सिनेमालोक : हिंदी समाज(मिडियम) की जीत



सिनेमालोक
हिंदी समाज(मिडियम) की जीत
-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछले शनिवार को फिल्‍मफेअर पुरस्‍कार समारोह हमेशा की तरह ग्‍लैमर और भव्‍यता से युक्‍त था। स्‍टेज पर मेजबान के रूप में शाह रूख खान मौजूद थे। मजबानी में साथ देने के लिए करण जौहर की जुगलबंदी थी। हर साल की तरह सितारों का हैरतअंगेज,लुभावना और आकर्षक परफारमेंस भी चलता रहा। पूरे माहौल में रंगीनी और मादकता थी। बस,एक ही चीज थोड़ी अलग और चौंकाने वाली रही। पॉपुलर श्रेणी के पुरस्‍कारों की घोषणा होने लगी तो एक-एक आ रहे विजेताओं के नाम हाल में मौजूद दर्शकों को चौंका रहे थे। 2017 की श्रेष्‍ठ फिल्‍म के रूप में ‘हिंदी मिडियम’ की घोषणा ने स्‍पष्‍ट तौर पर जाहिर कर दिया कि इस बार पुरस्‍कारों में वोटरों और निर्णायक मंडल का झुकाव अलग था। उन्‍होंने पहले की तरह चकाचौंध से भरी मेनस्‍ट्रीम फिल्‍मों से अलग जाकर वैसी फिल्‍मों और उनके कलाकारों को प्राथमिकता दी,जिन्‍हें आम तौर पर ‘आउट ऑफ बॉक्‍स’ फिल्‍में कहा जाता है। कुछ सालों पहले तक उन्‍हें अधिक से अधिक ‘क्रिटिक अपार्ड’ कैटेगरी में जगह मिल पाती थी। कहना मुश्किल है कि अगले साल भी यह झुकाव बना रहेगा कि नहीं? फिलहाल इस बात की खुशी है कि अभी तक परिधि पर मौजूद जमात केंद्र में चमक रही है।
‘हिंदी मिडियम’ पिछले साल बनी एक फिल्‍म है। इसके साथ यह एक मानसिकता भी है। इस बार फिल्‍म के साथ ही इस मानसिकता की भी जीत हुई है। लंबे समय के बाद हिंदी फिल्‍मों के पॉपुलर पुरस्‍कार में खांटी हिंदी समाज और हिंदी मानसिकता की फिल्‍मों को पहचान मिली है। उनमें सक्रिय प्रतिभाओं को पुरस्‍कृत किया गया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। साथ ही इस बात की खुशी भी है कि दर्शकों की सराहना की अनदेखी नहीं की गई। ‘हिंदी मिडियम’ के ही नायक इरफान को 2017 के श्रेष्‍ठ अभिनेता के तौर पर स्‍वीकार किया गया है। यह इरफान की व्‍यक्तिगत उपलब्धि भर भी नहीं है। यह उस समाज की सामूहिक आकांक्षा की जीत है जो लंबे समय से सेंट स्‍टेज पर आने को आकुल और व्‍याकुल है। साधारण नैन-नक्‍श का आम भारतीय नायक पुरस्‍कार के योग्‍य समझा गया। गौर करें तो इस फिल्‍म का नायक राज बत्रा चांदनी चौक,दिल्‍ली का एक सामान्‍य नागरिक है। बीवी के दबाव में वह बेटी को इंग्लिश मिडियम में पढ़ाने की विडंबना से गुजर रहा है। वह हिंदी फिल्‍मों की मुख्‍य धारा का नायक नहीं है। इसी कैटेगरी में अक्षय कुमार,शाह रूख खान,रितिक रोशन और वरुण धवन भी थे। कहते हैं अक्षय कुमार और इरफान के बीच बराबर की टक्‍कर थी। पलड़ा इरफान के पक्ष में भारी हुआ। उल्‍लेखनीय है कि तमाम देशी-विदेशी उपलब्धियों के बावजूद अभी तक इरफान इस पुरस्‍कार की पत्रिका के कवर पर कभी नहीं आए। शायद अब उन्‍हें इस योग्‍य समझा जाए।
अन्‍य पुरस्‍कारों में भी मेनस्‍ट्रीम की फिल्‍मों और कलाकारों का दरकिनार किया गया है। श्रेष्‍इ अभिनेत्री विद्या बालन(तुम्‍हारी सुलु) ने मध्‍यवर्गीय परिवार की सुलोचना का किरदार निभाया है। वह परिवार और समाज में खुद के लिए स्‍पेस चाहती है। परिवार के सदस्‍यों के लांछनों और छींटाकशी के बावजूद अपनी जिद से उसे हासिल करती है। उसे अपने पति का सहयोग मिलता है। सुलोचना भी हिंदी फिल्‍मों की चहेती और प्रचलित नायिका नहीं है। इस बार के नायक और नायिका दोनों ही गृहस्‍थ जीवन में प्रवेश कर चुके व्‍यक्ति हैं। वे पिता और मां हैं। हिंदी फिल्‍मों के प्रेमी-प्रेमिका की उम्र पार कर चके हैं। निर्णायक मंडल की सोच-समझ का यह बदलाव स्‍वागत योग्‍य है। सहायक अभिनेता-अभिनेत्री के लिए भी राजकुमार राव(बरेली की बर्फी) और मेहर विज(सीक्रेट सुपरस्‍टार) को चुना गया। इसी प्रकार श्रेष्‍ठ निर्देशन के लिए ‘बरेली की बर्फी’ की निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी चुनी गईं।
वास्‍तव में पिछले साल हिंदी फिल्‍मों में हिंदी समाज का जोर रहा। लगभग एक दर्जन से अधिक फिल्‍मों में हिंदी समाज की धड़कनें सुनाई पड़ीं। हिंदी समाज हिंदी फिल्‍मों के मनस्‍ट्रीम में आया।

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