पहला होली गीत
बाल मोहन हरजाई रे नहीं बाजे बाँसरी
फागन की रुत ...
सोने की गागर में रंग बनाया
रूप की पिचकारी लाई रे जरा बाजे बाँसरी
फागन की रुत ...
जोबन पे जोबन है शोख़ी पे शोख़ी
नैनन में लाली आई रे जरा बाजे बाँसरी
फागन की रुत...
मेरा सन्देशा कोई उनसे कहना
फिर से तेरी याद आई रे जरा बाजे बाँसरी
मेरे हुए आज मैं जिनकी हो ली
होली के दिन होली आई रे जरा बाजे बाँसरी
फागन की रुत ...
इस गीत को हिंदी फिल्मों का पहला होली गीत कह सकते हैं। संयोग से इस फिल्म का नाम भी ‘होली’ है। रंजीत मूवीटोन के लिए इस फिल्म का निर्देशन ए आर कारदार ने किया था। ए आर कारदार मूलत: लाहौर के फिल्मकार थे। लाहौर फिल्म इंडस्ट्री की स्थापना और विस्तार में उनकी बड़ी भूमिका रही है। 1930 में वे लाहौर से कोलकाता चले गए थे। सात सालों तक कोलकाता में काम करने के बाद वे 1937 में मुंबई आये। उन्होंने चंदूलाल शाह की प्रोडक्शन कंपनी रंजीत मूवीटोन के साथ फिल्मों का निर्देशन आरम्भ किया। यहीं उन्होंने 'होली' का निर्देशन किया।
'होली' 1940 में बनी थी। इस फ़िल्म में तब के मशहूर कलाकार मोतीलाल और खुर्शीद ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। इसमें सितारा देवी,केशवराव डेट,दीक्षित,गोरी,मनोहर कपूर,तारा बाई,लाला याकूब और मिर्ज़ा मुशर्रफ अन्य भूमिकाओं में थे। 1940 की इस फ़िल्म में अमीर और गरीब किरदारों की दो जोड़ियां थीं। अमीर-गरीब की नैतिकता और चाहत की इस फ़िल्म में उस दौर के हिसाब से निगेटिव किरदार का हृदय परिवर्तन भी होता है। अमीर परिवार के मोतीलाल गरीब परिवार की कोकिला पर डोरे डालते हैं। वे कोकिला के भाई पर गलत इल्ज़ाम लगा कर जेल भिजवा देते हैं। वे कोकिला को जबरदस्ती अपने घर ले आते हैं। कोकिला अपने व्ययहार से उनका दिल जीत लेती है। उन्हें खल से नेक स्वभाव का इंसान बना देती है। कोकिला के भाई को इस बात की जानकारी नहीं है। वह जेल से छूटने पर मोतीलाल पर कातिलाना हमला करता है। उसे फिर से पुलिस पकड़ लेती है। फ़िल्म के आखिरी दृश्यों में मोतीलाल का नाटकीय प्रवेश होता है। पता चलता है कि उनकी जान बच गयी थी। आखिरकार सभी बड़ी हो जाते हैं। और हंसी-खुशी उनका मिलन हो जाता है।
इस फ़िल्म के गीत डी एन मधोक ने लिखे और खेमचंद प्रकाश ने संगीत तैयार किया। तब की परंपरा के हिसाब से फ़िल्म में अनेक गाने थे। फ़िल्म का पहला गाना ही होली का था। इस गाने में सितारा देवी और अमृतलाल की आवाज़ थी। अमृतलाल का पूरा नाम अमृतलाल नागर मिलता है। इसी साल हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर भी मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े थे। क्या फ़िल्म के एक अंतरे 'मेरा सन्देशा कोई उनसे कहना,फिर से तेरी याद आई रे जरा बाजे बाँसरी' में आई पुरुष की जो आवाज़ अमृत के नाम से दर्ज है,वह हिंदी के साहित्यकार अमृतलाल नागर की है? उनकी बेटी अचला नागर या अमृतलाल नागर के अध्येता इस पर प्रकाश डाल सकते है। जो भी हो, इसमें दो राय नही हो सकती की हिंदी फिल्मों में होली के गानों की परंपरा ए आर कारदार की 'होली' से ही होती है।
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