दरअसल : मनीष शर्मा की लगन और मेहनत
-अजय ब्रह्मात्मज
मनीष शर्मा निर्देशित ‘फैन’ की चौतरफा तारीफ हो रही है। शाह रुख खान के प्रशंसकों को
उनका अभिनेता मिल गया है। कहा और माना जा रहा है कि एक अर्से के बाद शाह रुख खान
ने अपनी योग्यता और क्षमता का सदुपयोग किया है। वे अनुभवी और समझदार अभिनेता हैं।
उन्होंने सधे निर्देशकों के साथ बेहतरीन और यादगार फिल्में की हैं। वे फिल्में
बाक्स आफिस पर भी चली हैं। अच्छी बात है कि वे घोर कमर्शियल फिल्में करते समय
भी किसी शर्म या अपराध बोध से ग्रस्त नहीं रहते हैं। सुधी समीक्षकों और फिल्म
प्रेमियों की अपने प्रिय कलाकारों से मांग रहती है कि वे केवल सार्थक फिल्मों
मकें ही काम करें। गौर करें तो कोई भी कलाकार निरर्थक फिल्में नहीं करना चाहता।
फिर भी यह सच्चाई है कि हिंदी फिल्मों का मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य दर्शकों
का मनोरंजन करना होता है। दशकों के प्रयोग और विस्तार से हिंदी फिल्मों का एक
ढांचा बना गया है। अधिकांश फिल्मकार उसी ढांचे में काम करते हैं। एक बार सफल हो
गए तो आगामी फिल्मों में उसी सफलता को दोहराना चाहते हैं।
‘निर्देशक मनीष शर्मा की पहली
फिल्म है ‘फेन’।
चौंके मत। मैं कोई भूल नहीं कर रहा हूं। मनीष शर्मा 2006 में जब मुंबई आए और फिल्म
निर्देशन की गरज से आदित्य चोपड़ा से मिले तो उनके पास ‘फैन’ का आयडिया था। वे अपनी फिल्म
में शाह रुख खान को लेना चाहते थे। आदित्य चोपड़ा उनके जोश और विश्वास से बहुत
प्रभावित हुए। उन्होंने यशराज फिल्म्स की फिल्मों में उन्हें सीखने का मौका
दिया। उन्होंने आगाह किया कि ‘फैन’ आप की पहली फिल्म नहीं हो सकती। एक तो आयडिया के स्तर पर
ही यह महंगा विचार था और दूसरे शाह रुख खान अगले डेढ़ सालों के लिए खाली नहीं थे।
आदित्य चोपड़ा ने उन्हें सुझाव दिया कि आयडिया को ताक पर मत रखो। उसे धीमी आंच
पर सीझने दो,लेकिन अभ्यास और अध्यवसाय के लिए दूसरी फिल्मों पर काम करो। मनीष
शर्मा ने आदित्य चोपड़ा के सुझावों पर अमल किया। उन्होंने ‘बैंड बाजा बारात’ पर काम किया।
मुझे याद है। मुंबई के यशराज स्टूडियों के प्रिव्यू
थिएटर में इसकी स्क्रीनिंग थी। यशराज फिल्म्स अपनी फिल्में शुक्रवार के पहले
नहीं दिखाता। उस प्रिव्यू शो में सभी बगैर किसी अपेक्षा के फिल्म देखने गए थे।
उसकी बड़ी वजह थी कि ‘बैंड बाजा बारात’ में एक नया चेहरा था। फिल्म के निर्देशक नए थे। केवल अनुष्का
शर्मा की ‘रब ने बना दी जोड़ी’ आई थी। फिल्म शुरू हुई। न केवल उस नए चेहरे ने,बल्कि फिल्म
ने सभी को बांध लिया। इंटरवल होने तक सभी विस्मित थे। सभी को मनीष शर्मा और रणवीर
सिंह का नंबर चाहिए था। सभी उनसे बात करने और उन्हें बधाई देने को बेताब थे। मनीष
शर्मा को ख्याति और इज्जत मिली। उनकी उम्मीद बढ़ी कि अब अगली फिल्म ‘फैन’ हो जाएगी। यशराज स्टूडियों
में सुगबुगाहट थी कि शाह रुख खान ने दो फिल्मों के लिए हां किया है। उनमें से
पहली फिल्म यश चोपड़ा की ‘जब तक है जान’ होगी। मनीष शर्मा आश्वस्त थे कि दूसरी फिल्म उनकी होगी।
यह तय था,लेकिन यह नहीं मालूम था कि दूसरी फिल्म का समय कब आएगा। इस बीच मनीष
शर्मा को फिर से आदित्य चोपड़ा ने सलाह दी कि तुम क्यो खाली बैठे रहोगे? तुम किसी और आयडिया पर काम करो। उन्होंने खुद ही ‘लेडीज वर्सेस रिकी बहल’ का विचार दिया। यह फिल्म
भी पूरी हो गई। उसके बाद के समय में मनीष शर्मा ने ‘शुद्ध
देसी रोमांस’ भी पूरी कर ली।
आखिरकार तीन फिल्मों के बाद पहली फिल्म ‘फैन’ का नंबर आया। इस संदर्भ में
उल्लेखनीय है कि दस सालों में मनीष शर्मा ने मूल विचार को मरने नहीं दिया। उसे
जिंदा रखा। उसे समृद्ध और मजबूत करते रहे। नतीजा सभी के सामने है। तात्पर्य यह है
कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में निराश और हताश होने से सपने साकार नहीं होते।
सपनों को सींचते रहना जरूरी है। उन्हें हमेशा हरा रखना होता है। तभी मोका मिलने
पर वे पूरे होते हैं। मनीष शर्मा ने अध्यवसाय जारी रखा। मेहनत और लगन से खुद को
मांजते रहे। उन्हों ने कभी विश्राम नहीं किया। यशराज फिल्म्स के बैनर में वे
मध्यवर्गीय जीवन की छौंक लेकर आए। मनीष शर्मा पहले फिल्मकार हैं,जिनकी फिल्म ‘दम लगा कर हईसा’ बतौर निर्माता यशराज फिल्म्स
के बैनर तले आई। मनीष ने साबित किया कि बाहर से आकर भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री
में मुकाम हासिल किया जा सकता है।
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