सपनों से बंधी ख्वाहिशों की पोटली का बोझ
-अजय ब्रह्मात्मज
पिछले हफ्ते जिया खान की आत्महत्या पर बहुत कुछ लिखा और बोला गया। अभी तक तहकीकात जारी है। आत्महत्या के कारणों का पता चल जाए तो भी अब जिया वापस नहीं आ सकती। भावावेश में लिया गया जिया का फैसला खतरनाक और खौफनाक स्थितियों को उजागर करता है। बाहर से दिख रही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की रोशनी के पीछे घुप्प अंधेरा है। इस अंधेरे की जमीन खुरदुरी और जानलेवा है। पता नहीं चलता कि कब पांव लहूलुहान हो गए या आप किसी सुरंग की ओर मुड़ गए। जिया ने मौत की सुरंग में कदम रखा।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी बेतहाशा खुशी देती है। अचानक लगने लगता है कि आप आसमान में चल रहे हैं, पर गुलजार के शब्दों में इस आसमानी चाल में सितारे पांव में चुभते हैं। एहसास ही नहीं होता कि कब दोस्तों और रिश्तेदारों का संग-साथ छूट गया। अचानक रोने या शेयर करने का मन करता है तो कोई कंधा या सहारा नहीं मिलता। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों से वाकिफ व्यक्तियों को अधिक तकलीफ नहीं होती। उन्हें संभलने या संभालने में देर नहीं लगती। उनक लिए नई राहें खुल जाती हैं। आउटसाइडर यानी बाहर से आई महत्वाकांक्षी प्रतिभाओं के लिए निराशा और हताशा के पल नुकीले और असहनीय होते हैं। आम तौर पर देखा गया है कि छोटी-बड़ी कामयाबी के बाद इन प्रतिभाओं के कंधों पर उनके कथित हितैषियों के सपनों का बोझ भी आ जाता है। रिश्तेदार, दोस्त, सहयोगी और अन्य करीबी भी अपनी ख्वाहिशों की पोटली उनके सपनों से लटका देते हैं। यहां तक कि मां-बाप भी सिर्फ लाभ और स्वार्थ देखते हैं। उन्हें यह चिंता नहीं रहती कि संबंधित व्यक्ति पर क्या गुजर रही है।
जिया की आत्महत्या के बाद उन्हें हिंदी फिल्मों में पहला मौका देने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने माफी मांगते हुए श्रद्धांजलि लिखी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में जिया के करिअर में आई गिरावट और उसकी हताशा का जिक्र किया है। जिया उनसे मिलने भी आई थी। अपनी नियमित व्यस्तता की वजह से वे जिया को पर्याप्त समय नहीं दे पाए थे। उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि अगर उस दिन वे ठीक से जिया को समझा पाते तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती। यह महज संभावना है। क्या हुआ होता तो क्या हो जाता जैसी बातें केवल भाग्यवादी कर सकते हैं। सच्चाई तो यह हे कि जिया के पास काम नहीं था। धमाकेदार शुरुआत के बाद दूसरी फिल्म में उन्हें सेकेंड लीड और तीसरी फिल्म में अतिथि भूमिका मिली। उसके बाद वह फिल्मों के लिए छटपटाती रह गईं। उनकी आत्महत्या के प्रति गहरी संवेदना रखने के बावजूद यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि वह उस स्तर की प्रतिभासंपन्न अभिनेत्री नहीं थीं। अन्यथा अभिनेत्रियों की तलाश में भटकती फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें मौके क्यों नहीं मिले?
करिअर की निराशा के साथ निजी जिंदगी में प्रेम की अनिश्चितता भी जुड़ गई थी। कहना मुश्किल है कि कथित प्रेमी और उनके बीच आखिरी संवाद क्या हुए? लेकिन क्या आज की कोई लडक़ी दिल टूटने या प्यार छूटने पर आत्महत्या का दुस्साहस कर लेगी? कहीं न कहीं आत्मबल और संबल की कमी थी। नजदीकी व्यक्तियों ने जिया की तकलीफ को नहीं समझा। यह भी हो सकता है कि जिया खुद को तनहा पाती हो और इस तनहाई से निजात पाने के लिए उसने क्षणिक आवेश में छलांग लगाने का फैसला कर लिया।
जिया की आत्महत्या सबक है। बाहर से फिल्म इंडस्ट्री में आ रही प्रतिभाएं महत्वाकांक्षाओं के साथ परिवार और दोस्तों का संबल लेकर आएं। यहां कामयाबी के बावजूद अकेलापन घेरता है। आसपास भीड़ तो रहती है, लेकिन उनमें से कोई भी आप की तरह नहीं सोचता। सभी के अपने स्वार्थ होते हैं। वे कलाकार के आंतरिक झंझावातों से अपरिचित और अनजान रहते हैं।
पिछले हफ्ते जिया खान की आत्महत्या पर बहुत कुछ लिखा और बोला गया। अभी तक तहकीकात जारी है। आत्महत्या के कारणों का पता चल जाए तो भी अब जिया वापस नहीं आ सकती। भावावेश में लिया गया जिया का फैसला खतरनाक और खौफनाक स्थितियों को उजागर करता है। बाहर से दिख रही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की रोशनी के पीछे घुप्प अंधेरा है। इस अंधेरे की जमीन खुरदुरी और जानलेवा है। पता नहीं चलता कि कब पांव लहूलुहान हो गए या आप किसी सुरंग की ओर मुड़ गए। जिया ने मौत की सुरंग में कदम रखा।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी बेतहाशा खुशी देती है। अचानक लगने लगता है कि आप आसमान में चल रहे हैं, पर गुलजार के शब्दों में इस आसमानी चाल में सितारे पांव में चुभते हैं। एहसास ही नहीं होता कि कब दोस्तों और रिश्तेदारों का संग-साथ छूट गया। अचानक रोने या शेयर करने का मन करता है तो कोई कंधा या सहारा नहीं मिलता। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के तौर-तरीकों से वाकिफ व्यक्तियों को अधिक तकलीफ नहीं होती। उन्हें संभलने या संभालने में देर नहीं लगती। उनक लिए नई राहें खुल जाती हैं। आउटसाइडर यानी बाहर से आई महत्वाकांक्षी प्रतिभाओं के लिए निराशा और हताशा के पल नुकीले और असहनीय होते हैं। आम तौर पर देखा गया है कि छोटी-बड़ी कामयाबी के बाद इन प्रतिभाओं के कंधों पर उनके कथित हितैषियों के सपनों का बोझ भी आ जाता है। रिश्तेदार, दोस्त, सहयोगी और अन्य करीबी भी अपनी ख्वाहिशों की पोटली उनके सपनों से लटका देते हैं। यहां तक कि मां-बाप भी सिर्फ लाभ और स्वार्थ देखते हैं। उन्हें यह चिंता नहीं रहती कि संबंधित व्यक्ति पर क्या गुजर रही है।
जिया की आत्महत्या के बाद उन्हें हिंदी फिल्मों में पहला मौका देने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने माफी मांगते हुए श्रद्धांजलि लिखी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में जिया के करिअर में आई गिरावट और उसकी हताशा का जिक्र किया है। जिया उनसे मिलने भी आई थी। अपनी नियमित व्यस्तता की वजह से वे जिया को पर्याप्त समय नहीं दे पाए थे। उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि अगर उस दिन वे ठीक से जिया को समझा पाते तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती। यह महज संभावना है। क्या हुआ होता तो क्या हो जाता जैसी बातें केवल भाग्यवादी कर सकते हैं। सच्चाई तो यह हे कि जिया के पास काम नहीं था। धमाकेदार शुरुआत के बाद दूसरी फिल्म में उन्हें सेकेंड लीड और तीसरी फिल्म में अतिथि भूमिका मिली। उसके बाद वह फिल्मों के लिए छटपटाती रह गईं। उनकी आत्महत्या के प्रति गहरी संवेदना रखने के बावजूद यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि वह उस स्तर की प्रतिभासंपन्न अभिनेत्री नहीं थीं। अन्यथा अभिनेत्रियों की तलाश में भटकती फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें मौके क्यों नहीं मिले?
करिअर की निराशा के साथ निजी जिंदगी में प्रेम की अनिश्चितता भी जुड़ गई थी। कहना मुश्किल है कि कथित प्रेमी और उनके बीच आखिरी संवाद क्या हुए? लेकिन क्या आज की कोई लडक़ी दिल टूटने या प्यार छूटने पर आत्महत्या का दुस्साहस कर लेगी? कहीं न कहीं आत्मबल और संबल की कमी थी। नजदीकी व्यक्तियों ने जिया की तकलीफ को नहीं समझा। यह भी हो सकता है कि जिया खुद को तनहा पाती हो और इस तनहाई से निजात पाने के लिए उसने क्षणिक आवेश में छलांग लगाने का फैसला कर लिया।
जिया की आत्महत्या सबक है। बाहर से फिल्म इंडस्ट्री में आ रही प्रतिभाएं महत्वाकांक्षाओं के साथ परिवार और दोस्तों का संबल लेकर आएं। यहां कामयाबी के बावजूद अकेलापन घेरता है। आसपास भीड़ तो रहती है, लेकिन उनमें से कोई भी आप की तरह नहीं सोचता। सभी के अपने स्वार्थ होते हैं। वे कलाकार के आंतरिक झंझावातों से अपरिचित और अनजान रहते हैं।
Comments
उसके जनाजे में
बहुत से लोग शामिल थे
उनमें
कुछ दूर के,कुछ पास के
कुछ करीब के,कुछ नजदीक के
मगर!कोई अपना सा न था
उसके माँ थी
भाई थे,बहन थी और
कहीं न कहीं,चौड़ी-छाती बाला
कद्दावर एक बाप भी था
मगर!नुमाइशी चेहरों में
सारा कुछ सपना सा था
इस चमकती दुनियां में
वो - रात
उसने अकेले दरो- दीवारों के साथ काटी थी
आप बीती खिड़की पर्दों को सुनाई
साँसो में उलझी -उलझी सी बेकरारी थी
वो रात ! काली ही काली थी ॥॥
स्वरचित-सीमा सिंह ॥॥