दरअसल:मखौल बन गए हैं अवार्ड समारोह
-अजय ब्रह्मात्मज
पहली बार किसी ने सार्वजनिक मंच से अवार्ड समारोहों में चल रहे फूहड़ संचालन के खिलाफ आवाज उठाई है। आशुतोष गोवारीकर ने जोरदार तरीके से अपनी बात रखी और संजीदा फिल्मकारों के उड़ाए जा रहे मखौल का विरोध किया। साजिद खान और फराह खान को निश्चित ही इससे झटका लगा होगा। उम्मीद है कि भविष्य में उन्हें समारोहों के संचालन की जिम्मेदारी देने से पहले आयोजक सोचेंगे और जरूरी हिदायत भी देंगे।
पॉपुलर अवार्ड समारोहों में मखौल और मजाक के पीछे एक छिपी साजिश चलती रही है। इस साजिश का पर्दाफाश तभी हो गया था, जब शाहरुख खान और सैफ अली खान ने सबसे पहले एक अवार्ड समारोह में अपनी बिरादरी के सदस्यों का मखौल उड़ाया था। कुछ समय पहले सैफ ने स्पष्ट कहा था कि उस समारोह की स्क्रिप्ट में शाहरुख ने अपनी तरफ से कई चीजें जोड़ी थीं। मुझे बाद में समझ में आया कि वे उस समारोह के जरिए अपना हिसाब बराबर कर रहे थे। आशुतोष गोवारीकर और साजिद खान के बीच मंच पर हुए विवाद को आम दर्शक शायद ही कभी देख पाएं, लेकिन उस शाम के बाद अवश्य ही साजिद जैसे संचालकों के खिलाफ एक माहौल बना है।
गौर करें, तो साजिद और उन जैसे संचालक गंभीर और संवेदनशील फिल्मकारों को ही अपना निशाना बनाते रहे हैं। कभी उनकी फिल्मों के नाम से, तो कभी फिल्मों की थीम का उल्लेख कर हंसी-मजाक करते रहे हैं। इस हंसी-मजाक में उनके गंभीर प्रयासों का मखौल उड़ाया जाता है। कोशिश यही रहती है कि खास तरह के सिनेमा और खास समूह के फिल्मकारों की फिल्मों की धज्जियां उड़ाई जाएं और इस तरह साधारण और पॉपुलर किस्म की फिल्मों का माहौल तैयार किया जाए। दरअसल, यह बहुत ही खतरनाक साजिश है। मंच और समारोहों तक ही यह मखौल सीमित नहीं रहता। उनकी फिल्मों के अंदर भी ऐसे दृश्य और रेफरेंस रखे जाते हैं।
करण जौहर, शाहरुख खान और उनके आसपास के सितारे और डायरेक्टर इस मखौल से बचे रहते हैं। उन्हें कभी निशाना नहीं बनाया जाता। वास्तव में, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में समूहबाजी तेजी से बढ़ी है। पॉपुलर सितारों के आसपास मतलबी किस्म के लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस भीड़ में छोटे स्टार, डायरेक्टर, निर्माता और यहां तक कि पत्रकार भी शामिल होते हैं। कहते हैं कि अपने अवार्ड समारोहों में सितारों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए मीडिया समूह भी इस गुटबाजी का हिस्सा बन जाते हैं। सभी अपने-अपने स्वार्थो के वशीभूत साजिश में शामिल होते हैं और एक घिनौना कुचक्र चलता रहता है। इस कुचक्र में विरोधी खेमों के स्टारों और फिल्मों पर छींटाकशी की जाती है। उन्हें आड़े हाथों लिया जाता है और बगैर संदर्भ के वनलाइनर के जरिए उन्हें हंसी का मसाला भी बना दिया जाता है। एक लॉजिक दिया जाता है कि चूंकि सारे अवार्ड समारोह और इवेंट टीवी चैनलों से प्रसारित होते हैं, इसलिए टीवी प्रसारण में दर्शकों को जोड़े रखने के लिए हंसी का माहौल रहना चाहिए। किसी भी अवार्ड समारोह में विजेताओं को फिल्म पर ज्यादा बोलने की अनुमति नहीं दी जाती। बहाना रहता है कि समय कम है। सब कुछ जल्दी-जल्दी समेटना है। ऐसी सूरत में हम क्रिएटिव लोगों के विचार और अनुभव नहीं सुन पाते। हां, परफॉर्मेस जरूर दिखाया जाता है, ताकि दर्शक टीवी से चिपके रहें और टीआरपी बढ़ती रहे।
धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि सारे अवार्ड समारोह सिर्फ टीवी इवेंट बन कर रह जाएंगे। उनमें न तो उल्लेखनीय फिल्मों की कद्र होगी और न किसी कलाकार के अभिनय को ही सराहा जाएगा! स्टारों को खुश करने और उन्हें समारोह में मौजूद रखने के लिए पुरस्कारों की झटपट कैटॅगरी तैयार कर ली जाएगी। देखा गया है कि समारोह में आए सभी स्टारों को किसी न किसी तरीके से मंच पर बुला ही लिया जाता है और कुछ नहीं, तो उन्हें पुरस्कार देने का काम सौंप दिया जाता है। पहले से न तो कोई सूची बनी रहती है और न ही ऐसी तैयारी होती है कि फिल्म बिरादरी से जुड़े सभी सदस्य आएं। अवार्ड समारोह और उसके संचालन को लॉफ्टर शो में तब्दील कर रही सोच पर आशुतोष गोवारीकर ने आपत्ति की है। उन्होंने जरूरी पहल तो कर दी है। अब इसे आगे ले जाने और मखौल को पूरी तरह से रोकने की जिम्मेदारी फिल्म बिरादरी पर है। अब देखते हैं कि आशुतोष गोवारीकर के समर्थन में फिल्म बिरादरी के लोग कदम आगे बढ़ाते हैं या नहीं?
पॉपुलर अवार्ड समारोहों में मखौल और मजाक के पीछे एक छिपी साजिश चलती रही है। इस साजिश का पर्दाफाश तभी हो गया था, जब शाहरुख खान और सैफ अली खान ने सबसे पहले एक अवार्ड समारोह में अपनी बिरादरी के सदस्यों का मखौल उड़ाया था। कुछ समय पहले सैफ ने स्पष्ट कहा था कि उस समारोह की स्क्रिप्ट में शाहरुख ने अपनी तरफ से कई चीजें जोड़ी थीं। मुझे बाद में समझ में आया कि वे उस समारोह के जरिए अपना हिसाब बराबर कर रहे थे। आशुतोष गोवारीकर और साजिद खान के बीच मंच पर हुए विवाद को आम दर्शक शायद ही कभी देख पाएं, लेकिन उस शाम के बाद अवश्य ही साजिद जैसे संचालकों के खिलाफ एक माहौल बना है।
गौर करें, तो साजिद और उन जैसे संचालक गंभीर और संवेदनशील फिल्मकारों को ही अपना निशाना बनाते रहे हैं। कभी उनकी फिल्मों के नाम से, तो कभी फिल्मों की थीम का उल्लेख कर हंसी-मजाक करते रहे हैं। इस हंसी-मजाक में उनके गंभीर प्रयासों का मखौल उड़ाया जाता है। कोशिश यही रहती है कि खास तरह के सिनेमा और खास समूह के फिल्मकारों की फिल्मों की धज्जियां उड़ाई जाएं और इस तरह साधारण और पॉपुलर किस्म की फिल्मों का माहौल तैयार किया जाए। दरअसल, यह बहुत ही खतरनाक साजिश है। मंच और समारोहों तक ही यह मखौल सीमित नहीं रहता। उनकी फिल्मों के अंदर भी ऐसे दृश्य और रेफरेंस रखे जाते हैं।
करण जौहर, शाहरुख खान और उनके आसपास के सितारे और डायरेक्टर इस मखौल से बचे रहते हैं। उन्हें कभी निशाना नहीं बनाया जाता। वास्तव में, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में समूहबाजी तेजी से बढ़ी है। पॉपुलर सितारों के आसपास मतलबी किस्म के लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस भीड़ में छोटे स्टार, डायरेक्टर, निर्माता और यहां तक कि पत्रकार भी शामिल होते हैं। कहते हैं कि अपने अवार्ड समारोहों में सितारों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए मीडिया समूह भी इस गुटबाजी का हिस्सा बन जाते हैं। सभी अपने-अपने स्वार्थो के वशीभूत साजिश में शामिल होते हैं और एक घिनौना कुचक्र चलता रहता है। इस कुचक्र में विरोधी खेमों के स्टारों और फिल्मों पर छींटाकशी की जाती है। उन्हें आड़े हाथों लिया जाता है और बगैर संदर्भ के वनलाइनर के जरिए उन्हें हंसी का मसाला भी बना दिया जाता है। एक लॉजिक दिया जाता है कि चूंकि सारे अवार्ड समारोह और इवेंट टीवी चैनलों से प्रसारित होते हैं, इसलिए टीवी प्रसारण में दर्शकों को जोड़े रखने के लिए हंसी का माहौल रहना चाहिए। किसी भी अवार्ड समारोह में विजेताओं को फिल्म पर ज्यादा बोलने की अनुमति नहीं दी जाती। बहाना रहता है कि समय कम है। सब कुछ जल्दी-जल्दी समेटना है। ऐसी सूरत में हम क्रिएटिव लोगों के विचार और अनुभव नहीं सुन पाते। हां, परफॉर्मेस जरूर दिखाया जाता है, ताकि दर्शक टीवी से चिपके रहें और टीआरपी बढ़ती रहे।
धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि सारे अवार्ड समारोह सिर्फ टीवी इवेंट बन कर रह जाएंगे। उनमें न तो उल्लेखनीय फिल्मों की कद्र होगी और न किसी कलाकार के अभिनय को ही सराहा जाएगा! स्टारों को खुश करने और उन्हें समारोह में मौजूद रखने के लिए पुरस्कारों की झटपट कैटॅगरी तैयार कर ली जाएगी। देखा गया है कि समारोह में आए सभी स्टारों को किसी न किसी तरीके से मंच पर बुला ही लिया जाता है और कुछ नहीं, तो उन्हें पुरस्कार देने का काम सौंप दिया जाता है। पहले से न तो कोई सूची बनी रहती है और न ही ऐसी तैयारी होती है कि फिल्म बिरादरी से जुड़े सभी सदस्य आएं। अवार्ड समारोह और उसके संचालन को लॉफ्टर शो में तब्दील कर रही सोच पर आशुतोष गोवारीकर ने आपत्ति की है। उन्होंने जरूरी पहल तो कर दी है। अब इसे आगे ले जाने और मखौल को पूरी तरह से रोकने की जिम्मेदारी फिल्म बिरादरी पर है। अब देखते हैं कि आशुतोष गोवारीकर के समर्थन में फिल्म बिरादरी के लोग कदम आगे बढ़ाते हैं या नहीं?
Comments
aashutosh nae jo kehaa bilkul sahii samay aur sahii jagah kehaa lekin ek bhi vyakti nae unka samrthan nahin kiyaa aur taali nahin bajaayee
sajid , farha , saif , shahrukh aur karan johar nae bahut tagdaa group banaa rakha haen jo phuhad haasya ko aagey badhaataa haen
Best wishes
Roomy Naqvy
http://issuesinacademics.blogspot.com/