बोलने दो काम को - अर्जुन कपूर
-अजय ब्रह्मात्मज
अर्जुन कपूर जोश में हैं। की एंड
का की कामयाबी ने उनका आत्मविश्वास बढ़ा इिदया है। चार सालों में सात फिल्मों
में अलग-अलग किरदार निभा कर उन्होंने देश के महानगरों और छोटे शहरों के दर्शकों
के बीच प्रशंसक बना लिए है। उनकी अगली फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड है। इसकी
तैयारियों में जुटे अर्जुन की योजना बिहार जाने और वहां के युवकों से मिलने-जुलने
की है। वे अपने लहजे पर काम कर रहे हैं।
- की एंड का को जो सफलता
मिली,उसकी कितनी उम्मीद थी?
0फिल्म साइन करते समय मुझे विश्वास था
कि यह फिल्म हमारे देश की पचास प्रतिशत फीमेल ऑडियंस कनेक्ट
करेंगी। पर मेरे किरदार को इतना प्यार मिलेगा, इस बारे में मैंने नहीं सोचा था।
सबसे इस तरह का किरदार निभाने के लिए मेरी प्रशंसा की है। मुझसे कहा कि यह डेयरिंग
का काम है। आज के जमाने में हीरो बॉडी दिखाता है। लड़ाई करता है। तुमने एक अलग
तरीके का काम किया है । मैं खुश हूं कि मेरे स्क्रिप्ट सेंस को सराहा गया है। दस
आइडिया में से हम एक आइडिया चुनते हैं। कुल मिलाकर एक पॉजिटिव फीलिंग रही।
-अब यहां से रास्ता किस तरफ जा रहा
है?
सर,अभी तो रास्ता हाफ गर्लफ्रेंड की तरफ जा रहा
है। अगले दो महीने मैं हाफ गर्लफ्रेंड की प्रीपरेशन
करूंगा। इसमें मुझे बिहार के लड़के माधव झा का किरदार निभाना है। इस किरदार में
विस्तार का काम है। मैं बास्केट बॉल प्लेयर भी हूं। उसके साथ भोजपुरी लहजा पकड़ना
है। टोन करेक्ट होनी चाहिए। यह बहुत ही उत्साहित कर देने वाला प्रोजेक्ट है। मोहित
सूरी के साथ मुझे काम करना था। अब जाकर मुझे यह मौका मिला है। हमारा कॉम्बिनेशन अच्छा है। मैं
श्रध्दा और मोहित। बालाजी और साथ में चेतन भगत। मुझे एक गाढ़ी रोमांटिक फिल्म करनी
थी। यह वैसी ही है। इस फिल्म में दर्द है। आप इसे देवदास टाइप का कह सकते हैं। या
फिर आशिकी 2 जैसी।
- बायोपिक का फैशन चल
रहा है उससे जुड़ा हुआ कुछ?
0 जी मैं फैशन में
विश्वास ही नहीं करता हूं। फैशन सोनम कपूर का काम है। मुझे वैसे भी फैशन समझ में
नहीं आता है। बायोपिक का क्या...सीजन का फ्लेवर है। कुछ लोग सोचते हैं कि कर लेना
चाहिए। मैं कभी भी सीजन के हिसाब से काम नहीं करता हूं। ऐसा नहीं है कि मैं
बायोपिक के लिए ना कर रहा हूं। कुछ मिला तो कर लूंगा।
-कुछ डायरेक्टर
होंगे आपकी विश लिस्ट में ....आप इंडस्ट्री से हैं। जान-पहचान है।
0 जी, मेरी जान-पहचान
है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं जा कर कहूं कि मुझे आपके साथ काम करना है।
मैंने अपने करियर के पहले दिन से यह सब नहीं किया। मेरे मेंटोर आदित्य चोपड़ा हैं।
उन्होंने हमेशा यही सिखाया है कि तुम्हारे काम से तुम्हें काम मिलना चाहिए। मुझे
हमेशा लगता है कि मिलो सबसे। सबको जानो। पर अपने काम को बोलने दो। की एंड का
के बाद कोई डायरेक्टर मेरे पास आएं तो मुझे खुशी होगी। रही बात विश लिस्ट की तो
उसमें कई सारे नाम हैं। इम्तियाज अली,फरहान अख्तर,करण जौहर , आदित्य चोपड़ा ,संजय
लीला भंसाली, जोया अख्तर, आनंद एल राय ...सबके साथ ही मुझे काम करना है। अभी तो
शुरूआत की है। सिर्फ सात फिल्में की हैं।
- हाफ गर्लफ्रेंड के लिए क्या
तैयारी है?
0 इसके लिए अभी मैं
लहजा पकड़ रहा हूं। वर्कशॉप कर रहा हूं। मेरे फिल्म में जो दोस्त हैं उनके
साथ वर्कशॉप कर रहा हूं। साथ ही में बास्केट बॉल खेलना सीख
रहा हूं। मुकेश छाबड़ा के यहां वर्कशॉप चल रही है। वह हमारे कास्टिंग डायरेक्टर हैं।
उन्होंने दो-तीन अच्छे लड़के मेरे साथ जोड़ दिए हैं। वे लोग थिएटर कर चुके हैं। बिहार
के लोगों के बात करने का खास लहजा होता है कि चाय वाय लिजिएगा। खाना –वाना खाइएगा।
मुझे वही सुर पकड़ना है। फिल्म में ज्यादा भोजपुरी या बिहारी नहीं है। लेकिन उसका
बात करने का फ्लो भोजपुरी लहजे में ही है। यह एक मजेदार प्रोसेस है। मैं कोशिश कर
रहा हूं।
- किरदारों के साथ
जो आपकी ट्रेवलिंग होती है,वह कैसे आपको बदलती है?
0अगर मैं इशकजादे में
लखनऊ नहीं जाता तो पता ही नहीं चलता कि वहां के लोग कैसे है। मुंबई में एसी कमरे
में बात करने से कुछ पता नहीं चलता है। किरदार को समझने के लिए किरदार के साथ वक्त
बिताना पड़ता है। मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मैं इंडिया के हार्टलैंड में शूटिंग
करता हूं। वहां के लोगों को याद रहता है। वे बहुत प्यार देते हैं। अभी भी मैं जब
जाता हूं तो दिल में बजी घंटियां गाना बजता है। उन्हें गुंडे फिल्म याद है। चाहे
यहां पर किंटिक से दो स्टार मिले। छोटे शहरों से इनका कोई मतलब नहीं है। छोटे शहरों
में मैं गुंड़े और इश्कजादे से पहचाना जाता हूं। वहां के दर्शक टू
स्टेटस और की एंड का से अलग हैं। उनका ध्यान रखना जरूरी है। मैंने साउथ
और गुजरात में शूटिंग। कुछ ना कुछ हर जगह से इकट्ठा किया। मैंने अपने अनुभव में
उन्हें शामिल किया। अब इस फिल्म के लिए बिहार या पटना में शूटिंग करूंगा।
-हाल ही में एक
अभिनेत्री ने आत्महत्या की है। उस पर स्टोरी चल रही है कि छोटे शहरों से जो लोग
यहां करियर बनाने आते हैं,वे यहां के दबाव नहीं सह पाते। आप क्या कहेंगे ?
0 यहां सभी
प्रेशर में हैं। छोटे शहर से आने से यह होता है कि हम मुंबई में कम लोगों को जानते
हैं। अकेला महसूस करते हैं। यहां पर लोग बात नहीं कर पाते।
काम में अधिक समय लगता है। अचानक जिंदगी आपको छोड़ कर आगे बढ़ जाती है और आप पीछे
रह जाते हैं। मैं समझ सकता हूं कि यहां पर लोगों पर प्रेशर रहता है। खासकर टीवी
में। टीवी फिल्म से भी ज्यादा थका देने वाला मीडियम है। फिल्म एक्टर को तो थोडा
समय मिलता है।ऐसे में डॉक्टर से मिलना गलत बात नहीं है। लोगों को लगता है कि डॉक्टर
से मिलना यानि सामने वाला इंसान पागल हो गया है। ऐसा कुछ नहीं है। अगर आप बात
करेंगे आपकी समस्या सुलझेगी। आपको राहें मिलने लगेंगी। इसमें क्या बुरा है। यह मन
हल्का करने वाली बात है। मेरे दोस्त हमेशा कहा करते हैं बात किया करो। मन हल्का
करना जरूरी है। मेरे ख्याल से निजी जीवन में ज्यादा परेशानी रहती है। निजी जीवन
हिलने के बाद सब तहस-नहस हो जाता है।
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