सिनेमालोक : विनीत का लाजवाब गुस्सा
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सिनेमालोक
विनीत का लाजवाब गुस्सा
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते रिलीज हुई अनुराग कश्यप निर्देशित
‘मुक्काबाज’ में दर्शकों ने विनीत कुमार सिंह को नोटिस किया। उत्तर प्रदेश के
बैकड्रॉप बनी इस फिल्म में अनुराग कश्यप ने स्थानीय राजनीतिक और सामाजिक
विसंगतियों के बीच एक बेरोजगार युवक के बॉक्सर बनने की कहानी है। वह तमाम अवरोधों
और बाधाओं के बीच जूझता है। अपनी जिद और कुछ शुभचिंतकों के सपोर्ट से बॉक्सर बनने
का ख्वाब पूरा करता है,लेकिन....। इस लेकिन में फिल्म का क्लाइमेक्स है। हम
फिल्म में मुख्य भूमिका अभिनेता विनीत कुमार सिंह ने निभाई है। सभी समीक्षाओं
में विनीत कुमार सिंह की अदाकारी की तारीफ हुई है। अगर आप ट्वीटर पर उनका नाम सर्च
करें तो तारीफ के अनेक ट्वीट मिल जाएंगे। फिल्म देखने के बाद शबाना आजमी ने
अनुराग कश्यप की आत्मविश्वास के साथ वापसी का स्वागत करते हुए विनीत के लिए
कुछ शब्द अलग से कहे। उन्होंने कहा कि मैंने भारतीय सिनेमा में अमिताभ बच्चन के
बाद किसी और अभिनेता को इतने सहज और ठोस तरीके सं गुस्सा जाहिर करते नहीं देखा।
इस लिहाज से विनीत कुमार सिंह नई सदी के एंग्रीयंग मैन हुए। अब यह मुंबई के निर्देशकों
पर निर्भर करता है कि वे उन्हें आगे कैसी फिल्मों और भूमिकाओं में चुनते हैं।
कौन है विनीत कुमार सिंह? विनीत कुमार सिंह 18 साल पहले मुंबई आए। बनारस के
शिक्षाप्रेमी परिवार में पले-बढ़े विनी कुमार सिंह को पिता के दबाव में अनिच्छा
से मेडिकल की पढ़ाई करनी पड़ी। वे एनएसडी जाना चाहते थे(लिकिन पिता की स्पष्ट ना
ने उन्हें पिता की मर्जी की पढ़ाई करने के लिए विवश किया। बहुत आसान होता है ऐसे
मामलों में पिता को दोषी ठहरा देना। गौर करें तो वे अपने समाज और परिस्थिति के
कारण संतानों पर ऐसे फैसले लादते हैं। बहरहाल,विनीत कुमार सिंह ने नागपुर से
आयुर्वे में डिग्री और एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिश करने का लाइसेंस
भी ले लिया। मन तो उनका मुंबई में अटका हुआ था। वह छोटे भाई-कहनों से अपने सपने
शेयर किया करते थे। एक दिन बहन ने ही अखबार में दिखाया कि मुंबई में किसी प्रोडक्शन
हाउस को नए टैलेंट की जरूरत है। विनीत कुमार सिंह मुंबई आ गए।
रोजाना सैकड़ों युवा प्रतिभाएं आंखों में सपने
लिए मुंबई आती हैं। उनमें से ही कुछ शाह रूख खान और मनोज बाजपेयी बनते हैं। संघर्ष
तो सभी को करना पड़ता है। खास कर किसी आउटसाइडर के लिए मुंबई की हिंदी फिल्म
इंडस्ट्री में घुस पाना पुराने जमाने के किसी किले में घुसने से कम नहीं होता।
शुरू में विनीत निर्देशकमहेश मांजरेकर के सहयक बन गए। इस तकलीफ को कलाकार ही बता
सकता है कि दिल में एक्टर बनने के तमन्ना लिए शख्स को किसी और एक्टर के
आगे-पीछे घूमना पड़ता है। मन मसोस कर विनीत ने यह सब किया। इस संघर्ष में उन्होंने
अपने सपनों को कुचलने नहीं दिया। और एक दिन उन्होंने तय किया कि अब वे अभिनय
करेंगे। आरंभ में छोटी-मोटी भूमिकाएं मिलीं। फिर एक दिन अनुराग कश्यप ने उन्हें
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में दानिश खान की भूमिका दी। अनुराग के साथ ही उन्होंने
‘बांबे टाकीज’ की ‘मुरब्बा’ की। और फिर अनुराग की ही फिल्म ‘अग्ली’ के नायक
बने। इन मौकों के बावजूद विनीत की छटपटाहट कम नहीं हो रही थी। उन्होंने तय किया
कि अब वे खुद को नायक बना कर अपनी कहानी लिखेंगे। उन्होंने कहानी लिखी। वही
कहानी विकसित और परिवर्द्धित रूप में ‘मुक्काबाज’ बनी।
विनीत कुमार सिंह ‘मुकाबाज’ की कहानी लेकर
निर्देशकों के पास घूम रहे थे तो सिी ने घास नहीं डाली। उन्हें उनमें हीरो
मैटेरियल नहीं दिख रहा था। वे उनकी कहानी तो पसंद कर रहे थे,लेकिन किरदार किसी और
कलाकार को सौंप देना चाहते थे। विनीत ने साफ मना कर दिया। अनुराग कश्यप फिर से
उनकी जिंदगी में आए। उन्होंने विनीत में विश्वास किया और भरोसा दिया कि मैं फिल्म
बनाऊंगा। एक ही शर्त है कि फिल्म के नायक की तरह तुम बॉक्सर बन कर आ जाओ। विनीत
ने अनुराग कश्यप की सलाह गांठ बांध ली। वे बॉक्सर की ट्रेनिंग लेने लगे।
बॉक्सिंग में दक्ष होने के बाद वे लौटे। उसके बाद की बाकी चीजें अभी ‘मुक्काबाज’
के रूप में दिख रही हैं। यह फिल्म निर्देशक और अभिनेता के परस्पर विश्वास और भरोसे
से बनी फिल्म है।आखिरकार एक प्रतिभा चमकी।
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http://epaperlokmat.in/lokmatsamachar/main-editions/Nagpur%20Main%20/2018-01-16/11#Article/LOKSAM_NPLS_20180116_11_2/600px
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