फिल्म समीक्षा : डेल्ही सफारी

सबसे पहले निखिल आडवाणी को इस साहस के लिए बधाई कि उन्होंने एनीमेशन फिल्म को धार्मिक, पौराणिक और मिथकीय कहानियों से बाहर निकाला। ज्यादातर एनीमेशन फिल्मों के किरदार आम जिंदगी से नहीं होते। 'डेल्ही सफारी' में भी आज के इंसान नहीं हैं। निखिल ने जानवरों को किरदार के रूप में चुना है। उनके माध्यम से उन्होंने विकास की अमानवीय कहानी पर उंगली उठाई है।
मुंबई के सजय गाधी नेशनल पार्क में युवराज पिता सुल्तान और मा के साथ रहता है। जंगल के बाकी जानवर भी आजादी से विचरते हैं। समस्या तब खड़ी होती है, जब एक बिल्डर विकास के नाम पर जंगलों की कटाई आरंभ करता है। बुलडोजर की घरघराहट से जंगल गूंज उठता है। सुल्तान बिल्डर के कारकुनों के हत्थे चढ़ जाता है और मारा जाता है। पिता की मौत से आहत युवराज देश के प्रधानमत्री तक जंगल की आवाज पहुंचाना चाहता है। इसके बाद डेल्ही सफारी शुरू होती है। युवराज और उसकी मा के साथ बग्गा भालू, बजरंगी बदर और एलेक्स तोता समेत कुछ जानवर दिल्ली के लिए निकलते हैं। दिल्ली की रोमाचक यात्रा में बाधाएं आती हैं। सारे जानवर प्रवक्ता के तौर पर एलेक्स तोता को ले जा रहे हैं, क्योंकि वह मनुष्यों की भाषा समझता और बोल सकता है।
निखिल आडवाणी ने सभी जानवरों की आवाजों के लिए अनुभवी कलाकारों को एकत्रित किया है। उनकी वजह से फिल्म का प्रभाव बढ़ जाता है। युवराज की मा के किरदार को उर्मिला मातोडकर और बजरंगी को गोविदा की आवाज मिली है। दोनों ने किरदार के मनोभावों का ख्याल रखा है। बग्गा के लिए बमन ईरानी की आवाज सटीक है। अन्य जानवरों को सौरभ शुक्ला, सुनील शेट्टी, स्वीनी खरा, दीपक डोबरियाल और सजय मिश्र की आवाजें मिली हैं।
एनीमेशन के लिहाज से निखिल आडवाणी की टीम ने सुंदर और प्रभावपूर्ण काम किया है। जानवरों के एक्सप्रेशन और उनके सवादों में तालमेल है। सवाद कथ्य के अनुकूल हैं। निश्चित ही निखिल आडवाणी और गिरीश धमीजा का प्रयास प्रशसनीय है। एक ही बात खटकती है.. जानवरों का नाचना और गाना। मान-मनौव्वल करते हुए सुल्तान का गाना किसी फिल्मी हीरो और साग सिचुएशन की याद दिलाता है। इस एक खोट के अलावा 'डेल्ही सफारी' उल्लेखनीय एनीमेशन फिल्म है।
निर्देशक-निखिल आडवाणी, निर्माता-क्रेयान पिक्चर्स, लेखक- सुरेश नायर और गिरीश धमीजा, सगीत-शकर एहसॉन लाय, गीत- समीर, अवधि-96 मिनट
***1/2
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