सिनेमालोक : प्रौढ़ नायक का प्रेम


सिनेमालोक
प्रौढ़ नायक का प्रेम
अजय ब्रह्मात्मज
हिंदी फिल्मों में एक्टर की वास्तविक उम्र हमेशा अपने कैरेक्टर से ज्यादा होती हैं. फिल्मों की यह परिपाटी है कि कोई एक्टर नायक की भूमिका में लोकप्रिय और स्वीकृत हो गया तो वह अंत-अंत तक नायक की भूमिका निभाता रहता है...वह भी जवान नायक की भूमिका. दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद के जमाने से ऐसा चला आ रहा है. इनमें से दिलीप कुमार और राज कपूर तो एक उम्र के बाद ठहर गए,लेकिन देवानंद अंतिम सांस तक हीरो ही बने रहे. उन्होंने स्वीकार ही नहीं किया कि सभी की तरह उनकी उम्र बड़ी है. वह भी उम्रदराज हो गए हैं.
आज के पॉपुलर नायकों में खानत्रयी (आमिर, शाह रुख और सलमान. अभी तक बतौर हीरो ही पर्दे पर नजर आ रहे हैं. उनके ज्यादातर करैक्टर उनकी वास्तविक उम्र से कम होते हैं. आमिर खान ने ‘दंगल’ में खुद से बड़ी उम्र की भूमिका जरूर निभाई, लेकिन विज्ञापन से लेकर फिल्मों तक में भेष और उम्र बदलने का प्रयोग कर वे वास्तविक उम्र को धोखा देते रहते हैं. शाह रुख खान ने ऐसे ही ‘वीर जारा’ में प्रोढ़ छवि पेश की थी. ‘डियर ज़िंदगी’ में वह आलिया भट्ट के साथ अपनी उम्र के किरदार में नजर आए. सलमान खान का शरीर अब इस बात की सहूलियत नहीं देता कि वे 25-30 की उम्र के दिखे. फिर भी वे अपनी उम्र से जवान दिखने का प्रयास करते रहते हैं. ‘भारत’ में वह चार अलग-अलग उम्र की छवियों में दिख रहे हैं. उनके सफ़ेद बालों का ज़िक्र एक संवाद में सुनाई पड़ता है. फिल्म में जवान भारत की भूमिका निभाना उनके लिए मुश्किल चुनौती थी. उन्हें अपनी जवानी की फिल्में अंदाज-ओ-बयां के लिए देखनी पड़ी. उल्लेखनीय है कि तीनों खान 54 साल के हो चुके हैं.
इस पृष्ठभूमि में अजय देवगन और तब्बू की तारीफ करनी होगी. तब्बू तो पहले से उमदराज किरदारों की भूमिकायें पूरी संजीदगी से निभा रही हैं. खुद अजय देवगन ने भी पहले मधुर भंडारकर निर्देशित ‘दिल तो बच्चा है जी’ में अपनी उम्र का किरदार निभाया था. इस बार लव रंजन की अकिव अली निर्देशित ‘दे दे प्यार दे’ में वह 50 वर्ष के आशीष की भूमिका में दिखे. उन्होंने अपनी और किरदार की उम्र की समानता का ख्याल रखते हुए बालों की सफेदी को जाने दिया. अगर उनके बाल और दाढ़ी का रंग खिचड़ी (साल्ट एंड पेपर) होता तो फिल्म और जानदार हो जाती. इस फिल्म में तब्बू की उम्र 47 वर्ष थी. वह अजय देवगन की परित्यक्त पत्नी मंजू की भूमिका में है. लव रंजन और अकिव अली ने अपने  नायक -नायिका को प्रोढ़ रखा. उम्र के लिहाज से उनकी हरकतें होती हैं, लेकिन प्रेम का अधिकार नायक को ही मिलता है, वह खुद से 24 साल छोटी लड़की से प्रेम करने लगता है और उससे शादी भी करना चाहता है. यह स्वाभाविक तो नहीं है, लेकिन अजीब भी नहीं है. हिंदी फिल्मों में ही दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, कबीर बेदी, मिलिंद सोमण और सैफ अली खान के उदाहरण हैं.
फिल्मों की बात करें तो 1986 में राजेश खन्ना की फिल्म ‘अनोखा रिश्ता’ में भी बेमेल उम्र के किरदारों का प्रेम था. फिल्म की नायिका सबीहा थीं.अमिताभ बच्चन ने राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘निःशब्द’ में अपनी बेटी की सहेली से प्रेम किया था. जिया खान ने युवा सहेली की भूमिका निभाई थी. अमिताभ बच्चन ‘चीनी कम’ में भी खुद से कम उम्र की तब्बू से प्रेम करते दिखे. 
फिल्मों के अंदरूनी समस्या है कि प्रोढ़ प्रेम की अनुमति सिर्फ नायकों को ही मिलती है. फिल्मों की किसी प्रोढ़ नायिका को किसी युवक से प्रेम करते नहीं दिखाया जाता. ’दिल चाहता है’ और ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’ के बेमेल उम्र के प्रेम को पूरा एक्स्प्लोर नहीं किया गया था. हो सकता है कि भारतीय समाज और दर्शक अभी इसके लिए तैयार ना हों, लेकिन इसमें स्त्री-पुरुष संबंधों और रिश्तो के नए आयाम तलाश रहे फिल्मकार जल्दी ही ऐसी कोई फिल्म लेकर आयें तो आश्चर्य नहीं होगा. रियल लाइफ में प्रियंका चोपड़ा और निक जोंस ने प्रेम और शादी में उम्र के फासले को समेट दिया है. समाज में और भी उदाहरण हैं. बस, उन्हें पर्दे पर भी आना चाहिए.


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