मैं सिर्फ और सिर्फ दीपिका के लिए फिल्म देखूंगा. उनके मामले में मुझे इस बात से बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि वो क्या पहनी है,क्या नहीं.फिल्म की थीम क्या है और ट्रीटमेंट क्या है ? तीन घंटे स्टिल ही रोल करके दिखाता रहे तो भी देखूंगा. अजय सर आपने मेरी सुबह बना दी. बिना नाश्ता किए ही भरा-भरा लग रहा है.
कोई सम्बन्ध ही नहीं, दोनों का। फिल्म फिर भी देखेंगे..
Anonymous said…
कोई सम्बन्ध ही नहीं, दोनों का। फिल्म फिर भी देखेंगे.. ha ha ha ha mast
Anonymous said…
Tasveer to aapne dikha di hi h,film dekhne k liye ye zaruri ni h.aajkal internet me sabkuch mil jata h.film k pahle din ka response dekhne k baad hum jayenge.
सिनेमालोक साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों जमशेदपुर की फिल्म अध्येता और लेखिका विजय शर्मा के साथ उनकी पुस्तक ‘ऋतुपर्ण घोष पोर्ट्रेट ऑफ अ डायरेक्टर’ के संदर्भ में बात हो रही थी. उनकी यह पुस्तक नॉट नल पर उपलब्ध है. विजय शर्मा ने बांग्ला के मशहूर और चर्चित निर्देशक ऋतुपर्ण घोष के हवाले से उनकी फिल्मों का विवरण और विश्लेषण किया है. इस पुस्तक को पढ़ते हुए मैंने गौर किया कि उनके अधिकांश फिल्में किसी ने किसी साहित्यिक कृति पर आधारित हैं. उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला साहित्य पर केंद्रित हैं. दो-तीन ही विदेशी भाषाओं के लेखकों की कृति पर आधारित होंगी. विजय शर्मा से ही बातचीत के दरमियान याद आया कि भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्मों में साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की प्रबल धारा दिखती है. एक बार कन्नड़ के प्रसिद्ध निर्देशक गिरीश कसरावल्ली से बात हो रही थी. उन्होंने 25 से अधिक फिल्में साहित्य से प्रेरित होकर बनाई हैहैं. मलयालम, तमिल, तेलुगू में भी साहित्यिक कृतियों पर आधारित फ़िल्में मिल जाती हैं. सभी भाषाओं के फिल्मकारों ने अपनी संस्कृति और भाष...
दुनिया औरतों की -अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों में पुरुष किरदारों के भाईचारे और दोस्ती पर फिल्में बनती रही हैं। यह एक मनोरंजक विधा(जोनर) है। महिला किरदारों के बहनापा और दोस्ती की बहुत कम फिल्में हैं। इस लिहाज से पैन नलिन की फिल्म ‘ एंग्री इंडियन गॉडेसेस ’ एक अच्छी कोशिश है। इस फिल्म में सात महिला किरदार हैं। उनकी पृष्ठभूमि अलग और विरोधी तक हैं। कॉलेज में कभी साथ रहीं लड़कियां गोवा में एकत्रित होती हैं। उनमें से एक की शादी होने वाली है। बाकी लड़कियों में से कुछ की शादी हो चुकी है और कुछ अभी तक करिअर और जिंदगी की जद्दोजहद में फंसी हैं। पैन नलिन ने उनके इस मिलन में उनकी जिंदगी के खालीपन,शिकायतों और उम्मीदों को रखने की कोशिश की है। फिल्म की शुरुआत रोचक है। आरंभिक मोटाज में हम सातों लड़कियों की जिंदगी की झलक पाते हैं। वे सभी जूझ रही हैं। उन्हें इस समाज में सामंजस्य बिठाने में दिक्कतें हो रही हैं,क्योंकि पुरुष प्रधान समाज उनकी इच्छाओं को कुचल देना चाहता है। तरजीह नहीं देता। फ्रीडा अपनी दोस्तों सुरंजना,जोअना,नरगिस,मधुरिता औ...
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