दरअसल : रमन राघव के साथ अनुराग कश्यप
-अजय ब्रह्मात्मज
अनुराग कश्यप ने ‘ बांबे वेलवेट’ की असफलता की कसक को अपने साथ रखा है। उसे एक सबक के तौर पर
वे हमेशा याद रखेंगे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के ढांचे में कुछ नया और बड़ा करने
की कोशिश की थी। मीडिया और फिल्म समीक्षकों ने ‘बांबे
वेलवेट’ को आड़े हाथों लिया। फिल्म रिलीज
होने के पहले से हवा बन चुकी थी। तय सा हो चुका था कि फिल्म के फेवर में कुछ नहीं
लिखना है। यह क्यों और कैसे हुआ? उसके पीछे भी एक कहानी है।
स्वयं अनुराग कश्यप के एटीट्यूड ने दर्जनों फिल्म पत्रकारों और समीक्षकों को
नाराज किया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और फिल्म पत्रकारिता में दावा तो किया जाता
है कि सब कुछ प्रोफेशनल है,लेकिन मैंने बार-बार यही देखा कि ज्यादातर चीजें
पर्सनल हैं। व्यक्तिगत संबंधों,मान-अपमान और लाभ-हानि के आधार पर फिल्मों और
फिल्मकारों का मूल्यांकन होता है। इसमें सिर्फ मीडिया ही गुनहगार नहीं है। फिल्म
इंडस्ट्री का असमान व्यवहार भी एक कारक है। कहते हैं न कि जैसा बोएंगे,वैसा ही
काटेंगे।
बहरहाल, ‘बांबे वेलवेट’ की असफलता को पीछे छोड़ कर अनुराग कश्यप ने ‘रमन राघव 2.0’ निर्देशित की है। इसमें उन्होंने
अपने प्रिय कलकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी प्रतिभा के नए पहलू का बखूबी इस्तेमाल किया
है। उन्होंने विकी कौशल को भी कुछ कर दिखाने का नया मौका दिया है। अनुराग कश्यप
की ‘रमन राघव 2.0’ सातवें दशक के उत्तरार्द्ध में मुंबई के कुख्यात सीरियल
किलर रमन की कहानी है। कहते हैं उसने 40 हत्याएं की थीं। पकड़े जाने पर उसने कहा
था कि उसे ऊपर से आदेश मिलता था। उसके जघन्य अपराधों और हत्या के लिए कोर्ट ने
उसे फांसी की सजा सुनाई थी। बाद में जेल में उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही तो
फांसी की सजा आजीवन कारावास तब्दील कर दी गई। जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई थी।
अनुराग कश्यप ने इसी वास्तविक किरदार के जीवन पर बनी
श्रीराम राघवन की फिल्म ‘रमन राघवख्ए सिटी,ए किलर’ देख रखी थी। वह फिल्म उन्हें इतनी पसंद है कि उन्होंने ही
श्रीराम राघवन का रामगोपाल वर्मा से मिलवाया था। रामगोपाल वर्मा ने श्रीराम राघवन
को ‘एक हसीना थी’ डायरेक्ट करने के लिए दी थी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में
श्रीराम राघवन क्राइम थ्रिलर के सफल निर्देशक माने जाते हें। खुद अनुराग की रुचि
अपराध कथाओं में रहती है। देखें तो अनुराग की इस रुचि की जड़ें बहुत गहरी हैं।
किशोर उम्र में उन्होंने हिंदी में प्रकाशित अपराध पत्रिकाएं ‘मनोंहर कहानियां’ और ‘सत्यकथा’ बड़े चाव से पढ़ी हैं। लेखक
अनुराग कश्यप के विकास में ऐसी कहानियां का योगदान रहा है। बहुत पहले से वे रमन राघव पर फिल्म बनाने की सोचते रहे हैं।
उन्होंने नवाज से बात भी कर रखी थी। इस बीच ‘गैाग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘बांबे वलवेट’ जैसी बड़ी फिल्मों की व्यस्तता से उन्होंने रमन राघव के
नवचार को ताक पर रख दिया था।
‘बांबे वेलवेट’ की असफलता और सभी की प्रतिक्रिया ने उन्हें झकझोर दिया था।
उन्हें लगने लगा था कि शायद फिल्म इंडस्ट्री को उनकी जरूरत नहीं है। उन्होंने
घोषणा भी कर दी थी कि वे फ्रांस जाकर बसने की बात सोच रहे हें। उन्होंने ‘बांबे वेलवेट’ के बाद के अवसाद के क्षणों
में कहा था कि मैा यहां से हार कर नहीं जाऊंगा। मैं साबित करूंगा कि मैा दर्शकों
की पसंद की हिट फिल्में बना सकता हूं। इसी क्रम में फिलहाल ‘रून राघव 2.0’ आ रही है। कान फिल्म
समारोह में इस फिल्म को देख चुके सुधि दर्शकों की राय मानें तो अनुराग कश्यप फिर
से अपने फॉर्म में दिख रहे हैं। उन्होंने ‘रमन राघव2.0’ के जरिए कुछ वाजिब सवाल भी उठाए हैं और समाज के दोहरे चरित्र
और चेहरे को पेश किया है। यह फिल्म विदेशों के वितरकों को भी पसंद आई है। उम्मीद
है कि भारत के दर्शक भी अनुराग कश्यप को उन्के पुराने रंग-ढंग में फिर से पसंद
करेंगे। किसी एक फिल्म की असफलता से फिल्मकार की योग्यता पर सवाल उठाने वाले
आलोचकों को भी ‘रमन राघव2.0’ जवाब देगी।
Comments