दिल को छूती दीवनगी - अमित कर्ण
अमित कर्ण ने यह आलेख शोध,संपर्क और इंटरव्यू के आधार पर लिखा है। फैन और स्टार के रिश्तों को को समाान्य रूप से समझने के लिए इसे पढ़ा जाना चाहिए। निश्चित ही यह शाह रुख खान की आगामी फिल्म 'फैन' से प्रेरित है। हिंदी फिल्मों के संदर्भ में अभी तक फैन और स्टार के रिश्तों पर गहन काम नहीं हुआ है। इस पर विस्तार से लिखा जाना चाहिए। इसे एक शुरूआत समझें।
फैन का फितूर
व्यक्ति उपासना की परंपरा वाले इस
मुल्क में नायकों को सनातन काल से बेपनाह मुहब्बत और इज्जत बख्शी जाती रही है।
हर कालखंड में नायक तब्दील होते रहे हैं। पहले जहां राजा-महाराजा, स्वतंत्रता
सेनानी और समाज सुधारक नायक होते थे। अब लोगों का शिफ्ट कला जगत के पुरोधाओं की ओर
हो गया है। नौंवे दशक से पहले मनोरंजन का एकमात्र साधन फिल्में थीं। लिहाजा उसके
साधक यानी फिल्म स्टार के लाखों फैन थे। वे अपने स्टार के लिए कुछ भी करने को
तैयार रहते थे। वह परंपरा आज की संचार
क्रांति के दौर में भी बरकरार है। हिंदी फिल्म जगत से दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेश
खन्ना, अमिताभ बच्चन, शाह रुख, आमिर व सलमान, रितिक रोशन, रणबीर कपूर, प्रियंका
चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, कट्रीना कैफ व करीना कपूर खान के फैन की तादाद बेतहाशा
है। साउथ में वह करिश्मा रजनीकांत, पवन कलयाण, चिरंजीवी, कमल हसन का है। मौजूदा
समय की बात करें तो शाह रुख खान के सबसे ज्यादा आप्रवासी फैन हैं तो सलमान खान के
फैन अपने स्टार के प्रति सबसे ज्यादा लॉएल। साउथ के फैन क्लब तो अपने सितारों
के जन्मदिन धूम-धाम से मनाते हैं हीं, वे परोपकार व समाज कल्याण में भी सक्रिय
रहते हैं। उसकी प्रेरणा उन्हें उनके सितारे देते रहते हैं। 15 अप्रैल को रिलीज हो
रही ‘फैन’ के साथ तो शाह रुख खान के एसआरके फैन क्लब हिंदी फिल्म जगत में संभवत:
पहला अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। वे भारत के 23 शहरों में ‘पहला दिन, पहला शो’ के
टिकट दे रहे हैं। एक ऐसे दौर में जब, लोग अमूमन दूसरों की तरक्की से जलते हों, वे
क्यों किसी स्टार पर जान तक न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। वह भी सिर्फ कम
पढ़े-लिखे लोगों की जमात नहीं, बल्कि अतिशिक्षित लोगों की भी। एक सवाल यह भी कि स्टार
और फैन के बीच भगवान-भक्त सा संबंध होना चाहिए?
-ऐसी दीवानगी, देखी नहीं कहीं
राजेश खन्ना की उनके जमाने में तूती
बोली जाती थी। लोग उन्हें प्यार से काका बुलाते थे। पूरी फिल्म इंडस्ट्री में
कहावत प्रचलित थी- ऊपर आका, नीचे काका। लड़कियों के बीच राजेश खन्ना बेहद
लोकप्रिय थे। उन्होंने काका को खून से खत लिखे। उनके फोटो से शादी तक कर ली। कई
उनका फोटो तकिए के नीचे रखकर सोती थीं। निर्माता-निर्देशक काका के घर के बाहर लाइन
लगाए खड़े रहते थे। वे मुंहमांगे दाम चुकाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। पाइल्स
के ऑपरेशन के लिए एक बार राजेश खन्ना को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। अस्पताल में
उनके इर्द गिर्द के कमरे निर्माताओं ने बुक करा लिए ताकि मौका मिलते ही वे राजेश
को अपनी फिल्मों की कहानी सुना सकें।
देव
आनंद को तो काला कोट पहनने से मना कर दिया गया था। पुणे में उनके नाम पर सदाबहार
देव आनंद उद्यान है। ‘ज्वेलथीफ’ में मशहूर डिजायनर कैप उनके फैन ने डेनमार्क में
गिफ्ट किया था। पेशे से सटोरिए मोहन चूडीवाला तो देव आनंद के मैनेजर बन गए। वे 15
साल तक देव आनंद के मैनजर रहे। खास बात यह कि मोहन चूडीवाला ने वह काम बिना कोई
पैसे लिए किया। मुंबई में दिघी बंदरगाह के प्रबंध निदेशक रह चुके विजय कलंतरी भी
देव आनंद के अनन्य फैन रह चुके हैं। कलंतरी निरंतर उनसे मिला करते थे। देव आनंद को
दादा साहब फाल्के अवार्ड मिलने पर कलंतरी ने लगातार कई दिनों तक अपने दोस्तों को
पार्टी दी।
स्टार
को भगवान सरीखा मानने वाले फैन के अप्रतिम प्यार का उदाहरण अमिताभ बच्चन के
मामले में पेश हुआ, जब ‘कुली’ के दौरान चोटिल होने पर सारा देश उनकी बेहतरी को
पूजा-अर्चना में जुट गया था। अमिताभ बच्चन भी बदले में फैन को पूरा सम्मान देते
हैं। वे हर रविवार अपने घर की बालकनी से फैन को अपनी झलक दिखाते हैं। वे फैन को
अपना विस्तृत परिवार मानते हैं। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर एक फैन की तस्वीर
लगाई हुई है, जो सायकिल रिक्शा चलाता है और उसने रिक्शे का हर हिस्सा अमिताभ
बच्चन की तस्वीर से ढंका हुआ है। बकौल अमिताभ बच्चन, ‘ हम पर प्यार जताने का
उन्हें पूरा हक है। स्टारडम दिलाने में उनकी भी महती भूमिका है। वे अपना कीमती
वक्त, गाढी कमाई व ऊर्जा हम लोगों में निवेश करते हैं। मैं उस चीज का सम्मान
करता हूं।‘
-आज भी बेपनाह दीवानगी
इंटरनेट क्रांति के दौर में भले
सितारों को खून भरे खत नहीं आते, मगर उनके फेसबुक व ट्विटर की दीवारें करोड़ों फैन
के प्यार व सम्मान भरे संदेशों से ठस रहते हैं। साउथ में दीवानगी का आलम अलग
ऊंचाई पर है। रजनीकांत, पवन कल्याण, कमल हसन, चिरंजीवी के ढेर सारे फैन क्लब
हैं। वे सोशल साइटों पर भी अति सक्रिय रहते हैं। नॉर्थ में खानत्रयी तो दो दशकों
से करोड़ों फैन की मुहब्बत पा रहे हैं। फैन की दीवानगी देख यह सवाल कौंधता
है कि कोई कैसे सिर्फ पर्दे या टीवी पर पेश इमेज से बेइंतहा प्यार करने लग जाता
है। मनोवैज्ञानिक बिरादरी फैन के बर्ताव को बड़ा रोचक पाते हैं।
दिल्ली-एनसीआर की
मनोवैज्ञानिक विचित्रा दर्जन आनंद के शब्दों में, ‘ उन्हें हम हिफाजती फैन भी कह
सकते हैं। वे स्टार की दिनचर्या की चिंता में डूब जाते हैं। वे पसंदीदा स्टार की
फीस में उछाल व गिरावट व उनकी जिंदगी की दिक्कतों को अपना मान बैठते हैं। ऐसा
आमतौर पर कम उम्र के लोगों व सितारों के एक्सपोजर से बिल्कुल महरूम फैन के साथ
होता है। उन्हें बेवकूफ कहना जायज नहीं होगा, क्योंकि हर कोई किसी न किसी का फैन
यकीनन है। भारत में खिलाड़ी व अभिनेता को भगवान का दर्जा मिला हुआ है तो अमेरिका
में लोग रॉकस्टार के दीवाने हैं।‘
-रिसर्च यह कहती है
अमेरिकी लेखक वेयन डायरी की स्टार व
फैन के संबंधों पर की गई रिसर्च के मुताबिक, ‘ फिल्मी सितारों को इंसानों का
श्रेष्ठ ब्रैंड बना दिया जाता है। त्रुटिहीन यानी फ्लॉलेस। इस काम में उनकी पीआर
एजेंसी व इमेज मेकओवर करने वाली एजेंसियां रात-दिन लगी रहती हैं। सितारे की खास
इमेज बाहर प्रोजेक्ट की जात है। वही चीज लोगों के दिलोदिमाग पर छप जाती है। हीरो
सदा आदर्शवादी व सर्वगुणसंपन्न दिखाया जाता है। अब तक जिन सितारों ने रंक से राजा
बनने का सफर तय किया है, उनके प्रति दीवानगी का आलम उच्चतम रहा है। मिसाल के तौर
पर अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, शाह रुख खान, दीपिका पादुकोण, कंगना रनोट व प्रियंका
चोपड़़ा। सभी गैर फिल्मी बैकग्राउंड के हैं। उनका कोई गॉडफादर नहीं रहा। वे फिर
भी अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर नंबर वन बने। उन सभी ने असाधारण सफलता हासिल की।
दरअसल, उनके सफर में उनके प्रति हमदर्दी, सम्मान व प्रेरणा के भाव जगते हैं। इन
भावों का सम्मलित रूप मारक मिश्रण यानी डेडली कॉम्बिनेशन तैयार करता है। उससे लोग
खुद ब खुद सितारों के दीवाने हो जाते हैं।
-साउथ के फैन का मामला
सुधीर मिश्रा बताते हैं, ‘ वहां व्यक्ति
पूजा का इतिहास रहा है। वहां के स्टार फिल्मों के बाद राजनीति में भी कदम रखते
रहे हैं। जनसेवा के कार्यों में भी वे बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। उससे उनकी छवि
मसीहा वाली बन जाती है। यह मान लिया जाता है कि जो भी शख्स फिल्मों से जुड़ रहा
है, वह आगे चलकर यकीनन सामाजिक सरोकार के कार्यों से जुड़ेगा। तमिलनाडु में समरूप
संस्कृति है। साउथ के दूसरे इलाकों में कॉस्मौपोलिटन कल्चर चलन कम है। समरूप
यानी होमोजीनियस संस्कृति के चलते उनमें अपने स्टार को लेकर हक और हिफाजत का
रवैया होता है।
भगवान –भक्त सा ना
हो संबंध
हम और आप उसे बताने वाले नहीं होते।
मैं उन्हें एडमायरर के तौर पर देखता हूं। यह इश्क , प्यार और मोहब्बत है।
मोहब्बत में राज बन जाओ, राहुल बन जाओ। उन्हें मना नहीं कर सकते। लब्बोलुआब यह
कि खुद को या अपने पसंदीदा सितारे को चोट या नुकसान पहुंचा प्यार प्रदर्शित करना
सही नहीं। - शाह रुख खान
हम इंसान हैं। हमें भगवान का दर्जा न
दिया जाए। हां, हम उनके प्यार के भूखे हैं। वे हम पर प्यार व तारीफ की बरसात
करते रहें। : आमिर खान
आज की तारीख में स्टार को देख
हैरतअंगेज होने के मामले कम हुए हैं। तकनीक के चलते उन लोगों से सितारों का जुड़ाव
गहरा हुआ है। जो स्मार्ट फोन, कपड़े हम इस्तेमाल करते हैं, हमारे फैन भी वही यूज
करते हैं। वे हमें अपने बीच का मानने लगे हैं। ऐसे में अब हमें भगवान सरीखा बनाने
वाले फैन नहीं हैं। सही मायनों में वह होना भी नहीं चाहिए :- अर्जुन कपूर
हम लोग आज इस ऊंचाई पर अपने फैन के
प्यार की वजह से हैं, मगर मेरी उनसे दरख्वास्त है कि जिस तरह हम उनके प्यार का
पूरा सम्मान करते हैं, ठीक उसी तरह वे हमारे निजी जीवन का सम्मान करें। :
कट्रीना कैफ
Comments
सचिन श्रीवास्तव