नए अंदाज का सिनेमा है रा. वन - अनुभव सिन्हा
रा. वन में विजुअल इफेक्ट के चार हजार से अधिक शॉट्स हैं। सामान्य फिल्म में दो से ढाई हजार शॉट्स होते हैं। विजुअल इफेक्ट का सीधा सा मतलब है कि जो कैमरे से शूट नहीं किया गया हो, फिर भी पर्दे पर दिखाई पड़ रहा हो। 'रा. वन' से यह साबित होगा कि हम इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के विजुअल इफेक्ट कम लागत में भारत में तैयार कर सकते हैं। अगर 'रा. वन' को दर्शकों ने स्वीकार कर लिया और इसका बिजनेस फायदेमद रहा तो भारत में दूसरे निर्माता और स्टार भी ऐसी फिल्म की कोशिश कर पाएंगे।
भारत में 'रा. वन' अपने ढंग की पहली कोशिश है। विश्व सिनेमा में बड़ी कमाई की फिल्मों की लिस्ट बनाएं तो ऊपर की पाच फिल्में विजुअल इफेक्ट की ही मिलेंगी। भारत में 'रा. वन' की सफलता से क्रिएटिव शिफ्ट आएगा। यह भारत में होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि यह हिंदी में होगा।
ऐसी फिल्म पहले डायरेक्टर और लेखक के मन में पैदा होती हैं। डायरेक्टर अपनी सोच विजुअल इफेक्ट सुपरवाइजर से शेयर करता है। इसके अलावा विजुअल इफेक्ट प्रोड्यूसर भी रहता है। इस फिल्म में दो सुपरवाइजर हैं। एक लास एंजल्स के हैं और दूसरे यहीं के। आम शूटिंग में जो रोल कैमरामैन प्ले करते हैं, वही रोल विजुअल इफेक्ट सुपरवाइजर का होता है। मान लीजिए, मैंने माग रखी कि मेरा एक कैरेक्टर आग के बीच से आता दिखाई पड़े। अब विजुअल इफेक्ट डायरेक्टर तय करेगा कि कैसे आर्टिस्ट को चलना है, कैसे आग शूट करना है और कैसे दोनों में मेल बिठाना है, ताकि दर्शक आर्टिस्ट को आग के बीच से आते देखकर रोमाचित हों।
विजुअल इफेक्ट दो प्रकार के होते हैं। एक में तो दर्शकों को मालूम रहता है कि यह विजुअल इफेक्ट ही है जैसे कि हवा में उड़ना या ऊंची बिल्डिंग से कूदना, लेकिन आग के बीच से आर्टिस्ट के निकलने के शॉट में पता नहीं चलना चाहिए कि विजुअल इफेक्ट है। 'जुरासिक पार्क' में अगर डायनासोर को देखते समय विजुअल इफेक्ट दिमाग में आ जाता तो मजा चौपट हो जाता।
'रा. वन' एक बाप-बेटे की कहानी है, जिसमें बाप सुपर हीरो बन जाता है। बेसिक इमोशनल फिल्म है। इस फिल्म में सुपरहीरो थोपा नहीं गया है। बच्चा, मा और सुपरहीरो तीनों ही कहानी में गुथे हुए हैं। बाप-बेटे का रिश्ता बहुत उभर कर आया है। सक्षेप में कहूं तो यह भारतीय सुपरहीरो की फिल्म है। उसकी एक फैमिली भी है। फिल्म की कहानी लदन से शुरू होती है, भारत आती है और फिर लदन जाती है।
इस फिल्म में 'रा. वन' को व्यक्तिगत तकलीफ दे दी गई है। वह तबाही पर उतारू है। इस फिल्म के लिए शाहरुख ने न कर दिया होता तो मैं लिखता भी नहीं। मैं तो प्रोड्यूसर शाहरुख खान के पास गया था। मुझे मालूम था कि प्रोड्यूसर मिला तो स्टार मिल ही जाएगा। मुझे कमिटमेंट चाहिए था। वह विजन के साथ जुड़े। तीन साल पहले 2008 में हमने 100 करोड़ की फिल्म की कल्पना की थी। मुझे ऐसा प्रोड्यूसर-एक्टर चाहिए था, जो फिल्म से जुड़े और दिल से जुड़े। इस फिल्म में दुनिया के मशहूर और अनुभवी तकनीशियनों को जोड़ा गया है। उन सभी के योगदान से फिल्म बहुत बड़ी हो गई है।
'रा. वन' शीर्षक की कहानी भी दिलचस्प है। मैं एक ऐसे खलनायक की कल्पना कर रहा था, जो अभी तक के सभी खलनायकों से अधिक खतरनाक हो। मैंने यूं ही कहा कि 10 खूाखार दिमाग मिला दें तो वह तैयार हो। वहीं से 10 सिरों के रावण का ख्याल आया और हमारे विलेन का नाम 'रा. वन' पड़ा। वही बाद में फिल्म का शीर्षक हो गया। हीरो का नाम 'जी. वन' रखने में थोड़ी परेशानी जरुर हुई, क्योंकि जीवन नामक एक्टर निगेटिव भूमिकाएं करते थे। वैसे जीवन मतलब जिंदगी है, इसलिए 'रा. वन' के खिलाफ 'जी. वन' की कल्पना अच्छी लगी।
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.. दीपावली की शुभकामनाएं !!