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एक तस्वीर:दिल्ली ६,अभिषेक बच्चन और...
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इस तस्वीर के बारे में आप की टिप्पणी,राय,विचार,प्रतिक्रिया का स्वागत है.यह तस्वीर पीवीआर,जुहू,मुंबई में २२ फरवरी को एक खास अवसर पर ली गई है.बीच में घड़ी के साथ मैं हूँ आप सभी का अजय ब्रह्मात्मज.
आप अभिषेक के साथ है, खुशी की बात है. आपकी मुस्कुराहट सब कुछ कह देती है.:)
लेकिन कभी जाली के बीच लिखे दिल्ली-6 नाम पर नज़र डालियेगा, ये आपको अंग्रेजी में मिलेगा, उर्दू में भी मिल जायेगा, लेकिन कभी नक्काशी के बीच इस नाम को देवनागरी हिन्दी में खोजने की कोशिश कीजियेगा.
मैंने भी की, लेकिन ये हर जगह उर्दू और अंग्रेजी में ही मिले.
मैंने दिल्ली-6 फिल्म बड़े पर्दे पर देखी है और जितना याद आता है, नक्काशी में फिल्म का नाम हिंदी में भी है। वैसे, यहां भाषा का मसला उठाने का कोई मतलब समझ में नहीं आता। एक माहौल बनाने, एक काल-स्थान को प्रतीकों के जरिए जाहिर करने की बात है, बस।
अगर आप विदेशी फिल्में देखना पसंद करते हैं और स्टीफन स्पीलबर्ग (जुरासिक पार्क वाले) की 'अमिस्ताद'देखी हो तो याद करें, उसमें शुरुआत के कोई 15 मिनट तक अफ्रीका के आदिवासियों की भाषा में ही विचार-विमर्ष चलता है, जिसके सब-टाइटल्स तक नहीं दिए गए हैं। क्योंकि वहां भाषा के शब्दों को समझना उतना महत्वपूर्ण नहीं है।
स्लमडॉग मिलियनेयर को ही लें, इंग्लैंड की, इंग्लिश फिल्म में करीब आधी बातचीत, गाली आदि हिंदी-मुंबइया हिंदी में है, जिसको समझने और पुरस्कार के लिए चुनने में हॉलीवुडी ज्यूरी को कोई दिक्कत नहीं हुई!
फिल्म के टाइटिल में नाम हिन्दी में देना बाध्यता है, मैं खंभों पर लगे पोस्टरों के विज्ञापन की बात कर रहा हुं. इनमें अंग्रेजी और उर्दू के विज्ञापन है लेकिन हिन्दी में कतई नहीं है,
स्पीलवर्ग की किस अंग्रेजी पिक्चर के पोस्टर अंग्रेजी में नहीं है? स्लमडॉग मिलियोनेर केर अंग्रेजी संस्करण के पोस्टर क्या अंग्रेजी में नहीं हैं? फिर हिन्दी भाषा के नाम पर अपने पेट में निवाले गटकने वाले इन फिल्म निर्माताओं को हिन्दी से परहेज क्यों? कौन से कारण है जो इनकी हिन्दी फिल्म के नाम अंग्रेजी और उर्दू में देने पर मज़बूर करते हैं?
सिनेमालोक साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों जमशेदपुर की फिल्म अध्येता और लेखिका विजय शर्मा के साथ उनकी पुस्तक ‘ऋतुपर्ण घोष पोर्ट्रेट ऑफ अ डायरेक्टर’ के संदर्भ में बात हो रही थी. उनकी यह पुस्तक नॉट नल पर उपलब्ध है. विजय शर्मा ने बांग्ला के मशहूर और चर्चित निर्देशक ऋतुपर्ण घोष के हवाले से उनकी फिल्मों का विवरण और विश्लेषण किया है. इस पुस्तक को पढ़ते हुए मैंने गौर किया कि उनके अधिकांश फिल्में किसी ने किसी साहित्यिक कृति पर आधारित हैं. उनकी ज्यादातर फिल्में बांग्ला साहित्य पर केंद्रित हैं. दो-तीन ही विदेशी भाषाओं के लेखकों की कृति पर आधारित होंगी. विजय शर्मा से ही बातचीत के दरमियान याद आया कि भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्मों में साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों की प्रबल धारा दिखती है. एक बार कन्नड़ के प्रसिद्ध निर्देशक गिरीश कसरावल्ली से बात हो रही थी. उन्होंने 25 से अधिक फिल्में साहित्य से प्रेरित होकर बनाई हैहैं. मलयालम, तमिल, तेलुगू में भी साहित्यिक कृतियों पर आधारित फ़िल्में मिल जाती हैं. सभी भाषाओं के फिल्मकारों ने अपनी संस्कृति और भाष...
दुनिया औरतों की -अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों में पुरुष किरदारों के भाईचारे और दोस्ती पर फिल्में बनती रही हैं। यह एक मनोरंजक विधा(जोनर) है। महिला किरदारों के बहनापा और दोस्ती की बहुत कम फिल्में हैं। इस लिहाज से पैन नलिन की फिल्म ‘ एंग्री इंडियन गॉडेसेस ’ एक अच्छी कोशिश है। इस फिल्म में सात महिला किरदार हैं। उनकी पृष्ठभूमि अलग और विरोधी तक हैं। कॉलेज में कभी साथ रहीं लड़कियां गोवा में एकत्रित होती हैं। उनमें से एक की शादी होने वाली है। बाकी लड़कियों में से कुछ की शादी हो चुकी है और कुछ अभी तक करिअर और जिंदगी की जद्दोजहद में फंसी हैं। पैन नलिन ने उनके इस मिलन में उनकी जिंदगी के खालीपन,शिकायतों और उम्मीदों को रखने की कोशिश की है। फिल्म की शुरुआत रोचक है। आरंभिक मोटाज में हम सातों लड़कियों की जिंदगी की झलक पाते हैं। वे सभी जूझ रही हैं। उन्हें इस समाज में सामंजस्य बिठाने में दिक्कतें हो रही हैं,क्योंकि पुरुष प्रधान समाज उनकी इच्छाओं को कुचल देना चाहता है। तरजीह नहीं देता। फ्रीडा अपनी दोस्तों सुरंजना,जोअना,नरगिस,मधुरिता औ...
Comments
Agli baar kab milwa rahe ho????
लेकिन कभी जाली के बीच लिखे दिल्ली-6 नाम पर नज़र डालियेगा, ये आपको अंग्रेजी में मिलेगा, उर्दू में भी मिल जायेगा, लेकिन कभी नक्काशी के बीच इस नाम को देवनागरी हिन्दी में खोजने की कोशिश कीजियेगा.
मैंने भी की, लेकिन ये हर जगह उर्दू और अंग्रेजी में ही मिले.
अगर आप विदेशी फिल्में देखना पसंद करते हैं और स्टीफन स्पीलबर्ग (जुरासिक पार्क वाले) की 'अमिस्ताद'देखी हो तो याद करें, उसमें शुरुआत के कोई 15 मिनट तक अफ्रीका के आदिवासियों की भाषा में ही विचार-विमर्ष चलता है, जिसके सब-टाइटल्स तक नहीं दिए गए हैं। क्योंकि वहां भाषा के शब्दों को समझना उतना महत्वपूर्ण नहीं है।
स्लमडॉग मिलियनेयर को ही लें, इंग्लैंड की, इंग्लिश फिल्म में करीब आधी बातचीत, गाली आदि हिंदी-मुंबइया हिंदी में है, जिसको समझने और पुरस्कार के लिए चुनने में हॉलीवुडी ज्यूरी को कोई दिक्कत नहीं हुई!
कल ही हमने delhi 6 देखी है । और पसंद भी आई ।
मैं खंभों पर लगे पोस्टरों के विज्ञापन की बात कर रहा हुं. इनमें अंग्रेजी और उर्दू के विज्ञापन है लेकिन हिन्दी में कतई नहीं है,
स्पीलवर्ग की किस अंग्रेजी पिक्चर के पोस्टर अंग्रेजी में नहीं है? स्लमडॉग मिलियोनेर केर अंग्रेजी संस्करण के पोस्टर क्या अंग्रेजी में नहीं हैं? फिर हिन्दी भाषा के नाम पर अपने पेट में निवाले गटकने वाले इन फिल्म निर्माताओं को हिन्दी से परहेज क्यों? कौन से कारण है जो इनकी हिन्दी फिल्म के नाम अंग्रेजी और उर्दू में देने पर मज़बूर करते हैं?