श्रीदेवी की मौत : सत्ता का तमाशा
श्री
-चंद्र प्रकाश झा
लोकप्रिय फिल्म अदाकारा श्रीदेवी 24 फरवरी को दुबई में गुजर गईं। वह एक
परिजन के ब्याह में शरीक होने दुबई गई थीं. वहां एक बड़े होटल में ठहरी
हुई थीं . उसी होटल के अपने कमरे के बाथरूम के बाथटब में कथित तौर पर डूब
जाने से उनकी मौत हो गई . किसी ने कहा कि वह शराब के नशे में थीं. किसी
ने कहा कि उनकी मौत बाथटब में ही दिल का दौरा पड़ने से हुई। पूर्व
केंद्रीय मंत्री और अभी भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सदस्य सब्रमणियम
स्वामी ने शगूफा छोड़ा कि उनकी ह्त्या की गई होगी।
किसी की भी मौत की खबर कष्टकारी होती है , ख़ास कर तब जब कि उनका ख़ास
व्यक्तित्व हो। मृत्यु के समय श्रीदेवी की उम्र महज 55 वर्ष थी. उनका
पूरा जीवन बड़ा ही संघर्षकारी था .उन्होंने सिर्फ चार वर्ष की आयु में
1967 में तमिल फिल्म , ' कंदन करूनेई ' में बाल- कलाकार के रूप में अभिनय
शुरू किया था. उन्होंने 2017 में अपनी 300 वीं फिल्म , मॉम में अभिनय
किया था. वह भारत की संभवतः एकमेव अभिनेत्री रहीं जिन्हें बॉलीवुड की
हिन्दुस्तानी फिल्मों के अलावा दक्षिण भारत की सभी भाषाओं , तमिल ,
तेलुगु , कन्नड़ और मलयालम की भी फिल्मों में काम करने का मौक़ा मिला। उनकी
आखरी फिल्म , ' जीरो ' 2018 में ही रिलीज होने वाली है.
फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने अपने ब्लॉग ,' चवन्नी चैप ' पर लिखा कि
हिंदी फिल्मों में उनकी पहली फिल्म ‘ सालवां सावन ’ 1979 में आई थी।
उसके पहले वह अनेक तमिल और तेलुगू फिल्मों में काम कर चुकी थीं। सिर्फ
गूगल सर्च कर लें तो भी मालूम हो जागा कि कमल हासन के साथ ही उनकी 27
फिल्में हैं। चार साल की उम्र से फिल्मों में एक्टिव श्रीदेवी की
परवरिश स्टूडियो और लोकेशन पर कैमरे के सामने हुई। सामान्य जीवन के
अनुभवों से वह वंचित रहीं। फिर भी उन्होंने अपने हर तबके और आयाम के
किरदारों को पर्दे पर जीवंत किया। फिल्मों का सेट ही उनका विद्यालय बना
और निर्देशक शिक्षक। उन्हें फिल्म बिरादरी के सदस्य श्रद्धांजलि दे
रहे हैं। सोशल मीडिया के शोक संदेशों में उनकी कमी रेखांकित की जा रही
है। श्रीदेवी के आकस्मिक निधन की रविवार की सुबह आई मनहूस खबर के बाद
वेब, इंटरनेट, अखबार और सोशल मीडिया पर उनसे संबंधित सामग्रियों और
जानकारियों की अति हो गई.
सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए किसी की भी मृत्यु की खबर को अतिरंजित कर
बेचना बिलकुल गलत है। अधिक -से -अधिक फायदा के लिए ऐसी खबर को काल्पनिक
आयाम में प्रसारित करना और भी गलत है। मृत व्यक्ति की निजता के अधिकार की
तौहीन करना अपराध है जो श्रीदेवी की मौत के मामले में लगभग पूरी भारतीय
मीडिया ने बढ़ -चढ़ कर किया। इतना कि विदेशी मीडिया को तंज कसने पड़े . इस
आलेख के साथ साभार संलग्न ' बीबीसी लंदन हिंदी सेवा ' का एक कार्टून और
अमेरिका के ' वाशिंगटन टाइम्स ' में प्रकाशित एक ट्वीट का स्नैपशॉट उसका
परिचायक है. सारे टीवी न्यूज चेनल पर श्रीदेवी की मौत की खबरें और
अन्त्येष्टि भी " लाईव " थीं . एनडीटीवी समेत कुछेक खबरिया चैनलों ने तो
उनके मृत शरीर की होटल के बाथटब से बरामदगी से लेकर अंत्येष्टि पूरी होने
तक की दृश्यात्मक -श्रव्यात्मक खबरें लगातार 72 घंटे तक ' लाईव '
प्रसारित किए। कुछ अन्य चैनलों ने तो कमाल ही ही कर दिखाया। वे अपने
स्टूडियो में कैमरे के सामने बाथटब ले आये। उसका तरह -तरह का सैट बना
उसकी लम्बाई , चौड़ाई , गहराई नाप -नाप दर्शकों को दिखाने लगे। एक की
महिला ऐंकर ने तो हद कर दी। उस ऐंकर ने बाथटब में घुस कर दिखाया कि
श्रीदेवी की मौत या तो ऐसे हुई या ऐसे या नहीं तो फिर वैसे ही हुई।
संयुक्त अरब अमीरात की पुलिस ने पोस्ट -मार्टम की जो रिपोर्ट जारी की उसे
चैनलों में एक्सक्लूसिव दिखाने की होड़ लग गई। पोस्ट -मार्टम रिपोर्ट से
स्पष्ट हुआ कि कोई ह्त्या नहीं बल्कि दुर्घटनावस बाथटब में डूब जाने से
हुई। भारतीय मीडिया की इस अभूतपूर्व भाव-भंगिमा को हिन्दू धर्म की
दुर्गा -सप्तसदी के एक श्लोक में देवी और अन्य पदबंध की जगह लक्षणा
-व्यंजना में कहना कदापि अतिश्योक्ति नहीं होगी : " या श्रीदेवी
सर्वभूतेषु , मीडिया रूपेण संस्थिता / नमस्तस्ये , नमस्तस्ये , नमस्तस्ये
, नमो नमः ".
चौथी सत्ता के रूप में मीडिया पर ही सारा दोष डालना सही नहीं होगा। इस
प्रकरण में राजसत्ता के तीनों अंग , न्यायपालिका , विधायिका और
कार्यपालिका भी पूर्णतया दोषमुक्त नहीं कहे जा सकते हैं। क्योंकि इसमें
बहुत कुछ विधि -विरुद्ध हुआ नज़र आता है जिस पर केंद्र और महाराष्ट्र
राज्य सरकार ने कोई अंकुश नहीं लगाया तथा विधायिका एवं न्यायपालिका ने भी
संविधान -सम्मत अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का श्रीदेवी की मृत्यु की आड लेकर पंजाब
नेशनल बैंक में लंपट पूंजीवाद के पकड़े गए महाघोटाला के मुद्दा से आम जनता
का ध्यान भटकाना निन्दनीय ही है. भारतीय संसद द्वारा पारित , सती -निरोधक
कानून की पद्मावत के फिल्मकार ने धज्जियां उड़ा दी।संसद या सरकार ने इसका
संज्ञान लिया हो ,किसी से कोई कैफियत तलब की हो ऐसी कोई खबर तो नहीं मिली
है . बावजूद इसके कि इस मसले को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने सती कुप्रथा
के महिमामंडन के संज्ञेय अपराध के प्रति सबको सचेत किया. वर्ष 1988 में
केन्द्र में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व में जो राष्ट्रीय अधिनयम
बना। उसके लागू होने के बाद से देश में कंही से किसी सतीकाण्ड की खबर
नहीं है। पर उसके महिमामंडन की पूर्ण रोकथाम नहीं की जा सकी है जिसका एक
ज्वलंत उदाहरण मुकेश अम्बानी की कंपनियों में से एक द्वारा निर्मित और
संजय लीला भंसाली की निर्देशित कमर्सियल फिल्म पद्मावत है। फिल्म में "
जौहर " ( सती का बहुवचन ) को महिमामंडित किया गया है . फिल्म के अंत में
नेपथ्य से महिला स्वर में फिल्म की मुख्य किरदार पद्मावती के जौहर की
प्रशस्ति की गई है। ऐसे अपराध के लिए विभिन धाराओं के अनुसार न्यूनतम दंड
, एक वर्ष का कारावास है। इस फिल्म ने भारत के एक राष्ट्रीय क़ानून को
धता बता दिया और हमारी राजसत्ता तमाशा देखती रही। श्रीदेवी की मौत के
मामले में मीडिया और सरकार ने उन्हें बस सती नहीं कहा बांकी बहुत कुछ ऐसा
किया जिस पर लंबे अर्से तक सवाल उठते रहेंगे .
मसलन , महाराष्ट्र राज्य की भाजपा गठबंधन सरकार ने किस आधार पर
श्रीदेवी की अंत्येष्टि , उनका शव राष्ट्रीय तिरंगा में लपेट और बंदूकों
से सलामी के बीच पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ करने का आदेश दिया. विधायिका
ने इस तरह के आदेश देने अथवा न देने के मानक क़ानून क्यों नहीं बनाये और
न्यायपालिका ने भी कार्यपालिका के लिए कोई दिशा -निदेशक उपाय क्यों नहीं
उठाये हैं ?
कहा तो जा सकता है कि मुंबई में ही , और वह भी गैर -भाजपा शासनकाल में ,
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का भी अंतिम संस्कार उनके शव को तिरंगा में
लपेटकर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया था . और तो और , उत्तर प्रदेश
में समाजवादी पार्टी के शासनकाल मे दादरी में घर के फ्रिज में गौमांस
रखने के फर्जी आरोप में मारे गए अखलाक के हत्यारों में से पकड़े गए एक की
जेल में मौत हो जाने के बाद उसकी भी अन्त्येष्टि तिरंगा में लपेटकर की गई
.श्रीदेवी तो फिर भी पद्मश्री से सम्मानित लोकप्रिय सिने -अभिनेत्री थी।
लेकिन क्या राजकीय अंत्येष्टि के लिए पद्म अलंकरण होना ही पात्रता है ?
तो फिर
पद्म सम्मानों से अलंकृत सभी की राजकीय अन्त्येष्टि क्यों नहीं की जाती
है। पहले आम तौर पर देश के राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री ,
केंद्रीय मंत्री , मुख्यमंत्री आदि और सांविधिक पदों पर विराजमान रहे
लोगों की ही राजकीय अंत्येष्टि की जाती थी। महात्मा गांधी जैसे कुछ
सर्वमान्य नेताओं की भी राजकीय अंत्येष्टि की गई जो कभी किसी सांविधिक या
राजकीय पद पड़ नहीं रहे।
पूर्व केंद्रीय कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एम. सी. ननैइया के
अनुुुसार यह निर्णय राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर है. इसके लिये कोई
विधि-सम्मत मानक दिशा-निर्देश नहीं हैं. सरकार स्वयं के विवेक से
राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान , सिनेमा जैसे क्षेत्रों में अहम
योगदान देने वालों का राजकीय सम्मान करती है , उन्हें राजकीय अतिथि का
दर्जा प्रदान करती है और उनकी राजकीय अंत्येष्टि भी करती है .फिल्म
अदाकारों के बीच इसका चलन संभवतः शशि कपूर से शुरू हुआ. निश्चय ही भारतीय
सिनेमा के पुरोधा , दादा साहब फाल्के की भी राजकीय अंत्येष्टि नहीं की गई
थी।
-चंद्र प्रकाश झा
लोकप्रिय फिल्म अदाकारा श्रीदेवी 24 फरवरी को दुबई में गुजर गईं। वह एक
परिजन के ब्याह में शरीक होने दुबई गई थीं. वहां एक बड़े होटल में ठहरी
हुई थीं . उसी होटल के अपने कमरे के बाथरूम के बाथटब में कथित तौर पर डूब
जाने से उनकी मौत हो गई . किसी ने कहा कि वह शराब के नशे में थीं. किसी
ने कहा कि उनकी मौत बाथटब में ही दिल का दौरा पड़ने से हुई। पूर्व
केंद्रीय मंत्री और अभी भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सदस्य सब्रमणियम
स्वामी ने शगूफा छोड़ा कि उनकी ह्त्या की गई होगी।
किसी की भी मौत की खबर कष्टकारी होती है , ख़ास कर तब जब कि उनका ख़ास
व्यक्तित्व हो। मृत्यु के समय श्रीदेवी की उम्र महज 55 वर्ष थी. उनका
पूरा जीवन बड़ा ही संघर्षकारी था .उन्होंने सिर्फ चार वर्ष की आयु में
1967 में तमिल फिल्म , ' कंदन करूनेई ' में बाल- कलाकार के रूप में अभिनय
शुरू किया था. उन्होंने 2017 में अपनी 300 वीं फिल्म , मॉम में अभिनय
किया था. वह भारत की संभवतः एकमेव अभिनेत्री रहीं जिन्हें बॉलीवुड की
हिन्दुस्तानी फिल्मों के अलावा दक्षिण भारत की सभी भाषाओं , तमिल ,
तेलुगु , कन्नड़ और मलयालम की भी फिल्मों में काम करने का मौक़ा मिला। उनकी
आखरी फिल्म , ' जीरो ' 2018 में ही रिलीज होने वाली है.
फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने अपने ब्लॉग ,' चवन्नी चैप ' पर लिखा कि
हिंदी फिल्मों में उनकी पहली फिल्म ‘ सालवां सावन ’ 1979 में आई थी।
उसके पहले वह अनेक तमिल और तेलुगू फिल्मों में काम कर चुकी थीं। सिर्फ
गूगल सर्च कर लें तो भी मालूम हो जागा कि कमल हासन के साथ ही उनकी 27
फिल्में हैं। चार साल की उम्र से फिल्मों में एक्टिव श्रीदेवी की
परवरिश स्टूडियो और लोकेशन पर कैमरे के सामने हुई। सामान्य जीवन के
अनुभवों से वह वंचित रहीं। फिर भी उन्होंने अपने हर तबके और आयाम के
किरदारों को पर्दे पर जीवंत किया। फिल्मों का सेट ही उनका विद्यालय बना
और निर्देशक शिक्षक। उन्हें फिल्म बिरादरी के सदस्य श्रद्धांजलि दे
रहे हैं। सोशल मीडिया के शोक संदेशों में उनकी कमी रेखांकित की जा रही
है। श्रीदेवी के आकस्मिक निधन की रविवार की सुबह आई मनहूस खबर के बाद
वेब, इंटरनेट, अखबार और सोशल मीडिया पर उनसे संबंधित सामग्रियों और
जानकारियों की अति हो गई.
सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए किसी की भी मृत्यु की खबर को अतिरंजित कर
बेचना बिलकुल गलत है। अधिक -से -अधिक फायदा के लिए ऐसी खबर को काल्पनिक
आयाम में प्रसारित करना और भी गलत है। मृत व्यक्ति की निजता के अधिकार की
तौहीन करना अपराध है जो श्रीदेवी की मौत के मामले में लगभग पूरी भारतीय
मीडिया ने बढ़ -चढ़ कर किया। इतना कि विदेशी मीडिया को तंज कसने पड़े . इस
आलेख के साथ साभार संलग्न ' बीबीसी लंदन हिंदी सेवा ' का एक कार्टून और
अमेरिका के ' वाशिंगटन टाइम्स ' में प्रकाशित एक ट्वीट का स्नैपशॉट उसका
परिचायक है. सारे टीवी न्यूज चेनल पर श्रीदेवी की मौत की खबरें और
अन्त्येष्टि भी " लाईव " थीं . एनडीटीवी समेत कुछेक खबरिया चैनलों ने तो
उनके मृत शरीर की होटल के बाथटब से बरामदगी से लेकर अंत्येष्टि पूरी होने
तक की दृश्यात्मक -श्रव्यात्मक खबरें लगातार 72 घंटे तक ' लाईव '
प्रसारित किए। कुछ अन्य चैनलों ने तो कमाल ही ही कर दिखाया। वे अपने
स्टूडियो में कैमरे के सामने बाथटब ले आये। उसका तरह -तरह का सैट बना
उसकी लम्बाई , चौड़ाई , गहराई नाप -नाप दर्शकों को दिखाने लगे। एक की
महिला ऐंकर ने तो हद कर दी। उस ऐंकर ने बाथटब में घुस कर दिखाया कि
श्रीदेवी की मौत या तो ऐसे हुई या ऐसे या नहीं तो फिर वैसे ही हुई।
संयुक्त अरब अमीरात की पुलिस ने पोस्ट -मार्टम की जो रिपोर्ट जारी की उसे
चैनलों में एक्सक्लूसिव दिखाने की होड़ लग गई। पोस्ट -मार्टम रिपोर्ट से
स्पष्ट हुआ कि कोई ह्त्या नहीं बल्कि दुर्घटनावस बाथटब में डूब जाने से
हुई। भारतीय मीडिया की इस अभूतपूर्व भाव-भंगिमा को हिन्दू धर्म की
दुर्गा -सप्तसदी के एक श्लोक में देवी और अन्य पदबंध की जगह लक्षणा
-व्यंजना में कहना कदापि अतिश्योक्ति नहीं होगी : " या श्रीदेवी
सर्वभूतेषु , मीडिया रूपेण संस्थिता / नमस्तस्ये , नमस्तस्ये , नमस्तस्ये
, नमो नमः ".
चौथी सत्ता के रूप में मीडिया पर ही सारा दोष डालना सही नहीं होगा। इस
प्रकरण में राजसत्ता के तीनों अंग , न्यायपालिका , विधायिका और
कार्यपालिका भी पूर्णतया दोषमुक्त नहीं कहे जा सकते हैं। क्योंकि इसमें
बहुत कुछ विधि -विरुद्ध हुआ नज़र आता है जिस पर केंद्र और महाराष्ट्र
राज्य सरकार ने कोई अंकुश नहीं लगाया तथा विधायिका एवं न्यायपालिका ने भी
संविधान -सम्मत अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का श्रीदेवी की मृत्यु की आड लेकर पंजाब
नेशनल बैंक में लंपट पूंजीवाद के पकड़े गए महाघोटाला के मुद्दा से आम जनता
का ध्यान भटकाना निन्दनीय ही है. भारतीय संसद द्वारा पारित , सती -निरोधक
कानून की पद्मावत के फिल्मकार ने धज्जियां उड़ा दी।संसद या सरकार ने इसका
संज्ञान लिया हो ,किसी से कोई कैफियत तलब की हो ऐसी कोई खबर तो नहीं मिली
है . बावजूद इसके कि इस मसले को लेकर मीडिया के एक हिस्से ने सती कुप्रथा
के महिमामंडन के संज्ञेय अपराध के प्रति सबको सचेत किया. वर्ष 1988 में
केन्द्र में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व में जो राष्ट्रीय अधिनयम
बना। उसके लागू होने के बाद से देश में कंही से किसी सतीकाण्ड की खबर
नहीं है। पर उसके महिमामंडन की पूर्ण रोकथाम नहीं की जा सकी है जिसका एक
ज्वलंत उदाहरण मुकेश अम्बानी की कंपनियों में से एक द्वारा निर्मित और
संजय लीला भंसाली की निर्देशित कमर्सियल फिल्म पद्मावत है। फिल्म में "
जौहर " ( सती का बहुवचन ) को महिमामंडित किया गया है . फिल्म के अंत में
नेपथ्य से महिला स्वर में फिल्म की मुख्य किरदार पद्मावती के जौहर की
प्रशस्ति की गई है। ऐसे अपराध के लिए विभिन धाराओं के अनुसार न्यूनतम दंड
, एक वर्ष का कारावास है। इस फिल्म ने भारत के एक राष्ट्रीय क़ानून को
धता बता दिया और हमारी राजसत्ता तमाशा देखती रही। श्रीदेवी की मौत के
मामले में मीडिया और सरकार ने उन्हें बस सती नहीं कहा बांकी बहुत कुछ ऐसा
किया जिस पर लंबे अर्से तक सवाल उठते रहेंगे .
मसलन , महाराष्ट्र राज्य की भाजपा गठबंधन सरकार ने किस आधार पर
श्रीदेवी की अंत्येष्टि , उनका शव राष्ट्रीय तिरंगा में लपेट और बंदूकों
से सलामी के बीच पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ करने का आदेश दिया. विधायिका
ने इस तरह के आदेश देने अथवा न देने के मानक क़ानून क्यों नहीं बनाये और
न्यायपालिका ने भी कार्यपालिका के लिए कोई दिशा -निदेशक उपाय क्यों नहीं
उठाये हैं ?
कहा तो जा सकता है कि मुंबई में ही , और वह भी गैर -भाजपा शासनकाल में ,
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का भी अंतिम संस्कार उनके शव को तिरंगा में
लपेटकर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया था . और तो और , उत्तर प्रदेश
में समाजवादी पार्टी के शासनकाल मे दादरी में घर के फ्रिज में गौमांस
रखने के फर्जी आरोप में मारे गए अखलाक के हत्यारों में से पकड़े गए एक की
जेल में मौत हो जाने के बाद उसकी भी अन्त्येष्टि तिरंगा में लपेटकर की गई
.श्रीदेवी तो फिर भी पद्मश्री से सम्मानित लोकप्रिय सिने -अभिनेत्री थी।
लेकिन क्या राजकीय अंत्येष्टि के लिए पद्म अलंकरण होना ही पात्रता है ?
तो फिर
पद्म सम्मानों से अलंकृत सभी की राजकीय अन्त्येष्टि क्यों नहीं की जाती
है। पहले आम तौर पर देश के राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री ,
केंद्रीय मंत्री , मुख्यमंत्री आदि और सांविधिक पदों पर विराजमान रहे
लोगों की ही राजकीय अंत्येष्टि की जाती थी। महात्मा गांधी जैसे कुछ
सर्वमान्य नेताओं की भी राजकीय अंत्येष्टि की गई जो कभी किसी सांविधिक या
राजकीय पद पड़ नहीं रहे।
पूर्व केंद्रीय कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एम. सी. ननैइया के
अनुुुसार यह निर्णय राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर है. इसके लिये कोई
विधि-सम्मत मानक दिशा-निर्देश नहीं हैं. सरकार स्वयं के विवेक से
राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान , सिनेमा जैसे क्षेत्रों में अहम
योगदान देने वालों का राजकीय सम्मान करती है , उन्हें राजकीय अतिथि का
दर्जा प्रदान करती है और उनकी राजकीय अंत्येष्टि भी करती है .फिल्म
अदाकारों के बीच इसका चलन संभवतः शशि कपूर से शुरू हुआ. निश्चय ही भारतीय
सिनेमा के पुरोधा , दादा साहब फाल्के की भी राजकीय अंत्येष्टि नहीं की गई
थी।
देवी की मौत : सत्ता का तमाशा
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