फिल्‍म समीक्षा : शॉर्टकट रोमियो

21_06_2013-romeo -अजय ब्रह्मात्‍मज 
सुसी गणेश ने अपनी तमिल फिल्म 'थिरूट्टु पायले' को हिंदी में 'शॉर्टकट रोमिया' टायटल के साथ पेश किया है। बताया जा रहा है कि उन्होंने फिल्म में कुछ नए दृश्य जोड़े हैं और इसका स्केल बढ़ा दिया है। फिल्म की कहानी केन्या जाती है और वहां के वन्यजीवों का भी दर्शन कराती है। तमिल में यह फिल्म हिट रही थी, मगर हिंदी में इसे दर्शकों की पसंद बनने के आसार कम हैं।
एक तो फिल्म के सारे किरदार निगेटिव शेड के हैं। फिल्म के नायक सूरज के मामा के अलावा किसी में भी अच्छाई नजर नहीं आती। सभी किसी न किसी प्रपंच में लगे हुए हैं। शांतचित्त दिखने वाला किरदार तक अंत मे खूंखार नजर आता है। जल्दी से अमीर बनने की ख्वाहिश के साथ सूरज ब्लैकमेलिंग की दुनिया में घुस जाता है। सूरज (नील नितिन मुकेश) और मोनिका (अमीषा पटेल) के बीच एक-दूसरे को मात देने की चालें चली जाती हैं। सूरज शातिर और बदमाश है। वह प्रेम और रिश्तों में यकीन नहीं करता। अपनी चालबाजी के दौरान ही उसकी मुलाकात शेरी उर्फ राधिका से हो जाती है। राधिका का एक चुंबन उसे सच्चे प्रेम का एहसास दिला देता है। राधिका की शर्त पर वह सब कुछ छोड़ कर सामान्य जिंदगी में प्रवेश करना चाहता है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती। हिंदी फिल्मों ने हमें बताया है कि बुरे काम का बुरा नतीजा होता है। हम सूरज को ऐसे ही बुरे नतीजे का शिकार होते देखते हैं।
फिल्म में दृश्यों और एक्शन के दोहराव हैं। फिल्म ऊब पैदा करने तक दृश्यों को बढ़ाती चलती है। पता नहीं चलता कि यह निर्देशक की अयोग्यता है या उनका चरम विश्वास..लेकिन फिल्म के प्रति रुचि नहीं बनी रहती। नील नितिन मुकेश फिल्म के केंद्र में हैं। उन्हें पर्याप्त दृश्य मिले हैं एक्शन और इमोशन के..जिन्हें वे स्टायल की बलि चढ़ा देते हैं। कुछ अभिनेता स्टायल को ही एक्टिंग समझने की गलती कर बैठते हैं। पर अभिनेता से अधिक दोषी लेखक और निर्देशक है, जो शूटिंग के समय उन्हें सचेत नहीं करते।
'शॉर्टकट रोमियो' एक ऊबाऊ फिल्म है। अमीषा पटेल, नील नितिन मुकेश, बंटी ग्रेटाल और राजेश श्रृंगारपुरे चारों मुख्य अभिनेताओं ने निराश किया है। पूजा गुप्ता ठीक हैं, मगर उन्हें सीमित दृश्य ही मिले हैं। फिल्म अनावश्यक रूप से लंबी है। एक्शन दृश्यों की डिटेलिंग से कानों में हथौड़े चलने लगते हैं। पता नहीं चलता, लेकिन फिल्म के प्रति बेरूखी बढ़ती जाती है। आखिरकार हम ठगे महसूस करते हैं।
अवधि-147 मिनट
** दो स्टार

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को