राहुल उपाध्याय:बिग बी ब्लॉग के अनुवादक

चवन्नी की मुलाक़ात राहुल उपाध्याय से ब्लॉग पर ही हुई.चवन्नी को उनका नुवाद सरल,प्रवाहपूर्ण और मूल के भावानुरूप लगा.चवन्नी ने उनसे बात भी की.पेश है उनसे हुई संक्षिप्त बातचीत...
-आपने अमिताभ बच्चन के ब्लॉग के अनुवाद के बारे में क्यों सोचा?
मैंने कई लोगों को यह कहते हुए पाया कि अमिताभ अंग्रेज़ी में क्यों लिख रहे हैं। जबकि उनकी फ़िल्में हिंदी में हैं। उन फ़िल्मों को देखने वाले, उन्हें चाहने वाले अधिकांश हिंदी भाषी हैं। और ऐसा सवाल उनसे एक साक्षात्कार में भी किया गया था। सुनने में आया हैं कि अमित जी भरसक प्रयास कर रहे हैं ताकि वे हिंदी में ब्लाग लिख सके। कुछ अड़चनें होगी। कुछ उनकी सीमाएं होगी। जिनकी वजह से 170 दिन के बाद भी वे हिंदी में ब्लाग लिखने में असमर्थ हैं। मुझे भी शुरु में कुछ अड़चने पेश आई थी। आजकल यूनिकोड की वजह से हिंदी में लिखना-पढ़ना-छपना आसान हो गया है। तो मैंने सोचा कि क्यों न उनका बोझ हल्का कर दिया जाए। अगर मैं अनुवाद कर सकता हूँ तो मुझे कर देना चाहिए। बजाए इसके कि बार बार उनसे अनुरोध किया जाए और बार बार उन्हें कोसा जाए कि आप हिंदी में क्यों नहीं लिखते हैं। जो पाठक हिंदी में पढ़ना चाहते हैं अब उनके लिए अमित जी का ब्लाग उपलब्ध है हिंदी में यहाँ:http://amitabhkablog-hindi.blogspot.com/
-अमिताभ बच्चन के बारे में आपकी क्या धारणा है?
वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एक सशक्त अभिनेता। उन्होंने कुछ यादगार गीत भी गाए हैं। मैं बचपन से उनका प्रशंसक हूँ। जबसे मैंने उनकी फ़िल्म 'आनंद' देखी थी, 5 वीं कक्षा में। उसके बाद से उनकी हर फ़िल्म देखी हैं। 'मिस्टर नटवरलाल', 'दो और दो पाँच', 'दीवार', 'फ़रार', 'अभिमान', 'मुक़द्दर का सिकंदर' आदि हर फ़िल्म एक से बढ़ कर एक थी। 'अकेला', 'जादूगर' आदि के समय की फ़िल्मों ने निराश किया। लेकिन उनका सितारा फिर बुलंद हुआ और अब उनकी तकरीबन हर दूसरी फ़िल्म अच्छी होती है।
-अमिताभ बच्चन की पोस्ट कितनी जल्दी आप अनुवाद करते हैं?
अनुवाद करने में ज्यादा से ज्यादा एक घंटा लगता है। उनका ब्लाग कब पोस्ट होता है उसका कोई निश्चित समय नहीं है और न ही कोई स्वचालित तरीका है पता करने का। इसलिए दिन में जब भी मौका मिलता है मैं देख लेता हूँ कि कोई नई पोस्ट आई हो तो अनुवाद कर दूँ। अभी तक 172 वें दिन की पोस्ट का इंतज़ार है।
-आपको कैसी प्रतिक्रियाएं मिली हैं?
सब ने बधाई दी है। कहा कि यह सार्थक प्रयास है। हिंदी पढ़ने-समझने वालों के लिए ये उपयोगी साबित होगा। कुछ ने चिंता ज़ाहिर की है कि कहीं अमित जी नाराज़ न हो जाए कि बिना उनकी अनुमति के मैंने ये कदम कैसे उठा लिया। मैंने अभी तक किसी को कोई जवाब नहीं दिया है। लेकिन तीन बातें आपसे कहना चाहूँगा।1 - इरादे अगर नेक हो तो काम बुरा नहीं हो सकता।2 - मैंने उन्हे 168 वें दिन की 40 वीं टिप्पणी में लिख दिया है कि अगर उन्हें इस अनुवाद से आपत्ति हो तो मुझसे कहे और मैं अनुवाद करना और पोस्ट करना बंद कर दूँगा। अगर वे चाहे तो मेरा अनुवाद अपने ब्लाग के साथ रख सकते हैं। या फिर वे मुझसे बेहतर अनुवादक से कह दे कि वे अनुवाद कर के एक हिंदी का ब्लाग खोल दे।3 - गाँधी जी ने कहा था कि 'be the change you want to see in the world' दुनिया बदलनी हो तो पहले खुद को बदलो। इस का मैंने ये अर्थ निकाला कि अमित जी से आग्रह करने के बजाए खुद ही क्यों न अनुवाद कर दूँ?
-आप अमेरिका के किस शहर और पेशे में हैं?
मैं अमेरिका के 'सिएटल' शहर में रहता हूँ। पिछले 22 साल से अमेरिका में हूँ। पहले चार साल पढ़ाई की फिर पिछले 18 साल सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में काम किया। पिछली जुलाई तक मैं माईक्रोसाफ़्ट में काम कर रहा था। फ़िलहाल 1 साल के अवकाश पर हूँ। चिंतन में हूँ कि आगे क्या करूँ? ज़िंदगी एक ही होती है। ये कोई अनिवार्य तो नहीं कि इस ज़िंदगी में एक ही तरह का काम किया जाए। चाहता हूँ कि कुछ नया करूँ। कुछ अलग करूँ। कोरी किताबी ज़िंदगी न जीऊँ। कुछ लीक से हटकर काम करूँ। पैसे कमाने का ज़ुनून नहीं हैं। कुछ कर गुज़रने का है।
-भारत में कहाँ के रहने वाले हैं?
मैं रतलाम (मध्य प्रदेश) का रहने वाला हूँ। जहाँ से मैंने सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद शिमला, कलकत्ता, बनारस से शिक्षा प्राप्त की।
-कितनी हिन्दी फिल्में देखते हैं?
हर शुक्रवार को एक फ़िल्म देख लेता हूँ पूरे परिवार के साथ। घर पर। प्रोजेक्टर पर। घर में टी-वी नहीं है। कमरे की दीवार को पर्दा बना रखा है। पिछली जुलाई से, जब से नौकरी छोड़ी है, और चिंतन में लगा हूँ, तब से फ़िल्म देखना भी छोड़ दिया है। इन दिनों एक एक पल कुछ नया करने की दिशा में खर्च हो रहा है।
-हिन्दी फिल्मों के बारे में आप क्या सोचते हैं?
हिंदी फ़िल्मों ने मेरे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। माँ की परिभाषा, बहन की इज़्ज़त, राखी की गरिमा, होली-दीवाली का महत्व - ये सब हिंदी फ़िल्मों से ही सीखा है। संक्षेप में - हिंदी फ़िल्मों से ही मुझे भारतीय संस्कार मिले हैं और उनका ज्ञान हुआ है। 'दीवार' फ़िल्म का छोटा सा डायलाग - 'मेरे पास माँ है' - बहुत बड़ी बात कह जाता है। जिसे कि दुनिया की कोई और फ़िल्म नहीं समझा सकती है और न हीं कोई दूसरी भाषा का दर्शक उसे समझ सकता है।
आप चाहें तो उन्हें upadhyay@yahoo.com पर पत्र भेज सकते हैं.

Comments

Yunus Khan said…
अचानक एक दिन राहुल के चिट्ठे पर पहुंचे तो दंग रह गये । क्‍या अनुवाद, क्‍या कौशल, क्‍या भाव । फौरन उन्‍हें अपनी प्रति्क्रिया दी । मुझे लगता है कि अमिताभ को अपने चिट्ठे पर राहुल का खास जिक्र करना चाहिए ये कहते हुए कि एक बंदा है जो उनके लिए हिंदी में मशक्‍कत कर रहा है । उनके चाहने वाले इस बंदे की मेहनत को सलाम कर सकते हैं इस जगह पर जाकर ।
अजय जी ये बात आप अमिताभ तक पहुंचा सकते हैं । मैंने इतने अच्‍छे अनुवाद बहुत कम देखे हैं । राहुल मध्‍यप्रदेश के हैं ये जानकर थोड़ा रोमांच हुआ । आप इसे जो चाहे कह लें पर अपने 'इलाक़े' के लोगों के बारे में जानकर अच्‍छा ही लगता है । ये प्रदेशवाद नहीं है पर जो कुछ है अच्‍छा ही है ।
राहुल के बारे में जो जो जानना था सब आपने 'पहुंचा' दिया है ।
इसके लिए आपका शु्क्रिया अदा करना जरूरी है ।
राहुल की फ़्यूजन कविताएँ भी ग़ज़ब की हैं. भले ही अभी लोग इस पर नाक भौं सिकोड़ें, मगर भविष्य में इस तरह के मौलिक विधा के साहित्य पर कई शोघार्थियों को उनकी उपाधि भी मिलेगी ये भी तय है. राहुल को नया, बहुत कुछ कर गुजरने की शुभकामनाएँ.
राहुल जी, अमिताभ के अंग्रेज़ी ब्लॉग का फ़ीड पता यह है -
http://blogs.bigadda.com/ab/feed/

इसके जरिए फीड रीडर पर नए ब्लॉग प्रविष्टि को स्वचालित प्राप्त करने में आपको क्या कोई समस्या आ रही है?
gulshan said…
RAHUL JI NAMSKAR, AAPNE KAHAA FILHAL AAP CHINTAN ME HAI.... YAKINAN AISI CONDITION ME BAHUT KUCH MUSKIL HOA HAI....LEKIN AAPKA YE "AMITABH JI KO HINDI ME ANUBAD KARNE KA SAHAS" EK AISA RESULT LEKAR AAYEGA JO AAPKO BEHATAR LOGO SE JODKAR AAPKI BAHUT SI KHOJO KO POSIBLE BANAYEGA. SUBHKAMNAYE......."LAGE RAHO"

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