नया हिंदी सिनेमा -अनुराग कश्यप
(अनुराग कश्यप ने अपने ब्लोग पर नये पोस्ट में नया हिन्दी सिनेमा को लेकर अपना पक्ष रखा है.चवन्नी आज उसका एक अंश प्रस्तुत कर रहा है.पूरा आलेख एक-दो दिनों में आपके सामने होगा)
कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता .. बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है …
हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने के लिए छाप दिया जाता है … ' नो स्मोकिंग ' के बारे में दिया गया इंटरव्यू कुछ और हो जाता है और उसका शीर्षक बनता है ' यशराज हमारी परवाह नहीं करता …'हां, मैं यह कहता हूं, लेकिन जिस संदर्भ या बात के दौरान कहता हूं … वह हमेशा कट जाता है। इस से मुझे जो नुकसान होना होता है, वह तो हो ही जाता है, लेकिन जो बात रखना चाहता हूं…वह बात नहीं आ पाती … इसलिए मैंने सोचा कि मैं बगैर लाग-लपेट के बात करूं … पिछले एक महीने में मेरे और पीएफसी के प्रति लोग बलबला रहे हैं और कई उंगलियां हमारी तरफ उठ रही हैं … कई लोगों को इसमें मजा आ रहा है। एक व्यक्ति ने मुझे नए फिल्मकारों का मसीहा कहा … उन्होंने कहा कि मैं यही होना चाहता हूं … नहीं … अजय जी से बातचीत के दरम्यान उद्घृत करने लायक पंक्ति आ गई … मैं तब से लगातार उसका इस्तेमाल कर रहा हूं … ' यहां जो हो रहा है, वह गदर है, आजादी बाद में आएगी … अगर 1857 का गदर नहीं हुआ होता तो 1947 में आजादी नहीं मिली होती … ' पीएफसी पर जो हो रहा है, वह मेरा किया हुआ नहीं है, मैं पीएफसी नहीं हूं, यह मेरा साइट है, क्योंकि मैं यहां लिखता हूं … यह मेरा खरीदा हुआ साइट नहीं है, मैं मालिक नहीं हूं … मेरी राय पीएफसी की राय नहीं है, पीएफसी मुझ से ज्यादा लोकतांत्रिक है …
हां, मैं बदलाव चाहता हूं … हां, मैं लोगों को साथ लाना चाहता हूं, लेकिन मैं यहां दोस्तों का प्रचार नहीं कर रहा हूं …फिल्मकारों से मेरी दोस्ती उनकी फिल्में देखने के बाद उनकी फिल्मों से प्रेरित होने के कारण हुई … कॉफी विद करण पर केवल पलटवार किया जाता है …वहां वही मेहमान बार-बार आते हैं और एक-दूसरे को खुश करने में लगे रहते हैं। मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे पापा और चाचा और चाची मुझे प्यारे लगते हैं …अगर अभिषेक, ऋतिक रोशन aur शाहरुख खान में से ही बड़े स्टार के बारे में पूछा जाएगा तो क्या जवाब मिलेगा …वहां आमिर का नाम क्यों नहीं लिया जाता …कॉफी विद करण परस्पर हस्तमैथुन का क्लब है …पीएफसी ऐसा नहीं है … यहां हम ' दूसरे की पीठ थपथपाते ' हैं … मुझ पर आरोप है कि मैं अपने दोस्तों की फिल्में प्रचारित करता हूं … मैंने जिन फिल्मों की बातें की थीं … उनमें से पांच रिलीज हो चुकी हैं …भेजा फ्राय, मनोरमा, जॉनी गद्दार, दिल दोस्ती एटसेट्रा और लॉयन्स ऑफ पंजाब … इनमें से पहली के अलावा बाकी कोई जोरदार सफलता नहीं हासिल कर सकी …लेकिन वे सभी प्रेरक हैं और बदलाव का संकेत दे रही हैं …उनमें ताजगी है और उन्हें मैं नया हिंदी सिनेमा कहना चाहूंगा …'
कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता .. बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है …
हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने के लिए छाप दिया जाता है … ' नो स्मोकिंग ' के बारे में दिया गया इंटरव्यू कुछ और हो जाता है और उसका शीर्षक बनता है ' यशराज हमारी परवाह नहीं करता …'हां, मैं यह कहता हूं, लेकिन जिस संदर्भ या बात के दौरान कहता हूं … वह हमेशा कट जाता है। इस से मुझे जो नुकसान होना होता है, वह तो हो ही जाता है, लेकिन जो बात रखना चाहता हूं…वह बात नहीं आ पाती … इसलिए मैंने सोचा कि मैं बगैर लाग-लपेट के बात करूं … पिछले एक महीने में मेरे और पीएफसी के प्रति लोग बलबला रहे हैं और कई उंगलियां हमारी तरफ उठ रही हैं … कई लोगों को इसमें मजा आ रहा है। एक व्यक्ति ने मुझे नए फिल्मकारों का मसीहा कहा … उन्होंने कहा कि मैं यही होना चाहता हूं … नहीं … अजय जी से बातचीत के दरम्यान उद्घृत करने लायक पंक्ति आ गई … मैं तब से लगातार उसका इस्तेमाल कर रहा हूं … ' यहां जो हो रहा है, वह गदर है, आजादी बाद में आएगी … अगर 1857 का गदर नहीं हुआ होता तो 1947 में आजादी नहीं मिली होती … ' पीएफसी पर जो हो रहा है, वह मेरा किया हुआ नहीं है, मैं पीएफसी नहीं हूं, यह मेरा साइट है, क्योंकि मैं यहां लिखता हूं … यह मेरा खरीदा हुआ साइट नहीं है, मैं मालिक नहीं हूं … मेरी राय पीएफसी की राय नहीं है, पीएफसी मुझ से ज्यादा लोकतांत्रिक है …
हां, मैं बदलाव चाहता हूं … हां, मैं लोगों को साथ लाना चाहता हूं, लेकिन मैं यहां दोस्तों का प्रचार नहीं कर रहा हूं …फिल्मकारों से मेरी दोस्ती उनकी फिल्में देखने के बाद उनकी फिल्मों से प्रेरित होने के कारण हुई … कॉफी विद करण पर केवल पलटवार किया जाता है …वहां वही मेहमान बार-बार आते हैं और एक-दूसरे को खुश करने में लगे रहते हैं। मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे पापा और चाचा और चाची मुझे प्यारे लगते हैं …अगर अभिषेक, ऋतिक रोशन aur शाहरुख खान में से ही बड़े स्टार के बारे में पूछा जाएगा तो क्या जवाब मिलेगा …वहां आमिर का नाम क्यों नहीं लिया जाता …कॉफी विद करण परस्पर हस्तमैथुन का क्लब है …पीएफसी ऐसा नहीं है … यहां हम ' दूसरे की पीठ थपथपाते ' हैं … मुझ पर आरोप है कि मैं अपने दोस्तों की फिल्में प्रचारित करता हूं … मैंने जिन फिल्मों की बातें की थीं … उनमें से पांच रिलीज हो चुकी हैं …भेजा फ्राय, मनोरमा, जॉनी गद्दार, दिल दोस्ती एटसेट्रा और लॉयन्स ऑफ पंजाब … इनमें से पहली के अलावा बाकी कोई जोरदार सफलता नहीं हासिल कर सकी …लेकिन वे सभी प्रेरक हैं और बदलाव का संकेत दे रही हैं …उनमें ताजगी है और उन्हें मैं नया हिंदी सिनेमा कहना चाहूंगा …'
Comments
चारों में से कोई मैंने भी नहीं देखी, और अब सिनेमाओं से हट चुकी हैं। अगर एक ही देखने का समय हो तो कौन सी देखने की सिफ़ारिश करेंगे आप?
Your translation of the FAMOUS 'Anurag Kashyap blog' is truly commendable.I have read the english blog and now the hindi version of it.The spirit of the blog has not been 'Lost In Translation'.
I am especially writing this comment to encourage such efforts because reading such blogs are not the prerogative of the so called 'English Speaking Elites'.
This effort,if only to a fractional extent,has helped in bridging the divide between the english and the hindi speaking intelligentsia.Reading this,both the groups can,at least,think about it in the same sense,if not on a common platform or a similar language.Such a phenomenon is not common.
Despite the praise,I would like to bring to your notice a small carelessness which cannot be overlooked however.In the context of the 'Koffee With Karan' show,you have interpreted HR as Himesh Reshammiya,whereas it actually refers to Hritik Roshan.Such laxity cannot be easily overlooked.
Nevertheless, your effort is truly laudable. Keep up your effort.
keep on reading...
will bring more articles in hindi.