सिनेमालोक : पगडंडियों पर भी चलती हैं अनुष्का शर्मा
सिनेमालोक
पगडंडियों पर भी चलती हैं अनुष्का
शर्मा
-अजय ब्रह्मात्मज
महिला दिवस के अवसर पर हिंदी सिनेमा में
महिलाओं की मजबूत होती स्थिति और बढ़ते महत्व पर लेख पढ़ने को मिल जाएंगे। इन
सामान्य लेखों में दो-चार फिल्मों और कलाकारों के बहाने मोटी धारणाआं और
उदाहरणों से बताया जाएगा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं को मौके मिलने
लगे हैं। मैं इस स्तंभ में अनुष्का शर्मा के बारे में विशेष तौर पर यह रेखांकित
करना चाहूंगा कि उन्होंने हीरोइनों की भेड़चाल के बीच खुद के लिए खास जगह बनाई और
मौके हासिल किए। उन्होंने किसी और का इंतजार नहीं किया। उन्होंने स्वयं अवसर
बनाए और उनका सही सदुपयोग किया। हाल ही में उनकी फिल्म ‘परी’
रिलीज हुई है। इसकी कामयाबी के साथ वह अपनी सोच और सफलता में एक कदम
और आगे बढ़ गई हैं। उन्होंने साबित किया है कि ग्लैमर और फैशन से बाहर रह कर भी
नाम और दाम पाया जा सकता है।
दस साल पहले 12 दिसंबर 2008 को उनकी
पहली फिल्म ‘रब
ने बना दी जोड़ी’ रिलीज हुई थी। यशराज फिल्म्स के लिए इसका
निर्देशन स्वयं आदित्य चोपड़ा ने किया था। किसी नई अभिनेत्री की इससे बेहतरीन
लांचिंग नहीं हो सकती थी। उनके हीरो शाह रुख खान थे। फिल्म चर्चित होने के साथ
बॉक्स आफिस पर भी सफल रही। यश्राज फिल्म्स की ही दूसरी फिल्म ‘बदमाश कंपनी’ नहीं चली तो उन्हें असफलता और आलोचना
का खट्टा स्वाद भी मिल गया। तीन फिल्मों के करार के तहत यशराज फिल्म्स की
तीसरी फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ में
उन्होंने दर्शकों का दिल जीता। इस फिल्म उनके नायक रणवीर सिंह थे,जिनकी यह पहली फिल्म थी। फिल्म की सफलता में रणवीर सिंह की ‘रॉ एनर्जी’ के साथ अनुष्का शर्मा की प्रतिभा का भी
योगदान रहा। इस फिल्म से अनुष्का शर्मा ने अभिनय की निजी शैली विकसित की। उन्होंने
उस दौर की दूसरी हीरोइनों की तरह आजमाएं फार्मूले का पालन नहीं किया। उन्होंने रिस्क
लिए और हर किस्म की भूमिकाओं के लिए हां कहा। सफलता की इस सीढ़ी पर चढ़ते समय कुछ
पायदानों पर उनके पांव भी फिसले। वह लड़खड़ाईं,लेकिन अगली ही
फिल्म में फिर से सधे कदमों से ऊपर चढ़ीं। ‘परी’ समेत 16 फिल्में कर चुकी अनुष्का शर्मा की सिर्फ तीन फिल्में ही बॉक्स
आफिस की कसौटी पर खरी नहीं उतरीं। इस लिहाज से उनकी सफलता का प्रतिशत75 से अधिक
है। पुरुष प्रधन फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी कामयाबी कम अभिनेत्रियों को मिली है।
खास बात यह है कि वह इन फिल्मों में सिर्फ दिखावटी गुडि़या नहीं रही हैं।
खानत्रयी(आमिर,शाह रुख और सलमान) के साथ की फिल्मों में भी
उनकी निजी इयत्ता रही।
गौर करें तो वह अपनी समकालीन दीपिका
पादुकोण और कंगना रनोट की तरह मीडिया की खबरों और अखबारों के पननों पर नहीं रहतीं।
हां,विराट कोहली के प्रेम
संबंध और विवाह के पलों में वह भी नहीं बच सकीं। अनुष्का बेवजह लाइमलाइट में नहीं
रहना चाहतीं। अपनी पीढ़ी में प्रेम के बाद से झट से शादी कर लेने वाली पहली
अभिनेत्री हैं। शादी से उनके करिअर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यह उनके एटीट्यूड
और काम का ही नतीजा है कि ‘परी’ की
रिलीज के समय उनकी शादी का सवाल नहीं उठा। फिल्मों की हिंदी पत्रकारिता में शादी
के बाद किसी अभिनेत्री की लोकप्रियता एक बड़ा सवाल और बवाल रहा है। बहरहाल,2014 में अनुरूका शर्मा ने निर्माता बनने का फैसला कर सभी को चौंका दिया
था। हिंदी फिल्मों में उम्रदराज और मांग से बाहर हो चुकी अभिनेत्रियां निर्माता
बन कर खुद के लिए काम जुटाती रही हैं। अनुष्का ने बाजार में कमर्शियल मांग के दौर
में आउट ऑफ बॉक्स फिल्मों का निर्माण किया। अभी तक अपनी तीनों फिल्मों में वही
नायिका रही हैं। उन्होने 'फिल्लौरी' के निर्माण के समय मुझे कहा था कि वह
दूसरी अभिनेत्रयों को भी मौका देंगी। उनकी
तीनों फिल्मों की नायिकाएं कुछ अलग और विचत्र रही हैं। शायद ही उनकी समकक्ष दूसरी अभिनेत्री ऐसी भूमिकाओं के
लिए तैयार होती। यह अनुष्का की मजबूरी
भी हो सकती है।
यहाँ इस तथ्य का उल्लेख भी ज़रूरी है की पुरुष और महिला
कलाकारों के बीच पारिश्रमिक की असमानता का सवाल सबसे पहले अनुष्का ने ही उठाने
की हिम्मत की थी। उसका कमोबेश लाभ सभी अभिनेत्रियों को मिल रहा है।
अनुष्का शर्मा अपनी पीढ़ी की वाहिद अभिनेत्री हैं,
जिन्होंने प्रचलित राजमार्ग के
साथ पगडंडियों पर भी चलने का फैसला किया है।
वह निरंतर आगे बढ़ रही हैं
और नए
काम कर रही हैं।
originaly published in Lokmat Samachar
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