हां हिंदी,ना हिंदी
-अजय ब्रह्मात्मज
आज हिंदी दिवस है। देश-विदेश की अनेक बैठकों और सभाओं में फिल्मों के
संदर्भ में हिंदी की बात होगी। बताया जाएगा कि हिंदी के विकास में हिंदी
फिल्मों की बड़ी भूमिका है। जो काम हिंदी के शिक्षक, अध्यापक और प्रचारक
नहीं कर पाए, वह काम हिंदी फिल्मों ने कर दिया। ऊपरी तौर पर इसमें पूरी
सच्चाई है।
पिछले 70 सालों में हिंदी फिल्मों के संवाद और गाने सुनकर अनेक विदेशी
और गैर हिंदी भाषियों ने हिंदी समझनी शुरू कर दी है। हिंदी फिल्मों से
हिंदी के प्रति उनकी रुचि जागी और उनमें से कुछ आज हिंदी के क˜र समर्थक
हैं। उन्होंने अपने हिंदी ज्ञान का श्रेय भी हिंदी फिल्मों को दिया है।
हिंदी फिल्मों की भाषा ऐसी हिंदी होती है जिसे देश के किसी भी कोने में
बैठा दर्शक समझ सके। हिंदी फिल्मों की भाषा वर्गीय दीवारों को तोड़ती है।
वह हर तबके के दर्शकों के लिए एक सी होती है। फिल्मों में आवाज आने के साथ
संवादों का चलन हुआ और इन संवादों की भाषा को सरल और बोधगम्य बनाने की हर
कोशिश की गई। शुरू में रंगमंच और पारसी थिएटर से आए लेखकों ने इसका स्वरूप
तय किया। फिर समाज के विकास के साथ भाषायी प्राथमिकता भी बदली। इन दिनों एक
साथ अंग्रेजी बहुल हिंदी, मुंबइया हिंदी, स्थानीय लहजे की हिंदी और
बोलियों से प्रभावित हिंदी का चलन है।
फिल्मों के परिवेश के हिसाब से संवादों की भाषा तय की जाती है। संवाद
लेखक और निर्माता मिलकर इसे तय करते हैं। अंतिम लक्ष्य एक ही होता है कि
फिल्म लक्षित दर्शकों की समझ में आ सके। लेकिन हिंदी फिल्मों में हमें
जो-जो पर्दे पर दिखाई और सुनाई देता है, वही सच नहीं है। सभी जानते हैं कि
भारत में राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करनी है तो हिंदी आनी चाहिए, वैसे ही
मनोरंजन के बड़े बाजार के लिए हिंदी अनिवार्य हो गई है। टीवी शो, समाचार
चैनल और फिल्मों की भाषा हिंदी हो तो दर्शकों का दायरा बढ़ता है। दर्शकों
के अनुपात में कमाई भी बढ़ती है। कोशिश होती है कि सहज-सरल हिंदी रखी जाए।
इस काम के लिए हिंदी के कॉपी राइटर और डॉयलॉग राइटर रखे जाते हैं। टीवी शो
हिंदी में लिखे जाते हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों के लिए यह बात नहीं कही जा
सकती। हिंदी फिल्मों में हिंदी की स्थिति दयनीय है।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी को अंगे्रजी का लकवा मार गया है। इन दिनों
हिंदी फिल्मों की 90 प्रतिशत स्क्रिप्ट अंगे्रजी में लिखी जाती है। उसके
संवाद रोमन में लिखे जाते हैं, ताकि उसे आज के अंगे्रजीदां कलाकार व अन्य
लोग पढ़ सकें । तर्क यह दिया जाता है कि हिंदी में लिखने की अनेक दिक्कतें
हैं। पहली दिक्कत तो यही है कि वे लोग उसे पढ़ नहीं सकते। हिंदी पढ़ने की
उनकी क्षमता मिडिल स्कूल के स्तर की होती है और लिखने की क्षमता प्राइमरी
स्कूल के स्तर की..। अमिताभ बच्चन अपवाद हैं, जो हिंदी में स्क्रिप्ट
मांगते हैं और भाषागत अशुद्धि दिखने पर सुधार भी करते हैं। निर्देशकों में
हिंदी प्रदेशों से आए निर्देशक ही हिंदी में लिखना-पढ़ना पसंद करते हैं। नई
पीढ़ी के अधिकांश निर्देशक और लेखक स्क्रिप्ट राइटिंग के सॉफ्टवेयर के चलन
के बाद अंग्रेजी में ही लिखने में सहूलियत महसूस करते हैं।
सच्चाई यही है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी सुनकर समझी जाती है और
बोलकर बता दी जाती है। डबिंग के समय कोई सहायक निर्देशक भाषा की मामली
शुद्धता का खयाल रखता है। हर एक पंक्ति कलाकार को लहजे के साथ बताई जाती
है। कलाकार तत्क्षण उसकी नकल कर बोल देते हैं। दर्शक इठलाते रहते हैं कि
उनके प्रिय कलाकार हिंदी बोल रहे हैं। चर्चा होती है कि हिंदी के विकास में
हिंदी फिल्में योगदान कर रही हैं। इस योगदान और वास्तविक स्थिति को समझने
के लिए ऊपरी और भीतरी सच के फर्क को ध्यान में रखना होगा। फिल्म इंडस्ट्री
में हिंदी व्यवहार की भाषा नहीं रह गई है। सिर्फ उसका उपयोग किया जाता है।
Comments
http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/2011/11/blog-post_25.html
हाँ, अमिताभ के लिए एक सवा; है कि जब वे सफल हुए तब उनके पिता हरिवंश राय जीवित थे। क्या वे इतने बड़े हिन्दी के साहित्यकार के बेटे नहीं होते तब भी यही कहते-बोलते सुने जाते?
हिंदी भारत की शान ...
जो बनाएगी भारत को और भी महान ....
जय हिंद, जय भारत