बदलता है सिनेमा समाज के साथ्ा - सनी देओल
सनी देओल
-अजय ब्रह्मात्मज
सनी देओल फिर से डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठे हैं। इस
बार वे 1990 में आई अपनी फिल्म ‘घायल’ का सिक्वल ‘घायल वंस अगेन’ निर्देशित कर रहे हैं। इस फिल्म के लिए उन्हें काफी तारीफ
मिली थी। ‘घायल’ के
सिक्वल का इरादा सनी देओल को लंबे समय से मथ रहा था। एक-दो कोशिशों में असफल होने
के बाद उन्होंने बागडोर अपने हाथों में ली और ‘दिल्लगी’(1999) के बाद फिर से निर्देशन की कमान संभाल ली।
-16 सालों के बाद फिर से निर्देशन में आने की जरूरत क्यों
महसूस हुई ?
0 ‘दिल्लगी’ पूरी नहीं हो पा रही थी,इसलिए
मैंने तब जिम्मेदारी ली थी। फिल्म अधिक सफल नहीं रही। हालंाकि मेरे निर्देशन की
सराहना हुई,लेकिन तब बतौर एक्टर मुझे फिल्में मिल रही थीं। फिलमों में एक्टर का
काम थोड़ा आसान होता है। ‘घायल’ मैं बनान चाह रहा था। बहुत कोशिशें कीं। नहीं हो पाया। फिर
लगा कि मुझे ही निर्देशन करना होगा। काम शुरू हुआ तो रायटिंग में भी मजा नहीं आ
रहा था। जो मैं सोच रहा था,वह सीन में नहीं उतर रहा था। नतीजा यह हुआ कि लिखना भी
पड़ा।
-‘घायल’ किस तरह से प्रांसंगिक है ?
0 उस वक्त ‘घायल’ का नायक अजय मेहरा 23 साल
का लड़का था। खास स्थिति में फंसने पर वह कैसे उसमें से निकला और खुद आगे बढ़ा। अब
वह किस रूप में होगा। हमारे आपास जो हादसे होते हैं,वे चलते रहते हें।ऊपर से सब
कुछ सामान्य लगता है,लेकिन अंदर खलबली मची रहती है। अजय मेहरा जैसे किरदार रियल
जिंदगी में नहीं मिलते। मैंने इमैजिन किया है कि अजय मेहरा आज किस हालत और पोजीशन
में होता। अजय मेहरा अभी ‘सत्यकाम’ नाम का अखबार चला रहा है। मेरा मानना है कि सभी चीजों के रूप
बदल गए है। उनके बेसिक स्वभाव पहले जैसे ही हैं। आज बलवंत राय भी बदल गया होगा।
-पिछली फिलम में अजय मेहरा और बलवंत राय की सीधी टक्कर
थी। इस बार चार यंग किरदार भी दिख रहे हैं?
0 उस वक्त सिस्टम अलग था। आज के बड़े लोगों को तो छू
भी नहीं सकते। जब अजय मेहरा जवान था। अभी दूसरे चार जवान किरदार हैं। यह यूथ की ही
लड़ाई है। मुझे लगता है कि दर्शक के साथ ही कहने का ढंग बदल गया है। उनके हिसाब से
तब्दीली करनी पड़ी है।
-आप की अपनी खास फिल्में और शैली रहीं। उनके प्रशंसक
भी रहे। क्या आप को नहीं लगता कि समय के साथ आप को भी बदलना चाहिए था ?
0 मैं पापा और अमित जी के समय
से काम कर रहा हूं। मैं कभी नहीं घबराया। मुझे खास किस्म की फिल्में मिलती रहीं
और वे चलती भी रहीं। मेरे पास अच्छे और नए डायरेक्टर नहीं आए। मैं मानता हूं कि
मेरी फिल्मों में दोहराव दिखा। अभी मैंने सोचा है कि वहीं करूंगा,जो मेरा दिल
कहेगा। मैं बाजार के हिसाब से ही नहीं चलूंगा।मेरी फिल्में लोगों को पसंद आती रही
हैं।
-अभी क्या तब्दीलियां आ गई हैं?
0सही है कि समाज और देश के
साथ सिनेमा भी बदलता है। ऐसा लग रहा है कि
पहले कंटेंट पर ज्यादा ध्यान देते थे। कोई मैसेज होता था। कुछ बात होती थी। अभी
फिल्मों का परसेप्शन बना दिया जाता है। दर्शक धोखा खाने पर भी वैसी ही फिल्में
देखने आ जाते हैं। पहले सिनेमाघरों से निकलने पर फिल्म तारी रहती थी। अभी ऐसा
नहीं होता।
-आगे की क्या योजनांए हैं ?
0 इस फिल्म की रिलीज के पहले ही बॉबी की फिल्म आरंभी
हो जाएगी। अभी तक 15 दिसंबर की तारीख तय है। ‘धयल वंस अगेन’ की रिलीज के बाद बेटे की फिल्म शुरू कर दूंगा। उसे मैं ही
डायरेक्ट करूंगा। आशीष खेतान ने वह फिल्म लिखी है।
-आप के बेटा किस नाम से आएगा ? कैसी तैयारी है ?
- मैं पूछ रहा हूं उस से। उसका नाम करण है। घर में सभी
उसे रॉकी कहते हैं। दोनों में ये कोई एक नाम होगा। करण ने लंदन में पढ़ाई की है।
वह हिंदी फिल्मों से उतना ही वाकिफ है,जितना मैं रहा हूं। अभी वे तैयारी कर रहे
हैं। दूसरा बेटा छोटा है। वह भी फिल्मों में ही आएगा। दोनों को एक्टर ही बनना
है। एक्टिंग तो करने से आती है। उसकी कोई
ट्रेनिंग नहीं हो सकती। लगन होनी चाहिए।
-फिल्म इंडस्ट्री के ही नहीं बाहर के बच्चे भी
हिंदी सिनेमा को क्रैप कह कर खारिज कर देते हैं। ग्लोबल होने के बाद उन्हें बाहर
की ही फिल्में अच्छी लग रही हैं....
0 क्रैप हैं तो आप उन्हें बदलिए। आलोचना और निंदा
करने की आदत हो गई है। नए फिल्मकार आखिरकार क्या कर रहे हैं ? सभी नकल कर रहे हैं या रीमेंक बना रहे हैं।
-आप एक साथ जिम्मेदार बेटा,भाई और पिता है। किस रोल
में ज्यादा संतुष्टि मिलती है ?
0 यह सब मैं ही हूं। हमेशा मैं आगे बढ़ कर काम करता
रहा और फिर सब कुछ करने लगा। मुझे अच्छा लगता है,इसलिए सारी भूमिकाएं निभा रहा
हूं।
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