग्रेजी के प्रचलन से हॉलीवुड की फिल्मों
की आमद बढ़ी है. हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ में वह केवल इवेंट और कंटेंट की
फ़िल्में देख लेता है,लेकिन ‘कलंक’ जैसी फिल्मों से धोखा खाने के बाद उसका भरोसा
टूटता है.
संक्राति के इस दौर में ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ जैसी
फ़िल्में भारतीय बाज़ार में सेंधमारी करने में सफल हो जाती हैं. उल्लेखनीय है कि
संतोषजनक मनोरंजन मिले तो दर्शक पैसे खर्च करने को तैयार है. ऊपर से हॉलीवुड के
मार्केटिंग पंडित अपनी फिल्मों की सही पोजिशनिंग के लिए जैम कर खर्च करते हैं. ‘अवेंजर्स-द
एंडगेम’ के प्रचार में जितना खर्च भारतीय बाज़ार में हुआ है,उतने में एक ‘बधाई हो’
या ‘स्त्री’ बन सकती है. उनकी प्रचार रणनीति में फिल्म का स्थानिकीकरण खास महत्व
रखता है. उन्होंने ए आर रहमान जैसी प्रतिभ को संगीत के लिए जोड़ा तो हिंदी,तमिल और
तेलुगू की डबिंग के लिए स्थानीय प्रतिभाओं का इस्तेमाल किया.भारतीय भाषाओँ में
उन्होंने स्क्रिप्ट का पुनर्लेखन किया. स्थानीय चुटकुले,मजाक और सन्दर्भ जोड़े और
भारत के भाषायी दर्शकों के करीब ला दिया.
‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ की रिलीज से कुछ महीने पहले
निर्देशक रूसो बधुओं में से एक भारत आये थे, उन्होंने यहाँ घोषणा की थी कि भारतीय
दर्शक और बाज़ार उनके लिए खास महत्व के हैं. उन्होंने भारतीय फिल्मों से सीखा
है.परिवार,इमोशन और एक्शन के तालमेल से मनोरंजक फिल्म बनाने की उनकी शैली पर
भारतीय प्रभाव है. उन्होंने यहाँ तक कहा कि वे इटली के एक संयुक्त परिवार से हैं.
वे ओअरुवर की भावनाओं को समझते हैं. ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ में पारिवारिक रिश्तों के
चित्रण के मुलायम क्षण हैं. ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ को देखते हुए दर्शकों की आँखें नम
हो रही हैं. अंग्रेजी फिल्मों में इमोशन का ऐसा ज्वार कम होता है.
संक्षेप में भारतीय दर्शक ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ से
खुश और आनंदित हैं.
‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ के हिंदी संस्करण के लेखक
मयूर पूरी से बातचीत ....
-कितने खुश हैं?
0 यह तो चलता रहता है. साल में 2 दिन खुशी के आते हैं, जब फिल्में
रिलीज होती है.
- ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ को लेकर
इतना उत्साह क्यों है और इसे ऐसी जबरदस्त स्वीकृति क्यों मिली है?
0 इसका
प्रचार बहुत ज्यादा था.मार्वेल की फिल्मों के प्रशंसक भारी संख्या में है.ज़िन्दगी
के हर क्षेत्र में कुछ ब्रांड ऐसे होते हैं,जिनकी विश्वसनीयता असंदिग्ध होती
है.उन पर भरोसा होता है. यकीन रहता है कि उनसे अपेक्षाएं पूरी होगी. मार्वेल के
कॉमिक बुक के कैरेक्टर पहले से लोकप्रिय रहे हैं.वे आदर्श अमेरिकी मूल्यों के लिए
जूझते हैं. वे एक यूटोपिया रचते हैं, जिसमें न्याय,आजादी और पारिवारिक संबंध रहते
हैं. सभी एक-दूसरे से प्यार करते हैं. दुनिया
में कोई गड़बड़ी होती है तो उसे ठीक करने को सुपर हीरो आते हैं. इसी कोर इमोशन पर
सुपर हीरो की फिल्में चलती है. कहानी कहने का उनका ढंग बहुत मजबूत होता है, वे किसी और प्रकार की होशियारी
नहीं करते.
- फिल्म को
हिंदी में करते समय आप किन बातों का अधिक ध्यान रखते हैं. मैंने यह फिल्म हिंदी
में देखी और मुझे लगा कि आप शब्द्शः अनुवाद करने के बदले भाव पकड़ते हैं और उसका
भारतीयकरण करते हैं.
० ‘अवेंजर्स-द एंडगेम’ कलेक्शन
में हिंदी का हिस्सा 37 प्रतिशत है. तमिल का प्रतिशत 5 है और तेलुगू का 4. आप गौर करें
तो भारतीय भाषाओं का कारोबार अंग्रेजी के बराबर हैं. जबकि 2865 स्क्रीन में से हिंदी को केवल 800 स्क्रीन मिले हैं. हमें एक तिहाई
स्क्रीन मिले हैं लेकिन कारोबार आधे का हुआ है. अब मैं आप के सवाल पर आता हूं...
मैंने पहली फिल्म ‘जंगल बुक’ की थी .उसके पहले डबिंग के लिए
शब्द्शः अनुवाद होते थे या फिर घटिया किस्म की चालबाजी की जाती थी. डायनासोर को
बड़ी छिपकली या स्पाइडरमैन को मकड़ मानव बोल देते थे.. मैंने काम शुरू करने के पहले
उन्हें 8 पेज का
ट्रीटमेंट नोट बना कर दिया था, जिसमें मैंने बताया था कि मैं क्या क्या करूंगा? डिज्नी का आग्रह रहता है कि आप
आमफहम भाषा में लिखें. क्लिष्ट हिंदी का प्रयोग ना करें. मेरी कोशिश रहती है कि
हिंदी की परंपरा और परिवेश के शब्द इस्तेमाल करूं. हिंदी के उपयोग का आखिरी फैसला
कौन करता है पहले तो वही लोग करते थे अब वह मेरे ऊपर भरोसा करते हैं क्योंकि मैंने
अभी तक 10 दिन में कर
ली है और दर्शकों ने उन्हें खूब पसंद किया है अभी मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं होती है
वह मेरी बात मान लेते हैं
-क्या आपको
नहीं लगता कि अवेंजर्स जैसी फिल्मों की कामयाबी हिंदी फिल्मों के लिए खतरा है.
विदेशी फिल्में सेंध मारकर भारतीय दर्शकों के बीच पहुंच रही हैं
0 मुझे ऐसा
नहीं लगता. हिंदी की अच्छी फिल्में चलती है. दर्शक भी पसंद करते हैं ‘बदला’,’बधाई
हो’ और ‘अंधाधुन’ के उदहारण सामने हैं. अब अगर आप ‘कलंक’ बनाओगे तो भी नतीजा सामने
है. अभी देखिये कि हिंदी फिल्में चीन में पैसे कमा रही हैं. ‘दबंग’ और ‘बाहुबली’
के बाद अभी ‘अंधाधुन’ वहां पसंद की जा रही है. मुझे लगता है कि धीरे-धीरे बाजार
बढ़ेगा. क्यों ना हम ऐसी कोशिश करें कि हमारी फिल्में विदेशी बाजार में देखी जाएं.
-अभी क्या
कर रहे हैं>
अभी ‘लायन किंग’ का अनुवाद कर रहा हूं. इसके
अलावा हिंदी में स्क्रिप्ट तैयार कर रहा हूं. बीच में सोचा था कि खुद डायरेक्ट
करूंगा. वह नहीं हो पाया. फराह खान के लिए मैंने दो फ़िल्में की हैं. अगर उन्होंने
अगली फिल्म शुरू की तो उसके लिए काम करूंगा. मैं स्क्रीन लाइटिंग का वर्कशॉप भी
करता हूं. अनुपम खेर के इंस्टीट्यूट से जुड़ा हुआ हूं.
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